पेट्रोलियम और गैस मज़दूरों ने संघर्ष तेज़ किया

पेट्रोलियम और गैस मज़दूरों ने निजीकरण के समाज-विरोधी, देश-विरोधी और मज़दूर-विरोधी कार्यक्रम के ख़िलाफ़ और मज़दूर बतौर अपने अधिकारों की रक्षा के लिए, संघर्ष को तेज़ करने का फ़ैसला किया है। निकट भविष्य में वे ऊर्जा क्षेत्र के मज़दूरों की सर्व हिन्द संयुक्त हड़ताल का आयोजन करने के लिए बिजली व कोयला क्षेत्र के मज़दूरों से समन्वय करेंगे। यह निर्णय दिसंबर 2022 में असम के दुलियाजान में आयोजित पांचवें त्रैवार्षिक सम्मेलन में पेट्रोलियम एंड गैस वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (पी.जी.डब्ल्यू.एफ.आई.) द्वारा लिया गया था।

पी.जी.डब्ल्यू.एफ.आई. सार्वजनिक क्षेत्र के पेट्रोलियम उपक्रमों के मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करने वाली चालीस से अधिक ट्रेड यूनियनों का एक फेडरेशन है, जिसका गठन 2005 में हुआ था। इसमें पेट्रोलियम और गैस की खोज करने वाले और निकालने वाले मज़दूरों, पेट्रोलियम शोधन, पेट्रोलियम और गैस वितरण और विपणन में लगे मज़दूरों की यूनियनें शामिल हैं। तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओ.एन.जी.सी.), हिन्दोस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एच.पी.सी.एल.), ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओ.आई.एल.), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बी.पी.सी.एल.), मैंगलोर रिफाइनरीज (एम.आर.पी.एल.) और इंडियन आयॅल काॅर्पोरेशन की ट्रेड यूनियनों ने मिलकर पी.जी.डब्ल्यू.एफ.आई.का गठन किया है।

2002 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार द्वारा बी.पी.सी.एल. और एच.पी.सी.एल. की व्यापारिक संपत्तियों के निजीकरण के प्रयासों के बाद, पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र के मज़दूरों की यूनियनों ने निजीकरण और मज़दूरों के अधिकारों पर हो रहे हमलों के ख़िलाफ़ एक संयुक्त मोर्चा बनाना शुरू किया। उन्होंने तीन दिवसीय सफल हड़ताल करके, निजीकरण की योजनाओं को वापस लेने के लिए उस सरकार को मजबूर किया था। हालांकि, उसके बाद की सभी सरकारों ने सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों को ख़त्म करके पेट्रोलियम क्षेत्र के निजीकरण पर ज़ोर देना जारी रखा है।

इस प्रकार, ओ.एन.जी.सी. पर दबाब डाला गया कि वह घाटे में चल रही कंपनी, गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड का अधिग्रहण करे, जिसने पेट्रोलियम का कोई उत्पादन ही नहीं किया। ओ.एन.जी.सी. को अपने लाभदायक तेल क्षेत्रों को निजी कंपनियों को सौंपने के लिए मजबूर किया गया है। ओ.एन.जी.सी. को अपने समुद्रीय तेल क्षेत्रों का 60 प्रतिशत हिस्सा विदेशी कंपनियों को सौंपना पड़ा है। 2018 में सरकार ने लाभ कमाने वाली बी.पी.सी.एल. को, जिसका वास्तविक मूल्य 9 लाख करोड़ रुपये था, उसको 50-60 हजार करोड़ रुपये के औने-पौने दाम पर बेचने का फ़ैसला किया था।

हाल ही में, सरकार ने राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एन.एम.पी.) की घोषणा की है। इसके तहत सरकार ने तेल कंपनियों की ढांचागत संपत्तियों को निजी कंपनियों को सौंपने का फैसला लिया है। इसमें लगभग 8154 किलोमीटर गैस पाइपलाइन, 3196 किलोमीटर उत्पाद पाइपलाइन, दो हाइड्रोजन संयंत्र, एल.पी.जी. पाइपलाइन और अन्य परिसंपत्तियां शामिल हैं।

पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र के मज़दूर ठीक ही समझ रहे हैं कि हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपति अहम ऊर्जा क्षेत्र – पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, कोयला और बिजली – पर अपना नियंत्रण और वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। हिन्दोस्तानी राज्य इन इजारेदार पूंजीपतियों के लालच को पूरा करने का काम कर रहा है।

आधुनिक समाज में कामकाज के लिए पेट्रोल, डीजल, गैस या बिजली के रूप में ऊर्जा एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यह एक सामाजिक आवश्यकता को पूरा करता है। इसे इजारेदार पूंजीपतियों की अमिट लालच को पूरा करने के स्रोत में बदलने की इज़ाज़त नहीं दी जानी चाहिए।

ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का विरोध करने के लिए हड़ताल की कार्रवाई में बिजली और कोयला मज़दूरों के साथ, हाथ मिलाने का पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र के मज़दूरों का निर्णय पूरे समाज के समर्थन का हक़दार है।

पिछले कुछ दशकों में सरकारों ने लगातार पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस क्षेत्र में नियमित मज़दूरों के स्थान पर ठेका मज़दूरों को काम पर रखा है। आज, इस क्षेत्र में काम करने वाले लगभग आधे मज़दूर ठेके पर काम कर रहे हैं। नियमित मज़दूर यह महसूस कर रहे हैं कि मज़दूरों के एक बड़े हिस्से को उनके अधिकारों से वंचित करके, पूंजीपति वर्ग सभी मज़दूरों के वेतनों को कम कर रहा है। काम करने की स्थिति को ख़राब कर रहा है, और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उनके एकजुट संघर्ष को कमज़ोर कर रहा है। पेट्रोलियम और गैस मज़दूरों की यूनियनों ने अपने क्षेत्र में ठेका मज़दूरों के अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिए संघर्ष को तेज़ करने का फ़ैसला किया है।

पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र के मज़दूरों का निजीकरण के खि़लाफ़ और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष, शासक पूंजीपति वर्ग के मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, समाज-विरोधी कार्यक्रम के खि़लाफ़ मज़दूरों और किसानों के संघर्ष का अभिन्न अंग हैं। निजीकरण के खि़लाफ़ संघर्ष को अंत तक ले जाने की जरूरत है। इसके लिये इस संघर्ष को पूंजीपति वर्ग के राज के बदले, मज़दूरों- किसानों के राज को स्थापित करने की दिशा में ले जाने की ज़रूरत है। मज़दूर वर्ग अपने हाथों में राजनीतिक सत्ता लेकर, पूंजीवादी लालच के बजाय, सामाजिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए अर्थव्यवस्था को नई दिशा दिलाने में सक्षम होगा।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *