हमारे पाठकों से
1857 के ग़दर की 165वीं सालगिरह

संपादक महोदय,

1857 के ग़दर की 165वीं सालगिरह के अवसर पर जो लेख मई के अंक में प्रकाशित किया गया है, मैं उसके बारे में लिख रहा हूं। आज के वर्तमान दौर की हालतों को देखते हुए यह पूरी तरह से सच है कि अब भी वही अंग्रजों द्वारा बनाई गई नीतियों के तहत लोगों में जाति और धर्म के नाम पर फूट डालो, बांटो और राज करो के हथकंडों को ही अपनाया जा रहा है। इनके खि़लाफ़ आज भी संघर्ष चल रहा है।

अंग्रजों द्वारा बनाई गई ईस्ट इंडिया कंपनी के सरमायदारों ने देश की पूरी व्यवस्था को चलाने के लिए जो तंत्र बनाया उसे आज सरमायदारी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा चलाया जा रहा है।

बिल्कुल सच है कि ग़दर ने अलग-अलग धर्मों के लोगों को आपस में लड़ाने के अंग्रेज हुक्मरानों के प्रयासों को नाक़ामयाब कर दिया था।

1857 से जिस ग़दर आंदोलन की शुरुआत हुई उसकी बदौलत ही अंग्रेजो का राज ख़त्म हुआ क्योंकि उस वक्त की उपनिवेशवादी ताक़तें यह समझ चुकी थीं कि अगर हमें हिन्दोस्तान में अपना शासन क़ायम रखना है तो हमें हिन्दोस्तानी सरमायदारों के हाथ में सत्ता सौंप कर चले जाना चाहिए। और यही हुआ देश के बड़े पूंजीपतियों ने बड़े जमींदारों, शाही परिवारों के साथ समझौता करके, अंग्रेज सरमायदारों की जगह ले ली। पूरी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था, प्रशासन की रूपरेखा, सारे तंत्र को हिन्दोस्तानी सरमायदारों के हितों की सेवा के लिए वैसे का वैसा ही रखा गया। अगर हम आज के समय में देखें तो पूरा साफ़ दिखता है कि पहले उपनिवेशवादी ताक़तों के समूह का राज था और आज सिर्फ 150 इजारेदार पूंजीवादी घराने पूरे हिन्दोस्तानी लोगों पर अपनी मनमर्ज़ी को थोपते जा रहे हैं और कुछ घरानों का संबंध अप्रत्यक्ष रूप से उपनिवेशवादी ताक़तों के साथ ही रहा है।

आज भी देश के अंदर हिन्दुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाने का वही पुराना हथियार अपनाया जा रहा है, जिसकी चेतावनी उस वक़्त मुगल साम्राज्य के आखि़री शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने भी समाज के लोगों को दी थी।

हिन्दोस्तान के बंटवारे के लिए अंग्रेज साम्राज्यवादियों ने बहुत सुनियोजित और सोचे-समझे तरीके से यह झूठा प्रचार फैलाया कि ‘एक धर्म के लोग ही हिन्दोस्तान के बंटवारे के लिए ज़िम्मेदार हैं‘, पर लेख में स्पष्ट रूप से समझाया गया है कि अंग्रेज साम्राज्यवादी ताक़तें ही इसके लिये ज़िम्मेदार थीं।

लेख हमें समझाने की कोशिश करता है कि हमें सामूहिक रूप में आकर हिन्दोस्तान के लोगों को देश का मालिक बनना होगा, यही बात 1857 के ग़दर की महत्वपूर्ण सीख है।

आपका पाठक

पंडित, दिल्ली

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *