बिजली संशोधन विधेयक 2021 : 
बिजली क्षेत्र के मज़दूर निजीकरण के विरोध में संघर्ष की राह पर

हाल ही में मज़दूर एकता लहर के संवाददाता ने संसद पर धरना दे रहे बिजली क्षेत्र की यूनियनों व फेडरेशनों के नेताओं से उनके मुद्दों और मांगों के बारे में बात की। हम यहां दो साक्षात्कारों के मुख्य बिन्दू पेश करे हैं – अभिमन्यु धनखड़, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स के राष्ट्रीय महासचिव हैं और इंजीनियर शैलेंद्र दूबे, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष हैं।


इंजीनियर शैलेंद्र दूबे

मज़दूर एकता लहर (मएल) : केन्द्र सरकार आज संसद सत्र में बिजली संसोधन विधेयक 2021 को पारित करने की कोशिश कर रही है। आप इसका विरोध क्यों कर रहे है?

इंजीनियर शैलेंद्र दूबे : देखिए बिलजी संसोधन विधेयक 2021 केवल बड़े निजी घरानों के मुनाफे के लिए है। इससे किसानों को, ग़रीब उपभोक्ताओं को, घरेलू उपभोक्ताओं पर सबसे बड़ी चोट पड़ने वाली है। यह विद्युत वितरण के संपूर्ण निजीकरण का दस्तावेज़ है। इस विधेयक में यह व्यवस्था की गई है कि विद्युत वितरण की लाइसेंस की व्यवस्था समाप्त कर दी जायेगी। अर्थात किसी को भी एक क्षेत्र में बिजली वितरण करने की अनुमति मिल जायेगी। और ये जो बिजली के खम्बे और तार हैं, यानी सरकारी बिजली का नेटवर्क है, इसी नेटवर्क का फ़ायदा उठाकर निजी कंपनियां बिजली की आपूर्ति करेंगी। उनको एक भी पैसे का निवेश करने की ज़रूरत नहीं है। हजारों करोड़ों रुपये का निवेश सरकार का है, उस निवेश का इस्तेमाल करके निजी कंपनियां पैसा कमायेगी।

सबसे ख़तरनाक पहलू यह है कि एक तरफ सरकारी कंपनी किसानों को, ग़रीबों को यानी सबको बिजली देती है और देने के लिये बाध्य भी है, दूसरी तरफ, निजी कंपनियों के लिए इस विधेयक में व्यवस्था है कि वे अपनी मर्जी के अनुसार बिजली देंगी। तो निजी कंपनियां सिर्फ मुनाफ़े वाले उपभोक्ताओं को बिजली देंगी। यानी संस्थानिक, औद्योगिक क्षेत्रों में देंगी, तो मुनाफ़े वाले क्षेत्र हमारे हाथों से निकल जायेंगे। इसके परिणामस्वरूप सरकारी क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियां और कंगाल हो जायेंगी। आम आदमी बिजली की पहुंच से दूर हो जायेगा।

अगर किसी किसान के पास 5 हॉर्स पावर का पम्प है और वह 6 घंटे भी उसे चलाता है तो उसे कम से कम 10 हजार रुपये का विधेयक देना पड़ेगा। यह कानून केवल कारपोरेट घरानों के हित में है। इसलिए इसके विरोध में चार दिन जंतर-मंतर पर धरना चलेगा और 10 अगस्त को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान है।

मएल : जिस प्रकार आपने बताया कि यह विधेयक निजी कंपनियों को मुनाफ़ा बनाने की पूरी छूट देने के लिये है। इस विधेयक में ऐसे कौन से प्रवधान हैं जिनसे निजी बिजली कंपनियों को साहूलियतें या फ़ायदा  मिलेगा?

