ऐसे समय पर, जब अमरीकी नेता ‘‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’’ को बनाए रखने का दिखावा कर रहे हैं, यह बहुत ज़रूरी है कि सर्व सम्मति से स्थापित किये गए नियमों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मानदंडों का उल्लंघन करने के अमरीका के कारनामों के इतिहास को फिर से देखा जाए। यह भी जानना ज़रूरी है कि अमरीका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन अत्यधिक आक्रामक और सुनियोजित तरीके से, विशेष रूप से 2001 के बाद से, लगातार जारी है।
11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क में, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन-टावरों पर दो हवाई जहाजों के टकराने के बाद लगभग 3,000 लोग मारे गए थे और तीसरा विमान वाशिंगटन में पेंटागन से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। उस आतंकवादी हमले का इस्तेमाल, अमरीका द्वारा एक के बाद दूसरे स्वतंत्र राज्य के खि़लाफ़ सशस्त्र आक्रमण शुरू करने को सही ठहराने के लिए किया गया था। वे सभी आक्रमण एक वैश्विक ‘‘आतंकवाद के खि़लाफ़ युद्ध’’ के साइनबोर्ड के तहत किये जाते रहे हैं।
अफ़ग़ानिस्तान
9/11 के हमले के तुरंत बाद, अमरीकी राष्ट्रपति ने घोषणा की थी कि वह अफ़ग़ान-सरकार के समर्थन से, अल-कायदा नामक एक इस्लामी आतंकवादी-गुट द्वारा रची गई साज़िश थी। वह साज़िश की कहानी अमरीकी प्रचार मशीन द्वारा, बिना किसी सबूत के फैलायी गयी थी। उसी प्रचार का इस्तेमाल करके, 7 अक्टूबर को अमरीकी और ब्रिटिश सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान पर सशस्त्र आक्रमण शुरू किया और उसके बाद विदेशी सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया।
अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण, 9/11 आतंकवादी हमले के ठीक 26 दिन बाद शुरू हुआ था। कई अमरीकी पूर्व सेनानियों ने बताया है कि इस तरह के बड़े पैमाने पर युद्ध-प्रयास को इतने कम समय में तैयार नहीं किया जा सकता था और उसे अंजाम नहीं दिया जा सकता था। उसकी तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो गयी होगी। 9/11 की घटनाओं ने पहले से ही बनायी गयी योजना को लागू करने का बहाना प्रदान किया। अफ़ग़ानिस्तान पर सशस्त्र कब्ज़ा अगले 20 वर्षों तक जारी रहा। अनुमान है कि इस अवधि में, 2001-2021 के दौरान 2,43,000 लोगों की मौत हुई।
इराक
अमरीका ने दावा किया था कि उसके खुफिया सूत्रों के अनुसार, सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाली इराक सरकार के पास ‘‘जन सामूहिक विनाश के हथियार’’ हैं। अब बहुत ही स्पष्ट तरीके से सामने आ चुका है कि वह एक जानबूझकर फैलाया गया सफेद झूठ था। उसका इस्तेमाल, 20 मार्च, 2003 से शुरू किये गए, इराक पर एक सशस्त्र आक्रमण को सही ठहराने के लिए किया गया था। उस हमले को अमरीका के नेतृत्व वाले आक्रमणकारियों के एक गुट द्वारा किया गया था, जिन्होंने खुद को ‘रज़ामंद देशों का गठबंधन’ का नाम दिया था। इराक पर अमरीका के नेतृत्व वाले युद्ध और इराक पर कब्ज़े के कारण, 2003-2011 के दौरान 4,00,000 से अधिक लोगों की मौत होने का अनुमान है।
न तो अफ़ग़ानिस्तान पर सशस्त्र आक्रमण और न ही इराक पर सशस्त्र आक्रमण को, संयुक्त राष्ट्र संघ की सहमति प्राप्त थी। दुनिया के कई देशों और लोगों ने उसका विरोध किया था। परन्तु, दोनों ही मामलों में, अमरीका ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सभी मान्य नियमों का उल्लंघन किया और राष्ट्रों के आत्मनिर्धारण के अधिकार को कुचल कर विश्व स्तर पर, बड़े पैमाने पर, लोगों की मृत्यु और विनाश को अंजाम दिया।
लीबिया
