भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत की 92वीं सालगिरह पर :
शोषण-दमन से मुक्त हिन्दोस्तान बनाने के शहीदों के सपने को पूरा करना होगा!

मज़दूर एकता कमेटी का बयान, 20 मार्च, 2023

23 मार्च, 1931 को अंग्रेज़ हुक्मरानों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया था। उन्हें “आतंकवादी” करार दिया गया था। उन्होंने तथा अनगिनत और क्रांतिकारियों ने, अंग्रेज़ हुकूमत को उखाड़ फेंकने और अपने लोगों को गुलामी व हर प्रकार के शोषण-दमन से मुक्त कराने के लिए, अपनी जान की क़ुरबानी दी थी। अंग्रेज़ हुक्मरान उन्हें फांसी पर चढ़ाकर, उनके विचारों और कार्यों को मिटा देना चाहते थे। लेकिन अंग्रेज़ हुक्मरान अपने मक़सद में क़ामयाब नहीं हुए। आज भी शहीद भगत सिंह और उनके साथियों के विचार और मौत को चुनौती देने वाली दिलेरी हमारे देश के मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को शोषण-दमन के ख़िलाफ़ संघर्ष में उतरने को प्रेरित करती है।

शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने एक ऐसे हिन्दोस्तान का निर्माण करने का बुलावा दिया था, जिसमें हर मज़दूर शोषण-दमन से मुक्त होगा। जहां हर मेहनतकश को अपने श्रम का फल मिलेगा। जहां देश के अन्नदाता किसान ख़ुदकुशी करने को मजबूर नहीं होंगे। जहां नौजवानों के भविष्य अंधकार में नहीं होंगे। जहां नयी पीढ़ी की जननी हमारी महिलाएं बेख़ौफ़ चल-फिर सकेंगी। जहां धर्म-जाति के नाम पर लोगों को बांटा नहीं जायेगा और जहां देश की दौलत को पैदा करने वाले खुद देश के मालिक होंगे। हमारे हुक्मरान पूंजीपति वर्ग और उसकी राजनीतिक पार्टियां दावा करती हैं कि 1947 में हमने आज़ादी हासिल कर ली थी। लेकिन हक़ीक़त यह है कि आज 76 वर्ष बाद भी देश के मज़दूर-किसान शोषण और उत्पीड़न के शिकार हैं। आज जिन नौजवानों के पास नौकरी है, उन्हें हर दिन 12-16 घंटे मेहनत करने के बाद भी जीने लायक वेतन नहीं मिलता है। इस बात की कोई गारंटी नहीं कि कल उसके पास नौकरी होगी या नहीं। आज भी अधिकतम लोग बेरोज़गारी के शिकार हैं। भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा आज भी बनी हुई है। इलाज-योग्य बीमारियों से हजारों मौतें आए दिन होती रहती हैं।

जाति-धर्म के नाम पर उत्पीड़न और महिलाओं पर बढ़ती हिंसा रोज़ की घटनाएं हैं। राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक जनसंहारों व राजकीय आतंक से देश आज़ाद नहीं है।

शहीदों के सपनों को साकार करने के लिए हमें आज क्या करना होगा?  इन सवालों का जवाब पाने के लिए देश की आज़ादी के संघर्ष के इतिहास को हमें समझना होगा।

अंग्रेज हुकूमत को ख़त्म करने के संघर्ष में नया हिन्दोस्तान कैसा होगा, इस पर दो नज़रियों के बीच टक्कर थी। एक नज़रिया था मज़दूर वर्ग, मेहनतकश किसानों और क्रांतिकारियों का। दूसरा नज़रिया था बड़े पूंजीपतियों और बड़े जमींदारों का।

हमारे देश के मज़दूर, किसान और क्रांतिकारी 1857 के महान ग़दर से, हिंदुस्तान ग़दर पार्टी के वीरतापूर्ण ऐलानों और कार्यों से प्रेरित थे। वे रूस में हुई महान अक्तूबर समाजवादी क्रांति की जीत से और वहां मज़दूरों की हुकूमत की स्थापना से प्रेरित हुए थे। वे मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए संगठित कर रहे थे। उनका मानना था कि जब तक देश के लोगों को दबाने के लिए अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित राज्य के संस्थान बरकरार रहेंगे, तब तक हम असली आज़ादी हासिल नहीं कर सकेंगे। क्रांतिकारियों ने साफ़-साफ़ घोषणा की थी कि “हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक मुट्ठीभर लोग, देशी या विदेशी या दोनों मिलकर, हमारे लोगों के श्रम और संसाधनों का शोषण करते रहेंगे। हमें इस रास्ते से कोई नहीं हटा सकता।” उन्होंने अंग्रेज राज्य को पूरा-पूरा उखाड़ फेंकने और एक नए राज्य का निर्माण करने के संघर्ष का बुलावा दिया था, जिसमें इंसान द्वारा इंसान का शोषण नहीं होगा और राज्य सबको सुख-सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित करेगा।

अंग्रेज हुक्मरानों ने क्रांतिकारियों पर क्रूर दमन किया। साथ ही साथ, अंग्रेज़ों के वफ़ादारों को भूमि और औद्योगिक लाइसेंस ईनाम में दिये गये। पूंजीपति वर्ग और जमींदारों के विकास को बढ़ावा दिया गया। मज़दूरों और किसानों को क्रांति का रास्ता अपनाने से रोकने के उद्देश्य के साथ, अंग्रेज हुक्मरानों ने हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों और जमींदारों के सबसे अमीर और सबसे प्रभावशाली वर्गों के प्रतिनिधि बतौर, इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी का गठन किया। पूंजीवादी औद्योगिक घरानों और बड़े जमींदारों को अंग्रेज शासन तंत्र के अन्दर शामिल किया गया, जबकि बहुसंख्य मेहनतकश लोगों को बाहर रखा गया। अंग्रेज हुकूमत के इन वफ़ादारों ने क्रान्तिकारियों पर हमला करने में और उन्हें फांसी पर चढ़ाने में अंग्रेज़ों का पूरा सहयोग किया था।

1947 में अंग्रेज़ हुक्मरानों ने कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग के साथ अलग-अलग समझौते करने के बाद, सांप्रदायिक आधार पर देश का बंटवारा किया और सत्ता को अपने द्वारा पाले-पोसे गए वर्ग को हस्तांतरित कर दिया। अंग्रेज़ उपनिवेशवादी हुकूमत के सारे संस्थानों तथा उत्पीड़न और लूट की पूरी व्यवस्था को बरकरार रखा गया।

यह हमारे देश की मेहनतकश जनता के साथ एक बहुत बड़ा धोखा था। क्रान्तिकारी संघर्ष के ज़रिये, अंग्रेज़ उपनिवेशवादी विरासत से पूर्ण रूप से नाता तोड़ने के हमारे क्रान्तिकारी देशभक्तों के उद्देश्य को मिट्टी में मिला दिया गया।

अंग्रेज हुकूमत के वही वफादार देश पर राज कर रहे हैं, जिन्होंने हजारों क्रांतिकारियों को फांसी की सज़ा दिलाने में अंग्रेजों के साथ सहयोग किया था। वे ही अंग्रेज हुकूमत के संस्थानों को बरकरार रख रहे हैं। उसे और कुशल बना रहे हैं। यह सच्चाई मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों से छिपाई जाती है। शहीद भगत सिंह और अनगिनत क्रांतिकारियों के संघर्ष के असली उद्देश्य को भुलाने की पूरी कोशिश की जाती है।

