अमरीकी साम्राज्यवादियों ने पिछले दशकों में मैक्सिको सीमा के पार से आए प्रवासियों को गुलाम मज़दूर से कम नहीं माना है। दक्षिण अमरीका के प्रवासी अब अमरीका की आबादी का लगभग 7 प्रतिषत हैं। विभिन्न दक्षिण अमरीकी देशों जैसे ग्वाटेमाला, होंडुरास और अल सल्वाडोर के साथ–साथ मैक्सिको और अन्य देशों के लोग अमरीका में प्रवेश करने की उम्मीद के साथ सीमा पर इकट्ठा होते हैं। अपने ही देशों में गरीबी, हिंसा और ढेर सारी अन्य समस्याएं उन्हें अमरीकी सीमा की ओर ढकेल रही हैं।
ये प्रवासी अमरीकी अर्थव्यवस्था में स्वच्छता, निर्माण और अन्य आवश्यक सेवाओं जैसे विभिन्न व्यवसायों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन उन्हें लगातार देष से निकाल दिए जाने की धमकी दी जाती है। अमरीकी राज्य द्वारा लगातार प्रचार किया जाता है कि वे अमरीकी मज़दूरों की नौकरियां ‘‘छीन’’ रहे हैं, प्रवासियों को उग्र नस्लवादी हमलों और सामाजिक अधीनता के लिए विवष किया जाता है। देशनिकाला के ख़तरे में रहते हुए और नए वातावरण में अपने आप को व्यवस्थित करने के लिए संघर्ष करते हुए, पूंजीपतियों द्वारा आप्रवासियों का अत्याधिक शोषण किया जाता है। उन्हें आधिकारिक न्यूनतम मज़दूरी से बहुत कम वेतन दिया जाता है और उनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती। वे बहुत ही ख़राब स्थितियों में इस आशा के साथ रहते हैं कि कभी न कभी एक दिन उन्हें अमरीकी नागरिकों के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
इस वक्त अमरीकी–मैक्सिको बॉर्डर पर तनाव बढ़ गया है। 12 मई को ‘टाइटल 42’ नाम का क़ानून ख़त्म हो गया। मार्च 2020 में पारित इस क़ानून ने अमरीका सीमा अधिकारियों को अमरीका में कोविड के प्रसार को रोकने के नाम पर मैक्सिको की सीमा से अमरीका में प्रवेश करने और शरण मांगने वाले किसी भी व्यक्ति को वापस भेजने की अनुमति दी थी। भले ही अमरीकी सरकार ने एक साल से अधिक समय पहले ही कोविड आपातकाल को समाप्त करने की घोषणा कर दी थी, फिर भी कानून को लागू रखा गया। यह व्यापक रूप से ज्ञात है कि सीमा पर संभावित आप्रवासियों पर हमला करने के लिए ट्रम्प सरकार ने क़ानून को लागू किया था। बाइडन सरकार ने भी इसी उद्देश्य के साथ कानून को जारी रखा।
अब, बाइडन सरकार सीमा पर संभावित आप्रवासियों पर हमला करने के लिए और भी सख़्त क़ानून बना रही है। जिन लोगों के शरण मांगने के आवेदन नामंजूर कर दिए गए हैं, वे पांच साल की अवधि के लिए फिर से आवेदन नहीं कर पाएंगे। मैक्सिको के अलावा अन्य देशों के संभावित आप्रवासियों को यह साबित करना होगा कि उन्होंने अमरीका आने के रास्ते में किसी अन्य देश में शरण मांगने के लिए आवेदन किया हो तो उसे नामंजूर कर दिया गया था। नहीं तो, अमरीका में शरण मांगने का उनका आवेदन नामंजूर कर दिया जाएगा और उन्हें उनके गृह देशों में भेज दिया जाएगा।
इस उम्मीद से कि टाइटल 42 का़नून के ख़त्म होने पर, अमरीकी सीमा पार करने का उनका रास्ता आसान हो जाएगा, दसियों हजार प्रवासी सीमा पर इकठ्ठा हो गए। अधिकांश लोगों को वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया गया है। अमरीकी सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा (सी.बी.पी.) ने हाल के दिनों में अपनी कारावास सुविधाओं में 28,000 प्रवासियों को रखा है, जो कि इसकी घोषित क्षमता से कहीं अधिक है। प्रवासियों को उचित भोजन, पीने के पानी, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता के बिना सबसे अमानवीय परिस्थितियों में इन शिविरों में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। वे एक बेहद अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं।
अमरीका लगातार प्रचार करता है कि विभिन्न देशों के लोग अपने देषों की तुलना में बेहतर जीवन जीने की उम्मीद करते हुए अपने घरों और परिवारों को छोड़कर अमरीका जाने के लिए बेताब हैं। उसका प्रचार ऐसी स्थिति पैदा करने में अमरीका की भूमिका को छुपाता है जिसकी वजह से लोग अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं। मध्य और दक्षिण अमरीका के अनेक देशों में, अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां, इन देशों पर शासन करने वाले प्रतिक्रियावादी पूंजीपति वर्ग की मिलीभगत में, इन देशों के लोगों की भूमि, श्रम और प्राकृतिक संसाधनों का बर्बरतापूर्वक शोषण करते हैं। इन कंपनियो ने लोगों को गरीबी और बर्बादी की ओर धकेल दिया है। अमरीका ने कुछ देशों पर अमानवीय प्रतिबंध लगाए हैं क्योंकि इन देशों की सरकारें अमरीकी दबदबे को मानने से इनकार करती हैं। उसने कुछ देशों में अमरीकी समर्थक शासनों को सत्ता में लाने के उद्देश्य से गृह युद्ध छेड़ दिया है।
सबसे पहले, अमरीकी साम्राज्यवाद की तबाही के कारण लोगों को अपने देशों से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। शरण मांगने वाले प्रवासियों पर अपने आपराधिक हमलों के लिए अमरीका की निंदा की जानी चाहिए।