नई दिल्ली में आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन :
पूंजीवाद के समर्थकों के पास दुनिया की समस्याओं का कोई समाधान नहीं है

जी-20 का वार्षिक शिखर सम्मेलन इस वर्ष नई दिल्ली में हो रहा है। जी-20  दुनिया के 19 प्रमुख पूंजीवादी देशों और यूरोपीय संघ का एक समूह है। इसके सदस्य देश हैं : संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, कनाडा, रूस, चीन, हिन्दोस्तान, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको, अर्जेंटीना, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की और दक्षिण कोरिया।

विभिन्न सदस्य देश बारी-बारी से प्रत्येक वर्ष जी-20 के अध्यक्ष की भूमिका निभाते हैं। हिन्दोस्तान इस पद पर दिसंबर 2022 से है। हिन्दोस्तान से पहले, इंडोनेशिया इसके अध्यक्ष के पद पर था। हिन्दोस्तान दिसंबर 2023 को जी-20 की अध्यक्षता ब्राज़ील को सौंप देगा।

जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ में बड़े या छोटे सभी देश सदस्य होते हैं, तो इसके विपरीत, जी-20 आर्थिक रूप से सबसे शक्तिशाली देशों का एक समूह है। यह समूह वैश्विक-आमदनी, वैश्विक-व्यापार और वित्तीय-निवेश के लगभग तीन-चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। इस समूह ने वैश्विक स्तर पर राजकोषीय और आर्थिक नीतियों पर चर्चा करने और फै़सले लेने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है।

पहले के शिखर सम्मेलनों में जैसा होता आया है, इस शिखर सम्मेलन के दौरान भी जी-20 के नेता विश्व की प्रमुख समस्याओं पर सलाह-मशवरा करेंगे। इनमें शामिल हैं बेरोज़गारी, गैर-बराबरी, बीमारियां, युद्ध, आतंकवाद, क़र्ज़-संकट और पर्यावरण की दिन-प्रतिदिन बिगड़ती हालतें। परन्तु जी-20 के वार्षिक शिखर सम्मेलनों की वजह से इनमें से किसी भी समस्या के समाधान की दिशा में कोई भी क़दम नहीं उठाया गया है। इसका कारण यह है कि इन सभी समस्याओं का स्रोत वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था में है, और इन शिखर सम्मेलनों में भाग लेने वाले नेता इस वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थन और इसकी हिफ़ाज़त करते हैं।

पूंजीवाद अपने उच्चतम पड़ाव, साम्राज्यवाद के स्तर तक पहुंच गया है। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें विश्व बाज़ार पर और कच्चे माल के स्रोतों पर कुछ शक्तिशाली साम्राज्यवादी राज्यों की इजारेदार कंपनियों का वर्चस्व और नियंत्रण होता है। इस व्यवस्था में सामाजिक उत्पादन कुछ इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा अधिकतम निजी मुनाफ़े बनाने के लिए किया जाता है। कुछ साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा विश्व अर्थव्यवस्था की दिशा निर्धारित की जाती है, जबकि यह दिशा दुनिया के सभी देशों के मज़दूर वर्ग और आम लोगों की ज़िन्दगी को तबाह कर रही है।

प्रत्येक साम्राज्यवादी राज्य, मानव समाज के हितों की घोर अवहेलना करते हुए, दूसरे राज्यों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए, अपने शासक वर्ग के संकीर्ण हितों की हिफ़ाज़त करने के लिए काम करता है। साथ ही साथ, सभी साम्राज्यवादी शक्तियां पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था को क़ायम रखने और दुनिया के किसी भी हिस्से में श्रमजीवी वर्ग की क्रांति को रोकने के लिए, मिलकर काम करती हैं।

जी-20 संगठन की शुरुआत 25 साल पहले, 1997 के वैश्विक-आर्थिक संकट के बाद हुई थी। उस समय, अमरीका के नेतृत्व में दुनिया के सात प्रमुख पूंजीवादी देशों जो खुद को जी-7 कहते हैं, उन्होंने यह फ़ैसला लिया कि तथाकथित उभरती शक्तियों को एक ऐसे मंच में शामिल किया जाये, जहां वैश्विक-पूंजीवादी व्यवस्था को क़ायम रखने के लिए ज़रूरी सभी आर्थिक और वित्तीय नीतियों पर चर्चा की जा सके।

पूंजीवाद एक ऐसी व्यवस्था है जो न केवल सारी दौलत को एक ध्रुव पर केंद्रित करती है, बल्कि दूसरे ध्रुव पर बड़े पैमाने पर ग़रीबी पैदा करती है। यह एक ऐसी व्यवस्था भी है जिसके चलते, दुनिया के लोगों को बार-बार विनाशकारी संकटों से जूझना पड़ता है। ये संकट समाज की उत्पादक शक्तियों के एक बड़े हिस्से को बर्बाद कर देते हैं और पूंजीवादी व्यवस्था की नींव को झकझोर देते हैं। ऐसा ही एक विनाशकारी संकट 1997 में हुआ था, जिसे एशियाई वित्तीय संकट के नाम से जाना जाता है। उस संकट से पैदा हुई हालतों पर काबू पाने के लिए, तत्काल कुछ नीतिगत उपायों पर सहमति बनाने के उद्देश्य से, जी-7 की साम्राज्यवादी ताक़तें एक साथ आई थीं। उन्होंने अन्य चीजों के साथ-साथ, यह भी महसूस किया था कि इन सात राज्यों के विशिष्ट समूह के अलावा, कुछ उभरती ताक़तों को भी अपने औपचारिक विचार-विमर्श में शामिल करना ज़रूरी है। इससे यह हक़ीक़त भी सामने आयी कि वैश्विक आर्थिक उत्पादन में जी-7 का हिस्सा घटना शुरू हो गया था, जबकि चीन, हिन्दोस्तान और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की हिस्सेदारी क्रमशः बढ़ रही थी।

