मज़दूर एकता कमेटी द्वारा आयोजित मीटिंग
मज़दूर एकता कमेटी (एम.ई.सी.) की ओर से संतोष कुमार ने यह कहते हुये मीटिंग की शुरूआत की कि “कृषि का संकट समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करता है और मज़दूर वर्ग के लिए यह एक बहुत चिंता का विषय है।” वे 11 सितंबर को “कृषि का संकट और समाधान” विषय पर आयोजित एक ऑनलाइन मीटिंग की अध्यक्षता कर रहे थे।
मीटिंग में आमंत्रित वक्ता थे – मज़दूर एकता कमेटी के सचिव श्री बिरजू नायक, भारतीय किसान यूनियन एकता (डकौंदा) के अध्यक्ष श्री बूटा सिंह बुर्ज गिल, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शैलेंद्र दूबे, सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. बी. सेठ और भारतीय रेलवे लोको रनिंगमेन ऑर्गनाइजेशन के कार्यकारी अध्यक्ष श्री संजय पांधी।
संतोष कुमार ने वक्ताओं का परिचय देते हुए बताया कि श्री बूटा सिंह जी, दिल्ली की सीमाओं पर किसानों द्वारा एक साल से अधिक समय तक चलाये गये ऐतिहासिक विरोध संघर्ष में सबसे आगे रहे हैं। उन्होंने वक्ताओं का स्वागत करते हुये बताया कि वक्ताओं में बिजली और रेलवे में संघर्षरत मज़दूरों के प्रतिनिधियों सहित एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर भी शामिल हैं तथा देशभर से और विदेशों से भी सैकड़ों सहभागी इस मीटिंग में शामिल हो रहे हैं।
सहभागियों में किसानों, मज़दूरों, युवाओं और महिलाओं सहित, विभिन्न पेशों से जुड़े लोग शामिल थे। इनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश और देश के कई अन्य हिस्सों से मज़दूरों और किसानों की यूनियनों के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ, ब्रिटेन और कनाडा में भारतीय प्रवासी मज़दूरों के कार्यकर्ता भी शामिल हुये थे।
श्री बिरजू नायक ने विस्तार से बताया कि कृषि पर बड़े हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीवादी घरानों के वर्चस्व बढ़ता ही जा रहा है। कृषि के लिए ज़रूरी सभी वस्तुओं – बीजों, उर्वरक, बिजली, फ़सलों की ख़रीद क़ीमतों और किसानों को उनकी उपज के लिए मिलने वाले मूल्य और बाज़ार में उत्पादों की क़ीमतों तक पर इजारेदारों का वर्चस्व बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि बड़े इजारेदार पूंजीवादी कॉरपोरेट घरानों के पास बड़े पैमाने पर भंडारण और परिवहन करने की सुविधाएं हैं और हक़ीक़त में, वे उन सभी क़ीमतों को निर्धारित कर सकते हैं जिन क़ीमत पर कृषि-उत्पादों को बाज़ार में ख़रीदा और बेचा जाता है। वे हिन्दोस्तान में ख़रीदे गए इन कृषि उत्पादों को और भी अधिक क़ीमत पर विश्व बाज़ार के लिये निर्यात कर सकते हैं और इससे अत्याधिक मुनाफ़े बना सकते हैं। उन्होंने एक उदाहरण के ज़रिये, इस हक़ीक़त को समझाया कि सरकार बड़े से बड़े पूंजीपतियों के हित में काम करती है। सरकार ने 13 मई को अचानक गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की और इस प्रतिबंध के चलते गेहूं के अधिकांश निर्यातकों पर पाबंदी लग गई, लेकिन, मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज को उस तारीख से पहले ही एक बैंक गारंटी जारी की गई थी ताकि वह जल्दी से जल्दी हिन्दोस्तान का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक बन सके।
श्री बिरजू नायक ने इस मीटिंग में कृषि में संकट के समाधान के लिये जो प्रस्ताव पेश किये उनमें थे – कृषि के लिए सभी ज़रूरी वस्तुओं को किसानों को रियायती क़ीमतों पर उपलब्ध कराने की गारंटी हो, मुनासिब और लाभकारी क़ीमतों पर सभी फ़सलों की ख़रीद सुनिश्चित की जाये, किसानों के कर्ज़े पर राहत दी जाये और राज्य द्वारा एक ऐसी सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनाई जाये जो देश में सभी खाद्य पदार्थों और बड़े पैमाने पर खपत होने वाली अन्य वस्तुओं की पर्याप्त और अच्छी गुणवत्ता की आपूर्ति सुनिश्चित करेगी।
