डोनाल्ड ट्रम्प को संयुक्त राज्य अमरीका के अगले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया है, जो जनवरी 2025 में बाइडन की जगह लेंगे।
ये चुनाव एक ऐसे वक्त हुए हैं जब मज़दूरों, महिलाओं और युवाओं के बीच व्यापक असंतोष है। लोगों की नाराज़गी उससे है जिस दिशा में अमरीका को ले जाने के लिये नेतृत्व दिया जा रहा है। हाल के वर्षों में नस्लवादी पुलिस हिंसा, अप्रवासियों पर हमलों और सरकार का विरोध करने वालों की सामूहिक गिरफ़्तारियों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर और लंबे समय तक सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। रोज़गार की असुरक्षा, न बढ़ने वाली मज़दूरी, उपभोक्ता कीमतों में भारी बढ़ोतरी और सामाजिक कार्यक्रमों पर सार्वजनिक खर्च में कटौती को लेकर गुस्सा बढ़ रहा है। विश्वविद्यालय परिसरों और सार्वजनिक स्थानों पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए हैं, जहां लोगों के समूहों ने गाजा में नरसंहार और इज़रायल को अमरीकी हथियारों की आपूर्ति को तुरंत रोकने की मांग की है। यहूदी धर्म को मानने वाले लोगों के सहित अन्य सभी धर्मों में विश्वास रखने वाले लोगों ने एकजुट होकर इज़रायली युद्ध अपराधों के लिए अमरीकी सरकार के समर्थन के ख़िलाफ़ अपनी आवाज उठाई है। उन्होंने घोषणा की है कि ”हमारे नाम पर नहीं!“
ट्रंप का नारा ”अमरीका को फिर से महान बनाओ“ अमरीकी लोगों में असंतोष और गुस्से की भावना को ठंडा करने के उद्देश्य से है। ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी ”अवैध अप्रवासियों“ पर स्थायी निवासियों की नौकरियों को कथित रूप से चुराने का आरोप लगाते हैं। वे इस सच्चाई को छिपाते हैं कि अवैध अप्रवास से पूंजीपति वर्ग को लाभ होता है क्योंकि यह उन्हें सस्ती श्रम शक्ति प्रदान करता है जिसका अत्यधिक शोषण किया जा सकता है। अप्रवासियों के ख़िलाफ़ प्रचार का उद्देश्य नस्लवादी पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देना और मेहनतकश लोगों को एकजुट होकर शासक पूंजीवादी वर्ग पर अपना गुस्सा जाहिर करने से रोकना है।
मीडिया में प्रचारित गलत धारणाओं में से एक यह है कि ट्रंप की जीत से पता चलता है कि अधिकांश अमरीकी लोग विभिन्न गरीब देशों के अप्रवासियों के ख़िलाफ़ उसके नस्लवादी अभियान का समर्थन करते हैं। सच्चाई यह है कि ट्रंप को वोट देने वालों में से बहुत से लोगों ने ऐसा इसीलिये किया क्योंकि वे बाइडन के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक पार्टी की वर्तमान सरकार से गुस्से हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि ट्रंप का वोटों का हिस्सा 50.8 प्रतिशत था और मतदान में सिर्फ 62 प्रतिशत ने भाग लिया था। इसका अर्थ है कि केवल 31.5 प्रतिशत पात्र मतदाताओं ने, जो एक तिहाई से भी कम है, ट्रंप को वोट दिया है।
अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव मुख्य रूप से सिर्फ दो पार्टियों – रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच का मुकाबला होता है। देश के सबसे धनी पूंजीपति मिलकर इन दोनों पार्टियों के चुनाव अभियानों में अरबों डॉलर का योगदान देते हैं। जबकि इसके परिणाम को लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति के रूप में प्रचारित किया जाता है, सच्चाई तो यह है कि ये सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के नेतृत्व में पूंजीपति वर्ग की इच्छा की अभिव्यक्ति है।