जी-20 की उत्पत्ति का मतलब यह कतई नहीं था कि वैश्विक-आर्थिक नीति लोकतांत्रिक हो गई है। इस क़दम को इसलिये उठाया गया था ताकि कुछ और अधिक संख्या में राज्यों का समर्थन जुटाकर, सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली पूंजीवादी-साम्राज्यवादी ताक़तों के आर्थिक एजेंडे को वैधता दिलाई जा सके।

अंतर-साम्राज्यवादी अंतर्विरोधों को हल करने की दिशा में जी-20 संगठन का कोई योगदान नहीं रहा है। इसके विपरीत, अंतर-इजारेदारी और अंतर-साम्राज्यवादी अंतर्विरोध व मतभेद और भी तीव्र हो गए हैं। इस हक़ीक़त को यूक्रेन के मुद्दे पर अमरीका के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन द्वारा रूस के ख़िलाफ़ छेड़े गए युद्ध में देखा जा सकता है। इस सच्चाई को अमरीका द्वारा चीन के ख़िलाफ़ छेड़े गए व्यापार-युद्ध में देखा जा सकता है। अमरीका संप्रभु राज्यों के बीच के संबंधों को नियंत्रित करने वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सभी सिद्धांतों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करता आया है। अमरीका अन्य देशों के ख़िलाफ़ एकतरफ़ा प्रतिबंध लगाता है। इसके अलावा अमरीका और उसके सहयोगी देश पर्यावरण से जुड़े मामलों का बोझ दूसरे देशों पर लादना चाहते हैं।

इस साल हिन्दोस्तान द्वारा जी-20 की अध्यक्षता संभालने को लेकर, मोदी सरकार बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रचार कर रही है। इस बारे में बहुत चर्चा है कि हिन्दोस्तान जी-20 से जुड़े देशों के बीच “आम सहमति“ बनाने और “ग्लोबल साउथ“ (आर्थिक रूप से कम-विकसित देशों) के हितों को आगे बढ़ाने में सक्षम होगा। लेकिन सच्चाई तो यह है कि हिन्दोस्तान की सरकार, कम विकसित देशों या हिन्दोस्तान के मेहनतकश लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। हिन्दोस्तान की सरकार कुछ इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई वाले हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करती है, जो विश्व स्तर पर अपने बाज़ारों, कच्चे माल के स्रोतों और प्रभाव क्षेत्रों का विस्तार करने के इच्छुक हैं।

हिन्दोस्तान का शासक पूंजीपति वर्ग, दूसरी साम्राज्यवादी ताक़तों के साथ सहयोग और प्रतिस्पर्धा करने में, जी-20 की अपनी अध्यक्षता को अपने साम्राज्यवादी लक्ष्यों को बढ़ावा देने का एक बेहतरीन अवसर मानता है। अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल करने के लिये हिन्दोस्तान द्वारा चलाये गये अभियान के पीछे, अफ्रीकी देशों के बाज़ारों में ज्यादा गहराई तक घुसने और उस महाद्वीप के क़ीमती कच्चे माल पर नियंत्रण हासिल करने के हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों के इरादे छिपे हुए हैं।

हालांकि हिन्दोस्तान एक प्रमुख पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, जिसका नेतृत्व इस देश के इजारेदार पूंजीपति कर रहे हैं, जो दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं, लेकिन कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि हिन्दोस्तान सबसे ज्यादा ग़रीब लोगों वाला देश भी है। हिन्दोस्तान के पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने साम्राज्यवादी लक्ष्यों को हासिल करने से, हमारे देश के करोड़ों लोगों को उनके जीवन की असहनीय हालतों से मुक्ति नहीं मिलेगी।

जी-20 हमारे देश और पूरी दुनिया के लोगों को तबाह करने वाली प्रमुख समस्याओं, जैसे कि आर्थिक संकट, बेरोज़गारी, मुद्रास्फीति और प्राकृतिक पर्यावरण का विनाश आदि, का कोई समाधान नहीं निकाल सकता है। पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था में इन समस्याओं का कोई समाधान नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी चाहे कितनी भी बार “वसुधैव कुटुंबकम“ की अवधारणा को दोहराएं, लेकिन जब तक साम्राज्यवादी व्यवस्था बरकरार रहेगी तब तक सभी देशों द्वारा मानवता के हितों की सेवा के लिए सहयोग करने की कोई संभावना नहीं है।

इस समय मानवता के सामने जो गंभीर समस्यायें हैं, उनके समाधान के लिए यह ज़रूरी है कि पूंजीपति वर्ग की हुकूमत को बदलकर मज़दूर वर्ग और मेहनतकश लोगों की हुकूमत को स्थापित किया जाये। पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था को समाजवादी व्यवस्था में बदलने की ज़रूरत है। समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था होगी जो लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने पर केंद्रित होगी, न कि पूंजीवादी लालच को पूरा करने पर।

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