मज़दूर एकता कमेटी द्वारा आयोजित मीटिंग :
काम की जगह पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की हालतों पर संहिता : मज़दूरों के अधिकारों का क्रूर हनन

काम की जगह पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की हालतों पर संहिता (ओ.एस.एच.) उन चार श्रम संहिताओं में से एक है, जिसे हिन्दोस्तानी राज्य ने सितंबर 2020 में लागू किया था। इस संहिता ने इन्हीं मुद्दों से संबंधित, मौजूदा श्रम क़ानूनों को बदल दिया। हमारे देश के मज़दूरों के कई दशकों के संघर्ष और बलिदान के बाद राज्य ऐसे क़ानूनों को पारित करने के लिए मजबूर हुआ, जो क़ानून मज़दूरों के कुछ हिस्सों को कुछ हद तक सामाजिक सुरक्षा देने का वादा करते हैं। मज़दूरों का कहना है कि ओ.एस.एच. संहिता इन सभी उपलब्धियों पर हमला है। मज़दूरों को काम की जगह पर स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की हालतों की जिन बदतर परिस्थितियों को पहले ही झेलना पड़ता था, इस संहिता ने उसे और भी विकट तथा ख़तरनाक बना दिया है। यह मज़दूरों के जीवन और सम्मान के अधिकार का क्रूर हनन है। सभी ट्रेड यूनियनों, उद्योगों और सेवाओं से जुड़े मज़दूरों तथा उनके संगठनों ने अपनी पार्टी की संबद्धता को दरकिनार करते हुये, इसका कड़ा विरोध किया है।

24 दिसंबर, 2022 को मज़दूर एकता कमेटी ने ओ.एस.एच. संहिता पर मीटिंग आयोजित की जिसे संबोधित करते हुए, वक्ताओं ने रेलवे, निर्माण स्थलों, कपड़ा व वस्त्र उद्योग, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मचारियों, घरेलू कामगारों और कई अन्य क्षेत्रों व सेवाओं से जुड़े मज़दूरों की काम करने की ख़तरनाक परिस्थितियों के बारे में विस्तार से बताया।

मीटिंग में मुख्य वक्ता थे – मज़दूर एकता कमेटी के सचिव श्री बिरजू नायक; ऑल इंडिया रेलवे ट्रैक मेंटेनर्स यूनियन (ए.आई.आर.टी.यू.) के राष्ट्रीय महासचिव श्री कांता राजू; भारतीय रेलवे लोको रनिंगमेन संगठन के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री संजय पांधी; निर्माण मज़दूर पंचायत संगम के सचिव श्री सुभाष भटनागर और सेवाशक्ति हेल्थकेयर कंसल्टेंसी की संस्थापक डॉ. स्वाति राणे। मीटिंग का संचालन मज़दूर एकता कमेटी की ओर से सुचरिता ने किया।

श्री बिरजू नायक ने बताया कि मज़दूरों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति हमेशा से ही हमारे देश के मज़दूर वर्ग की प्रमुख चिंता रही है। काम की जगह पर हर साल लाखों मज़दूर अपनी जान गंवाते हैं। लाखों लोग घायल हो जाते हैं, उनमें से कई जीवनभर के लिए अपाहिज हो जाते हैं। फैक्ट्रियों में आग लगना, भूमिगत खदानों का गिरना और उनमें मज़दूरों का फंसना, खदानों में पानी भर जाना और मज़दूरों का डूब जाना, भट्टियों में विस्फोट होना, निर्माण स्थलों पर मज़दूरों का गिरना, काम के दौरान ट्रैकमैन की मौत, सीवर की सफाई के दौरान मौतें, ये सब दुखद घटनाएं हमारे देश में रोजमर्रा की बात हैं – कुछ ही के बारे में रिपोर्ट्स भी मिलती हैं, परन्तु अधिकांश की रिपोर्ट तक नहीं की जाती। इस तरह अपनी जान गंवाने वाले अधिकांश मज़दूर ठेके पर काम करने वाले होते हैं। सुरक्षा के सभी मानदंडों का उल्लंघन करते हुए, मज़दूरों को ख़तरनाक परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। काम की जगहों पर होने वाली मौतों की वास्तविक संख्या के लिये कोई भी आधिकारिक गिनती नहीं की जाती। क्योंकि सरकार को हमारे देश के लाखों अपंजीकृत कारखानों, कार्यालयों, दुकानों, स्वेटशॉप और निर्माण स्थलों में काम करने वाले मज़दूरों की हालतों पर नज़र रखने की कोई परवाह नहीं है।

काम की जगहों पर मज़दूरों की मौतों और उनको लगी चोटों को एक दुर्घटना कह दिया जाता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि इस सच्चाई को छिपाया जाता हैं कि यह सब तो पूंजीपति मालिकों द्वारा सुरक्षा उपायों की जानबूझकर की गई उपेक्षा का नतीजा है। अपने मुनाफ़ों को अधिकतम करने की लालच को पूरा करने के लिए, मालिक इसे जायज़ मानते हैं।

बिरजू नायक ने समझाया कि काम की जगह पर होने वाली मौतों का एकमात्र या प्रमुख कारण केवल काम करने की परिस्थिति ही नहीं हैं। बल्कि मौतों के अन्य कारण भी हैं, कारखानों और खदानों में काम की भयानक स्थिति, जिससे मज़दूरों को कैंसर और फेफड़ों की बीमारी या कई अन्य बीमारियों का सामना करना पड़ता है। उनके स्वास्थ्य पर इनका बुरा प्रभाव पड़ता है और उनकी जल्दी मौत हो जाती है। सरकार काम की जगह पर हुई बीमारियों के कारण मरने वालों की संख्या का रिकॉर्ड नहीं रखती।

बिरजू नायक ने बताया कि ओ.एस.एच. संहिता मज़दूरों के सबसे कमज़ोर तबकों की चिंताओं की पूरी तरह से अनदेखी करता है। यह केवल उन उद्यमों पर लागू होता है जिनके यहां हाजिरी रजिस्टर में 10 से अधिक मज़दूर पंजीकृत दिखाये जाते हैं। इसलिए कृषि मज़दूरों सहित देश के 90 प्रतिशत मज़दूरों को अपने अधिकारों से वंचित कर दिया गया है, क्योंकि वे सब श्रम संहिता के दायरे में नहीं आते। इसी तरह, यह संहिता आईटी मज़दूरों सहित उन मज़दूरों पर भी लागू नहीं होती, जिनको अलग-अलग पदनामों से रखा जाता है जैसे कि “प्रबंधक”, “पर्यवेक्षक” आदि। ‘ओवरटाइम’ के नाम पर प्रति सप्ताह काम के घंटे बढ़ाकर और महिलाओं से रात की पाली में काम करवाने को वैधता देकर, संहिता द्वारा मज़दूरों के अधिकारों और सुरक्षा पर एक और हमला किया गया है।

बिरजू नायक ने बताया कि देश के मज़दूरों का विशाल हिस्सा जिन भयानक परिस्थितियों में रोज़ी-रोटी कमाने को मजबूर है, उनके लिये हमारे देश की आदमखोर पूंजीवादी व्यवस्था तथा शोषण की इस व्यवस्था की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध राज्य पूरी तरह से ज़िम्मेदार है। पूंजीपति वर्ग मज़दूरों के लिए काम करने की सुरक्षित स्थिति सुनिश्चित करने से इसलिये इनकार करता है, क्योंकि इस क़दम की वजह से ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़े बनाने की उसकी होड़ को नुक़सान पहुंचता है। सभी सरकारों ने पूंजीपतियों की इस होड़ का बचाव किया है, वर्तमान सरकार भी अछूती नहीं है। अंत में उन्होंने निष्कर्ष के रूप में कहा कि हमें एकजुट होकर, ऐसे क़ानूनों की मांग के लिये संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा, जो हर मज़दूर के लिए स्वास्थ्य और काम करने की सुरक्षित स्थिति की गारंटी देगा।

श्री कांता राजू ने भारतीय रेल के लगभग 4 लाख ट्रैक मैन्टनरों के काम की बेहद ख़तरनाक परिस्थितियों के बारे में विस्तार से बताया। ट्रैकमैनों की सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किये गए हैं। लगभग 300-400 ट्रैकमैन हर साल ड्यूटी के दौरान मारे जाते हैं। उचित मुआवज़ा पाने की प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल है कि पीड़ित परिवारों की परेशानी और भी बढ़ जाती है।

ट्रैकमैन पर अत्यधिक काम का बोझ है। वे 12 घंटे की शिफ्ट में काम करते हैं, लेकिन उन्हें ओवरटाइम का पैसा भी नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि ट्रैकमैन के क़रीब एक लाख पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार और रेलवे बोर्ड पदों को भरने से इनकार कर रहा है। ट्रैकमैनों की मांग है कि ट्रैकमैन की सुरक्षा के लिए ट्रैक पर आने-जाने वाली ट्रेनों पर नज़र रखने के लिए, रेलवे बोर्ड द्वारा सुरक्षा उपकरणों को लगाया जाए। रेलवे ने इस मांग को कोई महत्व नहीं दिया है। ट्रैकमैन को अंधेरे में अपने मोबाइल के टॉर्च की रोशनी में काम करना पड़ता है, जो कि स्पष्ट रूप से बेहद ख़तरनाक है। समपार फाटकों पर काम करने वाले ट्रैकमैनों के पास आराम करने के लिए न तो कोई कमरा है, न पीने का पानी और न ही शौचालय। यह सब स्पष्ट दिखाता है कि मज़दूरों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति हिन्दोस्तान की सरकार का रवैया कितना संवेदनहीन है।

श्री कांता राजू ने चार श्रम संहिताओं के बारे में विस्तार से समझाया कि ये श्रम संहितायें उन सभी अधिकारों पर एक सीधा हमला हैं, जिन्हें मज़दूरों ने कड़े संघर्ष के जीता है। अपनी पसंद की यूनियन बनाने के अधिकार पर सीधा हमला हो रहा है। उन्होंने अपने स्वयं के अनुभव से उदाहरण दिया कि कैसे रेलवे बोर्ड ने ट्रैक मेंटेनरों की यूनियन की मान्यता यह कहकर रोक दी कि श्रम संहिता के नियमों को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है! उन्होंने कहा कि पूंजीपति मज़दूरों के सभी अधिकारों को कुचलना चाहते हैं, ताकि वे अपने मुनाफ़े को अधिकतम कर सकें और सरकार उनके हित में काम कर रही है। उन्होंने 4 श्रम संहिताओं को लागू होने से रोकने के संघर्ष को तेज़ करने के ट्रैकमैनों के दृढ़ संकल्प को व्यक्त किया।

श्री संजय पांधी ने बताया कि कारखानों, खदानों, डॉक्स, निर्माण स्थलों, पत्रकारों, आदि में सुरक्षा से संबंधित 13 श्रम क़ानूनों के साथ-साथ अनुबंध मज़दूरों और प्रवासी मज़दूरों से संबंधित क़ानूनों को समाहित करके, ओ.एस.एच. संहिता तैयार की गई है। इनमें, रेलवे कर्मचारियों की होने वाली दुर्घटनाओं, चोटों और ख़तरों की विशिष्ट हालतें शामिल नहीं है। रेलवे में काम की परिस्थितियों से होने वाले रोगों – अनिद्रा, पीठ दर्द, मधुमेह, यादाश्त में कमी, आदि शामिल नहीं हैं। उन्होंने बताया कि ट्रेड यूनियन बनाने के मज़दूरों के अधिकार पर हमला हो रहा है। इस ओ.एस.एच. संहिता द्वारा काम की सुरक्षित परिस्थितियों के अधिकार का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। इस संहिता के अनुसार, केवल 500 से अधिक मज़दूरों को रोज़गार देने वाले उद्यमों में ही सुरक्षा समिति बनाना अनिवार्य शर्त होगी। इसमें छोटे उद्यमों के अधिकांश मज़दूरों सहित ठेका मज़दूरों को शामिल नहीं किया गया है।

