प्रिय संपादक महोदय,
पार्टी की 43वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिए गए लेख के बारे में, मैं अपने विचार प्रकट करना चाहती हूं। हर साल की तरह इस साल भी पार्टी के लेख के द्वारा अलग-अलग पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। जैसे कि वर्तमान सरकार द्वारा घोषणा की जा रही है कि हिन्दोस्तान 2047 तक एक बहुत विकसित देश बन जाएगा। परन्तु वास्तव में यह विकास किसका होगा, इस पर गौर करने की ज़रूरत है।
ऐसा प्रचार इस सच्चाई को छुपा रहा है कि हमारा समाज वर्गों में बंटा हुआ है। एक ओर पूंजीपति वर्ग है, जिसके पास उत्पादन के साधन हैं और दूसरी ओर मज़दूर, मेहनतकश किसान, औरत और नौजवान हैं जिनकी हालत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है।
रेलवे, बिजली, बैंकिग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य जो कि मानव जीवन को चलाने के लिए बहुत ही ज़रूरी है और वाज़िब दाम पर मुहैया करवाई जानी चाहिए। इनका निजीकरण किया जा रहा है, ताकि कुछ मुट्ठीभर घरानों की तिजौरियों को भरा जा सके।
तरह-तरह के मज़दूर-विरोधी क़ानून बनाए जा रहे हैं। जिसमें यूनियन बनाने के अधिकार को, हड़ताल करने के अधिकार को ख़त्म कर दिया गया है। नियमित रोज़गार की जगह पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को ठेके पर काम दिया जा रहा है, ताकि ई.एस.आई. और पी.एफ. जैसी सामाजिक सेवाएं न देनी पड़ें। तालाबंदी और मज़दूरों की छंटनी को और आसान बना दिया गया है। महिलाओं को रात की पाली में काम करवाने पर कोई रोक नहीं है। काम के समय को 12 घंटे तक बढ़ाने की मांग की जा रही है।
तीन किसान-विरोधी क़ानून जिसको वापस करवाने के लिए किसानों को लगातार एक साल से भी ज़्यादा समय तक धरने पर बैठना पड़ा था। जिनमें से सैकड़ों किसानों ने अपनी जान गंवाई और क़ानून सिर्फ़ नाम के लिए वापस लिए गए हैं, कुछ भी लागू नहीं हुआ है। फ़सलों पर एम.एस.पी. गारंटी लागू नहीं है। किसान जो देश की रीढ़ की हड्डी हैं, वे आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।
महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। बीते साल महिला खिलाड़ियों के संघर्ष को कौन भूल सकता है। वे खिलाड़ी, जिन्होंने देश का नाम विश्व में ऊंचा किया परन्तु जब उन्होंने अत्याचार और यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई तथा संघर्ष किया उन्हें भी न्याय नहीं मिला है, जबकि अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। ऐसे में आम महिलाओं की तो बात ही नहीं होती। महिलाएं आज भी दोहरे शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव की शिकार हैं।
गिग वर्कर के नाम पर नौजवानों को नौकरी देकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। हर तबके में शोषण बढ़ता जा रहा है। लेकिन मज़दूर मेहनतकश इसके ख़िलाफ़ लगातार संघर्ष कर रहे हैं। उनके संघर्ष को दबाने के लिए नए-नए क़ानून बनाए जा रहे हैं और सख़्ती से लागू भी किए जा रहे हैं। पत्रकारों पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं।
आषा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, नर्स, डॉक्टर, बैंकिग, रेलवे क्षेत्र, कोयला, बिजली हर एक क्षेत्र में मज़दूर अपनी आवाज़ को बुलंद कर रहे हैं।
इससे यही निकलकर आता है कि मौजूदा संसदीय व्यवस्था में फै़सले लेने की शक्ति सरमायदार वर्ग और उसके प्रतिनिधियों के हाथों में संकेंद्रित है। चुनावी व्यवस्था लोगों को बुद्धू बनाने का काम करती है, इस प्रचार के साथ कि लोगों ने ही इस सरकार को चुना है, जबकि हक़ीक़त कुछ और ही होती है। पक्ष विपक्ष दोनों को सरमायदार वर्ग ही खड़ा करता है। उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा करवाता है, यह दिखाने के लिए कि कौनसा पक्ष आपके लिए बेहतर है। वह उसी पक्ष की सरकार बनाता है, जो लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा बेवकूफ़ बनाने का काम कर सकता है और सरमायदार वर्ग के एजेंडे को बेहतर तरीके़ से लागू कर सकता है।
दुनियाभर में हिन्दोस्तानी लोकतंत्र को बेहतर बताने का मतलब है सरमायदार वर्ग की हुकूमत को वैधता दिलाना। यह सरमायदार वर्ग का लोकतंत्र है। मज़दूरों और किसानों पर अपनी क्रूरता दिखाने का तंत्र है। यह ऐसी व्यवस्था है जहां क़ानूनों को पारित करने में लोगों की कोई भूमिका नहीं होती। जहां काम न करने वाले प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार लोगों के हाथ में नहीं है।
हमें एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने के लिए काम करना होगा जहां पर नीतियां और क़ानून लोगों के पक्ष में बनाए जाएंगे। जहां फ़ैसले लेने की शक्ति लोगों के हाथों में होगी न कि कुछ मुट्ठीभर इजारेदार घरानों के हाथों में। हमें इस व्यवस्था को उखाड़ फैंकना होगा और एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए एकजुट काम करना होगा जहां मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण और दमन न हो। जहां सभी की सुख, सुरक्षा और खुषहाली सुनिश्चित की जाए। जहां वास्तव में मानव अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित की जाए।
मैथिली, भोपाल