हमारे पाठकों से
गिग मजदूरों की समस्याओं पर

संपादक महोदय,

मज़दूर एकता लहर में प्रकाशित गिग मज़दूरों की समस्याओं पर लेख से हमें साफ तौर पर यह दिखाई दे रहा है कि देश का युवा वर्ग किस प्रकार से बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहा है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में रोज़गार की कमी के कारण करोड़ों की तादात में युवा ऑनलाइन फूड प्लेटफार्मों, ई कॉमर्स कंपनियों, सामान की डिलीवरी तथा ओला व उबर ड्राइवरों, इत्यादि जैसे काम करने के लिए मजबूर है। किसी भी समाज एवं राष्ट्र की सफलता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि युवा पीढ़ी की श्रम शक्ति का इस्तेमाल किस हद तक समाज के विकास कल्याण से जुड़ा हुआ है। इसके विपरीत आज हम देख सकते हैं कि देश में रोज़गार की लगातार कमी बनाकर रखी गयी है ताकि हमारा युवा वर्ग न्यूनतम वेतन पर, लंबे समय, अनियमित रोजगार और स्वास्थ्य व सुरक्षा की गारंटी के बिना काम करने के लिए मजबूर हो। युवा वर्ग अमानवीय परिस्थितियों में काम करने और जीने के लिए मजबूर है। साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि हिन्दोस्तानी पूंजीपति और विदेशी पूंजीपति, युवा वर्ग की श्रम शक्ति का शोषण कर के, ज्यादा से ज्यादा बेशी मूल्य हड़प कर के बेशुमार दौलत संकेंद्रित कर रहे हैं। ऑनलाइन व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपति बड़े पैमाने पर मज़दूरों की छटनी करते हैं और सफ़ाई देते हैं कि उनका मुनाफ़ा कम हो रहा है और इसलिए उन्हें इतने लोगों की आवश्यकता नहीं है।

देश की कानून व्यवस्था लोगों की हिफ़ाज़त के लिए होनी चाहिए, लेकिन इस लेख को पढ़ने के पश्चात यह स्पष्ट हुआ कि वह एक भ्रम है क्योंकि कानून व्यवस्था चंद पूंजीपतियों के हित के लिए ही बनाई गई है और उनके लिए काम करती है। जैसा कि हम देख रहे हैं कि गिग मज़दूरों को यूनियन बनाने का भी अधिकार नही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उन्हें बांटकर रखने में ही पूंजीपतियों को फ़ायदा है। दूसरी ओर नियमित मज़दूर को जो कानूनन सुविधाएं दी जाती है जैसे बीमारी के लिए अवकाश, मातृत्व और शिशु पालन अवकाश, स्वास्थ्य बीमा, ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त वेतन, इत्यादि ये सभी कानूनी प्रावधान ‘गिग मजदूरों’ को उपलब्ध नहीं हैं। पूंजीपति वर्ग यही चाहता है कि देश का युवा वर्ग इन्हीं हालात में रहे और सदैव चिंतित रहे। गिग इकोनॉमी में पूंजीपति वर्ग मजदूरों को कम से कम वेतन देकर अपना ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बनाता है।

पूंजीवाद पर आधारित समाज युवाओं को सिर्फ निराशा के अतिरिक्त कुछ नहीं दे सकता। यह लाजमी है कि गिग मज़दूरों को श्रम कानूनों के तहत मज़दूर बतौर मान्यता दी जाए।

शालिनी
मुंबई

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *