छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न की निंदा करें!

राजकीय आतंकवाद नहीं चलेगा!

कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुन्दर, जे.एन.यू. की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद और दर्जनों अन्य मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ हत्या के घिनौने और झूठे आरोप लगाये जाने की कड़ी निंदा करती है। सरकार ने इन मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को इसलिए निशाना बनाया है क्योंकि ये कार्यकर्ता दंतेवाड़ा में सरकार द्वारा नक्सलवाद से लड़ने के नाम पर लोगों के खिलाफ़ किये जा रहे घिनौने अपराधों का लगातार पर्दाफाश व विरोध करते आये हैं। राज्य द्वारा अपने आलोचकों को इस तरह से धमकाने और उनको ब्लैकमेल करने की कोशिशों से देश के सभी ज़मीर वाले लोग बेहद गुस्से में हैं। 

दंतेवाड़ा और आसपास के इलाकों में पुलिस, सशस्त्र बल और राज्य द्वारा संगठित गुंडों ने वहां रहने वाले आदिवासी लोगों और अन्य गांववासियों के खिलाफ़ अनेक जघन्य अपराध किये हैं। लोगों की ज़िन्दगी और आज़ादी की हिफाज़त में आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्ताओं की आवाज़ को बंद करने की छत्तीसगढ़ सरकार और उसकी पुलिस की क्रमवार कोशिशों में नंदिनी सुन्दर, अर्चना प्रसाद और अन्य कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न सबसे हालिया घटना है।

लेकिन तमाम जनतान्त्रिक परंपराओं का उल्लंघन करते हुए, किये जा रहे ये हमले और लोगों को धमकाने की कोशिश कभी कामयाब नहीं होगी। पुलिस, अधिकारी और “अतिरिक्त सशस्त्र बल” का चोगा पहने इन गुनहगारों की यातनाओं और आतंक को छत्तीसगढ़ के लोग और ज्यादा दिन खुलेआम चलने नहीं देंगे।

यह जानी-मानी बात है कि खास तौर पर जबसे निजीकरण और उदारीकरण के ज़रिये भूमंडलीकरण का कार्यक्रम चलाया गया है, तबसे हिन्दोस्तान और विदेश के इजारेदार पूंजीपतियों ने हमारे देश के बहुमूल्य खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए खुली जंग छेड़ दी है। छत्तीसगढ़, ओड़िशा और झारखण्ड, ये राज्य अपनी बहुमूल्य खनिज संपदा के लिए जाने जाते हैं। इन राज्यों के आदिवासी लोगों से यह संपदा किस प्रकार छीनी जाये, यही इजारेदार कंपनियों की मुख्य चिंता रही है। केंद्र और राज्य स्तर पर सत्ता चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, दोनों ही पार्टियां इन इजारेदार कंपनियों की सेवा में काम करती आयी हैं। लेकिन लोग इजारेदार कंपनियों की इन कोशिशों का लगातार विरोध करते आये हैं, क्योंकि इनके चलते उनकी पारंपरिक ज़मीनें और अधिकार छीने जायेंगे तथा वे और अधिक गरीबी में धकेले जायेंगे।

राज्य की इस योजना के रास्ते में लोगों द्वारा खड़ी की गई रुकावट से राज्य बेहद तिलमिला गया है और दंतेवाड़ा व पूरे इलाके के लोगों पर बर्बर हमले कर रहा है और यातनायें दे रहा है। हजारों लोगों का अपहरण करके उन्हें मार दिया गया है, अनगिनत महिलाओं का बलात्कार किया गया है और पूरे के पूरे गांव जला दिए गए हैं। उनके इन अपराधों के खिलाफ़ उठ रही आवाज़ को दबाने के लिए एक चुप्पी की दीवार खड़ी की गयी है, ताकि देश के अन्य लोगों तक इसकी जानकारी न पहुँच सके। इसको “नक्सलवादी उग्रवाद के खिलाफ़ जंग” के नाम पर उचित ठहराया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद वे स्थानीय लोगों के प्रतिरोध को खत्म नहीं कर पा रहे हैं।

2005 में राज्य ने आदिवासी लोगों पर किये जा रहे हमलों को नया रूप देने के लिये एक नयी योजना शुरू की थी। राज्य ने “सलवा जुडूम” नाम से सशस्त्र गुट संगठित किये और उन्हें “नक्सलवादियों” के खिलाफ़ लड़ने वाले आदिवासियों के “स्वयं सेवक” गुट के रूप में पेश करने की कोशिश की। इन फासीवादी गुटों ने आदिवासियों को

धमकाकर जबरदस्ती से अपनी रैलियों तथा अन्य आयोजनों में हिस्सा लेने के लिये मजबूर किया और अपनी ताक़त दिखाने के अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया। जहां लोगों ने इसका विरोध किया वहां पर लोगों के घरों और पूरे के पूरे गांव को आग लगा दी गयी। नक्सलवादियों से रिश्ता तोड़ने के बहाने पूरे-पूरे गांवों को विस्थापित कर दिया गया और वहां रहने वालों को राहत शिविरों में भेड़-बकरियों की तरह रखा गया और उन्हें अपने खेतों व मवेशियों के पास वापस जाने से रोका गया। 644 गांव, यानी दंतेवाड़ा जिले का आधे से अधिक हिस्सा राज्य के इस हमले की चपेट में आ गया था।