श्री संजय पांधी ने संहिता के उन कई प्रावधानों के बारे में बताया, जो मालिकों को ओवरटाइम का समय बढ़ाने और मज़दूरों का शोषण और बढ़ाने की अनुमति देते हैं। उन्होंने सभी काम की जगहों के साथ-साथ सड़कों पर आकर, इन श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ सभी मज़दूरों के एकजुट संघर्ष को तेज़ करने का आह्वान किया।

श्री सुभाष भटनागर ने निर्माण क्षेत्र से जुड़े मज़दूरों के लिए, एक व्यापक क़ानून बनवाने के अपने 25 से अधिक वर्षों तब संघर्ष के बारे में बताया, उस लंबे संघर्ष के बाद ही ‘भवन और अन्य निर्माण मज़दूर अधिनियम’ (बी.ओ.सी.डब्ल्यू.) को मंजूरी मिली। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप, आज पूरे देश में 5 करोड़ से अधिक निर्माण मज़दूर पंजीकृत हैं और उनकी तात्कालिक और दीर्घकालिक ज़रूरतों के लिए 80,000 करोड़ रुपये से अधिक का कोष बनाया गया है। श्री भटनागर ने उन विभिन्न तरीक़ों के बारे में बताया, जिनके ज़रिये अधिकारी इस कोष का दुरुपयोग कर रहे थे और मज़दूरों को नुक़सान भुगतना पड़ता था।

श्री भटनागर ने समझाया कि बी.ओ.सी.डब्ल्यू. अधिनियम को निरस्त करके, अब इसे ओ.एस.एच. संहिता के साथ जोड़ दिया गया है। जिसकी शुरुआत होने से निर्माण क्षेत्र के मज़दूरों को अपने कई अधिकारों से वंचित होने की संभावना है। इसलिए, निर्माण क्षेत्र के मज़दूर बी.ओ.सी.डब्ल्यू. अधिनियम को पुनः लागू करने की मांग कर रहे हैं। श्री भटनागर ने कहा कि अन्य सभी ट्रेड यूनियनों और श्रमिक संगठनों के साथ, निर्माण मज़दूर भी चार श्रम संहिताओं का विरोध कर रहे हैं।

डॉ. स्वाति राणे ने नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बारे में बात रखी। उन्होंने सभी लोगों को सस्ती क़ीमत परन्तु अच्छी गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा न करने के लिए सरकार की निंदा की। उन्होंने कहा कि सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को बर्बाद कर रही है और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर अधिक से अधिक ज़ोर दे रही है। उन्होंने बताया कि सरकार पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है, जो मज़दूरों की बीमारी, बेबसी और दुख से भी भारी मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं। आज मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर, आदि काम से संबंधित कुछ बीमारियां हैं, जिनसे बहुत से लोग परेशान हैं। इसके अलावा, मज़दूरों को स्वच्छ और साफ रहने की स्थिति, पीने का साफ पानी, पौष्टिक भोजन और स्वच्छ वातावरण तक नसीब नहीं है। एक आम मज़दूर, अपने वेतन का एक बहुत बड़ा हिस्सा, स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करता है क्योंकि उसे और उसके परिवार के सदस्यों को निजी डॉक्टरों और अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

