संपादक महोदय,
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की 44वीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम में पेश किए गए पार्टी महासचिव के भाषण पर अपने कुछ विचार देना चाहती हूं। मेरे विचार विशेषकर महिलाओं की स्थिति पर हैं। आज हर एक स्तर पर चाहे वह कार्यस्थल पर हो या सार्वजनिक स्थल पर हों या कहीं पर भी हों, महिलाओं को दोहरे शोषण का सामना करना पड़ता है। एक फैक्ट्री मज़दूर हो, डाक्टर हो, वकील हो या कोई खिलाड़ी – सभी क्षेत्रों में महिलाओं पर हिंसा व अत्याचार जारी है। कितने ही कानून या धाराएं बनाई गई हों लेकिन जब महिलाओं पर हिंसा की बात आती है तो वह सब एक दिखावा मात्र ही लगती हैं। यौन हिंसा, बलात्कार से पीड़ित महिला जब इसंाफ के लिए जाती है तो उससे इस तरीके से सवाल किए जाते हैं जैसे वह खुद अपराधी हो। उसके कपड़े, उसके घर से बाहर आने-जाने पर सवाल उठाए जाते हैं कि वह रात में क्यों निकली?
चार श्रम संहिताओं के तहत सबसे बड़ा आघात कामकाजी महिलाओं पर हुआ है। इसमें कहा गया है कि महिलाएं रात की पाली में काम कर सकती हैं। लेकिन महिलाएं दिन में सड़कों पर सुरक्षित नहीं हैं तो रात में सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी होगी। कोई भी कानून या नीतियां बनाने से पहले किसी से नहीं पूछा जाता कि क्या सही है या गलत है, बस थोप दिया जाता है।
वास्तव में यह व्यवस्था, जिसके तहत सरकार, पुलिस, फौज, नौकरशाही, कानून काम करता है, शोषण को बरकरार रखती है। इस व्यवस्था में कभी भी न्याय नहीं मिल सकता। हमारा एकजुट संघर्ष ही हमें इंसाफ दिला सकता है। हम सभी महिलाओं, मज़दूरों, किसानों और नौजवानों को मिलकर एक ऐसी व्यवस्था के लिए संघर्ष करना होगा, जिसमें सुख-सुरक्षा और खुशहाली की गांरटी सुनिश्चित की जा सके।
आपकी
ललिता, गुरूग्राम