बिजली आधुनिक जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। इसे किफ़ायती दाम पर उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है। इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने के बजाय, केंद्र सरकार निजी कंपनियों को अधिकतम मुनाफे़ की गारंटी देने के लिए ऐसे क़दम उठा रही है, जिसके कारण बिजली बहुत से लोगों की पहुंच से बाहर हो जाएगी।

केंद्र सरकार ने 2025 तक पूरे देश में 25 करोड़ प्रीपेड स्मार्ट बिजली मीटर लगाने का फै़सला किया है। सरकारी प्रवक्ताओं का दावा है कि इस परियोजना का उद्देश्य बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और सामर्थ्य में सुधार करना है। इसका असली मक़सद, बिजली वितरण के निजीकरण का रास्ता साफ़ करना है।
स्मार्ट मीटर एक उपकरण है जो उपभोक्ता और बिजली वितरक के बीच, बिजली की खपत के बारे में वास्तविक समय के अनुसार, दो-तरफ़ा संचार प्रदान करता है। कितनी बिजली की खपत हुई है यह जानने के लिए वितरण कंपनी को मीटर पढ़ने के लिए किसी व्यक्ति को भेजने की आवश्यकता नहीं होती है। उपभोक्ता खुद यह जान सकता है कि प्रतिदिन कितनी बिजली की खपत हो रही है।
स्मार्ट मीटर परियोजना, केंद्र सरकार द्वारा जुलाई 2021 में 3,03,758 करोड़ रुपये के बजट के साथ शुरू की गई, संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (आर.डी.एस.एस.) के हिस्से के रूप में चलाया जा रहा है। इस योजना का एक घोषित उद्देश्य 2024-25 तक पूरे देश में बिजली वितरण में समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (ए.टी. एंड सी.) घाटे को 12-15 प्रतिशत तक कम करना है।
आर.डी.एस.एस. के तहत, केंद्र सरकार प्रत्येक वितरण कंपनी (डिस्कॉम) को मीटर की लागत का 15 प्रतिशत या 900 रुपये प्रति मीटर, जो भी कम हो, धनराशि प्रदान करेगी। उत्तर पूर्व और पहाड़ी राज्यों के लिए यह लागत का 22.5 प्रतिशत या 1350 रुपये प्रति मीटर तक देगी। यह प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग योजना को लागू करने के लिए डिस्कॉम को दिया जाने वाला एक प्रोत्साहन है। प्रोत्साहन का भुगतान केवल तभी किया जाएगा जब सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड के तहत किसी निजी कंपनी द्वारा स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे।
सरकार का दावा है कि प्री-पेड स्मार्ट मीटर से उपभोक्ताओं को फ़ायदा होगा। लेकिन, यदि वास्तविक उद्देश्य उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाना है, तो सरकार पीपीपी मोड पर ज़ोर क्यों दे रही है? इसे किसी निजी कंपनी को शामिल किए बिना राज्य की मालिकी वाली डिस्कॉम द्वारा लागू क्यों नहीं किया जा सकता है? यह शर्त कि यह केवल पीपीपी मोड के तहत किया जाना चाहिए, यह दर्शाता है कि वास्तविक उद्देश्य बिजली वितरण को निजीकरण के लिए आकर्षक बनाना है।
जबकि आर.डी.एस.एस. के तकनीकी और वाणिज्यिक घाटे को कम करने और बिजली वितरण प्रणाली की दक्षता में सुधार करने के उद्देश्य अच्छे हैं, इसमें समस्या यह है कि इस सुधार का लाभ बिजली उपभोक्ताओं को नहीं मिलेगा। यह पिछले अनुभव से पता चलता है। देश में ए.टी. एंड सी. घाटा 2011-12 में लगभग 28 प्रतिशत से कम होकर 2021-22 में 17 प्रतिशत हो गया है, लेकिन इस अवधि के दौरान बिजली दरें साल दर साल बढ़ी हैं। इस सुधार से हुए लाभ को उत्पादन और वितरण कंपनियों ने अपने मुनाफों को बढ़ाने के लिए पूरी तरह से हड़प लिया है।
1990 के दशक में बिजली के निजीकरण का समाज-विरोधी कार्यक्रम बिजली उत्पादन के क्षेत्र में शुरू हुआ। अधिकारियों ने विभिन्न हिन्दोस्तानी और विदेशी निजी कंपनियों के साथ दीर्घकालिक बिजली ख़रीद समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इससे बिजली उत्पादन में निवेश करने वाले इजारेदार पूंजीपतियों को भारी निजी मुनाफ़ा हुआ। इससे राज्य बिजली बोर्डों द्वारा बिजली के लिए भुगतान की जाने वाली क़ीमत में बड़ी वृद्धि हुई।
