कर्नाटक विधानसभा के चुनाव-2023 :
बदलाव का भ्रम

2023 के मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव ऐसे समय में हुए हैं, जब राज्य के मज़दूर और किसान अपने जीवन की हालतों में बदलाव के लिए तरस रहे हैं। इन चुनावों के परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी की सरकार द्वारा भाजपा की अगुवाई वाली सरकार को बदल दिया गया है। मीडिया में इसे बड़े बदलाव के रूप में पर पेश किया जा रहा है। हालांकि, ऐतिहासिक अनुभव से पता चलता है कि पूंजीपति वर्ग की एक पार्टी की जगह पर दूसरी पार्टी को सरकार में लाने से मज़दूरों और किसानों के जीवन जीने या काम करने की हालतों में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं होता है। यह केवल एक भ्रम पैदा करता है कि इस बदलाव से कुछ अच्छा होगा।

कर्नाटक को पूंजीवादी रूप से अपेक्षाकृत अधिक विकसित राज्य माना जाता है। कर्नाटक में औसत आय, सर्व हिन्द औसत आय से काफ़ी अधिक है। हालांकि, औसत बहुत अधिक अंतर को छुपाता है। हाल के दशकों में इजारेदार पूंजीपति, बड़े-बड़े खदान मालिक, बड़ी-बड़ी रियल एस्टेट की कंपनियां और अन्य शोषक, भ्रष्ट राजनेता और अधिकारी बहुत अमीर हो गए हैं। जबकि दूसरे ध्रुव पर मज़दूरों और किसानों की जीवन जीने के हालात साल दर साल बद से बदतर होते गए हैं।

अत्यधिक कुशल आईटी मज़दूरों सहित, राज्य में मज़दूरों की रातों की नींद इस चिंता में कटती है कि कहीं उन्हें नौकरी से न निकाल दिया जाए। नौकरी के बाज़ार में प्रवेश करने वाले नौजवान अपने रोज़गार की संभावनाओं को लेकर चिंतित हैं। स्नातक की डिग्री वालों को न्यूनतम मज़दूरी या उससे भी कम वेतन पर डिलीवरी मज़दूर और सेल्स गर्ल के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया

जाता है।

कर्नाटक में स्थित रक्षा उत्पादन और अन्य भारी उद्योगों के निजीकरण को जल्द से जल्द रोकने के लिए औद्योगिक मज़दूर आंदोलन कर रहे हैं। श्रम क़ानूनों में पूंजीपतियों के समर्थन में किये जा रहे सुधारों के खि़लाफ़ कई क्षेत्रों के मज़दूर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें नियमित नौकरियों को निश्चित अवधि के अनुबंधों से बदलना भी शामिल है।

किसान यूनियनें लाभकारी क़ीमतों पर अपनी फ़सलों की राज्य द्वारा ख़रीद की गारंटी की मांग कर रही हैं। हर पूंजीवादी पार्टी, जब विपक्ष में होती है तो वह किसानों की उस मांग को पूरा करने का वादा करती है। लेकिन जब वह सत्ता में आ जाती है, तो वही पार्टी अपने इस वादे के साथ विश्वासघात करती है, क्योंकि वे पार्टियां सभी उद्योगों के उदारीकरण के कार्यक्रम को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं – मतलब कि कृषि व्यापार से अधिकतम लाभ बनाने के लिए निजी निगमों को जगह देना।

किसी भी पूंजीवादी पार्टी के पास बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार की गंभीर समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। राज्य में कांग्रेस पार्टी और भाजपा के नेतृत्व वाली दोनों सरकारें विभिन्न जातियों और धार्मिक समूहों के लिए आरक्षित सरकारी नौकरियों के कोटे में हेरफेर कर रही हैं। वे विभिन्न जातियों और धार्मिक आस्थाओं के लोगों को सरकारी नौकरियों के लिए एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ाना चाहती हैं, जबकि ये नौकरियां राज्य में उपलब्ध कुल नौकरियों का 3 प्रतिशत से भी कम हैं। बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार का कोई समाधान न होने के कारण, वे धर्म और जाति के आधार पर वोट बैंक की फ़सल काटने के लिए इस स्थिति का फ़ायदा उठाती हैं।

कर्नाटक में हुये चुनाव अभियानों में एक बार फिर से देखा गया कि बड़े पैमाने पर हुई रैलियों पर और प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के प्रचार पर भारी मात्रा में पैसा खर्च किया गया है। कर्नाटक की अन्य सभी पार्टियों ने कुल मिलाकर जितना पैसा खर्च किया है, भाजपा और कांग्रेस पार्टी दोनों ने उससे कहीं अधिक पैसा खर्च किया है। उन दोनों के अभियानों को राज्य के पूंजीपतियों और बड़े जमींदारों के साथ-साथ हिन्दोतान के सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों और कर्नाटक में मौजूद विदेशी कंपनियों द्वारा धन दिया गया।

इजारेदार पूंजीपति अपने धनबल का और मीडिया पर अपने नियंत्रण का इस्तेमाल करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी पसंदीदा पार्टी ही चुनाव जीते। मेहनतकश जनता के बीच व्यापक असंतोष और कर्नाटक में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के ख़िलाफ़ बढ़ते गुस्से को देखते हुए, इजारेदार पूंजीपतियों ने कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने और इन चुनावों में उसकी जीत सुनिश्चित करने का फै़सला किया।

समय की मांग है कि सभी राजनीतिक पार्टियां और मज़दूरों व किसानों के जनसंगठन किसी न किसी बुर्जुआ पार्टी के पीछे-पीछे चलने के रास्ते को नकार दें। पूंजीवादी शासन की मौजूदा व्यवस्था के भीतर ही अपनी समस्याओं का समाधान खोजने को लेकर फैलाये गये सभी भ्रमों को हमें तोड़ना होगा। हमें खुद के स्वतंत्र क्रांतिकारी कार्यक्रम के इर्द-गिर्द एकजुट होना होगा, जिसका उद्देश्य होगा पूंजीवादी शासन को मज़दूरों और किसानों के शासन से बदलना। तभी पूंजीवादी लालच को पूरा करने वाली अर्थव्यवस्था की दिशा को बदलकर, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में उन्मुख किया जा सकेगा।

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