संपादक महोदय,
कार्यस्थल पर स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम की हालतों पर श्रम संहिता (ओ.एच.एस.डब्ल्यू. कोड) के आर्टिकल के बारे में कुछ विचार रखना चाहती हूं। कार्यस्थल पर स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम की हालतों पर श्रम संहिता (ओ.एच.एस.डब्ल्यू. कोड) उन चार श्रम संहिताओं में से एक है, जिसे सरकार ने श्रम क़ानूनों को सरल बनाने के नाम पर संसद में पारित किया था।
संसद द्वारा इसे बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया गया और 28 सितंबर, 2020 को एक क़ानून के रूप में लागू कर दिया गया था। ऐसे क़ानून बनाने से पहले कहीं भी चर्चा नहीं की जाती, बल्कि इसे थोप दिया जाता है।
ओ.एच.एस.डब्ल्यू. कोड मज़दूरों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान पर खुल्लम-खुल्ला हमला है। कई सालों के अथक संघर्ष से मज़दूर वर्ग ऐसे क़ानून को बनवाने में सफल हुआ था, जो मज़दूरों के कुछ हिस्सों के लिए काम करने की हालतों में कुछ सुधार करने में सक्षम थे।
इन क़ानूनों के बावजूद भी मज़दूरों को ऐसी परिस्थितियों में काम करने के लिए मज़बूर किया जाता है जो बहुत ही भयानक हैं। हर साल काम करने के दौरान हजारों मज़दूरों की जान चली जाती है, लाखों घायल हो जाते हैं। और कुछ तो ऐसी परिस्थितियों में काम करते हैं जिनसे उन्हें जानलेवा बीमारियां हो जाती है और समय से पहले ही वे मौत के मुंह में समा जाते हैं।
ओ.एच.एस.डब्ल्यू. कोड मज़दूरों के लिए सुरक्षित काम की हालतों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य द्वारा ठोस क़दम उठाए जाने के बिल्कुल उल्टा है। इस कोड में दस से कम मज़दूरों को रोज़गार देने वाले संस्थानों और 20 से कम मज़दूरों को रोज़गार देने वाले कारखानों को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है। जो ठेकेदार 50 से कम मज़दूरों को नौकरी पर रखते हैं, उनको ओ.एच.एस.डब्ल्यू. अधिनियम के तहत पंजीकरण करने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें नौकरी पर रखे गए मज़दूरों की संख्या का रिकार्ड तक रखने की ज़रूरत नहीं है। इस क़ानून के तहत ट्रेड यूनियन और मज़दूर संगठन, सुरक्षा उपायों का उल्लंघन करने वाले कार्यस्थलों के निरीक्षण की मांग नहीं कर सकते हैं। यह अधिनियम कामकाजी महिलाओं पर बहुत बड़ा हमला है। महिलाएं जहां रात की पाली में काम करती हैं जैसे अस्पताल, एयरलाइंस आदि वहां पर आने और जाने के समय सुरक्षा मुहैया कराना अनिवार्य होना चाहिए लेकिन यह कोड महिला सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं देता है। न तो काम की जगह पर और न ही आने-जाने के रास्ते में। बल्कि यह तो स्वेच्छा के नाम पर महिलाओं के लिए रात में बिना सुरक्षा की गारंटी के काम करने को क़ानूनी रूप प्रदान करता है। जहां दिन के समय महिलाओं को यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ का सामना करना पड़ता है तो रात के समय क्या होगा, यह सोचने से भी डर लगता है। और उसकी शिकायत भी नहीं की जा सकेगी।
हमेशा से यह मांग रही है कि मज़दूर, चाहे वह महिला, पुरुष, नौजवान, किसान या कोई और हो, वह जहां भी काम करता हो उसे सुरक्षित काम की हालतें दी जाएं जिसमें पीने का साफ़ पानी, स्वच्छ शौचालय, खाना खाने के लिए उचित जगह मुहैया कराई जाए। लेकिन एक के बाद एक सरकारें बदली हैं लेकिन हालतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है बल्कि आवाम को धोखा ही मिला है। सुरक्षित काम की हालतों को पाने का एक ही रास्ता है – अपनी एकता को मजबूत करना होगा, आवाम पर हो रहे चौतरफा हमलों के खि़लाफ़ मज़दूर वर्ग की चेतना को बढ़ाना और एक ऐसे राज्य के निर्माण के लिए संघर्ष करना होगा जहां नीतियां, अधिनियम, अर्थव्यवस्था लोगों के हित में चलाई जाए।
मानसी