भीषण अग्निकांड में मज़दूरों की मौत :
आदमखोर पूंजीवादी व्यवस्था इसके लिये ज़िम्मेदार

पश्चिमी दि‍ल्‍ली के मुंडका मेट्रो स्टेशन के निकट स्थित एक फैक्ट्री में 13 मई, 2022 के दोपहर को एक भयानाक अग्निकांड में बड़ी संख्या में मजदूरों की मौत हो गयी तथा सैकड़ों मज़दूर घायल हुए।

कंपनी में सी.सी.टी.वी. कैमरा और राउटर बनाने का काम होता था। इन उपकरणों के बनाने में काफी ज्वलनशाील वस्तुओं का इस्तेमाल होता है।

सभी प्राप्त सूचनाओं से यह स्पष्ट है कि यह कंपनी सरकार द्वारा स्थापित फैक्ट्री कानूनों का खुलेआम उल्लंघन करते हुए, चलाई जा रही थी।

यह कंपनी लाल डोरा ज़मीन पर बनाई गयी इमारत के अन्दर चलायी जा रही थी। जो सरकारी नियमों के अनुसार गैरकानूनी है। कंपनी बिना किसी एन..सी. के चलाई जा रही थी। कम्पनी मालिक द्वारा खुद ही दिए गए सर्टिफिकेट, कि सभी आवश्यक सुरक्षा व्यवस्था मौजूद है, के आधार पर सरकार ने उसे चलाने की इजाज़त दे दी थी। कंपनी से बाहर निकलने के लिए एक ही पतला रास्ता था, जिस पर जनरेटर भी लगा हुआ था। इसके अलावा बाहर निकलने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं था। इसमें अग्नि सुरक्षा के मापदंडों का सरासर उल्लंघन हो रहा था। मजदूरों की सुरक्षा की धज्जियाँ उड़ाई जा रही थीं।

मृतकों और घायलों की असली संख्या का अनुमान अभी तक नहीं लगाया जा पा रहा है क्योंकि बहुत सारे लोग लापता हैं, उनकी लाशें जल कर राख हो गयी हैं। समाचार सूत्रों के अनुसार, अधिकतर लाशें इतनी बुरी तरह जली हुयी हैं कि मृतकों की पहचान करना असंभव हो गया है।

चश्मदीद गवाहों के अनुसार, बहुत सी महिलाएं अपनी जान बचाने के लिए दूसरी और तीसरी मंजिलों से नीचे कूद रही थीं। घायलों की संख्या भी सैकड़ों में अनुमान लगाया जा रहा है।

खबरों के अनुसारए उस फैक्ट्री में लगभग 300 महिलाएं, ज्यादातार नौजवान महिलाएं, 12-12 घंटों की पाली में, ठेके पर काम कर रही थीं। उन्हें 6000-6500 रुपये प्रति माह के वेतन (जो कि सरकारी न्यूनतम वेतन, लगभग 16,000 रूपए, से बहुत कम है) पर काम करने को मजबूर किया जाता था। मजदूरों के वहां काम पर लगाये जाने के किसी भी प्रकार के रिकॉर्ड या मस्टर रोल नहीं थे। उन्हें ई.एस.आई. प्रोविडेंट फण्ड आदि जैसी कोई सुविधाएं नहीं दी जा रही थीं। ज्यादातर मज़दूर उत्तर प्रदेश, बिहार और दूसरे इलाकों के गाँवों से दिल्ली शहर में आकर, अपने और अपने परिवार के गुज़ारे के लिए, ऐसी अमानवीय हालत में काम करने को मजबूर हैं।

मुंडका की फैक्ट्री में यह अग्निकांड कोई आकस्मिक घटना नहीं है। दिल्ली और देश के अनेक शहरों में प्रशासन और पूंजीपतियों की मिलीभगत के साथ, लाखोंलाखों ऐसी फैक्ट्रियां चलायी जाती हैं, जिनमें करोड़ोंकरोड़ों महिला और पुरुष किसी भी प्रकार की सुरक्षा के बिना, दो वक्त की रोटी के लिए अपनी जानों को जोखिम में डालकर काम करने को मजबूर हैं। इस प्रकार के अग्निकांड और फैक्ट्री दुर्घटनाएं बारबार होती रहती हैं, परन्तु सरकार और प्रशासन के अधिकारी, जिनकी मिलीभगत के बिना ऐसी फैक्ट्रियां नहीं चल सकतीं, वे हर बार बच जाते है। उनकी न तो कभी कोई जवाबदेही होती और न ही उन्हें कभी सज़ा दी जाती।

इस प्रकार के कांड वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था के वहशी, अमानवीय चहरे को बारबार सामने लाती हैं। ये कांड राज्य और प्रशासन की गुनाहगार गैरज़िम्मेदारी के परिणाम हैं। हमारे देश में और सारी दुनिया में मज़दूर सुरक्षित और स्वस्थ काम की हालतों के लिए संघर्ष करते आये हैं। परन्तु पूंजीवादी व्यवस्था के चलते, ज्यादा से ज्यादा मुनाफों के लिए पूंजीपति शोषकों की लालच की वजह से, पूंजीपतियों के हितों की सेवा करने वाला हिन्दोस्तानी राज्य और सभी सरकारें मजदूरों के इस मूलभूत अधिकार का खुलेआम हनन करती हैं। इसमें सरमयदारों की राजनीतिक पार्टियों और पूंजीपतियों व उनकी सरकारों की मिलीभगत होती है।

हिन्दोस्तानी राज्य देशीविदेशी बड़ेबड़े इजारेदार पूंजीपतियों के हितों के लिए, सभी श्रम कानूनों को हटाकर, चार श्रम संहिताएं (लेबर कोड) पास कर चुकी है। इनके जरिये, मजदूरों को उन सभी अधिकारों से वंचित किया जायेगा, जिनके लिए उन्होंने सालोंसालों तक कठिन संघर्ष किये हैं। ठेका मजदूरी को ख़त्म करना, जीने लायक वेतन सुनिश्चित करना, कार्यस्थल पर सुरक्षा, काम के सीमित घंटे, यूनियन बनाने और अपने हकों के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार, ये सब अहम मांगें हैं जिनके लिए मज़दूर संघर्ष करते आये हैं।

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों के हाथ अग्निकांड में मरे मजदूरों के खून से रंगे हुए हैं। सरकार और प्रशासन के उच्चतम पदों पर बैठे अधिकारियों को इसके लिए जवाबदेह ठहराना होगा। मज़दूर संगठनों की यह मांग पूरी तरह जायज़ है कि उन पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए और उनको सज़ा दी जानी चाहिए।

इस आदमखोर पूंजीवादी व्यवस्था की जगह पर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी होगी जिसमें मजदूरों और उनके काम की हालतों को उत्पादन के खर्च को कम करनेके नज़र से नहीं देखा जायेगा। मजदूरों और किसानों को अपने हाथों में राज्य सत्ता लेकर, पूंजीपतियों की लालच को नहीं, बल्कि लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की नयी दिशा में अर्थव्यवस्था को संचालित करना होगा।

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