दूबे : मैं फिर से बता रहा हूं। पहला फ़ायदा  तो यह है जो बिजली नेटवर्क है, जैसे बिजली के सबस्टेशन है, बिजली के ट्रांसफार्मर हैं, बिजली के स्विचगियर हैं, बिजली के तारें हैं, बिजली के खम्बे हैं, ये सब सरकारी कंपनी के रहेंगे। इन्हीं को इस्तेमाल करके निजी कंपनियां बिजली की आपूर्ति करेंगी। तो उन्हें इस नेटवर्क पर कोई पैसा नहीं खर्च करना पड़ेगा। नेटवर्क पर हजारों करोड़ रुपयों की रकम सरकारी कंपनी खर्च करती है। पहला फ़ायदा तो यही होगा कि मुफ्त में नेटवर्क मिलेगा। दूसरा यह है कि जहां सरकारी कंपनी को बाध्यता है बिजली देने की, यानी जो कनेक्शन मांगेगा उसे बिजली का कनेक्शन हम देते हैं। चाहे उसका वह उपयोग कम करे या ज्यादा करे। निजी कंपनियों को यह छूट दी गई है कि वे चाहें तो किसी को कनेक्शन दें या न दें। इसका मतलब यह है कि निजी कंपनियां सिर्फ मुनाफ़े वाले क्षेत्रों में बिजली देंगी। संस्थानिक, औद्योगिक प्रतिष्ठानों को देंगी। तो वे सिर्फ मुनाफ़े कमायेंगी। यानी जो सरकारी नेटवर्क है का प्रयोग करते हुए मुनाफ़ा कमायेंगी बिना एक पैसा खर्च किए, यह बहुत ही घातक है।

मएल : सरकार यह दावा कर रही है कि बिजली संसोधन विधेयक, 2021 के कानून बनने से यह बिजली क्षेत्र में बहुत ही सुधार करने वाला कदम होगा। लेकिन बिजली क्षेत्र के कर्मचारी इस सुधार का विरोध कर रहे हैं। इस प्रचार का खंडन आप कैसे करेंगे?

दूबे : सरकार तो इस विषय पर बहस करने को तैयार नहीं है। सरकार ने आज तक न तो बिजली उपभोक्ताओं को और न ही बिजली कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाया है। सरकार तो सिर्फ कारपोरेट घरानों से ही बात कर रही है। उनके जो भी तर्क़ हैं कि बहुत अच्छा होने जा रहा है। कारपोरेट घरानों के लिए अच्छा होने जा रहा है। हम तो सरकार को चुनौती देते हैं कि सरकार हमसे बहस करे। इससे बिजली की दरें बढ़ेगी। इस विधेयक के आने के बाद बिजली की दर कम से कम 10 रुपये प्रति यूनिट हो जाएगी। मुबंई में निजीकरण हुआ और वहां 12 से 14 रुपये घरेलू उपभोक्ताओं के लिये बिजली की दर है। सरकार बहस से भाग रही है। मेरा ये कहना है कि सरकार जल्दबाजी में इस विधेयक को पारित न करे। इसे स्टैंडिंग कमेटी को भेजे। और स्टैंडिंग कमेटी के सामने उपभोक्ताओं को और बिजली कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाये।

मएल : हमारे अख़बार के माध्यम से देश के जो उपभोक्ता हैं बिजली के, शहर या ग्रामीण क्षेत्र के उनको क्या संदेश देना चाहेंगे।

दूबे : उपभोक्ताओं को समझना चाहिये कि बिजली की दर कम से कम 10 रुपये प्रति यूनिट हो जायेगी। सब्सिडी समाप्त कर दी जायेगी। उपभोक्ताओं से यही अपील है कि वे इस बिजली संशोधन विधेयक जो कि एक डरावना विधेयक है और जो उपभोक्ताओं के हितों के विरोध में है, इसके खिलाफ़ लड़ाई लड़ रहे 15 लाख बिजली कर्मचारियों का आम जनता सहयोग करे।

मएल : शुक्रिया, हम उम्मीद करते हैं कि आपका संघर्ष सफल हो। धन्यवाद।


श्री अभिमन्यु धनखड़

मज़दूर एकता लहर (मएल) : बिजली संशोधन विधेयक से निजी कंपनियों को कैसे फ़ायदा होगा?