श्री बूटा सिंह बुर्ज गिल ने पिछले 3-4 दशकों में हिन्दोस्तान में कृषि के बढ़ते संकट को समझाने के लिए वस्तु स्थिति से जुड़े कई तथ्य प्रस्तुत किए, जिनके कारण वर्तमान संकट पैदा हुआ। उन्होंने बताया कि हरित-क्रांति ने देश को एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए सक्षम बनाया और इससे कृषि मज़दूरों की स्थिति में भी सुधार हुआ। हालांकि, इसने उन फ़सलों को बढ़ावा दिया, जिनके लिये अधिक सिंचाई, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, ऐसी फ़सलों को प्राथमिकता दी गयी जिनमें कीड़ों और बीमारियों का ख़तरा अधिक होता है। इसकी वजह से मिट्टी की उर्वरता भी नष्ट हो गयी और इसने कई फ़सलों को पैदा करने की मिट्टी की क्षमता को भी बर्बाद कर दिया। कई किसानों ने यह सपना देखा था कि हरित क्रांति से उन्हें अधिक लाभ होगा। लेकिन हरित क्रांति ने कृषि के संकट को हल करने की बजाय पंजाब में कृषि और किसानों को बरबाद और नष्ट कर दिया।
केंद्र सरकार ने तीन किसान-विरोधी क़ानून लाने की कोशिश की थी, जिनके द्वारा कृषि पर हिन्दोस्तानी और विदेशी कॉरपोरेट घरानों की पकड़ को और मजबूत किया जा सके। हमने एक साल से भी अधिक समय तक कड़ा संघर्ष किया और पूरे पंजाब और अन्य राज्यों में किसानों को संगठित किया। हम अपने संघर्ष की बदौलत सरकार को क़ानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर करने में सफल भी रहे। लेकिन सरकार ने दिल्ली की सीमाओं पर हमारे आंदोलन को वापस लेने की शर्त के रूप में जो आश्वासन दिए थे, उनमें से हमारी किसी भी मांग को सरकार ने अभी तक लागू नहीं किया है। ऐसे हालातों में हमें फिर से आंदोलन करना होगा। संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए हमें संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) को मजबूत करना होगा।
उन्होंने बताया कि किसानों के लिए कर्ज़ राहत, उनकी एक प्रमुख मांग है। कृषि के लिए राज्य को एक समग्र योजना बनाने की आवश्यकता है कि – किस जगह पर कितना और क्या उगाया जाना है, राज्य की ख़रीद एजेंसियां किस क़ीमत पर उपज को खरीदेंगी, भंडारण तथा परिवहन और सार्वजनिक वितरण व्यवस्था कैसी होगी, आदि। केवल एम.एस.पी. की बात करना ही काफी नहीं है, क्योंकि इस समय एम.एस.पी. सिर्फ गेहूं और धान के लिए ही दी जा रही है, सरकार द्वारा अन्य सभी कृषि उत्पादों को भी लाभकारी क़ीमतों पर खरीदने की आवश्यकता है। जब तक ऐसे क़दम नहीं उठाए जाते, कृषि के संकट का समाधान नहीं हो सकता। बूटा सिंह बुर्ज गिल ने किसानों के साथ मज़दूर वर्ग की मजबूत एकता के लिए एक ज़ोरदार अपील की। यदि कृषि और उद्योग मिलकर पूरे समाज की भलाई के दृष्टिकोण से काम करें, तभी हम इस संकट के समाधान की आशा कर सकते हैं।
मीटिंग को संबोधित करते हुए श्री शैलेन्द्र दूबे ने उस लड़ाकू संघर्ष की ओर ध्यान आकर्षित किया, जो संघर्ष विद्युत संशोधन विधेयक 2022 को वर्तमान स्वरूप में संसद में पेश होने से रोकने के लिए पूरे देश में बिजली इंजीनियरों और कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है। विधेयक का उद्देश्य है राज्य के डिस्कॉम के वितरण नेटवर्क का इस्तेमाल करके निजी कंपनियों को बिजली वितरण पर कब्ज़ा करने के लिए सक्षम बनाना। इजारेदार पूंजीपति चाहते हैं कि इस विधेयक को तुरंत पारित किया जाए, ताकि पूरे देश में बिजली वितरण पर उनके कब्जे़ को सुनिश्चित किया जा सके और ताकि वे इससे भारी मुनाफ़ा बना सकें।
