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बीमा – ‘डर’ का व्यापार

संपादक महोदय,

मज़दूर एकता लहर के अंक सितंबर 1-15, 2023 में प्रकाशित लेख ‘फ़सल बीमा के ज़रिए किसानों की पूंजीवादी लूट’ को पढ़ा। यह लेख काफ़ी जानकारी भरा है। यह केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा फ़सल बीमा के ज़रिए पूंजीपतियों द्वारा किसानों की लूट की सच्चाई को सामने लाता है।

जब मैं इस लेख को पढ़ रहा था, तब यह ख्याल आया कि आखि़रकार हम बीमा क्यों करवाते हैं। यह एक डर है कि व्यक्ति की असमय मौत के बाद उसके परिवार की देखभाल कौन करेगा? पैसे के अभाव में बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए धन कौन खर्च करेगा? यदि उसे या उसके परिवार को कोई गंभीर बीमारी हो गई तो इलाज पर होने वाला बड़ा खर्च कौन सहेगा?

इसी तरह से एक किसान को डर है कि प्राकृतिक आपदा या ख़राब बीज के चलते उसकी फ़सल बर्बाद हो गयी तो लागत की भरपायी कौन करेगा? अर्थात मज़दूरों और किसानों को अपने जीवन, परिवार, स्वास्थ्य और शिक्षा की असुरक्षा महसूस होती है।

दरअसल, हम पूंजीवादी व्यवस्था में जी रहे हैं। यह पूंजीवादी व्यवस्था अनिश्चितताओं और असुरक्षाओं से भरी हुई है। यहीं से ‘डर’ का व्यापार शुरू होता है, इसी डर के कारण यह व्यापार फल-फूल रहा है। हमारे देश में रोज़गार का अधिकार, आवास का अधिकार, भोजन और एक समान शिक्षा प्राप्त करने व स्वास्थ्य लाभ पाने का सर्वव्यापी अधिकार नहीं है। ऐसे में हर नागरिक अनिश्चितता और असुरक्षा में जीता है। वह अनिश्चितता और असुरक्षा से बचने की कोशिश करता है। पंजीपतियों की बीम कंपनियां ‘जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी’ जैसे सुनहरे नारे लगाती हैं। यही डर उनके मुनाफ़े का स्रोत बन जाता है। इस डर के बिजनेस का उत्पादकता से कोई संबंध नहीं है।

किसान फ़सल का बीमा इसलिए करवाते हैं, ताकि फ़सल के बर्बाद होने पर नुक़सान की भरपाई हो सके। किसान अपनी फ़सल की बर्बादी पर जब बीमा राशि (के मुआवजे़) का दावा करते हैं, तो उनके दावे को मानने से इनकार कर दिया जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब किसानों को अपनी फ़सल की बर्बादी का मुआवज़ा प्राप्त करने के लिए सड़कों पर आने के लिए बाध्य होना पड़ा है। इस तरह के उदाहरण आपको पंजाब, राजस्थान, हरियाणा आदि में भर-भरके मिलेंगे।

जबकि सरकार का दावा है कि प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना से किसान खुशहाल हो रहा है। परन्तु हो उल्टा रहा है कि पूंजीपति खुशहाल हो रहे हैं और उनकी बीमा कंपनियां मालामाल हो रही हैं।

अंत में मैं यही कहना चाहता हूं कि राज्य और उसकी सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वे देश के किसानों की फ़सलों के नुक़सान की भरपाई की गारंटी दे और यह सुनिश्चित करे कि किसानों को उचित मुआवज़ा मिले।

यह सुनिश्चित करने के लिये मज़दूरों और किसानों को इस पूंजीवादी लूट की व्यवस्था को ख़त्म करना होगा। एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी होगा जहां आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक फै़सले लेने की ताक़त लोगों के पास होगी।

आपका पाठक

हरीश, दिल्ली

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