अभिमन्यु धनखड़ : स्पष्ट तौर पर इसमें सेक्शन 24ए, 24बी, 24सी और 24डी डाल दिया गया है। ऊर्जा राज्यमंत्री श्री आर.के. सिंह जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हम बिजली वितरण का डी-लायसेंसिंग करेंगे। यानी कि जो बिजली बेचने वाले होंगे उनको किसी लाइसेंस की ज़रूरत नहीं होगी। इसमें हमारी सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि आज़ादी के बाद से बिजली वितरण के लिये जो नेटवर्क लाखों करोड़ रुपए से बनाया गया है, उसे पिछले 75 सालों में जनता द्वारा दिये गये कर के पैसों से बनाया गया है, उस नेटवर्क का प्रयोग निजी कंपनियां बिजली बेचने के लिए करेंगी। नया नेटवर्क खड़ा करने की उनकी कोई भी ज़िम्मेदारी नहीं होगी।

बिजली उपभोक्ता को वितरक या आपूर्तिकर्ता चुनने का विकल्प देने वाली जो बात कही जा रही है वह बिल्कुल झूठी, आधारहीन और बकवास है। वितरक या आपूर्तिकर्ता चुनने का विकल्प तब मिले न जब एक गली में दो अलग-अलग कंपनियों के खंभों की लाइनें खड़ी हों। एक हमारी हो और दूसरी निजी कंपनी की हो। तब प्रतिस्पर्धा होती है। हमारे प्रतिद्वंदी को खुली छूट दे दी गई है कि उसे कुछ भी निवेश नहीं करना है। उसके लिये तो ”नो पेन ओनली गेन” (बिना निवेश लाभ ही लाभ) है।

मएल : एक बार जब यह कानून बन जाएगा तो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के उपभोक्ताओं पर इसका क्या असर होगा?

धनखड़ : आपका सवाल बहुत अच्छा है। जो निजी कंपनियां आती हैं, वे  व्यापार के लिए आती हैं, वे घाटा उठाने के लिए तो नहीं आतीं। आज ग्रामीण क्षेत्रों की हमारी जो समस्या है, जिसे सरकार खुद कहती है – कि कोरोना के दौरान 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को पी.डी.एस. के माध्यम से अनाज देकर देकर उनका जीवन चलाना पड़ा है। हमारे देश में किसी घर तक बिजली पहुंचाने का जो वास्तविक खर्च पड़ता है उस खर्च का भुगतान देश का मज़दूर, वंचित और शोषित वर्ग, ग़रीबी रेखा के नीचे के लोग, आदि नहीं कर सकते। उसके लिये बिजली अधिनियम 2003 में क्रोस सब्सिडी का प्रावधान है। क्रोस सब्सिडी का मतलब है कि अगर एक कंपनी को बिजली की क़ीमत 6 रुपये प्रति यूनिट चुकानी पड़ती है तो वह कंपनियों या उद्योगों को 7 रुपये में बेचती है और 50 यूनिट प्रति माह वालों को 2 रुपये में बेचती है, 100 यूनिट प्रति माह वालों को 4 रुपये में बेचती है। इस प्रकार अमीर आदमी से थोड़ा सा ज्यादा पैसा लेकर वह ग़रीब लोगों में बिजली पहुंचाती है।

हमारे ऊर्जा राज्य मंत्री, आर.के. सिंह जी ने कहा है कि हम क्रोस सब्सिडी को 20 प्रतिशत तक सीमित कर देंगे। इसका मतलब है कि अगर हमें बिजली 6 रुपये में पड़ रही है तो अमीर आदमी को हम 7 रुपये में देंगे, जबकि ग़रीब को हम 5 रुपये से कम में नहीं दे सकेंगे। तो जिन्हें आज बिजली एक या डेढ़ रुपये में मिल रही है उसका मूल्य सीधे 5 से 6 रुपये हो जायेगा। इसका मतलब है कि बिजली पाने का जो अधिकार है वह उनके हाथ से निकल जायेगा। उनको बिजली नहीं मिलेगी। बिजली एक विलासिता की चीज बन जायेगी।

