महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के लोग, बरसू सलगांव रिफाइनरी की प्रस्तावित परियोजना का विरोध कर रहे हैं, जिसकी वजह से बहुत ज्यादा गुस्से में हैं। सभी गांवों के लोग इस परियोजना का विरोध इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि कि यह परियोजना हजारों स्थानीय लोगों की आजीविका पर, सीधे-सीधे और तुरंत, बहुत ही क्रूर प्रभाव डालेगी। इससे उनकी ज़मीन और रोज़ी-रोटी छिन जाएंगे। इस परियोजना से कोंकण क्षेत्र के पर्यावरण के लिए भी एक गंभीर ख़तरा पैदा हो जायेगा।
22 अप्रैल से 8 गांवों की 32 ग्राम सभाओं के निवासी, इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। वे भूमि अधिग्रहण के लिए सर्वेक्षण करने और परियोजना की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिये, महाराष्ट्र सरकार द्वारा किये गये कई प्रयासों का लगातार विरोध करते आ रहे हैं। लोगों के लगातार विरोध के बावजूद, सरकार ने जून 2022 से ऐसे कई प्रयास किए हैं। सरकार का सबसे नवीनतम प्रयास है, इस भूमि की मिट्टी का सर्वेक्षण करना।
भूमि के योजनाबद्ध सर्वेक्षण के ख़िलाफ़ प्रदर्शनकारियों ने 24 अप्रैल को सड़कों पर उतरकर अपना विरोध प्रकट किया था। जवाबी कार्रवाई करते हुए राज्य सरकार ने पुलिस की तैनाती बढ़ा दी है। स्थानीय प्रशासन ने दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 144 लागू को लागू करके लोगों को विरोध स्थल पर इकट्ठा होने से रोक दिया है। विरोध प्रदर्शन संबंधित कोई भी टेक्स्ट संदेश, तस्वीर या वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से लोगों को रोका गया है। उन्हें धमकी दी गई है कि इस आदेश का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करने वाले पर आई.पी.सी. की धारा 188 के तहत मुक़दमा चलाया जाएगा।
इन पाबंदियों परवाह किये बिना, प्रदर्शनकारियों ने जब एकजुट होकर सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की तो पुलिस ने उन पर बेरहमी से हमला किया। जिले के विभिन्न हिस्सों में, 100 से अधिक प्रदर्शनकारियों को पीटा गया, जिनमें मुख्य रूप से महिलायें शामिल हैं, और बाद में एक दिन के लिए जेल में बंद कर दिया गया। पुलिस ने चार प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया है और 45 स्थानीय निवासियों को रत्नागिरी जिले में प्रवेश करने से रोकने के लिये उनके ख़िलाफ़ प्रतिबंधात्मक नोटिस जारी किया है। धरना स्थल से क़रीब एक किलोमीटर तक की दूरी तक लोगों की आवाजाही पर भी रोक लगा दी गई है।
2011 की जनगणना के अनुसार, इन गांवों की कुल आबादी लगभग 8,000 है। उन लोगों को चुप कराने के लिए, महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से लाए गए 2,000 से अधिक पुलिसकर्मियों को वहां तैनात किया गया है!
दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल लोकेशन रिफाइनरी परियोजना के रूप में प्रचारित की जा रही यह परियोजना, सऊदी अरामको और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी का एक संयुक्त उपक्रम है, जिसमें उनके 50 प्रतिशत शेयर हैं। बाकी के 50 प्रतिशत शेयर हिन्दोस्तान की कंपनियों, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एच.पी.सी.एल.), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बी.पी.सी.एल.) के साथ-साथ इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आई.ओ.सी.) के पास हैं। इस परियोजना पर क़रीब तीन लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। 15,000 एकड़ भूमि पर फैली इस परियोजना की उत्पादन क्षमता छः करोड़ टन प्रति वर्ष होगी।
परियोजना के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए गठित की गई संघर्ष समिति ने महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के साथ मुलाक़़ात करने की मांग बार-बार की है। लेकिन इसका उन्हें कोई जबाब नहीं मिला है।