बिजली उत्पादन के निजीकरण के बाद, विभिन्न राज्य सरकारों ने बिजली वितरण का निजीकरण करने का प्रयास किया है। निजी बिजली वितरण कंपनियां मुंबई और दिल्ली जैसे कुछ शहरों में काम करती हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, पुदुचेरी, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, आदि जैसे कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मज़दूरों ने जुझारू संघर्षों के ज़रिये उन सरकारों के प्रयासों को रोक दिया है।
डिस्कॉम के सबसे मुनाफ़ेदार कार्यों के निजीकरण की तैयारी करने के लिए अब स्मार्ट मीटर की स्थापना की जा रही है।
निजी बिजली इजारेदार कंपनियां सरकर से मांग कर रही हैं कि राज्य की मालिकी वाली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के वित्त पर असर डालने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान करे, ताकि उन्हें बड़े पैमाने पर निजीकरण के लिए आकर्षक बनाया जा सके। वे चाहते हैं कि बिजली पर सभी प्रकार की सब्सिडी बंद कर दी जाए और सभी लागतों को कवर करने के लिए हर साल बिजली दरों को संशोधित किया जाए। किसी उपभोक्ता समूह को दी जाने वाली कोई भी सब्सिडी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर (डीबीटी, उपभोक्ता के खाते में सीधा हस्तांतरण) प्रणाली के माध्यम से होनी चाहिए। इसका मतलब यह है कि कोई सब्सिडी प्राप्त करने से पहले प्रत्येक उपभोक्ता को बिजली की पूरी क़ीमत चुकानी होगी, जो कि अधिकांश उपभोक्ताओं के लिए आज की तुलना में काफ़ी अधिक होगी।
निजी बिजली कंपनियों के पूंजीपति मालिक चाहते हैं कि एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिससे सरकारी उपभोक्ताओं सहित किसी भी उपभोक्ता का समय सीमा के पार होने के बाद चुकाया गया बिल भुगतान न हो। वे चाहते हैं कि ए.टी. एंड सी. घाटे को कम किया जाए ताकि आपूर्ति की जाने वाली अधिकांश बिजली की लागत वसूल हो सके। इसके अलावा, उनकी मंशा है कि उनके कार्यभार संभालने से पहले, सरकार सार्वजनिक धन से वितरण के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करे।
आर.डी.एस.एस. के अन्य भागों के साथ, प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग योजना इजारेदार पूंजीपतियों की सभी मांगों को संबोधित करती है। प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग योजना यह सुनिश्चित करेगी कि उपभोक्ता बिजली का उपभोग करने से पहले भुगतान करें और प्रीपेड राशि समाप्त होने पर बिजली आपूर्ति स्वचालित रूप से बंद हो जाएगी। प्री-पेड प्रणाली लागू होने के बाद निजी बिजली इजारेदार कंपनियों के लिए हजारों करोड़ रुपये उपलब्ध होंगे। सरकारी खर्चे पर बिजली वितरण के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण होगा और घाटा कम होगा। प्री-पेड स्मार्ट मीटर लगाने और उनके जीवन-काल समाप्त होने पर उन्हें बदलने का खर्च उपभोक्ताओं को उठाना होगा।
मीटरों को प्री-पेड बनाने से बिजली आपूर्तिकर्ता को यह आश्वासन मिलता है कि केवल उतनी ही बिजली की आपूर्ति हो जिसके लिए पैसे का पहले ही भुगतान किया गया है। बिजली की आपूर्ति को दूर से ही बंद किया जा सकेगा, और बिजली काटने के लिए किसी को भेजने की ज़रूरत नहीं होगी।
उपभोक्ताओं के अलावा बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। प्रीपेड स्मार्ट मीटर की स्थापना और निजी इजारेदार कंपनियों द्वारा बिलिंग प्रणाली के प्रबंधन के लागू होने के साथ, प्रत्येक डिस्कॉम में बहुत सारे कर्मचारी बेरोज़गार हो जाएंगे। केवल एक राज्य तमिलनाडु में, यूनियनों का अनुमान है कि लगभग 20,000 कर्मचारी अपनी नौकरियां खो बैठेंगे।
डिस्कॉम का निजीकरण होने पर बिजली क्षेत्र के मज़दूरों पर और अधिक मार पड़ेगी। निजीकरण के साथ-साथ हमेशा ही नौकरी की सुरक्षा ख़त्म हुई है, बड़े पैमाने पर स्थायी नौकरियों की जगह ठेके पर नौकरियां आ गई हैं और मज़दूरों को प्राप्त होने वाले लाभों में कटौती हुई है।
प्री-पेड स्मार्ट मीटर न तो बिजली क्षेत्र के मज़दूरों के हित में है और न ही देश की जनता के हित में है। इनसे केवल इजारेदार पूंजीपतियों को फ़ायदा होगा, जो अब देश की संपूर्ण बिजली व्यवस्था को नियंत्रित करना चाहते हैं।