राडिया टेप्स और उनसे किस बात का पर्दाफाश हुआ

21 सितंबर, 2022 को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसे राडिया टेप में कुछ भी आपराधिक नहीं मिला है। इन टेपों में विभिन्न राज्य एजेंसियों द्वारा किए गए टेलीफोन की बातचीत का रिकॉर्ड है। जिसमें नीरा राडिया, जो कई प्रमुख इजारेदार घरानों का प्रतिनिधित्व करती है, की अपने मालिकों के साथ-साथ, विभिन्न दलों के मंत्रियों और राजनेताओं के साथ भी बातचीत करती सुनाई देती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में सी.बी.आई. को इन टेपों की जांच करने का निर्देश इस टिप्पणी के साथ दिया था, कि ”राडिया की बातचीत दिखाती है कि निजी उद्यम सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर अपने निजी हित पूरे कर रहे हैं।”
सी.बी.आई. का रुख़ बताता है कि इस पूरे मामले को अब चुपचाप दबाया जा सकता है। इस संदर्भ में, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट गदर पार्टी द्वारा 18 दिसंबर, 2010 को प्रकाशित लेख के कुछ अंशों को नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं। लेख का शीर्षक है – राडिया टेप्स से किस बात का पर्दाफाश हुआः पूंजीवादी इजारेदार घरानों की हुक्मशाही ही बहु-पार्टीवादी प्रतिनिधित्व वाले लोकतंत्र की हकीकत है।

कुछ अंश

राडिया टेप्स से स्पष्ट होने वाली एक अहम सच्चाई यह है कि इजारेदार पूंजीपति केन्द्र और राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टियों के गठबंधन को ही नहीं निर्धारित करते, बल्कि किसी खास क्षेत्र का मंत्री कौन बनेगा, वह फैसला भी इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा किया जाता है। टेपों से जाना जाता है कि टाटा समूह दूसरी संप्रग सरकार में कौन सा द्रमुक नेता टेलिकॉम मंत्री बनेगा, यह फैसला प्रभावित करने के लिये राडिया को पैसे दे रहा था।

हमारे देश में जो बहु-पार्टीवादी प्रतिनिधित्व वाला लोकतंत्र मौजूद है, उसके बारे में यह प्रचार किया जाता है कि यह जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन है। परन्तु राजनीतिक प्रक्रिया में अधिकतम लोगों की बहुत ही कम भूमिका होती है, और वह भी सिर्फ मतदान के दिन। मुट्ठीभर अतिमालदार और शक्तिशाली इजारेदार पूंजीपति यह निर्धारित करते हैं कि कौन सी पार्टी या गठबंधन सरकार बनायेगी। वे सीधे तौर पर यह चयन करते हैं कि खास मंत्रालयों के मंत्री कौन होंगे। पूंजीपति नेताओं को पैसे देते हैं और इसके बदले, नेता सत्ता में आकर पूंजीपतियों के हित में काम करते हैं। इस तरह वर्तमान राजकीय इजारेदार पूंजीवादी व्यवस्था में नियमित तौर पर मंत्री और अधिकारी खास कंपनियों को लाईसेंस और परमिट सौंपते हैं। इजारेदार पूंजीपति ”विपक्ष” की पार्टियों को भी पैसे देते हैं। इसके बदले में, विपक्ष के नेता भी पूंजीपतियों के हित में तरह-तरह के काम करते हैं। चुनाव इन मुट्ठीभर शोषकों की हुकूमत को सिर्फ वैधता देने के लिये करवाये जाते हैं।

राडिया टेप्स से हमें कुछ झलक मिलती है कि सरकार की नीति कैसे बनायी जाती है। जांच संस्थानों को टेपों पर रिकार्ड की गई चर्चाओं का संकलन करते हुये यह मानना पड़ा है कि विभिन्न सरकारी विभागों – टेलिकॉम, पेट्रोलियम और गैस, रक्षा, एयर लाइन इत्यादि – के काम-काज पर इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा, अपने दलालों के जरिये चर्चा होती है और तरह-तरह के दांवपेच किये जाते हैं ताकि एक पूंजीपति अपने प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़कर अपने हितों को बढ़ावा दे सके। कहा जाता है कि सरकारी नीतियां ”राष्ट्र हित” में बनायी जाती हैं, परन्तु हकीकत में यह नीतियां इजारेदार पूंजीपतियों के लालच पूरी करने के लिये बनायी जाती हैं।