अमरीका में शासक वर्ग ने डोनाल्ड ट्रम्प की जीत का आयोजन यह भ्रम पैदा करने के लिए किया है कि परिस्थिति बेहतर हो जाएगी।
अमरीका में मेहनतकश लोगों की बिगड़ती परिस्थितियों का स्रोत पूंजीवादी व्यवस्था है, जो साम्राज्यवाद के अपने उच्चतम स्तर पर है और अत्यंत परजीवी और विनाशकारी हो गई है। बेरोज़गारी और मुद्रास्फीति की समस्याओं का ट्रम्प के पास कोई समाधान नहीं है क्योंकि ये समस्याएं पूंजीवादी व्यवस्था की संगीनी हैं। अमरीकी उद्योग को पुनर्जीवित करने के नाम पर चीन और अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर शुल्क की दर से बढ़ाने की उसकी योजना अनिवार्यतः उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि को और तेज़ करेगी और आर्थिक समस्याओं को और बढ़ायेगी। यह पूंजीपति वर्ग के भीतर के अंतरविरोधों को और तेज़ करेगी।
अमरीकी पूंजीपतियों के बीच जिन मुद्दों पर मतभेद हैं, उनमें से एक आयात पर शुल्क लगाने की नीति है। आयातित वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले पूंजीपतियों को, बिजली से चलने वाले वाहन, सौर पैनल और कंप्यूटर चिप्स जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने से फ़ायदा होता है। उन पूंजीपतियों को, जिन्होंने अमरीकी बाजार में आपूर्ति के लिए विदेशों में उत्पादन सुविधाओं में निवेश किया है, उन्हें उच्च आयात शुल्क से नुक़सान होगा। चीन को निर्यात करने वाली अमरीकी कंपनियां चीनी आयात को प्रतिबंधित करने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि उन्हें पता है कि चीन अमरीकी आयात के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई करेगा।
हाल के दशकों में उन देशों में पूंजी और उत्पादन सुविधाओं का निर्यात हुआ जहां श्रम शक्ति सस्ती है, क्योंकि इससे अमरीकी इजारेदार पूंजीपतियों को अधिकतम मुनाफ़ा मिलता है। इससे देश के भीतर औद्योगिक नौकरियों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। इस प्रवृत्ति को उलटने का ट्रम्प का वादा एक भ्रम है क्योंकि अमरीकी इजारेदार पूंजीपति अधिकतम मुनाफ़े की तलाश में अपनी पूंजी का निर्यात बंद नहीं करने वाले हैं।
ट्रम्प प्रशासन चाहे जो भी करे, शासक पूंजीपति वर्ग के भीतर और पूंजीपतियों और मेहनतकश लोगों के बीच अंतरविरोध तीव्र होंगे। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने प्रतिद्वंद्वियों को कमज़ोर करने के लिये और एकधु्रवीय विश्व बनाने के अपने अभियान की दौड़ में अन्य देशों के लोगों के ख़िलाफ़ अपराध करना जारी रखेंगे।
अमरीका का मज़दूर वर्ग और लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ना जारी रखेंगे। “हमारे नाम पर नहीं!” के बैनर तले वे सरकार की जन-विरोधी कार्रवाइयों का विरोध करते रहेंगे।
मज़दूर वर्ग और लोगों का एकजुट संघर्ष ही उनके हित में गुणात्मक परिवर्तन ला सकता है। उन्हें एक ऐसी नई राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया स्थापित करने के उद्देश्य से अपना संघर्ष करना चाहिए जिसमें निर्णय लेने की शक्ति मेहनतकश लोगों के जनसमूह द्वारा प्रयोग की जाए, न कि पूंजीवादी अरबपतियों की पार्टियों द्वारा। केवल तभी अर्थव्यवस्था की दिशा को पूंजीवादी मुनाफ़े को अधिकतम करने से बदलकर सभी के लिए सुरक्षित आजीविका और समृद्धि प्रदान करने की ओर बदला जा सकता है। केवल तभी दुनिया पर अमरीकी वर्चस्व के लिए जंगखोरी के अभियान को खत्म किया जा सकता है और उसकी जगह पर दुनिया के सभी देशों व लोगों के अधिकारों के सम्मान के आधार पर शांतिपूर्ण नीति लाई जा सकती है।