3 मई से 5 मई, 2023 के बीच तीन दिन और तीन रात तक मणिपुर में अराजकता और हिंसा की हालतें बनी रहीं। राजधानी इंफाल, चुरचंदपुर, बिष्णुपुर सहित राज्य के कई अन्य शहरों और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में हथियार बंद गिरोहों ने उत्पात मचाया। उन्होंने लूटपाट की तथा मौत और तबाही फैलाई। लोगों के घरों और उनकी संपत्ति को बर्बाद किया। दसों हज़ार लोगों को अपना घर छोड़ने और सशस्त्र बलों द्वारा स्थापित अस्थायी शिविरों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है। मणिपुर के जिन गांवों की सीमायें पड़ोसी राज्यों असम, मेघालय और मिज़ोरम से सटी हैं वहां रहने वाले लोग अपनी जान बचाने के लिये उन राज्यों में चले गए। जबकि सरकार ने आंकड़े देने से इनकार कर दिया है परन्तु ऐसा लगता है कि कम से कम 55 लोग मारे गए हैं। यह सब राज्य की पुलिस और सशस्त्र बलों की चौकस निगाहों की देखरेख में चल रहा है। मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफ्स्पा) लागू है। सेना ने नागरिकों की सरकार के मुखौटे के पीछे से दशकों तक शासन किया है।
केंद्र सरकार ने 5 मई को मणिपुर पर आर्टिकल 355 लगा दी। तब से सरकार ने राज्य में हजारों अतिरिक्त सैनिकों को हवाई जहाज के ज़रिये लाकर तैनात किया है। हिन्दोस्तानी सेना और मणिपुर पुलिस को आदेश दिये गये हैं कि देखते ही गोली मार दो (शूट एट साईट)।
सोशल मीडिया के ज़रिए फैली अफ़वाहों ने गुस्से को और भड़का दिया है। अराजकता और हिंसा के कारण को लेकर अख़बारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिये सभी प्रकार की कहानियां फैलाई जा रही हैं। सब जनता को दोष दे रहे हैं।
इस भड़काऊ प्रचार के अनुसार, इस जानलेवा तांडव को दो समुदाय के लोगों ने अंजाम दिया है। यह सच नहीं है। लोगों ने एक-दूसरे की रक्षा की है। अराजकता और हिंसा राज्य द्वारा आयोजित की गयी थी। ऐसा कैसे हो सकता है कि सेना के शासन वाले राज्य में, जहां पर अफ्स्पा लागू है, जिसके तहत सशस्त्र बलों को किसी भी सज़ा के डर के बिना, किसी को भी गोली मारने की अनुमति है वहां इतने बड़े पैमाने पर हिंसा हो रही है?
सारे मीडिया प्रचार का उद्देश्य यह छिपाना है कि मणिपुर में क्या समस्या है और संकट पैदा करने वाला कौन है।
यह सर्वविदित है कि उत्तर पूर्व के राज्यों और ख़ासकर मणिपुर में, केंद्र सरकार की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने विभिन्न हथियारबंद आतंकवादी गिरोहों के साथ घनिष्ठता से समन्वय स्थापित किया है। इनमें से कई गिरोहों को ख़़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा सशस्त्र और वित्तपोषित किया जाता है। केंद्र सरकार इन गिरोहों की हिंसक गतिविधियों की ओर इशारा करके ही सेना के शासन और सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को सही ठहराती है। ये हथियारबंद गिरोह, सेना के दमनकारी शासन की ओर इशारा करके अपने अस्तित्व को सही ठहराते हैं। एक साथ और अलग-अलग, हिन्दोस्तानी सशस्त्र बल और हथियारबंद गिरोह, उन्हीं लोगों के ऊपर दमन और आतंक में सहयोग करते हैं, जिनकी रक्षा करने का वे दावा करते हैं। साथ ही साथ वे म्यांमार के साथ लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार से अफीम, नशीली दवाओं और अन्य वस्तुओं की तस्करी की विभिन्न गतिविधियों को अंजाम देते हैं। वे गिरोह परजीवियों की तरह लोगों का खून चूसते हैं और निजी संपत्ति बटोरते हैं। मणिपुर में नागरिक सरकारें केंद्रीय राज्य की देखरेख में इन हथियारबंद गिरोहों के साथ घनिष्ठ सहयोग में काम करती हैं। इस समय मणिपुर में फैली अराजकता और हिंसा के लिए केंद्र सरकार, उसकी ख़ुफ़िया एजेंसियां और सशस्त्र बल पूरी तरह से ज़िम्मेदार हैं।