उन्होंने बताया कि किसानों के लिए इस बिजली संशोधन विधेयक के विनाशकारी परिणाम होंगे। क्योंकि सिंचाई के लिये अपने पंप सेट और अन्य कृषि मशीनरी के संचालन के लिए बिजली का खर्च नहीं उठा सकेंगे, उन्हें अत्याधिक क़र्ज़, दिवालियेपन और बर्बादी की ओर धकेल दिया जाएगा। किसानों के संघर्ष को सांझा करते हुए, उन्होंने कृषि की लागत वस्तुओं पर अधिक से अधिक राज्य सब्सिडी की मांग की। उन्होंने बिजली संशोधन विधेयक को किसान-विरोधी, समाज-विरोधी घोषित करते हुए, विधेयक को वापस लेने की मांग के साथ एकजुट होकर, संगठित संघर्ष करने का आह्वान किया। उन्होंने घोषणा की कि पूरे देश के बिजली कर्मचारी अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए, 23 नवंबर को नई दिल्ली में एक विशाल विरोध प्रदर्शन में एक साथ आएंगे।
प्रोफेसर बी. सेठ ने कृषि के संकट को समझाने और उसके समाधान का प्रस्ताव पेश करने के लिए पावर-प्वाइंट प्रस्तुति पेश की। उन्होंने कहा कि इस संकट के दो पहलू हैं। अधिकांश किसान सम्मानजनक जीवन यापन के लिए कृषि उत्पादों से पर्याप्त आमदनी अर्जित करने में सक्षम नहीं हैं। साथ ही शहरों में मज़दूरों का एक बहुत बड़ा तबका, पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक भोजन को जुटा पाने में असमर्थ है। एक किसान परिवार की औसत आय 5,000 रुपये प्रति माह से कम है। उन्होंने बताया कि इन हालतों के कुछ प्रमुख कारण हैं – बीज, उर्वरक, डीजल, बिजली, आदि जैसे कृषि के लिये आवश्यक लागत वस्तुओं की क़ीमतें बहुत ज्यादा हैं, किसानों द्वारा उपजाये गये कृषि उत्पादों के लिए ख़रीद मूल्य बहुत ही कम है, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा की कमी और अधिकांश किसानों पर क़र्ज़ का बढ़ता बोझ है। उन्होंने बहुप्रचारित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी.एम.एफ.बी.वाई.) का पर्दाफ़ाश करते हुये बताया कि इसका उद्देेश्य है किसानों को राहत पहुंचाने के बहाने निजी बीमा कंपनियों को भारी मुनाफ़ा कमाने में सक्षम बनाना।
प्रोफेसर बी. सेठ ने पूरी कृषि प्रक्रिया पर हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीवादी घरानों के बढ़ते प्रभुत्व पर भी प्रकाश डाला। पूंजीवादी घरानों का यह प्रभुत्व एक तरफ किसानों को तबाह कर रहा है और दूसरी तरफ शहरों में मज़दूरों के बीच बढ़ती भुखमरी से उनकी ज़िंदगियों को बर्बाद कर रहा है।
श्री संजय पांधी ने एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया कि सरकारी नीतियां बहुसंख्य लोगों के हित में काम नहीं करती हैं, चाहे वे शहरों में हों या गांवों में। इन नीतियों का उद्देश्य, किसानों और मज़दूरों, दोनों को लूटकर अपनी तिजोरियों को भरने में बड़े कॉरपोरेट घरानों को सक्षम बनाना है। उन्होंने सुझाव दिया कि कैसे औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े मज़दूर और विशेषज्ञ, किसान यूनियनों को पेशेवर सहायता प्रदान कर सकते हैं। भारतीय रेल में इंजन चालकों की यूनियन के एक कार्यकर्ता के रूप में, जो रेलवे के निजीकरण के सरकार के प्रयासों का जुझारू विरोध कर रहे हैं, उन्होंने मज़दूरों और किसानों के एकजुट संघर्ष का आह्वान किया।
मुख्य वक्ताओं के विचार प्रस्तुत हो जाने के बाद, चर्चा में दस से अधिक सहभागियों ने अपनी बातें रखीं।
तमिलनाडु से वर्कर्स यूनिटी मूवमेंट के प्रतिनिधि ने, संसद में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की पकड़ से मुक्त होने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जो हमें विभाजित करने और झूठे वादे करके हमें बेवकूफ़ बनाने के इरादे से काम करती हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी पार्टियां इजारेदार पूंजीवादी घरानों के मुनाफ़ों को अधिकतम करने के लिए लगातार काम करती आयी हैं। उन्होंने एक ऐसे समाज के निर्माण के अपने एजेंडे के इर्द-गिर्द मज़दूरों और किसानों की एकता बनाने का आह्वान किया। जिसमें कॉरपोरेट घरानों का मुनाफ़ा नहीं, बल्कि पूरे समाज का कल्याण सर्वोपरि होगा।
