केंद्रीय बजट 2025:
निजीकरण के कार्यक्रम को आगे बढ़ाना जारी

1 फरवरी को 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिजली और बीमा सहित कई क्षेत्रों में निजीकरण के कार्यक्रम के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कई नीतिगत घोषणाएं कीं।

परमाणु ऊर्जा उत्पादन

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा, ”2047 तक कम से कम 100 गिगावाट परमाणु ऊर्जा का विकास हमारे ऊर्जा-संक्रमण (एनर्जी ट्रांजीशन) के प्रयासों के लिए आवश्यक है। इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में, निजी क्षेत्र के साथ सक्रिय भागीदारी के लिए, परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज) में संशोधन किए जाएंगे।“

अब तक परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल करके बिजली का उत्पादन करना सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित था। देश में कुल परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता अभी तक केवल 8,000 मेगावाट से थोड़ी अधिक है।

प्रस्तावित नीति परिवर्तन से, टाटा और अडानी घरानों के स्वामित्व वाली प्रमुख बिजली उत्पादन कंपनियों, एलएंडटी जैसी परमाणु ऊर्जा उपकरण निर्माताओं के साथ-साथ अमरीका की वेस्टिंगहाउस, फ्रांस की एल्सटॉम और जापान की तोशिबा जैसी विदेशी उपकरण आपूर्तिकर्ताओं के लिए, बड़े मुनाफ़े बनाने के अवसर खुलेंगे।

परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी कंपनियों के प्रवेश को सक्षम करने के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन किया जाएगा। अब तक, विदेशी परमाणु ऊर्जा उपकरण आपूर्तिकर्ता, उपकरण आपूर्ति करने से इनकार कर रहे थे क्योंकि मौजूदा परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम के तहत, किसी भी दुर्घटना के मामले में, उपकरण-आपूर्तिकर्ता को भी ज़िम्मेदार माना जाता था। ऐसा लगता है कि अब विदेशी परमाणु ऊर्जा उपकरण आपूर्तिकर्ताओं की मांगों के अनुसार इस अधिनियम में संशोधन किया जाएगा।

बिजली वितरण

टाटा, अडानी, गोयनका, जिंदल, मेहता (टोरेंट) और अनिल अंबानी घरानों सहित हिन्दोस्तानी इजारेदार पूंजीपति, जिन्होंने पहले ही बिजली उत्पादन के क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया है, अब बिजली क्षेत्र के अन्य दो हिस्सों – अर्थात पारेषण (ट्रांसमिशन) और वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) में भी ऐसा ही करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि निजी कंपनियों द्वारा पूरे बिजली क्षेत्र को उनको अपने अधीन करने में, केंद्र और राज्य सरकारें उनकी सहायता करें।

अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा, ”हम बिजली वितरण सुधारों और राज्यों द्वारा अंतर-राज्यीय पारेषण क्षमता में वृद्धि को प्रोत्साहित करेंगे। इससे बिजली कंपनियों की वित्तीय-सेहत और क्षमता में सुधार होगा। इन सुधारों के आधार पर राज्यों को जीएसडीपी का 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति दी जाएगी।“ उनके बयान का मतलब था कि राज्य सरकारों को बिजली वितरण और पारेषण का निजीकरण करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी पुष्टि, 15 फरवरी को नई दिल्ली में हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपतियों की एक सभा को संबोधित करते हुए की। उन्होंने घोषणा की कि, ”अब हम बिजली वितरण क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि इसमें और अधिक दक्षता आए“

बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों, इंजीनियरों और किसानों के एकजुट विपक्ष ने संसद से विद्युत (संशोधन) विधेयक पारित कराने के केंद्र सरकार के प्रयासों को विफल करने में सफलता प्राप्त की थी। इस विधेयक का उद्देश्य, बिजली वितरण को पूरी तरह से निजी क्षेत्र के लिए खोलना था।

इसलिए, केंद्र सरकार ने बिजली का निजीकरण करने का अपना रास्ता बदल दिया है। पूरे देश में निजीकरण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए संसद में क़ानून पारित करने की कोशिश करने के बजाय, अब यही कार्यक्रम राज्य सरकारों के माध्यम से चलाया जा रहा है। इस क़दम का उद्देश्य, बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों की एकता को तोड़ना और निजीकरण के ख़िलाफ़ बढ़ते विरोध को कमज़ोर करना है।

कुछ महीने पहले ही, उत्तर प्रदेश सरकार ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की अपनी योजना की घोषणा की। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति-उत्तर प्रदेश के बैनर तले उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी इस योजना के ख़िलाफ़ बहादुरी से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। अन्य राज्यों के बिजली कर्मचारियों को भी यह अहसास हो गया है कि अगर उत्तर प्रदेश में निजीकरण नहीं रोका गया तो उनके राज्यों में भी बिजली के निजीकरण के लिए दरवाजे़ खुल जाएंगे। इसलिए उन्होंने फ़ैसला किया है कि देशभर के बिजली कर्मचारी एकजुट होकर उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों का समर्थन करेंगे और 26 जून को एक दिन की देशव्यापी हड़ताल भी करेंगे।

