सरकार रेल मज़दूरों की जान से खिलवाड़ कर रही है!

मूंबई सेंट्रल रेलवे उपनगरीय डिवीज़न में काम करने वाले सभी मोटरमैनों ने ओवरटाईम काम करने से इनकार करते हुए फरवरी को एक आंदोलन शुरू किया। इसके पहले मध्य रेलवे की मुंबई उपनगरीय सेवा के एक मोटरमैन ने लोकल ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी। रेल प्रशासन ने इस मोटरमैन की मौत को एक दुर्घटना करार दिया। मध्य रेलवे की उपनगरीय सेवा के नाराज़ मोटरमैनों ने रेल प्रशासन के इस दावे को ख़ारिज़ कर दिया है।

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मुंबई सी एस टी में मोटरमैनों की अपनी समस्याओं पर चर्चा करने के लिए मीटिंग (फाइल फोटो)

जिस मोटरमैन की मौत हुई है वे सुबह की पहली पाली में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस से पनवेल सेक्शन पर ड्यूटी पर थे। उन्होंने ड्यूटी के दौरान ग़लती से रेड सिग्नल पार कर दिया था। इस तरह की ग़लती को रेलवे के नियमों के अनुसार एसपीएडी स्पाड ख़तरे पर सिग्नल पार करना कहा जाता है जिसके लिए बखऱ्ास्त किये जाने तक की दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है। संघर्षरत मोटरमैनों का कहना है कि ऐसी गलतियां उस गंभीर तनाव के कारण होती हैं जिसके तहत मोटरमैन को अपनी ड्यूटी निभाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

सेंट्रल रेलवे के मुंबई उपनगरीय खंड में लगभग 30 फ़ीसदी पद खाली पड़े हैं। इतनी बड़ी संख्या में मोटरमैनों के पद खाली होने की वजह से मोटरमैनों को जबरन ओवरटाईम करने के लिए मजबूर किया जाता है। रेलवे बोर्ड के नियम स्पष्ट रूप से ये कहते हैं कि अगर मोटरमैन ऐसी ग़लती करता है, तो उसे आगे की जांच पूरी होने तक तुरंत ड्यूटी से हटा दिया जाना चाहिए! हालांकि, रिक्तियों की संख्या इतनी अधिक है कि एस.पी.ए.डी. की ग़लती करने के बाद भी उसी मोटरमैन को ट्रेन को वापस छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस तक ले जाने के लिए कहा गया, क्योंकि कोई अन्य मोटरमैन उपलब्ध नहीं था।

इस मामले में, जब मोटरमैनों ने एकजुट होकर ओवरटाईम काम करने से इनकार कर दिया, तो स्थानीय प्रशासन ने उनकी शिकायतों को रेलवे बोर्ड तक पहुंचाने का वादा किया। हालांकि, यह जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि स्थानीय अधिकारियों ने माना है कि भले ही वे रिक्तियों को भरने के लिए नियमित रूप से आवेदन मंगवाते रहते हैं, लेकिन जब तक रेलवे बोर्ड इसकी स्वीकृति नहीं देता, वे कुछ नहीं कर सकते।

आम तौर पर लोको रनिंग स्टाफ का काम बेहद तनावपूर्ण होता है। यहां तक कि रेलवे मैनुअल भी उनके काम को उच्च तनाव वाले काम के रूप में परिभाषित करता है। विशेष रूप से उपनगरीय रेलवे में मोटरमैनों को अत्यधिक तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। एक सामान्य शिफ्ट में मध्य रेलवे की मुंबई उपनगरीय डिवीज़न में उन्हें स्टेशनों पर 50 से 55 हॉल्ट लेने पड़ते हैं और 350 से अधिक सिग्नलों पर ध्यान देना पड़ता है! मुंबई उपनगरीय इलाके में सिग्नल का घनत्व इतना अधिक है कि मोटरमैनों को अपने ट्रैक के सिग्नल को पहचानने के लिए बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। जिसके लिए अत्यधिक उच्च स्तर की सतर्कता की आवश्यकता होती है। परन्तु, अधिकांश मोटरमैनों को उचित आराम नहीं मिलता है, क्योंकि उन्हें ओवरटाईम करना पड़ता है। यहां तक कि एक मोटरमैन, जिसकी शिफ्ट रात को 11 बजे ख़त्म होती है, उसे रेस्ट रूम में आराम करके सुबह

4 या 5 बजे से सुबह की पहली पाली में ड्यूटी पर उपस्थित होने के लिए कहा जाता है! ऐसे में आराम और नींद से वंचित मोटरमैन कई बार झपकी या अधूरी नींद, आदि जैसी समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। रेल परिवहन विशेषज्ञों का यह मानना है कि ऐसी भयानक परिस्थितियों में काम करते हुए, मोटरमैनों से रेलवे कर्मचारियों और यात्रियों की 100 प्रतिशत सुरक्षा सुनिश्चित करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

उपनगरीय रेलवे में काम करने वाले मोटरमैनों को साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं मिलती है! उनसे उम्मीद की जाती है कि वे पूरे साल ड्यूटी पर हाजिर रहेंगे। यह भारतीय रेल के अपने ही एच.ओ.ई.आर. मैनुअल (रोज़गार के घंटे और आराम की अवधि मैनुअल) का घोर उल्लंघन है। काम से संबंधित उच्च तनाव के कारण बहुत से मोटरमैन बहुत ही कम उम्र में उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) तथा अत्याधिक तनाव के कारण मधुमेह आदि के शिकार हो जाते हैं। बताया जा रहा है कि इन सभी समस्याओं से परेशान होकर पिछले क़रीब एक साल में लगभग 70 मोटरमैनों ने वी.आर.एस. ले लिया है और फ़िलहाल 50 से अधिक मोटरमैनों के वी.आर.एस. के आवेदन प्रशासन के पास लंबित हैं।

भारतीय रेल के लोको पायलटों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख संगठनों में से एक, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (ए.आई.एल.आर.एस.ए.) पिछले कई सालों से इन मुद्दों को उठाता रहा है। कई साल पहले, 2013-14 में रेलवे की सुरक्षा की समीक्षा के लिए सरकार द्वारा नियुक्त काकोडकर समिति ने भी दृढ़ता से सिफ़ारिश की थी कि रनिंग स्टाफ का कोई भी पद कभी भी खाली नहीं होना चाहिए। ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने के बजाय, रेल मंत्रालय बहुत कम रिक्त पदों के आंकड़े घोषित करके भर्ती की कार्रवाई को रोक रहा है। एक ओर, जब लोको रनिंग स्टाफ आंदोलन करता है तो भारतीय रेल के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा विभिन्न आंतरिक परिपत्र जारी कर दिये जाते हैं। इन आंतरिक परिपत्रों में कहा जाता है कि लोको रनिंग स्टाफ से अतिरिक्त काम नहीं लिया जाना चाहिए, जबकि ज़मीन पर स्थिति लगातार ख़राब होती जा रही है।

भारतीय रेल में विभिन्न विभागों में 3 लाख से अधिक पद खाली पडे़ हैं, जिनमें लोको रनिंग स्टाफ, सिग्नल और टेलीकॉम स्टाफ, ट्रैक मेंटेनर, गार्ड और स्टेशन मास्टर आदि महत्वपूर्ण विभाग और कार्य शामिल हैं। जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है तो रेलवे प्रशासन रेल मज़दूरों को दोषी ठहराने की कोशिश करता है। लेकिन सच तो यह है कि इसका मूल कारण है हिन्दोस्तानी सरकार का पूंजीवादी दृष्टिकोण, जो मेहनतकश लोगों के जीवन को महत्व नहीं देता। किसी व्यवसायिक उद्यम के पूंजीपति मालिक के लिए, सुरक्षा सहित बाकी सभी सेवाओं को बली की वेदी पर चढ़ा दिया जाता है। हिन्दोस्तान की सरकार और हिन्दोस्तानी राज्य की विभिन्न अन्य शाखाएं ठीक उसी तरह से व्यवहार करती हैं, जब उन्हें कामकाजी लोगों की सुरक्षा से निपटना होता है। यही कारण है कि रिक्त पदों को न भरने या रेलवे कर्मचारियों को पर्याप्त सुरक्षा उपकरण न देने का इसके पास “पैसा नहीं” है का बहाना होता है। रेल मंत्रालय केवल हर दिन उच्चतम संभव गति से अधिकतम संख्या में ट्रेनें चलाने के बारे में चिंतित है, भले ही इसकी वजह से रेल मज़दूरों को काम की बहुत ख़तरनाक परिस्थितियों में काम करना क्यों न करना पड़े। वह अपने मज़दूरों की भलाई और भारतीय रेल का इस्तेमाल करने वाले करोड़ों कामकाजी लोगों की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से संवेदनहीन है।

समग्र रूप से मज़दूर वर्ग के लिए, यानि कि श्रमिकों के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि वे एकजुट हों और काम की असुरक्षित परिस्थितियों को स्वीकार करने से इनकार करें। साथ ही, यह समझना आवश्यक है कि जब तक पूंजीपति वर्ग हमारे देश पर शासन करेगा, तब तक मेहनतकश लोगों की सुरक्षा को हमेशा “एक खर्च” माना जाएगा। केवल जब उनके शासन को अन्य मेहनतकश लोगों के साथ-साथ मज़दूर वर्ग के शासन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा तो मेहनतकश लोगों की सुरक्षा के मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलेगी।

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