राजस्थान में किसान मज़दूर व्यापारी संघर्ष समिति से जुड़े हनुमान प्रसाद शर्मा ने कृषि के संकट पर विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि मज़दूरों और किसानों के लिए एकमात्र समाधान अपने एक ही दुश्मन, इजारेदार कॉरपोरेट घरानों के ख़िलाफ़ एकजुट होना है, जिन घरानों के खुदगर्ज हितों की रक्षा हिन्दोस्तानी राज्य करता है। मज़दूरों और किसानों को राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेकर एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो सभी को सुख और सुरक्षा की गारंटी दे सके।
ग़दर इंटरनेशनल, ग्रेट-ब्रिटेन के सलविंदर ढिल्लों ने बताया कि ब्रिटेन में मज़दूरों और हिन्दोस्तान में किसानों और मज़दूरों का संघर्ष, सबसे बड़े इजारेदार पूंजीवादी घरानों की पूंजीवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ संघर्ष है। उन्होंने आह्वान किया कि इस संकट से निकलने का एकमात्र रास्ता, मज़दूरों और किसानों के हाथों में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के संघर्ष तेज़ करना।
कामगार एकता कमेटी के एस. दास ने मज़दूरों और किसानों का एक शक्तिशाली और एकजुट आंदोलन खड़ा करने की अपील की। उन्होंने कहा कि मज़दूरों और किसानों को राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेना होगा। कृषि के संकट और समाज की सभी उत्पादक शक्तियों की तबाही सहित, हिन्दोस्तानी समाज के गहरे संकट को हल करने का यही एकमात्र तरीक़ा है।
अखिल भारतीय किसान मज़दूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष धर्मपाल सिंह ने कहा कि कृषि क्षेत्र पूरे समाज के हित में काम करे, इसको सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीक़ा, है मज़दूरों और किसानों के राज को स्थापित करने के लिए काम करना।
अन्य सहभागियों ने कृषि के सभी पहलुओं पर इजारेदारी का नियंत्रण, डेयरी किसानों की समस्याओं, बढ़ते क़र्ज़ और किसान आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं, छोटी भूमि के मालिकों की दरिद्रता और बढ़ती भूमिहीनता के बारे में अपने विचार रखे। दिल्ली के एक औद्योगिक क्षेत्र के नौजवान कार्यकर्ता ने शहरों में दिहाड़ी मज़दूरों के बीच आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या पर हाल ही में जारी एक रिपोर्ट का हवाला दिया। मज़दूर और किसान दोनों आजीविका की भयानक असुरक्षा का सामना कर रहे हैं और इसके लिए केवल पूंजीवादी व्यवस्था ही ज़िम्मेदार है। उन्होंने कहा कि हम मज़दूर और किसान, जो समाज की संपत्ति पैदा करते हैं, उन्हें समाज का मालिक बनना होगा।
मीटिंग में हुई चर्चा का सारांश पेश करते हुए, संतोष कुमार ने वक्ताओं और सभी सहभागियों को उनकी बहुमूल्य प्रस्तुतियों और सुझावों के लिए धन्यवाद दिया। इस असूल को क़ायम रखते हुए कि “एक पर हमला सब पर हमला” है। उन्होंने घोषणा की कि मज़दूर एकता कमेटी ऐसी और भी कई मीटिंगें आयोजित करती रहेगी। निष्कर्ष में उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि हमारा उद्देश्य, मज़दूरों और किसानों को एक सांझे मंच पर लाना है ताकि एक ऐसे समाज का निर्माण किया जाये, जो मज़दूरों, किसानों तथा सभी शोषित-उत्पीड़ित लोगों के हितों व उनकी सुख और सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा।