जबकि हिन्दोस्तान को दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र कहा जाता है, समय-समय पर होने वाले चुनाव अति-अमीर पूंजीपतियों द्वारा समर्थित पार्टियों के लिए एक-दूसरे का अपमान करने और लोगों से नाना प्रकार के झूठे वादे करने के अवसरों के अलावा और कुछ नहीं हैं।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में राज्य विधानसभा चुनावों के लिए हाल के अभियानों में भाजपा और कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने राजनीतिक चर्चा को सबसे निचले स्तर तक गिरा दिया है।
कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राहुल गांधी को “मूर्खों का सरदार” कहने के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग से शिकायत की है। भाजपा ने राहुल गांधी की उस टिप्पणी की शिकायत की है जिसमें उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम पर दुर्भाग्य लाने के लिए मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया था। इन नेताओं द्वारा एक-दूसरे का इस तरह अपमान करना लोगों को इस बात पर विचार करने को मजबूर करता है, कि देश का भविष्य ऐसे नेताओं के हाथों में कैसे सौंपा जा सकता है।
धर्म या जाति के आधार पर वोट मांगना उम्मीदवारों के लिए आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना जाता है। लेकिन, जाति और धार्मिक पहचान के आधार पर लोगों से अपील करना भाजपा और कांग्रेस पार्टी के लिए स्वाभाविक बन गया है। हाल के चुनाव अभियानों में, भाजपा उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी पर मुसलमान समर्थक और हिंदू-विरोधी होने तथा गुर्जर व कुछ अन्य जातियों के ख़िलाफ़ होने का आरोप लगाते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों ने भाजपा पर मुसलमान-विरोधी और दलित-विरोधी होने का आरोप लगाया है। इस सबके ज़रिये इस सच्चाई को छुपाने की कोशिश की जा रही है कि ये दोनों पार्टियां पूंजीवाद-समर्थक, मज़दूर-विरोधी और किसान-विरोधी हैं।
मोदी और अन्य भाजपा नेताओं ने बेरोज़गारी और महंगाई के लिए राजस्थान की कांग्रेस सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने भाजपा पर गौतम अडानी जैसे पूंजीवादी अरबपतियों को मालामाल करने का आरोप लगाया है और दावा किया है कि कांग्रेस पार्टी मज़दूरों और किसानों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध है।
तथ्य बताते हैं कि जब कांग्रेस पार्टी की सरकार होती है या जब भाजपा की सरकार होती है, दोनों समय इजारेदार पूंजीपति मज़दूर वर्ग का अत्यधिक शोषण करके और किसानों व अन्य छोटे उत्पादकों को लूटकर, बेशुमार धन इकट्ठा करते हैं। ये दोनों पार्टियां इस सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रही हैं कि पूंजीवाद की पूरी आर्थिक व्यवस्था मेहनतकश जनता को लूटकर अरबपतियों को अमीर बनाने की दिशा में चलायी जाती है।
भाजपा और कांग्रेस पार्टी, दोनों के नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार वादा किया है कि अगर वे सरकार बनाते हैं तो लाखों नई नौकरियां पैदा की जाएंगी। हक़ीक़त तो यह है कि बेरोज़गारी अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गयी है। इन पार्टियों के नेतृत्व वाली सरकारें वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के झंडे तले इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों के विस्तार को सक्षम करने के एजेंडे के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जितनी नई नौकरियां पैदा होती हैं, उससे कहीं अधिक नौकरियां नष्ट हो जाती हैं।
हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपति अपनी भरोसेमंद पार्टियों के चुनाव अभियानों के लिए भारी मात्रा में धन खर्च करते हैं। इसकी वजह से मज़दूरों और किसानों के उम्मीदवारों के लिए चुनाव में जीतना बेहद मुश्किल हो जाता है। जबकि यह धारणा बनाई गई है कि लोग अपनी पसंद की पार्टी का चुनाव करते हैं, वास्तव में ये इजारेदार पूंजीपति ही हैं जो अपनी पसंद की पार्टी को कार्यकारी शक्ति सौंपने के लिए चुनावी प्रक्रिया का उपयोग करते हैं।
चुनाव, चाहे केंद्रीय संसद के लिए हों या राज्य विधानसभाओं के लिए, ये तब तक पूंजीपति वर्ग के शासन को वैधता दिलाने का एक उपकरण बने रहेंगे, जब तक बड़े धनबल द्वारा समर्थित पार्टियों का वर्चस्व समाप्त नहीं किया जाता और फ़ैसले लेने की शक्ति लोगों के हाथों में लाने के लिए राजनीतिक प्रक्रिया को बदल नहीं दिया जाता है। इन तब्दीलियों को अंजाम देकर ही, आर्थिक व्यवस्था को पूंजीवादी लालच को पूरा करने के बजाय लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में संचालित किया जा सकता है।