मज़दूर बतौर क़ानूनी दर्ज़ा पाने के लिए आंगनवाड़ी मज़दूरों व सहायिकाओं का संघर्ष

मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट

नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में 13 फरवरी, 2025 को आंगनवाड़ी मज़दूरों व सहायिकाओं ने – ‘आंगनवाड़ी वर्कर्स और हैल्पर्स को क़ानूनी अधिकार दो!’, ‘आई.सी.डी.एस. को गुणवत्ता के साथ स्थायी करो!’ – शीर्षक पर राष्ट्रव्यापी सम्मेलन किया।

Anganwadi_conventionइस सम्मेलन का आयोजन आल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स के बैनर तले किया गया था।

सम्मेलन में आंगनवाड़ी मज़दूरों व सहायिकाओं ने हज़ारों की संख्या में बहुत जोश के साथ हिस्सा लिया। इसमें हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, तमिलनाडु, झारखंड, ओडिशा, इत्यादि राज्यों से प्रतिनिधिमंडल शामिल हुए थे।

उन्होंने बताया कि देशभर में 13 लाख 90 हजार आंगनवाड़ी केन्द्र हैं, जिनमें क़रीब 26 लाख आंगनवाड़ी मज़दूर व सहायिकायें काम करती हैं। क़रीब 3 लाख 77 हजार आंगनवाड़ी केन्द्र किराए के मकानों में चलाए जा रहे हैं। 3 लाख 38 हजार से अधिक आंगनवाड़ी केन्द्रों में पीन का साफ़ पानी नहीं है। 4 लाख 61 हजार केन्द्रों में शौचालय की सुविधा नहीं है। दूसरी तरफ़ केन्द्र व राज्य सरकारें आंगनवाड़ी केन्द्रों के ज़रिए कुपोषण व अशिक्षा मुक्त हिन्दोस्तान बनाने का दावा रही हैं। यह सपना कैसे साकार होगा, अगर लाखों आंगनवाड़ी केन्द्रों में पीने योग्य पानी, शौचालय और बिजली नहीं हैं।

Anganwadi_conventionवक्ताओं ने बताया कि आंगनवाड़ी केन्द्रों के मज़दूरों और सहायिकाओं को नियमित व तय काम तो करना ही होता है। इसके अलावा, उन्हें जनगणना के लिए डेटा एकत्र करना, मवेशियों की गिनती करना तथा सर्वे आदि करने का काम भी सौंपा जाता है।

इसके अलावा, मंत्री या विधायक के कार्यक्रम में बिना वर्दी के अपने साथ में 10-10 महिलाओं के साथ पहुंचकर भीड़ बढ़ाने के लिए बाध्य किया जाता है। यदि कोई आंगनवाड़ी मज़दूर ऐसा करने में असमर्थता जताती है, तो उसे काम से निकालने की धमकी दी जाती है।

Anganwadi_conventionसम्मेलन में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि आंगनवाड़ी मज़दूर व सहायिका एक आम सरकारी कर्मचारी के बराबर काम करते हैं। इन्हें मज़दूर का क़ानूनी दर्ज़ा देकर, नियमति किया जाए और समान काम का समान वेतन दिया जाए।

निम्नलिखित मांगों को लेकर पूरे साल देशभर में अभियान चलाने का संकल्प लिया गया।

  • आंगनवाड़ी मज़दूरों को 32,000 रुपए तथा सहायिकाओं को 26,000 रुपए प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दिया जाए। उन्हें सामाजिक सुरक्षा – ईएसआई, पीएफ गेच्यूटी तथा सेवानिवृत्त होने के बाद पेंशन प्रदान की जाए।
  • 6 साल से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन की देखभाल, शिक्षा एवं विकास का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए क़ानून बनाया जाए। आंगनवाड़ी केन्द्रों को नोडल एजेंसी बनाया जाए।
  • ई.सी.सी.ई. (प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा) क़ानून के तहत आई.सी.डी.एस. (सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0) को संस्थागत बनाने के लिए पर्याप्त वित्तीय आबंटन आंगनवाड़ी सह क्रेच के रूप में उचित बुनियादी ढांचे और आवश्यक मानव संसाधन उपलब्ध कराया जाए।
  • कारपोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटि के नाम पर आई.सी.डी.एस. में कोई कारपोरेट भागीदारी न हो। केन्द्रीकृत रसोई की शुरुआत करके निजीकरण जैसे काम से आई.सी.डी.एस. को कामजोर करने वाले सभी उपायों को वापस लिया जाये।
  • चारों श्रम संहिताओं को वापस लिया जाये।

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