उदाहरण के लिये 2-4 साल पहले पेट्रोल और डीज़ल के (डी-कंट्रोल) सरकार के नियंत्रण से बाहर कर दिया गया था। जब तक सरकार का नियंत्रण था, तब तक इसकी क़ीमतें इतनी बेतहाशा नहीं बढ़ीं, जितनी कि सरकार के नियंत्रण से बाहर होने से बढ़ी हैं। अब आप डी-कंट्रोल को डी-लायसेंसिंग से जोड़िये। ये सीधा-सीधा 7 लाख करोड़ रुपये का बिजली वितरण का व्यापार है, जिस पर इन पूंजीपतियों की निगाहें हैं। वे इसको बिना किसी निवेश के अपना करना चाहते हैं।

इस विधेयक में ऐसे-ऐसे प्रावधान हैं कि अगर आप इनको विस्तार से देखेंगे तो आप सोचेंगे कि ये किस प्रकार के प्रावधान हैं। पूरे प्रांत में स्टेट डिस्कॉमों के जितने भी यंत्र-तंत्र हैं, उन्हें एक रुपये प्रति महीने के किराये पर निजी कंपनियों को देने के प्रावधान इन दस्तावेज़ों में हैं। ये प्रावधान वैसे ही हैं जैसे कि रेल-भेल-तेल कंपनियों को बेचा जा रहा है, मुद्रीकरण (मोनेटाइजेशन) के नाम पर।

माननीय प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि “सरकार का धंधा व्यापार करना नहीं है”। पर हम बिजली कर्मचारी कहते हैं कि यह व्यापार नहीं है, यह सेवा है। बिजली सेवा का विषय है, व्यापार का नहीं।

अगर आज आप मेरा इंटरव्यू ले रहे हैं तो आप इसे बिजली के कारण ले पा रहे हैं। आपके फोन की जो बैटरी है वह बिजली से चार्ज की गयी है। आप इसे अगर आगे ले जाते हैं तो देखेंगे कि बिजली का कितना महत्व है। कोरोना काल में बिजली सुनिश्चित रखने के लिये, लगभग 1,000 से अधिक बिजली कर्मचारियों ने अपनी जानें गंवाईं हैं। बिजली कर्मचारियों ने निर्विवाद बिजली आपूर्ती को सुनिश्चित किया है। क्या किसी भी न्यूज़ चैनल में ये ख़बर आयी है कि फलां अस्पताल में बिजली न मिलने की वजह से लोग मारे गये? ये ख़बरें ज़रूर आयी हैं कि ऑक्सीजन ख़त्म होने से लोग मारे गये हैं। लेकिन बिजली की कमी के कारण कोई मौत नहीं हुई है। सरकार बिजली कर्मचारियों की मेहनत का तोहफ़ा आज इनके अधिकारों को छीन कर देना चाहती है। हम इसका विरोध करते हैं।

मएल : सरकार कह रही है कि यह विधेयक आयेगा तो उससे बिजली क्षेत्र में बहुत बढ़ोतरी होगी है और बिजली कर्मचारी नाहक इसका विरोध कर रहे हैं। इस प्रचार का आप क्या जवाब देंगे?

धनखड़ : बढ़ोतरी ज़रूर होगी। बढ़ोतरी होगी पूंजीपतियों के कुल संपत्ति में। देश का लाखों करोड़ों रुपयों का बिजली वितरण का जो बुनियादी ढांचा है, उसका अगले पांच से सात सालों में सीधा-सीधा हस्तांतरण बिजली क्षेत्र के बड़े-बड़े निजी घरानों को हो जायेगा। वह भी उनका पैसा खर्च हुये बगैर। पूछिये ये कैसे?

