बंगाल के खेत मज़दूरों का संघर्ष

जनवरी के अंतिम और फरवरी के पहले सप्ताह में बंगाल के खेत मज़दूरों ने विरोध का एक नया तरीका अपनाया है। पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति (पी.बी.के.एम.एस.) के बैनर तले संगठित मज़दूरों ने 2 फरवरी, 2011 को ”शर्मनाक दिन” के रूप में मनाकर अपना विरोध का कार्यक्रम समाप्त किया। नरेगा की पांचवी सालगिरह के उपलक्ष्य में, नरेगा शर्मनाक दिवस कहलाने वाले इस विरोध में, पश्चिम बंगाल के

जनवरी के अंतिम और फरवरी के पहले सप्ताह में बंगाल के खेत मज़दूरों ने विरोध का एक नया तरीका अपनाया है। पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति (पी.बी.के.एम.एस.) के बैनर तले संगठित मज़दूरों ने 2 फरवरी, 2011 को ”शर्मनाक दिन” के रूप में मनाकर अपना विरोध का कार्यक्रम समाप्त किया। नरेगा की पांचवी सालगिरह के उपलक्ष्य में, नरेगा शर्मनाक दिवस कहलाने वाले इस विरोध में, पश्चिम बंगाल के 7 जिलों के 37 ब्लॉकों के 5000 से भी ज्यादा खेत मज़दूरों ने हिस्सा लिया। इसका मकसद पश्चिम बंगाल में इस योजना की पूरी तरह असफलता पर लोगों का ध्यान दिलाना था।
अधिकतर ब्लॉकों में वहां के चुने हुये प्रतिनिधि और सरकारी अफसरों को समिति के दावे, कि पश्चिम बंगाल में नरेगा महाअसफल रहा है, को मानना पड़ा है। बहुत से ब्लॉक विकास अफसरों (बी.डी.ओ.) ने पी.बी.के.एम.एस. द्वारा दिये गये काले बिल्ले स्वीकार किये।
उनकी मांगें निम्नलिखित हैं :
  • घरेलू पात्रता की जगह व्यक्तिगत पात्रता लानी चाहिये;
  • नरेगा के प्रतिवर्ष 100 दिन की जगह 270 दिन की गारंटी होना चाहिये;
  • भुगतान में देरी और काम देने में देरी के मुद्दों पर तुरंत ध्यान देना चाहिये;
  • कानून के प्रावधानों के अनुसार, गुनहगार अफसरों पर कार्यवाई की जानी चाहिये;
  • नरेगा में न्यूनतम वेतन 2010 की कीमतों पर आई.एल.सी के मानकों के मुताबिक 259.50 रु. प्रतिदिन होना चाहिये;
  • बेरोजगारी और देर में दिये वेतन के मुआवजे के लिये कार्यप्रणाली तथा बजट संबंधी आवंटन तुरंत किया जाना चाहिये।

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