18 मार्च, 2023 को लंदन, ग्लासगो और कार्डिफ शहरों में हजारों लोगों ने ब्रिटिश संसद में पेश किए गए एक कठोर विधेयक के विरोध में जुझारू रैलियों में भाग लिया। यह विधेयक ब्रिटेन में आश्रय मांगने वाले शरणार्थियों को सभी अधिकारों से वंचित करता है। लंदन में प्रदर्शनकारियों ने पोर्टलैंड प्लेस में बीबीसी मुख्यालय के सामने इकट्ठे होकर, पार्लियामेंट स्क्वेयर तक एक जुलूस निकाला और वहीं पर एक सभा आयोजित की।
इससे पहले 7 मार्च को प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने संसद में ‘अवैध प्रवासन विधेयक’ पेश किया था। विधेयक के अनुसार उन सभी शरणार्थियों को अवैध प्रवासी घोषित किया जायेगा, जो छोटी नावों और किश्तियों से इंग्लिश चैनल को पार करके आते हैं। इंग्लिश चैनल वह पानी की छोटी सी पट्टी है जो यूरोप की मुख्य भूमि को ब्रिटेन से अलग करती है।
नए विधेयक के अनुसार, छोटी नावों और किष्तियों से इंग्लिश चैनल को पार करके ब्रिटेन में प्रवेश करने की कोशिश करने वाले शरणार्थियों को कोई भी ऐसे अधिकार नहीं मिलेंगे जो आमतौर पर शरणार्थियों को दिये जाते हैं। उन्हें जमानत या न्यायिक जांच के बिना, 28 दिनों तक कैदखाने में हिरासत में रखा जाएगा। उसके बाद उन्हें या तो अपने देश में वापस भेज दिया जायेगा या दक्षिणी अफ्रीका के रवांडा देश को भेज दिया जायेगा। अपने देश में मानव अधिकारों के हनन का हवाला देकर ब्रिटेन में आश्रय की मांग करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं दिया जायेगा। विदित है कि ब्रिटिश सरकार ने रवांडा सरकार के साथ एक सौदा किया है जिसके अनुसार इन शरणार्थियों को कैदखानों से सीधा, हवाई जहाज में रवांडा पहुंचाया जायेगा।
यह जान-मानी बात है कि अफ़ग़ानिस्तान, इराक, सिरिया, लिबिया, सोमालिया और अन्य देशों के लोगों के ख़िलाफ़ अमरीकी और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा किए गए युद्धों ने इन देशों को नष्ट कर दिया है और लाखों-लाखों लोगों को शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किया है। उनमें से ज्यादातर लोग पड़ोसी देशों के शरणार्थी शिविरों में बहुत ही ख़राब परिस्थितियों में जी रहे हैं। इसके अलावा, उपनिवेशवादी और साम्राज्यवादी लूट से तबाह होकर, उत्तरी अफ्रीका के देशों के लाखों-लाखों लोग अपनी भयानक परिस्थितियों से बचने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें से कुछ शरणार्थी ग़रीबी के जीवन से बचने के लिए, यूरोपीय देशों और अमरीका में जाने के लिये ख़तरनाक रास्ते अपनाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, यूरोपीय मानवाधिकार अदालत (ई.सी.एच.आर.) और दुनियाभर के कई अन्य संगठनों ने ‘अवैध प्रवासन विधेयक’ को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते हुए, इसकी आलोचना की है। ब्रिटिश सरकार मानवाधिकारों की हिमायती होने का दावा करती है। वास्तव में, ब्रिटिश राज्य खुद ही दुनियाभर में अधिकतम लोगों को शरणार्थी बनाने के लिए ज़िम्मेदार रहा है। अब वह उन असहाय लोगों को शरण देने से इनकार करके, अपना असली चरित्र दर्शा रहा है।
कई ट्रेड यूनियनों और अन्य संगठनों ने प्रदर्शन में भाग लिया। उनमें युद्ध विरोधी कार्यकर्ता, शिक्षा क्षेत्र के कार्यकर्ता, सरकारी कर्मचारी, डाकघर के कर्मचारी और रेलवे कर्मचारी शामिल थे। इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन, ग्रेट-ब्रिटेन की कई शाखाओं के मज़दूरों ने भी लंदन के विरोध प्रदर्शन में भाग लिया।
प्रदर्शनकारियों ने ‘अवैध प्रवासन विधेयक’ को नस्लवादी करार दिया और इसकी निंदा की। लोगों ने अमरीकी और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा उखाड़ फेंके गए लोगों के साथ किए गए अमानवीय व्यवहार के ख़िलाफ़ अपना गुस्सा दर्शाया। प्रदर्शनकारियों के हाथों में बैनर थे जिन पर लिखा था, “कोई भी इंसान अवैध नहीं है”, “ज़ोर से बोलो – शरणार्थियों का यहां स्वागत है”, “शरणार्थियों को रवांडा भेजना बंद करो, सारी उड़ानें बंद करो”।
ब्रिटेन के साम्राज्यवादी सरमायदार यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि ये शरणार्थी ब्रिटेन के मज़दूर वर्ग और लोगों की आर्थिक समस्याओं के लिये ज़िम्मेदार हैं। ‘अवैध प्रवासन विधेयक’ के ख़िलाफ़ इन शक्तिशाली विरोध प्रदर्शनों से स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन के मज़दूर अपनी एकता को तोड़ने की शासक वर्ग की योजनाओं को नाक़ामयाब करने के लिये अडिग हैं।