किसान पंजाब-हरियाणा सीमा पर डटे हुए हैं
पंजाब हरियाणा सीमा पर शंभू और खनौरी में धरने पर बैठे किसानों ने घोषणा की है कि वे अपनी मांगों को लेकर संघर्ष तेज़ करेंगे।
किसान संगठनों जिनमें भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर), भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी), किसान मजदूर संघर्ष समिति-पंजाब और अन्य – ने घोषणा की है कि 26 नवंबर 2024 से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल खनौरी सीमा पर आमरण अनशन पर बैठेंगे। किसानों के जत्थे 6 दिसंबर से, जिनमें प्रत्येक जत्थे में लगभग 50 किसान शामिल हैं, पंजाब हरियाणा सीमा से दिल्ली की ओर कूच करेंगे।
किसान संगठनों ने किसानों की समस्याओं के प्रति उदासीनता के लिए केंद्र सरकार और पंजाब सरकार की निंदा की है।
किसान संगठन अपनी फ़सलों के लिए एमएसपी पर गारंटीकृत ख़रीद की मांग कर रहे हैं। वे मंडियों में किसान-विरोधी व्यवहार की आलोचना कर रहे हैं, जहां फ़सल की क़ीमत और वजन में कटौती के परिणामस्वरूप किसानों को सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से भी कम भुगतान किया जाता है। उन्होंने उर्वरकों (डीएपी, आदि) की आसमान छूती क़ीमतों की ओर इशारा किया है, जैसे कि उर्वरक के एक बैग की क़ीमत 1,350 रुपये से बढ़कर 1,750 रुपये हो गई है, जो उन्हें बर्बादी की ओर धकेल रही है। किसान मज़दूर संघर्ष समिति के नेता सरवन सिंह पंधेर ने किसान संगठनों के संघर्ष को तेज़ करने के अपने फै़सले को सही ठहराते हुए कहा है कि किसान 13 फरवरी, 2024 से शंभू और खनौरी की सीमाओं पर बैठे हैं। “सरकार के साथ आखि़री बैठक इस साल 18 फरवरी, 2024 को हुई थी, जिसका कोई परिणाम नहीं निकला था। सरकार को किसानों की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। जब वह कहती है कि वह किसानों के कल्याण के लिए चिंतित है, तो वह सिर्फ़ दिखावा करती है लेकिन वास्तव में उसे बिल्कुल भी चिंता नहीं है। फरवरी के मध्य से शंभू और खनौरी के धरना स्थलों पर बैठे हुए क़रीब 30 किसानों की मौत हो चुकी है। खनौरी में किसान जब सीमा पार करने की कोशिश कर रहे थे, तब हरियाणा की ओर से सुरक्षा बलों द्वारा की गई गोलीबारी में शुभकरण सिंह की मौत हो गई थी।
ग़ौरतलब है कि 26 नवंबर, 2020 को देश के किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन शुरू किया था, जब केंद्र सरकार ने दिल्ली की सभी सीमाओं पर बैरिकेड्स लगाकर उन्हें राजधानी में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने से रोक दिया था। किसान तीन किसान-विरोधी क़ानूनों को वापस लेने, सभी कृषि उपजों के लिए क़ानूनी रूप से गारंटीकृत एमएसपी तथा अन्य मांगों को पूरा करवाने के लिये संघर्षरत हैं। क़रीब 13 महीने बाद दिसंबर 2021 में सरकार ने तीनों किसान-विरोधी क़ानूनों को वापस ले लिया और किसान संगठनों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें एमएसपी और अन्य मांगों को पूरा करने का वादा किया गया। हालांकि, चार साल बाद भी केंद्र सरकार ने सभी फ़सलों के लिए क़ानूनी रूप से गारंटीकृत एमएसपी की मांग को पूरा करने से इनकार कर दिया है।
हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में किसानों ने डीएपी खाद की कमी का विरोध किया
पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसान संगठन डीएपी खाद की कमी और धान की धीमी ख़रीद को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों ने चिंता जताई है कि इन दोनों कारणों से गेहूं की फ़सल की बुआई प्रभावित होगी।
गेहूं की बुआई में डीएपी मुख्य रूप से इस्तेमाल की जाने वाली खाद है। सरकार द्वारा संचालित, प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र (पीएमकेएसके) के गोदामों में डीएपी का स्टॉक नहीं है। किसानों को इसे निजी दुकानों से काफी ऊंचे दामों पर ख़रीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। निजी दुकानें 2,000 रुपये प्रति बोरी तक वसूल रही हैं, जबकि सरकारी दुकानों पर 1,350 रुपये प्रति बोरी की दर से खाद बिक रही है। इन परिस्थितियों के कारण किसानों को अन्य खाद ख़रीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जो इतनी कारगर नहीं हैं।
किसानों के अनुसार, हर दूसरे साल डीएपी की कमी होती है, लेकिन सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए कोई प्रयास नहीं किया है।
किसान यूनियनों के नेता इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि यह कमी सरकार द्वारा क़ीमतें बढ़ाने के लिए एक सुनियोजित और जानबूझकर उठाया गया क़दम है। सरकार उर्वरक उद्योग में पूंजीपतियों के हितों में काम कर रही है, जो किसानों को उर्वरकों की बिक्री पर अधिकतम लाभ कमाना चाहते हैं।
तमिलनाडु में किसानों ने भूमि अधिग्रहण का विरोध किया
तमिलनाडु में किसान राज्य सरकार द्वारा चेय्यार परियोजना के लिए अपनी भूमि के जबरन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। चेय्यार परियोजना का उद्देश्य तिरुवन्नामलाई जिले में चेय्यार शहर के पास एक औद्योगिक पार्क स्थापित करना है।
तमिलनाडु के राज्य उद्योग संवर्धन निगम (सी.आई.पी.सी.ओ.टी.) को किसानों की भूमि का अधिग्रहण करने और फिर उसे विभिन्न पूंजीपतियों को उनकी परियोजनाओं के लिए सौंपने का काम सौंपा गया है। चेय्यार के पास सी.आई.पी.सी.ओ.टी. की दो यूनिटें चल रही हैं। तमिलनाडु सरकार मेलमा और आसपास के गांवों में 3,174 एकड़ कृषि भूमि का अधिग्रहण करके तीसरी यूनिट स्थापित करने की योजना बना रही है।
विरोध का केंद्र मेलमा गांव और आसपास के दस गांव हैं। विरोध प्रदर्शन को 500 दिन से अधिक हो चुके हैं।
किसान इस अधिग्रहण से अपनी आजीविका को ख़तरे में बता रहे हैं और परियोजना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन मेलमा एस.आई.पी.सी.ओ.टी. किसान आंदोलन के बैनर तले आयोजित किया जा रहा है। कई अन्य किसान संगठनों ने भी मेलमा किसानों को अपना समर्थन दिया है। इनमें कर्नाटक किसान संघ, केरल प्राकृतिक किसान यूनियन, टीएन किसान सुरक्षा यूनियन, टीएन किसान यूनियन और कावेरी किसान सुरक्षा यूनियन शामिल हैं। अपने अधिकारों के लिए किसान संगठनों का संघर्ष पूरी तरह से न्यायोचित संघर्ष है। इसे पूरे मज़दूर वर्ग और लोगों का समर्थन प्राप्त है।