पूंजीपति वर्ग के प्रचार के अनुसार, बीते दो दशकों के ”मुक्त बाजार” सुधारों के चलते, ”लाइसेंस-परमिट राज” के पुराने भ्रष्ट तौर-तरीके खत्म हो गये हैं। यह प्रचार किया जाता है कि 1991 में तत्कालीन वित्तामंत्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गई तथाकथित सुधार प्रक्रिया के जरिये व्यवस्था में सुशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही आ गई है। परन्तु राडिया टेप्स के खुलासों से पता चलता है कि शासकों के ये दावे कितने खोखले हैं।

पूंजीवाद के विकास के वर्तमान पड़ाव की विशेषता ऊपर से नीचे तक इजारेदारी, बड़े पूंजीपतियों का प्रभुत्व, परजीविता तथा भ्रष्टाचार है। इस व्यवस्था के चलते, ”मुक्त स्पर्धा” या बराबर के खिलाड़ी हो ही नहीं सकते। बाजार तथा राज्य के संस्थानों पर इजारेदार पूंजीपतियों का पूरा बोलबाला है। तथाकथित बाजार उन्मुख सुधारों के जरिये इजारेदार पूंजीपतियों के लिये नये-नये मौके पैदा हुये हैं, ताकि कुछ इजारेदार पूंजीपति दूसरों को पीछे धकेलकर खुद आगे बढ़ सकें, जिसके कारण पूंजी और सत्ता हमेशा ही ज्यादा से ज्यादा हद तक संकेन्द्रित होती जाती हैं।

नेहरूवीं ”समाजवादी नमूने के समाज” के दौरान और हाल की उदारीकरण और निजीकरण की अवधि, दोनों में ही हमारे देश में जो व्यवस्था विकसित हुई है, वह राजकीय इजारेदार पूंजीवाद ही थी तथा है। इस व्यवस्था में इजारेदार पूंजीपति केन्द्रीय राज्य पर नियंत्रण करते हैं और केन्द्रीय राज्य इजारेदार कंपनियों के हित में हस्तक्षेप करता है। समय के साथ-साथ, इजारेदारी बहुत ज्यादा बढ़ गयी है, जिसके कारण हरेक सौदे में बहुत बड़ी बाजियां लगाई जाती हैं। कुछ नये पूंजीवादी समूह आगे आये हैं और विकसित हुये हैं जबकि कुछ पुराने पूंजीवादी समूह पीछे हटने को मजबूर हुये हैं। नेताओं और बड़े पूंजीपतियों के बीच संबंध दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है।

पूंजीपति वर्ग यह प्रचार करता है कि कुछ सुधारों या छोटे-मोटे कदमों से वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को साफ और भ्रष्टाचार रहित बनाया जा सकता है। परन्तु सच्चाई तो यह है कि सिर्फ मजदूर वर्ग की अगुवाई में क्रान्ति ही मुट्ठीभर शोषकों के भ्रष्ट और परजीवी शासन को खत्म कर सकती है, पूंजीवादी लोकतंत्र की जगह पर आधुनिक मजदूर वर्ग की अगुवाई में मेहनतकश जनसमुदाय का शासन, यानि श्रमजीवी लोकतंत्र स्थापित कर सकती है।

समय के साथ-साथ, पूंजीवादी लोकतंत्र ज्यादा से ज्यादा भ्रष्ट और दमनकारी होता जायेगा। इसका अन्त तभी होगा जब मजदूर वर्ग किसानों के साथ गठबंधन बनाकर, अपने अतीत से नाता तोडे़गा और आधुनिक लोकतंत्र की अगवानी करेगा। वह आधुनिक लोकतंत्र मजदूर वर्ग की अगुवाई में मेहनतकश जनसमुदाय का शासन होगा, जिसमें कोई भी सरकारी सेवक अपने पद का फायदा उठाकर निजी हितों की सेवा करने की हिम्मत नहीं करेगा।

राडिया टेप्स से स्पष्ट होने वाली सबसे अहम बात यह है कि पूंजीवादी लोकतंत्र और उसके बारे में सारे भ्रमों से नाता तोड़ना आवष्यक है।

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