15 नवंबर, 2024 की रात को लगभग 10:30 बजे उत्तर प्रदेश के जिला झांसी में स्थित रानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा केंद्र (एसएनसीयू) में भीषण आग लग गई। इस अग्निकांड में 10 नवजात बच्चों की मौके पर ही मौत हो गई। 16 बच्चे गंभीर रूप से झुलस गए हैं। उनमें एक नवजात बच्चे ने 18 नवम्बर को दम तोड़ दिया है।
जानकारी के अनुसार, इस दुर्घटना के समय वार्ड में 49 बच्चे भर्ती थे। उनमें से 39 बच्चों को ही बाहर निकाला जा सका। उनमें कई गंभीर रूप से जली अवस्था में थे। तहकीकात से पता चला है कि इस सरकारी अस्पताल में सुरक्षा मापदंडों का पालन नहीं किया जा रहा था। यहां पर आग बुझाने वाले सिलिंडर एक्स्पायर (पुराने) हो गये थे।
अस्पतालों में सुरक्षा मापदंडों की ओर सरकार की अवहेलना के चलते, इस तरह की दर्दनाक दुघर्टनाएं बार-बार सामने आती हैं। पिछले महीने सियालदह में ईएसआई अस्पताल में आग लग जाने से एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी। इसी साल मई में दिल्ली के बेबी केयर अस्पताल में अग्निकांड में 7 नवजात बच्चों की मौत हो गयी थी। नवम्बर 2021 में भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल के बच्चों के विभाग में आग लगने से चार बच्चों की मौत हो गयी थी। जनवरी 2021 को महाराष्ट्र के भंडारा जिला अस्पताल में आग लगने से 10 नवजात बच्चे मारे गए थे। दिसम्बर 2011 में कोलकाता में ए.एम.आर.आई अस्पताल में आग लग गयी जिसके कारण 89 लोगों की मौत हो गयी थी। अगस्त 2020 में गुजरात के अहमदाबाद स्थित श्रेया अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से 8 मरीज मारे गए थे। हर ऐसी दुर्घटना के बाद सरकार मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बड़े-बड़े वादे करती आयी है। परन्तु ऐसी दुर्घटनाओं का बार-बार होना मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था और उसे चलाने वाले वर्तमान राज्य के बेहद अमानवीय चरित्र को दर्शाता है।
सभी नागरिकों को उचित व सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना राज्य का फ़र्ज़ बनता है। परन्तु मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था के चलते, राज्य स्वास्थ्य सेवा को पूंजीपतियों के ज्यादा से ज्यादा मुनाफों का स्रोत बनाता जा रहा है। सरकारी अस्पतालों की सेवाओं को सुनियोजित ढंग से बर्बाद किया जा रहा है, जब कि स्वास्थ्य सेवा का बढ़-चढ़ कर निजीकरण किया जा रहा है, और इजारेदार पूंजीपतियों को अपनी-अपनी निजी अस्पतालें स्थापित करके मरीजों को लूटने की पूरी सुविधा दी जा रही है। झांसी के अस्पताल में हुयी दुर्घटना तथा ऐसी तमाम दुर्घटनाएं इसी के परिणाम हैं। इन दुर्घटनाओं के लिए असली तौर पर ज़िम्मेदार ऊंचे सरकारी अधिकारियों, स्वास्थ्य मंत्रालय आदि की कोई जवाबदेही नहीं होती है और उन्हें इनके लिए कभी सज़ा नहीं भुगतनी पड़ती।
पूंजीपतियों के मुनाफों को बढ़ाने के लिए, लोगों की जान से इस तरह खिलवाड़ करने वाला यह हिन्दोस्तानी राज्य सभी नागरिकों के स्वास्थ्य और खुशहाली को कभी सुनिश्चित नहीं कर सकता। हमें स्वास्थ्य सेवा के बढ़ते निजीकरण के खिलाफ डट कर संघर्ष करना होगा और इस प्रकार की दुर्घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार सभी अधिकारियों को सज़ा दिलाने की मांग उठानी पड़ेगी। हमें देश के कोने-कोने में, सरकारी सार्वजनिक सर्वव्यापी स्वास्थ्य सेवा की विस्तृत व्यवस्था की मांग करनी होगी,ताकि सभी नागरिक सुरक्षित व सही स्वास्थ्य सेवा, मुनासिब दामों पर प्राप्त कर सकें।