महिला मजदूर वर्तमान समाज में मजदूर बतौर शोषित तो है ही, साथ ही साथ उन्हें महिला होने के नाते, दोहरे शोषण का शिकार बनाया जाता है। इस समस्या पर पुरोगामी महिला संगठन के कार्यकर्ताओं ने 17 दिसंबर को न्यू ट्रेड यूनियन इनिशियेटिव (एन.टी.यू.आई.) द्वारा आयोजित एक कानफरेंस में भाग लिया, जिसकी रिपोर्ट मजदूर एकता लहर को मिली है। उस कानफरेंस में देश के कई इलाकों से आयी महिलाओं ने कुछ विशेष मुद्दे उठाये,
महिला मजदूर वर्तमान समाज में मजदूर बतौर शोषित तो है ही, साथ ही साथ उन्हें महिला होने के नाते, दोहरे शोषण का शिकार बनाया जाता है। इस समस्या पर पुरोगामी महिला संगठन के कार्यकर्ताओं ने 17 दिसंबर को न्यू ट्रेड यूनियन इनिशियेटिव (एन.टी.यू.आई.) द्वारा आयोजित एक कानफरेंस में भाग लिया, जिसकी रिपोर्ट मजदूर एकता लहर को मिली है। उस कानफरेंस में देश के कई इलाकों से आयी महिलाओं ने कुछ विशेष मुद्दे उठाये, जिन्हें मजदूर एकता लहर में यहां पेश किया जा रहा है।
सरकारी महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों की काम की हालतें बहुत ही दयनीय हैं। 'आशा' (एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट) कार्यक्रम के तहत गांवों की महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी देने तथा सरकारी स्वास्थ्य सेवायें मुहैया कराने का काम इन सरकारी महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा लगभग मुफ्त में करवाया जाता है। देशभर में कई लाखों महिलायें इस 'आशा' कार्यक्रम के तहत, बहुत ही निम्न वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। सरकार द्वारा महिलाओं के इस शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिये, महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों को संगठित होकर आगे आने की जरूरत है।
काम की जगह पर महिलाओं का प्रतिदिन उत्पीड़न होता है, परन्तु अधिकतर महिलायें नौकरी खोने के डर से आवाज़ नहीं उठा पाती और इस उत्पीड़न को खामोशी से झेलने को मजबूर होती हैं।
गांवों से नाबालिग लड़कियों को रोजगार की लालच दिखाकर, शहरों में लाया जाता है, जहां उन्हें बहुत ही कम (लगभग 500 रू. प्रति माह) के वेतन पर घरों में या दूसरे कारोबारों में गुलामी करनी पड़ती है।
महिला सफाई कर्मचारियों में अधिकतर दलित वर्ग की हैं, और उन्हें अक्सर अपनी जात को छुपाकर काम करना पड़ता है।
घरेलू काम व सफाई के काम से रोज़गार कमाने वाली महिलाओं के हकों के लिये लड़ने वाला कोई यूनियन नहीं है, अत: उन्हें संगठित होने की सख्त जरूरत है।
आंगनवाड़ी कर्मचारियों को प्रतिदिन आठ घंटों से ज्यादा काम करने के बावजूद बहुत कम वेतन मिलता है और उनके काम को उचित सम्मान भी नहीं दिया जाता है। इन हालतों के खिलाफ़ आंगनवाड़ी कर्मचारी संगठित होकर काफी अरसे से संघर्ष करती आ रही हैं परन्तु सरकार उनकी मांगों की ओर ध्यान नहीं देती है।
कई शहरों में महिलाओं को अपना पेट पालने और बच्चों की देखभाल करने के लिये सेक्स वर्कर्स (यौन कर्मचारी) का काम करना पड़ता है। उन्हें सामाजिक बेइज्ज़ती का सामना करना पड़ता है, उन्हें रहने को घर नहीं मिलता, उनके बच्चों को आसानी से स्कूल में दाखिला नहीं मिलती, उन्हें पुलिस भी काफी परेशान करती है। अब ये महिलायें संगठित होकर इन मुसीबतों के खिलाफ़ लड़ रही हैं।
आदिवासी महिला मजदूरों का अत्यधिक शोषण होता है; साथ ही साथ उनके लिये बुनियादी स्वास्थ्य सेवायें भी उपलब्ध नहीं हैं। मध्य प्रदेश के कई आदिवासी इलाकों में निकटतम अस्पताल 50 कि.मी. दूर हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वहां की 70 प्रतिशत महिलायें कुपोषण की शिकार हैं और 90 प्रतिशत खून की कमी से ग्रस्त हैं।
असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को आम तौर पर प्रसूती के बाद कोई छुट्टी नहीं मिलती। उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं मिलती, न ही रोजगार की सुरक्षा। वस्त्र उद्योग में महिलाओं को कंपलसरी (जबरदस्ती) ओवर टाइम करना पड़ता है और जरूरत में भी छुट्टी नहीं मिलती।
सम्मेलन में भाग लेने वाली कार्यकर्ताओं ने सभी क्षेत्रों व कारोबारों में महिला मजदूरों के हकों की रक्षा के लिये, महिलाओं के लिये पुरुषों के बराबर वेतन, शिशु पालन (क्रेच) सुविधा, उत्पीड़न से मुक्ति व सम्मान के लिये संगठित होकर संघर्ष करने की जरूरत पर ज़ोर दिया।
राशन व्यवस्था (पी.डी.एस.) पर भी एक सत्र आयोजित किया गया, जिसमें पुरोगामी महिला संगठन और लोक राज संगठन के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। पुरोगामी महिला संगठन की कार्यकर्ता रेणु ने दिल्ली में राशन व्यवस्था की कठिनाईयों के बारे में बात रखी। उसने कहा कि सरकार अलग-अलग रंगों के कार्ड बनाकर, लोगों को ए.पी.एल. और बी.पी.एल. में बांट रखा है। ए.पी.एल. कार्ड वालों को कोई राशन नहीं मिलता, जब कि बी.पी.एल. कार्ड वालों को राशन में घटिया गेहूं-चावल मिलता है, जो अक्सर जानवरों के खाने के लायक भी नहीं होता। अत: लोग बाज़ार से अनाज खरीदने को मजबूर होते हैं। इस तरह सरकार पूरी राशन व्यवस्था को खत्म कर देना चाहती है। उसने कहा कि हम सभी को मिलकर एक नयी सर्व व्यापक राशन व्यवस्था के लिये संघर्ष करना चाहिये, जिसके तहत सभी नागरिकों को खाद्य पदार्थों के साथ-साथ सभी अन्य जरूरत की चीजें भी पर्याप्त मात्रा में व अच्छी क्वालिटी के तथा सही दाम पर उपलब्ध हों।