मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
26 सितम्बर, 2024 को हजारों की संख्या में किसानों ने खरीफ फसल की एमएसपी की मांग को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा की अगुवाई में हनुमानगढ़ कलेक्ट्रेट का घेराव किया।
हनुमानगढ़ जिला कलेक्ट्रेट पर बड़ी संख्या में किसान एमएसपी की मांग को लेकर 21 सितम्बर, 2024 से धरना दे रहे हैं। हर दिन सैकड़ों की संख्या में किसान धरना में शामिल हो रहे हैं। विभिन्न संगठन आगे आकर किसानों का जोर-शोर से समर्थन कर रहे हैं।
आंदोलनकारी किसानों ने बताया है कि हनुमानगढ़ जंक्शन और टाउन की मंडियों में रोजाना 3000 क्विंटल से अधिक धान और मूंग की आवक हो रही है। धान का एमएसपी 2320 रुपए प्रति क्विंटल निश्चित है। परंतु सरकारी खरीद न होने के चलते 2000-2100 रुपए प्रति क्विंटल में किसानों को अपनी फसल को निजी व्यापारियों के हाथों में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इससे हर रोज किसानों को करीब 6 लाख रुपए से अधिक नुकसान हो रहा है। हनुमानगढ़ जिले की संगरिया, पीलीबंगा और रावतसर तहसील में किसान धान की खेती करते हैं। इस बार परमल धान का औसत उत्पादन 19 क्विंटल प्रति बीघा संभावित है, वहीं बासमती धान की औसत पैदावार 16 क्विंटल संभावित है। सबसे बड़ी बात यह है कि किसान धान की खेती अपने बलबूते पर कर रहे हैं। धान उत्पादक किसानों को न तो सिंचाई के लिए पानी मिलता है और न ही अतिरिक्त विद्युत आपूर्ति। इसके बावजूद किसान ट्यूबवेलों से खेतों में सिंचाई कर धान का उत्पादन करते हैं। किसान लंबे समय से धान उत्पादक क्षेत्र को ‘राइस बेल्ट’ घोषित करने की मांग कर रहे हैं परंतु सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।
आंदोलनकारी किसानों का यह भी कहना है कि सरकार किसानों को किसी भी प्रकार की सिंचाई, कीटनाशक, बीज पर अनुदान आदि की सहायता नहीं देती है। 23 जिंसों पर सरकार ने एमएसपी घोषित कर रखी है। खरीफ की फसल में इस क्षेत्र के अंदर नरमा, कपास, ग्वार, मूंग व धान की फसल एमएसपी के दायरे में आती है परंतु समय पर सरकार द्वारा खरीद नहीं करने के कारण किसानों को मजबूरी में ओने-पोने दामों में निजी व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
घेराव सभा को संबोधित करते हुए लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष कामरेड हनुमान प्रसाद शर्मा ने कहा कि जब आंदोलन की धार मजबूत होती है तो सरकारें हमेशा झुकती हैं। उन्होंने 1970 के किसान आंदोलन का जिक्र करते हुये कहा कि हजारों-हजारों किसान संयुक्त मोर्चा के साथ मिलकर आंदोलन चलाये थे। उसमें महिलाओं ने भी कदम से कदम मिलाकर संघर्ष किया था। आज भी वैसे ही संघर्ष किया जाये तो बड़ी से बड़ी सरकारों को झुकाया जा सकता है।
अन्य वक्ताओं ने बताया कि खेती के तीन नए कानूनों के खिलाफ़ किसानों ने दिल्ली की सरहदों पर आंदोलन किया था। तीन नए कानूनों को वापस लेते समय केन्द्र सरकार ने कुछ वादे किये थे। लेकिन केन्द्र सरकार ने अभी तक एमएसीपी की कानूनी गारंटी का वायदा पूरा नहीं किया है। आज भी किसान धान, मूंग, बाजरा की एमएसपी पर सरकारी खरीद को लेकर संघर्ष करने को मजबूर हैं।
वक्ताओं ने यह भी बताया कि सरकार व उसके अधिकारी आंदोलन को कमजोर करने के लिए किसानों को गुमराह कर रहे हैं। वे प्रेस वार्ता करके घोषणा कर रहे हैं कि धान और मूंग की फसल मंडी में नहीं आयी है, जैसे ही आवक होगी तो खरीद की व्यवस्था कर दी जाएगी। सरकार को किसानों की मांग माननी चाहिए। एमएसपी तो किसानों का हक है।
किसानों के घेराव के चलते पूरा कलेक्ट्रेट का कामकाज ठप्प हो गया है। बाध्य होकर कलेक्टर ने वार्ता के लिए किसानों को बुलाया। वार्ता में तय हुआ कि एक अक्तूबर से नरमें की एमएसपी पर सरकारी खरीद शुरू होगी। टिब्बी महापड़ाव में किसानों पर लगाये गए झूठे मुकदमों के लिए जिला पुलिस अधीक्षक के साथ 30 सितम्बर को वार्ता होगी। समस्त फसलों की एमएसपी पर सरकारी खरीद के लिए कलक्टर की मध्यस्ता से 30 सितम्बर को किसानों के प्रतिनिधिमंडल की जयपुर में मुख्य सचिव के साथ वार्ता होगी। इसके अलावा अन्य मुद्दों पर सहमति बनने पर घेराव समाप्त हुआ।
आंदोलनकारी किसानों ने घोषणा की कि जब तक मांग पूरी नहीं होगी, तब तक धरना जारी रहेगा।