मार्च 2011 में, अमरीका और उसके सभी नाटो सहयोगियों ने लीबिया पर बम बरसाने के लिए अपने लड़ाकू विमानों को भेजा था। ऐसा प्रचार किया गया था कि लीबिया के अन्दर गद्दाफी के तथाकथित दुष्ट शासन को उखाड़ फेंकने के लिए लड़ रही विद्रोही ताक़तों के समर्थन में ऐसा किया गया था। लीबिया की सरकार को मानव अधिकारों का हनन करने वाले के रूप में पेश करने के लिए एक विशाल विश्वव्यापी अभियान शुरू किया गया था। उसमें लीबिया के सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं के साथ बलात्कार और अपने ही नागरिक समूहों पर गोली चलाने की फर्जी वीडियो क्लिपें शामिल थीं।
विद्रोही बलों का सैन्य कमांडर एक ऐसा व्यक्ति था, जिसने सी.आई.ए. के सहयोग से, गद्दाफी को गिराने के लिए, सशस्त्र दलों को प्रशिक्षित करने के लिए, अमरीका के वर्जीनिया राज्य में एक तथाकथित लिबियन नैशनल आर्मी की स्थापना की थी।
नाटो के सुरक्षा बलों ने लीबिया और उसकी जनता पर सात महीने से अधिक समय तक बमबारी करके, मौत और तबाही फैलाई थी। उन्होंने स्कूलों, अस्पतालों, राजमार्गों, दूरसंचार नेटवर्क, साथ ही सिंचाई और पेयजल नेटवर्क को बेरहमी से नष्ट कर दिया। अक्टूबर 2011 में, उन्होंने कर्नल गद्दाफी को पकड़ लिया और बिना किसी मुकदमे के, उन्हें बेरहमी से मार डाला।
गद्दाफी की सरकार का उस तरह से उखाड़ फेंका जाना लीबिया के लोगों के अपने भविष्य का निर्धारण करने के अधिकार का घोर उल्लंघन था। साम्राज्यवादी ताक़तों द्वारा समर्थित हथियारबंद गिरोहों ने लीबिया के संसाधनों को लूट कर आपस में बांटने की कशिश करते हुए, लीबिया में अराजकता फैला दी। अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य साम्राज्यवादी देशों की इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों ने, लीबिया के तेल-संसाधनों – जो दुनिया में सबसे समृद्ध माने जाते थे – पर और उस देश के तेल उद्योग के सभी प्रतिष्ठानों पर कब्ज़ा कर लिया।
सीरिया
लीबिया पर बेरहम हमला, कब्ज़ा और लूट करने के साथ-साथ, अमरीका के नेतृत्व वाले साम्राज्यवादी गठबंधन ने, सीरिया के भीतर एक गुप्त अभियान शुरू कर दिया। उन्होंने बशर अल-असद की सरकार को गिराने और वहां पर अमरीका के नियंत्रण में काम करने वाली सरकार को बिठाने के उद्देश्य से, विपक्षी ताक़तों को धन और हथियार दिए। अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके सहयोगियों ने बड़े पैमाने पर झूठा प्रचार किया कि सीरिया की सरकार अपने ही लोगों के खि़लाफ़ रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रही है।
सितंबर 2014 में, अमरीकी और ब्रिटिश लड़ाकू जेट विमानों ने, सीरिया पर बम बरसाए। वह एक ऐसी कार्रवाई थी जो सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन था। उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों में से एक यह है कि जब सुरक्षा परिषद किसी भी मामले पर विचार कर रही है, तो संयुक्त राष्ट्र संघ के किसी सदस्य देश को, युद्ध शुरू करने की अनुमति नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने, सीरिया पर हमला करने की अमरीका की मांग पर रोक लगा दी थी। परन्तु अमरीका ने आतंकवाद के खि़लाफ़ युद्ध छेड़ने के बहाने, सीरिया पर आक्रमण किया था।
अप्रैल 2018 में, अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस ने सीरिया पर मिसाइल हमले किए। लगभग पूरे एक दशक तक, इन साम्राज्यवादी ताक़तों के अवैध हस्तक्षेप की वजह से सीरिया में लम्बे समय तक गृह युद्ध चलता रहा है, जिसमें लाखों बेकसूर लोगों की जान गई है। पूरे-पूरे शहरों और ग्रामीण इलाकों को तबाह कर दिया गया है। इसके कारण सीरिया से लाखों-लाखों लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़ा है।
अमरीकी साम्राज्यवाद की रणनीति और हथकंडे
अमरीकी साम्राज्यवाद की रणनीति का उद्देश्य एक ओर तो सच्ची जन-क्रान्ति को रोकना है, और दूसरी ओर अपने आधिपत्य के रास्ते में आड़े आने वाले किसी भी राज्य को कमजोर और बर्बाद करना है। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने दो प्रमुख हथकंडे विकसित किए हैं और उनका विश्व स्तर पर इस्तेमाल किया है। एक है गुप्त रूप से आतंकवाद को प्रश्रय देना और खुले तौर पर आतंकवाद के खि़लाफ़ तथाकथित युद्ध को छेड़ना। दूसरा, तथाकथित लोकतंत्र-समर्थक और भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलनों का आयोजन करना है।