डॉ. राणे ने कहा कि सरकार ई.एस.आई.सी. अस्पतालों को बंद करने और मज़दूरों को निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर करने की कोशिश कर रही है। कोविड महामारी ने दिखाया कि केवल सरकारी अस्पतालों ने बहुत कम और बहुत ही अपर्याप्त स्टाफ के बावजूद, लोगों की सेवा की। जबकि निजी अस्पतालों ने मरीजों का इलाज करने से इंकार किया या उन्हें भगा दिया। उन्होंने बताया कि किस तरह नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों का अत्यधिक शोषण होता है और निजी अस्पतालों में तो और भी ज्यादा। नर्सों को पीने का साफ पानी तक नहीं मिलता, कपड़े बदलने के लिए या रात की ड्यूटी के दौरान आराम करने के लिये उचित कमरे नहीं होते और उचित सुरक्षा किट के बिना ही उन्हें ख़तरनाक परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। उन्होंने सरकारी अस्पतालों में भी ड्यूटी के लिए ठेका कर्मचारियों के इस्तेमाल की कड़ी निंदा की। उन्होंने और अधिक सरकारी अस्पतालों को बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में सभी स्वास्थ्य कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी बतौर नियुक्त किया जाना चाहिये। उन्हें उचित प्रशिक्षण, पर्याप्त वेतन और काम की सुरक्षित परिस्थितियां उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

स्वाति राणे ने लोगों के ऐसे मंचों की स्थापना करने का प्रस्ताव रखा, जो अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सेवा के लिए और मज़दूरों के अधिकारों के लिए लड़ सकें। उन्होंने सभी से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और अन्य क्षेत्रों के मज़दूरों के काम की परिस्थितियों के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने और उचित स्वास्थ्य देखभाल व काम करने की सुरक्षित स्थिति की मांग करने के लिए संघर्ष करने की अपील की। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और सभी कर्मचारियों को एकजुट होकर, मज़दूरों के लिए बेहतर स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की बेहतर स्थिति की मांग करनी चाहिए।

तमिलनाडु की गीता रामकृष्णन ने निर्माण मज़दूरों की हालतों के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि काम पर सुरक्षा से संबंधित बी.ओ.सी.डब्ल्यू. अधिनियम की धारा को ओ.एस.एच. संहिता में से पूरी तरह से हटा दिया गया है। इसलिए निर्माण मज़दूरों की तत्काल मांग है कि बी.ओ.सी.डब्ल्यू. अधिनियम की बहाली हो।

कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ई.एस.आई.सी.) के अंतर्गत निर्माण मज़दूर नहीं आते, क्योंकि वे एक ही मालिक के लिए काम नहीं करते। उन्होंने समझाया कि अधिकांश निर्माण कार्य अनुबंध या उप-अनुबंध पर होते हैं।

उन्होंने निर्माण मज़दूरों सहित सभी मज़दूरों और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों जैसे कि कृषि मज़दूरों, घरेलू मज़दूरों, गृह-आधारित मज़दूरों और बीड़ी मज़दूरों, आदि के लिए ई.एस.आई.सी. के तहत सर्वव्यापी तौर पर शामिल करने की मांग उठाई।

प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों के लिए काम कर रहे फादर बॉस्को ने देश के कई अलग-अलग राज्यों से तमिलनाडु में काम करने आये प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इनमें से अधिकांश मज़दूर ठेके पर काम करते हैं और ठेका मज़दूरी बढ़ रही है। ठेका मज़दूरी करवाने में राज्य प्रशासन के कई विभाग शामिल हैं। मालिक काम की जगह पर ठेका मज़दूरों के लिए किसी प्रकार की सुरक्षा प्रदान करे यह सुनिश्चित करने के लिए कोई क़ानून नहीं है। मज़दूरों ने आज तक संघर्ष से जो भी जीत हासिल की है, उन्हें श्रम संहिताओं के तहत नकार दिया गया है। पानी, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य – इन सभी मूलभूत आवश्यकताओं और अधिकारों से ठेका मज़दूरों और प्रवासी मज़दूरों को वंचित रखा जाता है। वे शौचालय के बिना, पीने के पानी और भोजन की उचित व्यवस्था के बिना और भयानक परिस्थितियों में रहने तथा काम करने को मजबूर हैं। उन्होंने सभी श्रमिक संगठनों को एकजुट होने और श्रम संहिताओं को रद्द करवाने के लिए संघर्ष करने तथा राज्य द्वारा सभी मज़दूरों के लिए सुरक्षित और काम करने की उचित स्थिति की गारंटी देने का आह्वान किया।