जैसा कि मैंने क्रोस सब्सिडी के संदर्भ में कहा, बिजली के अलग-अलग प्रकार के उपभोक्ता होते हैं – कुछ औद्योगिक उपभोक्ताओं के बिल महीने में 50 लाख के भी होते हैं, जबकि ग़रीब उपभोक्ताओं के बिल मात्र 200 रुपये के होते होंगे। निजीकरण के बाद बिजली घराने बड़े उपभोक्ता को कनेक्शन देंगे पर वे 200 रुपये वाले को मीटर कनेक्शन नहीं देंगे। उनके पास अपना उपभोक्ता चुनने का विकल्प है। हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। सरकारी कंपनी होने के नाते हमें सभी को कनेक्शन देने होते हैं, चाहे कोई अडानी की कंपनी मांगे या कोई ग़रीब मांगे। हमें दोनों को कनेक्शन देने होते हैं। पर जो निजी कंपनी बिजली वितरण में है, उसको यह छूट है कि वह किसको कनेक्शन देगी और किसको नहीं। निश्चित तौर पर वे बड़े उपभोक्ताओं को बिजली कनेक्शन देंगे। इसका नतीजा होगा कि धीरे-धीरे सारे बड़े कनेक्शन निजी वितरण कंपनियों के पास चले जायेंगे।

जिस प्रकार टेलीकॉम सेक्टर में भी हुआ। रिलायंस की जियो कंपनी ने बी.एस.एन.एल. जैसी सरकारी कंपनी को तो छोड़िये, वोडाफोन और आइडिया जैसी निजी कंपनियों को भी विलय करने के लिये मजबूर कर दिया क्योंकि उन्होंने एक साल के लिये इंटरनेट फ्री कर डाला। इसी तरह कोई बड़ा पूंजीपति घराना बैंकों से लोन लेकर या सब्सिडियों का इस्तेमाल करके, इस तरह की कोई स्कीम चालू कर देगा। अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिये शुरू में बिजली की दर 20 पैसे, 50 पैसे कम रख सकता है। हमारे जो बड़े उपभोक्ता हैं वे उसमें ट्रांसीशन कर जायेंगे। जो अभी तक सार्वजनिक एकाधिकार था वह निजी एकाधिकार में तब्दील हो जायेगा। सार्वजनिक एकाधिकार का तो फिर भी सामाजिक सरोकार है, परन्तु निजी एकाधिकारियों का समाज को क्या फ़ायदा?

आप अस्पतालों को ही देख लीजिये। सरकारी अस्पतालों में सभी लोगों के लिये इलाज संभव है पर जो निजी अस्पताल हैं, क्या ग़रीब आदमी उसमें जा सकता है? तो निजी एकाधिकार लोकतंत्र के लिये ख़तरा है। जो बढ़ोतरी की बात कर रहे हैं क्या वे अतिरिक्त निवेश की बात कर रहे हैं? 2003 में भी उन्होंने निवेश की बात की थी। बिजली अधिनियम 2003 में उन्होंने कहा था कि बिजली क्षेत्र के सुधारों से नया निवेश आयेगा। क्या आने वाले निवेश से बिजली की दरें कम हुईं?

आज के दिन 47 प्रतिशत बिजली उत्पादन निजी घरानों के हाथों में है और बाकी 53 प्रतिशत राज्य व केन्द्र सरकारों के पास है। लेकिन बिजली की दरें लगातार बढ़ती जा रही हैं। क्योंकि उन निजी घरानों ने महंगे दामों पर 25-25 साल के पावर परचेज़ एग्रीमेंट (पी.पी.ए. – बिजली ख़रीद करार) किये हुए हैं। अगर सरकार कुछ करना चाहती है तो उसे इन करारों पर आज की परिस्थिति के अनुसार पुनः समझौता करना चाहिये। आप हैरान होंगे। आज बिजली बाज़ार में बिजली ढाई रुपये प्रति यूनिट भी उपलब्ध है परन्तु बिजली उत्पादन कंपनियों ने 15-15 रुपये प्रति यूनिट तक के करार किये हुए हैं। तो जनता का पैसा कहां जा रहा है? अगर बिजली कंपनी बिजली खरीदेगी तो उपभोक्ता से ही पैसा लेगी।

