2022 के ख़त्म होते-होते अमेज़न ने वैश्विक स्तर पर हजारों कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी। उस विशाल कंपनी ने घाटे का हवाला देते हुए अपने विभिन्न व्यवसायों में नौकरियों में कटौती की है। अमेज़न की 15 लाख से अधिक की कुल मज़दूर संख्या का लगभग 7 प्रतिशत हिन्दोस्तान में हैं। जनवरी 2023 की शुरुआत में यह बताया गया कि हिन्दोस्तान में अमेज़न के 18,000 कर्मचारियों को सितंबर 2022 में निकाल दिया गया था।
आईटी/आई.टी.ई.एस. मज़दूरों के एक यूनियन, नेसेंट इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एम्प्लाईज़ सेनेट (एन.आई.टी.ई.एस.), ने नवंबर 2022 में केंद्रीय श्रममंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसमें सरकार से हिन्दोस्तान में अमेज़न द्वारा की जा रही छंटनी में हस्तक्षेप करने के लिए कहा गया था।
यूनियन ने अमेज़न पर हिन्दोस्तान के श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। उसने बताया कि उसे अमेज़न के कर्मचारियों से शिकायतें मिली हैं कि उन्हें अपना इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है और ऐसा दिखाया जा रहा है कि यह स्वैच्छिक है। मंत्रालय द्वारा जांच के जवाब में, अमेज़ॅन इंडिया ने बड़े पैमाने पर छंटनी की ख़बरों का खंडन किया और कहा कि मज़दूरों ने “स्वैच्छिक कार्य छोड़ो कार्यक्रम” के तहत, स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया है।
एन.आई.टी.ई.एस. ने बताया है कि अमेज़न इंडिया ने नवंबर की शुरुआत में अंदरूनी संचार के माध्यम से अपने कर्मचारियों से कहा था कि जो लोग स्वेच्छा से इस्तीफा देने की घोषणा नहीं करते हैं, उन्हें “वर्क फ़ोर्स ओपटीमाइज़ेशन प्रोग्राम” (यानि मज़दूरों की संख्या को ‘अनुकूल’ करने के कार्यक्रम) के तहत, बिना कोई बेनिफिट दिए निकाल दिया जाएगा।
अमेज़न के प्रभावित कर्मचारियों को यह तय करने के लिए 29 नवंबर तक की मोहलत दी गई थी, कि क्या वे 30 नवंबर तक स्वेच्छा से इस्तीफा देना चाहते हैं या नहीं। दूसरे शब्दों में, अमेज़न इंडिया के मज़दूरों को सिर्फ यह तय करने का मौका दिया गया कि वे किस तरह अपनी नौकरी खोना चाहते हैं!
एन.आई.टी.ई.एस. द्वारा मंत्री को दी गयी याचिका में कहा गया है कि “औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार, कंपनी मालिक उपयुक्त सरकार से पूर्व अनुमति के बिना, कंपनी के मस्टर रोल पर मौजूद कर्मचारी को नहीं निकाल सकता है।” इसके अलावा, एक कर्मचारी जिसने कम से कम एक वर्ष की निरंतर सेवा की है, उसे तब तक नहीं निकाला जा सकता जब तक कि उसे तीन महीने पहले नोटिस नहीं दिया जाता है और उपयुक्त सरकार से पूर्व अनुमति नहीं मिलती है।
हाल ही में, अमेज़न इंडिया ने हिन्दोस्तान में तीन व्यवसायों – थोक ई-वितरण (अमेज़न वितरण), खाद्य वितरण (अमेज़न फूड), और उसके एड-टेक व्यवसाय (अमेज़न अकादमी) से बाहर निकलने की घोषणा की है। खाद्य वितरण व्यवसाय मई 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान शुरू किया गया था, जबकि एड-टेक व्यवसाय 2021 में शुरू किया गया था। थोक वितरण व्यवसाय महामारी से पहले स्थापित किया गया था।
रिपोर्टों के मुताबिक, अमेज़न घाटे में चल रही अपनी सभी इकाइयों की समीक्षा कर रहा है, ताकि उन क्षेत्रों का पता लगाया जा सके जहां लागत में कटौती की जा सकती है। उसने घाटे में चल रही कंपनियों को बंद कर दिया है और अब नए अवसरों की तलाश शुरू कर दी है।