हिन्दोस्तानी राज्य द्वारा अपने ही लोगों के खिलाफ़ किये जा रहे इन अपराधों का पर्दाफाश करने के लिए स्थानीय लोगों के साथ देशभर के जनवादी लोगों और संगठनों को लंबा और कठिन संघर्ष करना पड़ा। इसी संघर्ष के हिस्सा बतौर प्रोफेसर नंदिनी सुन्दर ने 2009 में इन अपराधों के खिलाफ़ कोर्ट में याचिका दायर की थी। 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को सही बताते हुए सलवा जुडूम, तथाकथित “कोया कमांडो” और इस तरह के अन्य गुटों को खत्म करने का आदेश दिया, जो “किसी भी तरह से कानून अपने हाथों में लेते हैं, संविधान के खिलाफ़ काम करते हैं या किसी के मानव अधिकार का उल्लंघन करते हैं”।

सलवा जुडूम केवल छत्तीसगढ़ सरकार की ही पैदाइश नहीं थी बल्कि इसके पीछे हिन्दोस्तानी राज्य है, इसकी पुष्टि सलवा जुडूम के बर्खास्त होने के बाद के घटनाक्रम से साफ नज़र आती है। छत्तीसगढ़ सरकार और उसकी पुलिस ने, केंद्र सरकार के पूरे समर्थन के साथ, उनके दुश्कर्मों को रोकने की कोशिशों का बार-बार, बड़ी अकड़ के साथ विरोध किया है। संप्रग सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू किया और अधिकृत सैन्यबलों का इस्तेमाल करके, अपने ही लोगों के खिलाफ़ चलायी जा रही जंग का पैमाना बढ़ा दिया। लोगों के खिलाफ़ अपराध करने वाले किसी भी अधिकारी को सज़ा नहीं दी गयी, बल्कि राज्य द्वारा अपने ही लोगों के खिलाफ़ जंग को जारी रखा गया और केवल उसका नाम बदल दिया गया। अब राज्य “सलवा जुडूम-2” को पुनः शुरू करने की कोशिश कर रहा है। इस बात से साफ हो जाता है कि हिन्दोस्तानी राज्य अपने मालिकों, इजारेदार पूंजीपतियों के हित में काम करने के लिए और लोगों के प्रतिरोध को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जायेगा।

इस वर्ष के मई महीने में, प्रोफेसर सुन्दर और प्रोफेसर प्रसाद, जिन्होंने अपना पूरा जीवन बस्तर इलाके के लोगों के जीवन के बारे में शोध करने और उसके बारे में लिखने में लगाया, उन्होंने इस इलाके में हो रही घटनाओं की सच्चाई को सामने लाने के लिये एक शोध कार्य किया और उसका निष्कर्ष लोगों के सामने पेश किया। अक्तूबर में एक अप्रत्याशित घटना हुयी जहां छत्तीसगढ़ की तथाकथित अनुशासन पसंद वर्दीधारी पुलिस ने प्रोफेसर सुन्दर और प्रोफेसर प्रसाद और अन्य कार्यकर्ताओं के पुतले जलाये। इसके दो सप्ताह बाद 4 नवंबर को सरकार ने शामनाथ बघेल की हत्या के झूठे आरोप में प्रोफेसर सुन्दर, प्रोफेसर प्रसाद और अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ एफ.आई.आर. दर्ज की। सरकार का यह झूठ तब सामने आया जब मृत बघेल की विधवा ने टेलिविज़न पर सार्वजनिक रूप से कहा कि उसने कभी भी इन लोगों के खिलाफ़ उसके पति की हत्या का आरोप नहीं लगाया था। इस मामले में लोगों के बीच इस बात पर सरकार और पुलिस की जबरदस्त आलोचना हुई जिसके चलते, सर्वोच्च न्यायालय को छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस को फौरी तौर से इन लोगों के खिलाफ़ कोई भी कार्यवाही करने से रोकना पड़ा।

सरकार द्वारा जाने-माने मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को अपराधपूर्ण धमकी देना, यह दिखाता है कि शासक वर्ग और उसके राजनीतिक प्रतिनिधि और अधिकारी अपने अपराधी कार्यक्रम के खिलाफ़ लोगों के प्रतिरोध को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। शासक वर्ग चाहता है कि बिना किसी रुकावट के, वह लोगों की ज़मीन और संसाधन हड़प ले और लोगों का शोषण और तेज़ कर दे। इस उद्देश्य को हासिल करने पर शासक वर्ग तुला हुआ है।

छत्तीसगढ़ के लोगों के खिलाफ़ चलाये जा रहे राज्य के आतंक का पर्दाफाश करने वाले मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के बहादुर काम को कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सलाम करती है। कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी पूरे मजदूर वर्ग, मेहनतकशों, मानव अधिकार के योद्धाओं को राजकीय आतंकवाद के खिलाफ़ और लोगों के मानव अधिकारों की हिफाज़त में संघर्ष को और तेज़ करने का आह्वान देती है। मानव अधिकार कार्यकर्ताओं पर राज्य के बढ़ते हमलों का यही करारा ज़वाब है।

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