वास्तव में सरकार को दो काम करना चाहिये। एक कि बिजली को एक मूलभूत अधिकार घोषित करना चाहिये। और दूसरा कि जितने भी पी.पी.ए. हैं, जिनकी समय सीमा बाकी है और जो वास्तविकता से परे हैं, उन पर फिर से समझौता करना चाहिये ताकि जनता को सस्ती और बढ़िया बिजली सेवा मिल सके।

अगर सरकार लोगों को बढ़िया बिजली सेवा देना चाहती है तो उसको नेशनल को-आर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉइज एण्ड इंजीनियर्स (एन.सी.सी.ओ.ई.ई.ई.) सहित ऊर्जा क्षेत्र के सभी स्टेक होल्डर्स के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर चर्चा करनी चाहिये। मैं ज़िम्मेदारी के साथ कहता हूं कि अगर हमारी बातों में कुछ ग़लती हो या झूठ हो तो हम इस कानून का विरोध नहीं करेंगे।

मएल : इस संघर्ष को लेकर अगला पड़ाव क्या है, या आगे का क्या रूप है?

धनखड़ : जैसा कि हमें न्यूज़ चैनलों के माध्यम से पता चला है कि माननीय ऊर्जा मंत्री ने कहा है कि संसद के मानसून सत्र में बिजली संशोधन बिल 2021 पेश किया जायेगा तो एन.सी.सी.ओ.ई.ई.ई. ने 12 जुलाई को मीटिंग की और यह संकल्प पारित किया कि यह कानून बिजली के अधिकार को छीनने वाला है और इसे हमें पारित नहीं होने देना है। इसके लिये हम संघर्ष को और तेज़ करेंगे।

हम बिजली क्षेत्र के निजीकरण के विरोध में 2014 से संघर्ष करते आये हैं। 2014 से लेकर आज 2021 तक, केन्द्र सरकार का यह चौथा प्रयास है। बिजली संशोधन विधेयक 2014, 2018 और 2020 में लाया गया था। अब बिजली संशोधन विधेयक 2021 बिजली क्षेत्र का संपूर्ण निजीकरण करने का सरकार का चौथा प्रायोजन है।

हमने निर्णय लिया है कि पहले चरण में सरकार का ध्यान आकर्षण करने के लिये पूरे देश में 19 जुलाई को विरोध दिवस मनाया गया। उसके बाद 27 जुलाई को एन.सी.सी.ओ.ई.ई.ई. का प्रतिनिधिमंडल ऊर्जा सचिव, माननीय आलोक कुमार जी से मिला और अपना ज्ञापन सौंपा। उनसे संक्षिप्त वार्ता हुई। उसके बाद, ये जो 3, 4, 5 और 6 अगस्त का विरोध कार्यक्रम है ऊर्जा मंत्रालय का ध्यान आकर्षित करने के लिये है कि वह हमारी मांगों को सुने। सारे देश के बिजली कर्मचारी इन मांगों के समर्थन में हैं और हम दिल्ली तक बात करने के लिये आये हैं। लेकिन अगर वे हमारी बात नहीं सुनेंगे, इस पर कोई कार्यवाई नहीं करेंगे या एकतरफा तरीके से संसद में पेश करने की कोशिश करेंगे तो 10 तारीख को बिजली की हड़ताल होने जा रही है जिसमें 15 लाख से अधिक बिजली कर्मचारी और अधिकारी भाग लेंगे और 12 लाख से अधिक जो संविदा कर्मचारी हैं जो ठेके पर काम करते हैं वे भी इसमें भाग लेने जा रहे हैं। और अगर सरकार उसके पहले ही इस विधेयक को संसद में धकेलने की कोशिश करती है तो उसी दिन से 10 तारीख वाला कार्यक्रम शुरू कर दिया जायेगा। और तब भी सरकार नहीं सुनती तो 10 तारीख के बाद संघर्ष के और भी कठोर निर्णय लिये जा सकते हैं।

मएल : आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है। हम चाहते हैं कि आपका संघर्ष सफल हो।

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