इजारेदार पूंजीपति सिर्फ अपने मुनाफ़ों को अधिकतम करने के नज़रिए से यह तय करते हैं कि उनके व्यवसाय की कौन सी शाखाओं को बंद करना है और कौन सी नई शाखाओं में व्यवसाय स्थापित करना है। वे मज़दूरों को केवल एक लागत के रूप में देखते हैं, और इस बात की परवाह नहीं करते कि हजारों मज़दूरों को बिना नौकरी के सड़कों पर फेंकना पड़े। इजारेदार पूंजीपति अपने कारोबार की कार्य-कुशलता जैसे सवालों को सिर्फ अपने मुनाफ़ों को अधिकतम करने के नज़रिए से देखते हैं। वे इसे समाज के नज़रिए से नहीं देखते हैं।
सिर्फ अमेज़न ही नहीं, बल्कि कई दूसरी कंपनियां भी हजारों-हज़ारों मज़दूरों की छंटनी कर रही हैं। करोड़ों मज़दूर काम करने के अवसर से वंचित हैं और इस तरह अर्थव्यवस्था में उत्पादक रूप से योगदान नहीं कर पाते हैं। बेरोज़गार मज़दूरों की यह बढ़ती सेना समाज पर एक बोझ है। सम्पूर्ण रूप से देखें तो पूंजीवादी समाज बेहद गैर-कार्यकुशल है।
मज़दूरों की यूनियन ने एक अहम मुद्दा उठाया है कि नौकरी गंवाने वाले मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा करना सरकार का फ़र्ज़ है। औद्योगिक विवाद अधिनियम की मांग है कि इतनी बड़ी कंपनियों में छंटनी और बंदी उपयुक्त सरकार की अनुमति से ही हो सकती है। केंद्र सरकार को सार्वजनिक रूप से यह बताना चाहिए कि उसने अमेज़न द्वारा छंटनी को मंजूरी दी है या नहीं। अगर अमेज़न को इस तरह की मंजूरी नहीं मिली है तो उसके खि़लाफ़ हिन्दोस्तान के श्रम कानूनों के उल्लंघन के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए।
साथ ही, मज़दूरों को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि राज्य – सरकार के मंत्रालय और विभाग, लेबर कोर्ट आदि उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे। इस व्यवस्था में अर्थव्यवस्था की दिशा इजारेदार पूंजीपतियों की लालच को पूरा करने के लिए तय की जाती है। हिन्दोस्तानी राज्य अर्थव्यवस्था की इस दिशा को बरकरार रखता है। इस व्यवस्था के चलते, किसी पूंजीपति के लिए यह क़ानूनी है कि वह अपने कारोबार में मज़दूरों की उपयोगिता के आधार पर उन्हें नौकरी पर रखे या निकाल दे। केंद्र और राज्य सरकारें पूंजीपति के इस “अधिकार” का बचाव करती हैं।
इस पूंजीवादी व्यवस्था का एक विकल्प है। पूंजीपतियों की हुकूमत की जगह पर मज़दूर-किसान की हुकूमत स्थापित करने के लिए हमें संघर्ष करना होगा। तब हम समाज के सभी सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने में सक्षम होंगे। मज़दूरों-किसानों की हुकूमत में एक ऐसी व्यवस्था होगी जहां मज़दूरों और किसानों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करना ही उत्पादन का लक्ष्य होगा। वह एक ऐसी व्यवस्था होगी जिसमें उत्पादन को समाज की आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित किया जायेगा और समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति अर्थव्यवस्था की योजना बनाने का आधार होगी। जब इस तरह की योजना के अनुसार सभी उपलब्ध संसाधनों का निवेश किया जाता है, तो उत्पादन में निवेश और विस्तार से बहुत बड़े पैमाने पर नए रोज़गार पैदा होंगे।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का ऐसा नियोजित विकास समाज को समय-समय पर होने वाले आर्थिक संकटों से बचाएगा, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं और समाज को बहुत बड़ी भौतिक क्षति पहुंचाते हैं। इस अर्थव्यवस्था में भी प्रत्येक कारोबार की कार्य-कुशलता चिंता का विषय होगी, लेकिन एक कारोबार को बंद करने का निर्णय मज़दूरों को दूसरे संयंत्र में स्थानांतरित करने, उन्हें नए कार्यों के लिए फिर से प्रशिक्षित करने, आदि की योजना के साथ होगा।
नतीजतन, हजारों मज़दूरों के लिए हमेशा रोज़ी-रोटी खोने के ख़तरे के बजाय, अर्थव्यवस्था में प्रत्येक मज़दूर के लिए रोज़ी-रोटी की सुरक्षा होगी।