बीमा

विदेशी इजारेदार बीमा कंपनियां अपनी सरकारों और विश्व बैंक के ज़रिये हिन्दोस्तानी सरकार पर बीमा क्षेत्र को पूरी तरह से खोलने के लिए दबाव डालते रहे हैं क्योंकि उन्हें देश की आबादी को देखते हुए, यहां बहुत बड़ी व्यावसायिक संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। टाटा, बिड़ला, बजाज और मित्तल जैसे इजारेदार घरानों द्वारा, जिन्होंने बीमा क्षेत्र में भारी निवेश किया है, इस दबाब का विरोध किया जा रहा था। अब जबकि उन्होंने बीमा व्यवसाय में पर्याप्त अनुभव प्राप्त कर लिया है और विदेशी इजारेदार कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होने का आत्मविश्वास महसूस करते हैं, ये हिन्दोस्तानी इजारेदार घराने, अब विदेशी बीमा कंपनियों के प्रवेश का विरोध नहीं करते हैं। यह इस बजट घोषणा में साफ़ दिखाई देता है कि बीमा क्षेत्र के लिए, एफडीआई सीमा 74 से बढ़ाकर 100 प्रतिशत की जाएगी।

सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के मज़दूर, बीमा क्षेत्र को विदेशी इजारेदार कंपनियों के लिए खोलने का विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि इससे हिन्दोस्तानी लोगों की बचत, विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के हाथों में चली जाएगी।

संपत्ति का मुद्रीकरण (एसेट-मोनेटाईजेशन)

निजीकरण के ख़िलाफ़ विरोध को कमज़ोर करने के लिए सरकार द्वारा अपनाया गया दूसरा तरीक़ा है विभिन्न सरकारी उद्यमों और विभागों की परिसंपत्तियों (एसेट्स) का मुद्रीकरण करना। इस योजना के तहत, परिसंपत्तियों को पूंजीपतियों के इस्तेमाल के लिए लंबी अवधि (30-60 वर्ष) के लिये पट्टे पर दिया जाता है। सरकार का दावा है कि यह निजीकरण नहीं है क्योंकि काग़ज़ पर परिसंपत्तियों का स्वामित्व सरकारी विभाग/उद्यम के पास ही रहता है। यह दावा, मज़दूरों को बेवकूफ़ बनाने में सफल नहीं हुआ है क्योंकि उन्होंने इस हक़ीक़त को अच्छी तरह जान लिया है कि यह निजीकरण का ही एक और स्वरूप है।

बजट में और भी अधिक महत्वाकांक्षी, दूसरी मुद्रीकरण-योजना की घोषणा की गई। बजट में घोषणा की गई कि, ”2021 में घोषित पहली परिसंपत्ति मुद्रीकरण योजना की सफलता के आधार पर, 2025-30 के लिए दूसरी योजना शुरू की जाएगी, जिसमें नई परियोजनाओं में 10 लाख करोड़ रुपये की पूंजी लगाई जाएगी। योजना का समर्थन करने के लिए विनियामक और राजकोषीय उपायों को दुरुस्त किया जाएगा।“

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी)

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि, ”प्रत्येक बुनियादी ढांचे से संबंधित मंत्रालय 3 साल की परियोजनाओं की पाइपलाइन लेकर आएगा, जिन्हें पीपीपी के तहत लागू किया जा सकता है। राज्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और वे पीपीपी प्रस्ताव तैयार करने के लिए आईआईपीडीएफ (हिन्दोस्तान की बुनियादी ढांचा परियोजना विकास निधि) योजना से सहायता ले सकते हैं।“

सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी), निजीकरण का एक भ्रामक स्वरूप है। जबकि इसे भागीदारी कहा जाता है, यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें जोखि़म और नुक़सान, जनता द्वारा वहन किए जाते हैं जबकि मुनाफ़े, निजी कंपनियों द्वारा बनाये जाते हैं। यह पूंजीपतियों के लिए एक अत्यधिक लाभकारी व्यवस्था है और इसलिए वे चाहते हैं कि सरकार इसे अपनाए, विशेष रूप से उच्च जोखिम वाली परियोजनाओं के लिए।

निष्कर्ष

जबकि वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में सार्वजनिक संपत्तियों और सेवाओं की बिक्री के माध्यम से प्राप्त होने वाली लक्षित राशि की घोषणा नहीं की, निजीकरण के कार्यक्रम को विभिन्न रूपों में, आगे बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान समय में, इजारेदार पूंजीपति, इस कार्यक्रम में विशेष रूप से रुचि रखते हैं, क्योंकि उनके सामान और सेवाओं की मांग में कमी हो गयी है। सार्वजनिक धन से निर्मित सार्वजनिक परिसंपत्तियों पर कब्ज़ा करने की प्रक्रिया उन्हें अधिकतम मुनाफ़े कमाने का एक आकर्षक अवसर प्रदान करती है।

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