अंग्रेज हुकूमत की जगह पूंजीपति वर्ग की राज्य सत्ता ने ले ली है। बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीवादी घराने – टाटा, बिरला, अम्बानी, अदानी, आदि – जो पूंजीपति वर्ग की अगुवाई करते हैं, वे ही देश का अजेंडा तय करते हैं। जिस क्रूरता के साथ अंग्रेज़ हुकूमत उन्हें चुनौती देने वालों को प्रताड़ित करती थी व कुचल देती थी, उतनी व उससे कहीं ज्यादा क्रूरता के साथ आज पूंजीपतियों के अजेंडे का विरोध करने वालों को कुचल दिया जाता है। यू.ए.पी.ए. जैसे कठोर क़ानूनों के तहत अनिश्चित काल के लिए जेल में बंद कर दिया जाता है।

76 वर्ष बाद, आज भी देशी और विदेशी पूंजीपतियों द्वारा हमारे लोगों के श्रम और संसाधनों का शोषण और लूट अनवरत जारी है। पूंजीवादी हुक्मरान, खुद के साम्राज्यवादी मंसूबों को हासिल करने के इरादे से, देश की अनमोल संपत्तियों और संसाधनों को बेच रहे हैं। वे अमरीकी साम्राज्यवाद व दूसरी साम्राज्यवादी ताक़तों के साथ रणनैतिक गठबंधन मज़बूत कर रहे हैं और देश को घोर ख़तरे में डाल रहे हैं।

“दुनिया का सबसे आबाद लोकतंत्र” कहलाये जाने वाले इस मुल्क में, समय-समय पर चुनाव करवाए जाते हैं। यह भ्रम फैलाया जाता है कि “जनता अपनी सरकार चुनती है”। पर हक़ीक़त में, इजारेदार पूंजीवादी घराने करोड़ों-करोड़ों रुपये डालकर, अपनी उस वफ़ादार राजनीतिक पार्टी की सरकार बनाते हैं, जो उनके अजेंडे को बेहतरीन तरीक़े से लागू करेगी। साथ-साथ लोगों को बुद्धू बनाती रहेगी। मेहनतकश जनता के पास कोई भी नीतिगत फैसला लेने और क़ानून बनाने या बदलने की शक्ति नहीं है। हम अपने चुने गए नुमायंदों को न तो जवाबदेह ठहरा सकते हैं, न ही उन्हें वापस बुला सकते हैं।

साथियों और दोस्तों,

शहीद भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत को याद करना तभी सार्थक होगा जब हम उनके दिखाए गए रास्ते पर आगे बढ़ते हैं और उस हिन्दोस्तान का निर्माण करने में क़ामयाब होते हैं, जो उनका लक्ष्य था।

हिन्दोस्तानी समाज गहन सामाजिक परिवर्तन के लिए तरस रहा है। शोषण और दमन की मौजूदा पूंजीवादी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की जगह पर, हमें एक ऐसी नई व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसमें मज़दूर वर्ग, सभी शोषितों-पीड़ितों के साथ गठबंधन बनाकर, राज करेगा और देश का अजेंडा तय करेगा। मज़दूर-मेहनतकश समाज के सभी अहम फ़ैसलों को लेने में सक्षम होंगे। उत्पादन के प्रमुख साधनों को पूंजीपति वर्ग के हाथों से लेकर, सामाजिक नियंत्रण में रखा जायेगा। अर्थव्यवस्था का लक्ष्य होगा सभी मेहनतकशों की ज़रूरतों को अधिक से अधिक हद तक पूरा करना, न कि पूंजीपतियों की लालच को पूरा करना।

इसी लक्ष्य के लिए शहीद भगत सिंह और अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपनी जान दी थी। आइये, हमारे शहीदों के उस सपने को साकार करने के लिए एकजुट हों! पूंजीपतियों की हुकूमत के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष को तेज़ करें!

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One comment

  1. भगत सिंह की फोटो को सामान्यतः टोप में देखा जाता था लेकिन अब तो नास्तिक भगत सिंह को ऐसे बांध दिया गया लगता है कि सिख धर्म की ही सीमा में जाना जाय जैसा कि भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार की स्थिति से स्पष्ट होता है जिसके एक साल पूरा होने की स्थिति में गुरु ग्रंथ साहब का ही पाठ आयोजित किया गया। – आर. के. शर्मा

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