इस अराजकता और हिंसा को भड़काने का मक़सद, मणिपुर के लोगों को उनके सामने मौजूद गंभीर समस्याओं के समाधान की तलाश की दिशा से भटकाना है। मणिपुर के मज़दूर, किसान और आदिवासी लोग, महिलाएं और नौजवान बड़ी कठिनाई और असुरक्षा का जीवन जी रहे हैं। वहां पर उच्च शिक्षा संस्थान बहुत ही कम हैं। युवाओं में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी है क्योंकि उन्हें नौकरी पाने के अवसर बहुत कम मिलते हैं। नौजवानों को शिक्षा और रोज़गार की तलाश में देश के दूर-दराज़ के इलाकों में जाना पड़ता है। ऊपर से सेना के शासन ने आम जनता का जीवन को नर्क़ बना दिया है। मणिपुर के लोगों के सभी तबके पिछले चार दशकों से अधिक समय से सेना के शासन को समाप्त करने और आफ्स्पा को निरस्त करने के लिए एक बहादुर संघर्ष कर रहे हैं।
मणिपुर में शासक वर्ग द्वारा फैलाई गई अराजकता और हिंसा दर्शाती है कि वह शासन करने के योग्य नहीं है। लोगों के लिए समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करना तो दूर, वह लोगों के जीवन और संपत्तियों की रक्षा करने में भी असमर्थ और अनिच्छुक है।
हिन्दोस्तानी राज्य की नींव ही सांप्रदायिक है। सरमायदार राष्ट्रीयता, धर्म, भाषा, जाति और हर प्रकार के आधार पर लोगों के बीच विभाजन को बढ़ाकर शासन करता है। शासक वर्ग की सभी राजनीतिक पार्टियां सांप्रदायिक विभाजनों को तेज़ करने और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में भाग लेती हैं। मणिपुर के लोगों के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों के लोगों को भी इसका कड़वा अनुभव है।
मणिपुर के लोगों के सामने समस्या है हमारे देश में पूंजीवादी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था। हमारे देश पर शासन करने वाला सरमायदार वर्ग मणिपुर और शेष हिन्दोस्तान के लोगों की भूमि, श्रम और संसाधनों का बर्बरतापूर्वक शोषण करता है। वह बहुपार्टीवादी लोकतंत्रवादी राजनीतिक प्रणाली के ज़रिये अपने दमनकारी शासन को लोगों पर बनाए रखता है। वह समय-समय पर चुनाव आयोजित करता है, जिनके ज़रिये मज़दूरों, किसानों और व्यापक जनता पर अपनी हुक्मशाही को वैधता दिलाता है।
समय-समय पर होने वाले चुनावों के साथ-साथ, पूंजीपति लोगों को बांटने और भटकाए रखने के लिए इस या उस समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर, राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक जनसंहारों सहित राजकीय आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं।
हिन्दोस्तान का शासक वर्ग और उसकी राजनीतिक पार्टियां का कहना है कि मणिपुर के लोग पिछड़े हैं और सांप्रदायिक आधार पर एक दूसरे का जनसंहार करना चाहते हैं। यह सच्चाई को बिलकुल उल्टा करके पेश करना है। मणिपुर के लोगों का अपने अधिकारों के लिए और शोषण व दमन के खि़लाफ़ एकजुट होकर लड़ने का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। यह शासक वर्ग ही है जो सांप्रदायिक जनसंहार आयोजित करता है और फिर अपनी सशस्त्र सेना को लोगों पर अत्याचार करने और आतंकित करने के लिए भेजता है। हिन्दोस्तानी शासक वर्ग और उसका राज्य पूरे हिन्दोस्तान में यही करता रहा है।
हमारे देश में चल रहा संघर्ष, एक तरफ़ इजारेदार पूंजीपतियों के नेतृत्व में सत्ताधारी सरमायदार वर्ग और दूसरी तरफ़ मज़दूरों, किसानों और आदिवासियों के बीच का संघर्ष है। यह विभिन्न समुदायों के बीच का संघर्ष नहीं है, जैसा कि शासक वर्ग झूठा प्रचार करता है।
हमारे देश के मज़दूरों, किसानों और आदिवासियों को अपने भविष्य को अपने हाथों में लेने की ज़रूरत है। पूंजीपतियों के शासन को मज़दूर-किसान के राज में बदलने और हिन्दोस्तान का नव-निर्माण करने के लक्ष्य के इर्द-गिर्द हमें एकजुट होने की ज़रूरत है। राजनीतिक सत्ता को अपने हाथों में लेकर ही हम इस पूंजीवादी लालच को पूरा करने के लिए बनाई गयी वर्तमान अर्थव्यवस्था को पूरे समाज की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने की एक नयी दिशा दे सकेंगे। अपने हाथों में राजनीतिक सत्ता लेकर हम एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करेंगे जो वास्तव में सभी के लिए समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।
अच्छा विश्लेषण।
दूनिया के मजदूरों एक हों।
इंकलाब जिंदाबाद।