तमिलनाडु के वर्कर्स सपोर्ट ग्रुप के श्री कृष्णमूर्ति ने तिरुपुर के कपड़ा व वस्त्र बनाने वाले  मज़दूरों की स्थितियों को अपनी बातों से उजागर किया। तमिलनाडु में कताई मिलें सबसे अधिक संख्या मे हैं। इनमें मज़दूरी करने वाली देश के विभिन्न राज्यों आई युवतियां हैं, जो अनुबंध पर काम कर रही हैं तथा इनके पास नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है। उन्हें उचित भोजन, पीने का पानी या शौचालय के बिना ही हास्टलों में या मिलों के भीतर, बहुत ही दयनीय स्थिति में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। कपड़ा मिलों में काम करने वाले मज़दूरों को लगातार रूई के फाहे और शोर में काम करना पड़ता है। ये उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। उन्हें सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जाते। वे बंधुआ मज़दूर की तरह काम करती हैं। अधिकांश मज़दूरों को ई.एस.आई.सी. की सुविधायें नहीं मिलती। बीमारी से ठीक होने के लिये, दुर्घटनाओं के लिये, ली गई छुट्टी या अन्य किसी छुट्टी के लिए कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाता। कृष्णमूर्ति ने कहा कि ओ.एस.एच. संहिता, मज़दूरों के मूल अधिकारों पर खुल्लम-खुल्ला हमला है। उन्होंने सभी मज़दूर संगठनों से श्रम संहिताओं को रद्द करवाने के लिए एकजुट होकर लड़ने का आह्वान किया।

कामगार एकता कमेटी के जी. भावे ने बताया कि रेलवे इंजन चालकों और ट्रेकमैनों के काम के घंटे बढ़ाये जा रहे हैं। यह न केवल उनके काम को और ख़तरनाक बना रहा है बल्कि उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है और यात्रियों के लिए भी जोखिम बढ़ा रहा है।

यूके के इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन के दलविंदर ने बताया कि सभी सरकारें लोगों से वादे करती हैं, लेकिन पूंजीपति वर्ग के एजेंडे को ही लागू करती हैं। लोगों को कैसे सशक्त बनाया जा सकता है ताकि वे अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहरा सकें, यह एक ऐसा सवाल है जिस पर हम सभी को सोचने और बहस करने की ज़रूरत है।

वक्ताओं ने मज़दूर एकता कमेटी को मंच प्रदान करने के लिए धन्यवाद दिया, जहां विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूर अपनी समस्याओं के बारे में अन्य क्षेत्रों के मज़दूरों से बात कर सकते हैं, जिससे मज़दूर वर्ग की एकता मजबूत हो सके।

सभी इस बात पर एकमत थे कि चार श्रम संहिताओं का उद्देश्य मज़दूरों के शोषण को तेज़ करना है। ओ.एस.एच. संहिता काम की जगह पर मज़दूरों की असुरक्षा बढ़ा रहा है और वर्षों के संघर्ष से जीते गए अधिकारों से मज़दूरों को वंचित कर रहा है। मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए, इन श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ एकजुट संघर्ष को तेज़ करने की आवश्यकता है।

मज़दूर वर्ग के लिए आगे का रास्ता है पूंजीपति वर्ग खि़लाफ़ और हमारे अधिकारों पर हो रहे सभी हमलों के ख़िलाफ़ अपनी एकता को और मजबूत करना। हमें उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिये वैश्वीकरण के कार्यक्रम के ख़िलाफ़ मज़दूरों-किसानों की एकता को मजबूत करना होगा। हमें मज़दूरों और किसानों के राज की स्थापना के उद्देश्य से अपने संघर्ष को तेज़ करने की ज़रूरत है, ताकि पूंजीवादी लालच को पूरा करने की बजाय मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी जा सके।

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