हाल ही में श्रीलंका की नौसेना द्वारा मछली पकड़ने वाली हिन्दोस्तानी नाव पर की गई गोलीबारी इस बात की याद दिलाती है कि तमिलनाडु में मछुआरों के सामने आने वाली समस्या पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। पाक जलडमरूमध्य में श्रीलंका द्वारा हिन्दोस्तानी मछुआरों की बार-बार की जाने वाली गिरफ़्तारी से तमिलनाडु के हजारों मछुआरों के परिवारों के जीवन पर असर पड़ रहा है। यह हिन्दोस्तान और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय संबंधों में लगातार टकराव का एक मुद्दा बन गया है। जबकि हिन्दोस्तान की सरकार दावा कर रही है कि वह मछुआरों को रिहा करवाने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान की कमी ने गिरफ़्तारियों, हिरासतों और पड़ोसी देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के चक्र को जारी रखा है।
तमिलनाडु को उत्तरी श्रीलंका से अलग करने वाली एक संकरी जलसंधि, पाक जलडमरूमध्य सदियों से मछली पकड़ने का सांझा क्षेत्र रहा है। लेकिन, 1974 और 1976 के हिन्दोस्तान-श्रीलंका समुद्री सीमा रेखा (आई.एम.बी.एल.) समझौतों ने आधिकारिक रेखाएं खींच दीं, जिससे कच्चातीवु का निर्जन द्वीप श्रीलंका को हस्तांतरित हो गया। हिन्दोस्तानी मछुआरे, जो ऐतिहासिक रूप से आस-पास के पानी पर निर्भर थे, मछली पकड़ने वाले इस महत्वपूर्ण क्षेत्र तक पहुंच खो चुके हैं।
हिन्दोस्तानी जल में अत्यधिक मछली पकड़ने और बॉटम ट्रॉलिंग जैसी हानिकारक प्रथाओं को अपनाने के कारण संसाधनों की कमी है। आजीविका के लिए बेताब हिन्दोस्तानी मछुआरे अक्सर अनजाने में समुद्री सीमाओं को पार करते हुए, श्रीलंका के जल क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप श्रीलंका की नौसेना के साथ अक्सर टकराव होता रहता है।
श्रीलंका का तर्क है कि हिन्दोस्तानी मशीनीकृत ट्रॉलर समुद्री जैव विविधता को नष्ट करते हैं और उसके मछुआरों की आजीविका को ख़तरे में डालते हैं, ख़ासकर उसके उत्तरी प्रांतों में। गृहयुद्ध के दौरान दशकों तक प्रतिबंधित पहुंच के बाद स्थानीय श्रीलंकाई मछुआरों द्वारा गतिविधियां पुनः शुरू करने के साथ, बेहतर हिन्दोस्तानी ट्रॉलरों के साथ प्रतिस्पर्धा ने तनाव को बढ़ा दिया है।
तमिलनाडु के मछुआरों के समुदायों के लिए, इन गिरफ़्तारियों का मतलब आर्थिक बर्बादी और भावनात्मक उथल-पुथल है। लाखों की नावों को ज़ब्त कर लिया जाता है या नष्ट कर दिया जाता है, और परिवारों को कमाने वाले मुख्य व्यक्ति के बिना जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। मछुआरे कब वापस आएंगे, इसकी अनिश्चितता केवल पीड़ा को बढ़ाती है।
दूसरी ओर, श्रीलंका के मछुआरे घटती मछलियों और पर्यावरण के नुक़सान का सामना कर रहे हैं। कई लोग हिन्दोस्तानी ट्रॉलरों पर स्थानीय समुदायों के लिए संसाधनों को कम करने, ग़रीबी को बढ़ाने और युवा पीढ़ी को पारंपरिक मछली पकड़ने की प्रथाओं को छोड़ने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाते हैं।
इस क्षेत्र में मछली पकड़ने वाली बड़ी निजी कंपनियों की गतिविधियां इस संकट के लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं। औद्योगिक पैमाने पर मछली पकड़ने के मशीनीकरण ने हिन्दोस्तानी जल क्षेत्र में मछली के भंडार को कम कर दिया है, जिससे छोटे पैमाने के मछुआरों को जीवित रहने के लिए विवादित क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बॉटम ट्रॉलिंग ने संसाधनों की कमी और पर्यावरण के विनाश को और बढ़ा दिया है, जिससे पारंपरिक तौर पर मछली पकड़ने वाले समुदाय बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। निर्यात के माध्यम से अपने मुनाफे़ को अधिकतम करने के लिये मछली पकड़ने की बड़ी निजी कंपनियों की कोशिश ने छोटे मछुआरों की आजीविका के साथ खिलवाड़ किया है।
श्रीलंका की सरकार ने संप्रभुता और पर्यावरण के संरक्षण को अपने कार्यों का आधार बताते हुए कड़ा रुख़ अपनाया है। श्रीलंका के अधिकारियों द्वारा गिरफ़्तार किये गये और हिरासत में लिए गए हिन्दोस्तानी मछुआरों ने कई मामलों में, कैद में उनके साथ किए गए कठोर व्यवहार की शिकायत की है, जिसमें शारीरिक यातना देना और उनकी नावों और मछली पकड़ने के उपकरणों को जब्त करना शामिल है।
जब भी ऐसा कोई मामला होता है, तब हिन्दोस्तानी राज्य की प्रतिक्रिया अब तक केवल हिरासत में लिए गए मछुआरों की रिहाई सुनिश्चित करने की रही है, लेकिन वह मूल कारणों को हल करने में विफल रहता है। बॉटम ट्रॉलर को चरणबद्ध तरीके़ से समाप्त करने में राज्य की विफलता और मछुआरों के लिए वैकल्पिक आजीविका का अभाव, मछुआरों की समस्याओं के प्रति शासक वर्ग के उदासीन रवैये को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि हिन्दोस्तानी राज्य मछली पकड़ने वाले समुदायों के लोगों की क़ीमत पर मछली पकड़ने वाली इजारेदार बड़ी निजी कंपनियों के हितों की रक्षा करता है।
इसका मछुआरों के जीवन पर चौंका देने वाला प्रभाव पड़ता है। परिवार अनिश्चितता के मानसिक तनाव से जूझते रह जाते हैं। जबकि उनके परिवार के कमाने वाले लोग विदेशी हिरासत में रहते हैं। ज़ब्त की गई नावें कभी वापस नहीं की जाती हैं। फिर भी, हिन्दोस्तान की सरकार ने उनकी शिकायतों को समझने या समस्या के समाधान की दिशा में कोई पहल नहीं की है।
प्रभावित मछुआरों के साथ काम करने वाले विभिन्न संगठन और व्यक्ति समस्या का स्थायी समाधान खोजने के लिए हिन्दोस्तान की सरकार के समक्ष प्रस्ताव लेकर आए हैं:
- द्विपक्षीय समझौते
हिन्दोस्तान और श्रीलंका को ऐसे समझौतों की दिशा में काम करना चाहिए जिसमें संयुक्त गश्त, विनियमित मछली पकड़ने के क्षेत्र और समुद्री पर्यावरण तंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए मौसमी मछली पकड़ने पर प्रतिबंध शामिल हों।
- बॉटम ट्रॉलिंग को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करना
हिन्दोस्तान की सरकार को बॉटम ट्रॉलर को चरणबद्ध तरीके़ से समाप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता में तेज़ी लानी चाहिए। वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और मछली पकड़ने के वैकल्पिक उपकरणों तक पहुंच, मछुआरों को संधारणीय प्रथाओं को अपनाने में मदद कर सकती है।
- मछली पकड़ने के संयुक्त क्षेत्र और साझा संसाधन
कच्चाथीवु के पास सांझा पहुंच और संधारणीय मछली पकड़ने के कोटा के साथ मछली पकड़ने के संयुक्त क्षेत्र बनाना, पर्यावरण को संरक्षित करते हुए दोनों पक्षों की चिंताओं को दूर कर सकता है।
- स्थानीय आजीविका को मजबूत करना
हिन्दोस्तानी सरकार को मछली पकड़ने पर निर्भरता कम करने के लिए तटीय समुदायों के लिए वैकल्पिक आजीविका में निवेश करना चाहिए।
- मानवीय उपाय
हिरासत में लिए गए मछुआरों के लिए मानवीय प्रोटोकॉल की स्थापना, जिसमें समय पर रिहाई और ज़ब्त नावों के लिए मुआवज़ा शामिल है, तनाव को कम कर सकता है और सद्भावना को बढ़ावा दे सकता है।
यह आवश्यक है कि सरकार प्रभावित मछुआरों के दुख को दूर करने के लिए तत्काल एक व्यापक योजना बनाए। इस योजना में पर्यावरण के लिए विनाशकारी प्रथाओं जैसे कि बॉटम ट्रॉलिंग को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करना और मछुआरों को वैकल्पिक आजीविका में बदलाव के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना शामिल होना चाहिए। प्रभावित परिवारों को मुआवज़ा देने और संक्रमण काल के दौरान उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
केवल वास्तविक मानवीय दृष्टिकोण के माध्यम से ही इस संकट का समाधान किया जा सकता है, जिससे राज्य की उपेक्षा का ख़ामियाज़ा भुगतने वाले मछुआरा समुदायों के लिए न्याय और सम्मान सुनिश्चित हो सके।