2015 में भाजपा और शिवसेना की तत्कालीन गठबंधन सरकार द्वारा रत्नागिरी जिले के नानार के आसपास के क्षेत्र में इसी तरह की एक रिफाइनरी प्रस्तावित की गई थी। इस क्षेत्र के हजारों लोगों ने उस समय भी जुझारू संघर्ष किया था, जिसकी वजह से उस समय की तत्कालीन सरकार को 2019 में परियोजना को अंततः रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस परियोजना की पहचान कोंकण क्षेत्र के पर्यावरण के लिए हानिकारक होने के रूप में की गई थी। उसी परियोजना की योजना 2022 में बारसू क्षेत्र के लिये बनाई गई है, जो कि नानार से सिर्फ 20 किमी की दूरी पर है, अब इसे एक ‘हरित परियोजना’ की तरह पेश किया जा रहा है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब परियोजना के बारे में और कुछ भी नहीं बदला है तो परियोजना का वर्गीकरण (अब वो हरित परियोजना हो गयी) कैसे बदल गया।
हमेशा की तरह, परियोजना को पर्यावरण के अनुकूल बताने के लिए, सरकार ज़ोर देकर कह रही है कि यह एक “हरित रिफाइनरी परियोजना” है। हालांकि, लोगों ने कई उदाहरणों जैसे कि लोटे परशुराम रासायनिक क्षेत्र (जो कि रत्नागिरी जिले में ही है), अंबरनाथ और बोईसर (दोनों मुंबई के पास हैं), साथ ही तमिलनाडु में दाहेज और मनाली का हवाला दिया है। इन उदाहरणों के ज़रिये वे लोग इस हक़ीक़त की ओर इशारा कर रहे हैं कि विभिन्न रासायनिक कारख़ानों को शुरू करने के बाद से कैसे इन क्षेत्रों में वहां के पूरे पर्यावरण – भूमि, हवा और पानी को पूरी तरह से प्रदूषित कर दिया गया है। लोग बता रहे हैं कि स्वयं महाराष्ट्र सरकार ने ही पूरे कोंकण क्षेत्र को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया हुआ है, इसलिए इस क्षेत्र में किसी भी प्रदूषणकारी उद्योग को लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। लोगों को किसी भी सरकारी प्रदूषण नियामक तंत्र पर भरोसा नहीं है।
परियोजना के विरोध को तोड़ने और गुमराह करने के लिये, विभिन्न सरकारी अधिकारी और मंत्री घोषणा कर रहे हैं कि यदि इस क्षेत्र में रिफाइनरी लगाई जाती है तो यहां स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि भी आयेंगे। जिससे वहां रहने वाले लोगों को लाभ होगा। लोगों ने बहुत ही गुस्से से, इस चाल को एक ब्लैकमेल करने वाली चाल बताकर इसकी निंदा की है और वे कह रहे हैं कि सरकार किसी बिना शर्त के पूरे कोंकण क्षेत्र के लिए स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, स्वच्छता आदि सुनिश्चित करने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करे और रिफाइनरी लगाने को जायज़ ठहराने के लिए इसे एक प्रलोभन के रूप में इस्तेमाल न करे।
मीडिया में यह बताया जा रहा है कि उपमुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि इस क्षेत्र के अधिकांश लोग रिफाइनरी के समर्थन में हैं, जबकि बाहर से आये हुए “कुछ उपद्रवी” इसका विरोध कर रहे हैं। संघर्ष समिति ने इस झूठ का पर्दाफ़ाश करते हुये बताया है कि इस क्षेत्र की 5 ग्राम पंचायतों में हुई गांवों की सभाओं ने न केवल रिफाइनरी के ख़िलाफ़ ही बल्कि इस क्षेत्र में किसी भी सर्वेक्षण की अनुमति देने से इनकार करने वाला एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया है। वे मुख्यमंत्री को बारसू क्षेत्र में सभी संबंधित लोगों की उपस्थिति में खुली जनसभा करने की चुनौती दे रहे हैं ताकि उनकी सच्ची भावनाओं को जाना जा सके।
इस क्षेत्र के हजारों निवासियों द्वारा किये जा रहे दृढ़ और जुझारू विरोध संघर्ष तथा देशभर के न्यायपसंद लोगों से मिल रहे समर्थन ने शासक वर्ग की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को, लोगों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए मजबूर किया है। विरोध करने वाले लोगों ने इस हक़ीक़त को भी उजागर किया है कि इनमें से किसी भी राजनीतिक पार्टी ने कोंकण क्षेत्र में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की स्थापना को लेकर अब तक स्पष्ट रूप से विरोध नहीं प्रकट किया है।
अपने अधिकारों की रक्षा और पर्यावरण की रक्षा के लिए कोंकण क्षेत्र के लोगों का संघर्ष, पूरे देश में चल रहे कई और संघर्षों की तरह ही एक तरफ़ शासक पूंजीपति वर्ग और दूसरी तरफ़ जनता के बीच का संघर्ष है। पूंजीपति वर्ग का एकमात्र उद्देश्य लोगों की आजीविका और पर्यावरण के अपरिवर्तनीय विनाश की क़ीमत पर निजी पूंजीपतियों के मुनाफ़ों को अधिकतम करना है। दूसरी तरफ़ आम लोग एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण और प्राकृतिक संपदा का पोषण करते हुए उनकी बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करेगी।