17 दिसंबर, 2008 से अखिल भारतीय डाक सेवा, जिसे ग्रामीण डाक सेवा भी कहा जाता है, के 2.75 लाख पार्ट-टाईम कर्मचारी अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले गये। सरकार द्वारा उनके कार्य के नियमों और उनको नियमित किये जाने संबंधी मसलों पर बनाई गई समिति की प्रतिगामी सिफारिशों को रद्द करने की वे मांग कर रहे हैं। ग्रामीण डाक सेवा के इन कर्मचारियों को हर रोज 4-5 घंटे के लिए खास तौर से ग्रामीण इलाकों में काम पर रखा
17 दिसंबर, 2008 से अखिल भारतीय डाक सेवा, जिसे ग्रामीण डाक सेवा भी कहा जाता है, के 2.75 लाख पार्ट-टाईम कर्मचारी अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले गये। सरकार द्वारा उनके कार्य के नियमों और उनको नियमित किये जाने संबंधी मसलों पर बनाई गई समिति की प्रतिगामी सिफारिशों को रद्द करने की वे मांग कर रहे हैं। ग्रामीण डाक सेवा के इन कर्मचारियों को हर रोज 4-5 घंटे के लिए खास तौर से ग्रामीण इलाकों में काम पर रखा जाता है। ये कर्मचारी पत्रों को पहुंचाने, डाक टिकिट और स्टेशनरी आदि बेचने जैसे जरूरी और महत्वपूर्ण सेवाएं देते हैं। इनकी तादाद पूरे डाक विभाग, जिनकी संख्या 5.5लाख कर्मचारी हैं, उसके 50प्रतिशत है। लेकिन इन ग्रामीण डाक सेवा कर्मचारियों को न तो रोजी-रोटी की सुरक्षा है और न ही प्राविडेंट फंड या पेंशन जैसी कोई सुविधा। उन्हें काम के घंटों के मुताबिक वेतन दिया जाता है।
ग्रामीण डाक सेवा के कर्मचारियोंकी एकता को देखते हुए केन्द्र सरकार ने एक नई समिति का गठन करने का वादा किया जो उनकी शिकायतों पर गौर करेगी। इसके साथ डाक कर्मचारियों ने अपनी हड़ताल तीन दिनों के बाद वापस ले ली।
इसके अलावा डाक विभाग के नियमित कर्मचारी नेशनल फेडरेशन ऑफ पोस्टल इम्पलाईज की अगुवाई में 20 जनवरी, 2009 से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरु करने जा रहे हैं। ये कर्मचारी ग्रामीण डाक सेवा के कर्मचारियों को नियमित बनाने और डाक विभाग में रिक्त स्थानों को भरने की मांग कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा गठित स्क्रीनिंग समिति की इस सिफारिश का वे विरोध कर रहे हैं जिसके मुताबिक केवल एक तिहाई रिक्त स्थानों को भरा जायेगा और बाकी दो-तिहाई को वैसे ही खाली रखा जायेगा।
मजदूर एकता लहर डाक कर्मचारियों की इन जायज मांगों का समर्थन करती है।