अमरीका और उसकी खुफिया एजेंसियां उन विभिन्न आतंकवादी गिरोहों के मूल निर्माता थे, जिन्हें उन्होंने 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत कब्ज़ाकारी सैनिकों से लड़ने के लिए धन और हथियार दिए थे। 1989 में, सोवियत सेना के उस देश से हटने के बाद, विभिन्न देशों में अमरीकी साम्राज्यवाद के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उन आतंकवादी गिरोहों का इस्तेमाल किया गया था।
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया के नाम से जाना जाने वाला, आतंकवादी गिरोह तब मशहूर हो गया, जब यू ट्यूब पर एक वीडियो क्लिप को व्यापक रूप से प्रसारित किया गया, जिसमें दिखाया गया कि एक अमरीकी पत्रकार का सर काटा जा रहा है। बाद में फॉरेंसिक रूप से साबित हुआ कि वह वीडियो क्लिप फ़र्ज़ी था और किराए के अभिनेताओं का इस्तेमाल करके बनाया गया था।
गुप्त रूप से आतंकवादी हरकतों का आयोजन करने और उन्हें स्वतंत्र देशों पर कब्ज़ा करने के जंग को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करने के साथ-साथ, विभिन्न तथाकथित रंगीन-क्रांतियों में युवाओं को सड़कों पर लाने के लिए, सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। इनमें यूक्रेन में नारंगी-क्रांति, ट्यूनीशिया में जैस्मीन-क्रांति, मिस्र में कमल-क्रांति, जॉर्जिया में गुलाब-क्रांति और किर्गिस्तान में ट्यूलिप-क्रांति शामिल हैं। गौर करने की ज़रूरत है कि हर ऐसी तथाकथित क्रांति के परिणामस्वरूप, उस देश में एक अमरीका-परस्त शासन की स्थापना हुई है।
निष्कर्ष
11 सितम्बर, 2001 के आतंकवादी हमले के बाद से, पिछले 21 वर्षों की हक़ीक़त ने स्पष्ट रूप से दिखाया है कि आतंकवाद और तथाकथित आतंकवाद पर जंग, दोनों ही, अमरीकी साम्राज्यवाद के हथकंडे हैं – उसकी प्रधानता को बरकरार रखने और उसके हुक्म तले एक ध्रुवीय दुनिया स्थापित करने के उसके लक्ष्य को हासिल करने के लिए ।
अफ़ग़ानिस्तान और इराक के सशस्त्र कब्ज़े की वजह से, एशिया के तेल-समृद्ध क्षेत्रों में, अमरीकी प्रभाव-क्षेत्र का विस्तार हुआ है। ईरान को पूर्व और पश्चिम से घेरा गया है।
इराक और लीबिया के विनाश ने, अमरीकी डॉलर की बजाय यूरो में तेल व्यापार करने के सद्दाम हुसैन और गद्दाफी की सरकारों के प्रयासों को विफल कर दिया। सीरिया और यूक्रेन में लंबे समय तक युद्ध की वजह से, अमरीकी सैन्य-औद्योगिक क्षेत्र और उसके हथियारों का निर्यात बनाये रखा जाता है। इन क़दमों से रूस को कमजोर भी किया जाता है ।
पिछले 21 वर्षों के दौरान, दुनिया के विभिन्न देशों में विनाशकारी युद्धों के लिए, अमरीकी साम्राज्यवाद ज़िम्मेदार है। यह वही राज्य है जिसने दूसरे विश्व युद्ध के बाद से, सर्व-सम्मति से स्थापित किये गए, राज्यों के आपसी संबंधों के हर नियम और मानदंड का बार-बार उल्लंघन किया है। जब राष्ट्रपति बाइडन एक ‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’ के बारे में बोलते हैं, तो इसका मतलब है कि अमरीकी साम्राज्यवाद यह मांग कर रहा है कि दुनिया के अन्य सभी राज्यों को अमरीका द्वारा दुनिया पर अपने आधिपत्य को स्थापित करने और क़ायम रखने के लिए निर्धारित नियमों का पालन करना होगा।
असली मास्टरमाइंड? कई पेशेवर इंजीनियरों ने बताया है कि न्यूयॉर्क में ट्विन-टावर विमानों के ऊपरी मंजिलों से टकराने से नहीं ढह सकते थे। जिस तरह से वे इमारतें ढह गईं थीं, उससे ऐसा लगता है कि इमारतों के स्टील के स्तंभों के नीचे बम विस्फोट किए गए होंगे। इतने बड़े कांड का अब तक भी कोई आधिकारिक जांच न होना इस संभावना की ओर इशारा करता है कि 11 सितम्बर के हमलों के पीछे असली मास्टरमाइंड अमरीकी राज्य के भीतर ही स्थित था। |