अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के ख़िलाफ़ अमरीकी साम्राज्यवाद के वहशी अपराध कभी भुलाये नहीं जा सकते!

अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को खुद अपना भविष्य तय करने का पूरा अधिकार है!

15 अगस्त, 2021 को तालिबान की सेना ने काबुल में प्रवेश किया और राष्ट्रपति के महल पर कब्ज़ा कर लिया। राष्ट्रपति अशरफ़ गनी कुछ ही घंटों पहले, अमरीकी मदद के साथ, भाग चुके थे। अमरीकी पैसों पर पली और अमरीका से प्रशिक्षण प्राप्त, तीन लाख सिपाहियों वाली अफगानी सेना बिना लड़े ही अस्त-व्यस्त हो गयी। इन घटनाओं के साथ, काबुल में अमरीका द्वारा समर्थित कठपुतली सरकार का अंत हुआ। इसके साथ-साथ, अफ़ग़ानिस्तान में लगभग 20 साल लम्बा अमरीकी दख़ल भी ख़त्म हुआ।

अफ़ग़ानिस्तान के लोग बहादुर और स्वाभिमानी लोग हैं, जिन्होंने अपनी आज़ादी को हमेशा ही बहुत क़ीमती माना है। उन्होंने किसी भी क़ुरबानी से डरे बिना, हर विदेशी साम्राज्यवादी ताक़त जो उन पर कब्ज़ा करने आई, उसको मुंहतोड़ जवाब दिया है। बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवादियों ने यह झूठा प्रचार किया है कि अफग़ानी लोग बर्बर हैं, पिछड़ी सभ्यता वाले हैं। इस जलील प्रचार का असली मक़सद है अफ़ग़ानी लोगों की आज़ादी और संप्रभुता के हनन को जायज़ ठहराना। अमरीकी कब्ज़ाकारी सेना का अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलना बहादुर अफ़ग़ानी लोगों की जीत है। इसके साथ, अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के लिए, विदेशी साम्राज्यवादी हुक्मशाही से आज़ाद होकर, खुद अपना भविष्य निर्धारित करने का रास्ता खुल जाता है।

20 साल पहले, 7 अक्तूबर, 2001 को अमरीकी साम्राज्यवादियों और ब्रिटेन ने अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के खि़लाफ़ एक ऐसा जंग शुरू किया था, जिसे इतिहास के सबसे बरेहम जंगों में गिना जाता है। 11 सितम्बर, 2001 को न्यू यॉर्क में हुए आतंकवादी हमलों के बाद वह जंग शुरू किया गया था। 20 सितम्बर, 2001 को अमरीका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ऐलान किया था कि अल कायदा नामक एक आतंकवादी गिरोह 11 सितम्बर, 2001 को न्यू यॉर्क में हुए आतंकवादी हमलों के लिए ज़िम्मेदार था और उस गिरोह का नेता, ओसामा बिन लादेन, अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय था।

अमरीका ने कोई सबूत पेश किये बिना ही दावा कर दिया कि न्यू यॉर्क में हुए आतंकवादी हमलों का सरगना अफ़ग़ानिस्तान से और अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के पूरे समर्थन के साथ अपना काम कर रहा था। यह दावा करके अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अफ़ग़ानिस्तान पर अपने हमले और कब्ज़े को जायज़ ठहराया। अमरीका ने बड़े घमंड के साथ यह ऐलान कर दिया कि उसे किसी भी देश पर यह आरोप लगाकर, कि वहां आतंकवादियों को संरक्षण दिया जा रहा है, उस देश की संप्रभुता का हनन करने का अधिकार है। अमरीका ने उन सभी देशों को धमकाया, जिन्होंने अमरीका के “आतंकवाद पर जंग” का समर्थन नहीं किया। राष्ट्रपति बुश ने ऐलान किया था कि “हर इलाके में हरेक राष्ट्र को यह फ़ैसला करना होगा : आप या तो हमारे साथ हैं या फिर आप आतंकवादियों के साथ हैं।” अमरीकी साम्राज्यवादियों ने ऐलान किया कि यह सारी दुनिया में आतंकवाद के  ख़िलाफ़ एक “अनंत युद्ध” की शुरुआत है।

11 सितम्बर, 2001 को न्यू यॉर्क में हुए आतंकवादी हमलों के बीस साल बाद, अमरीका ने अभी भी कोई सबूत नहीं पेश किया है कि उन हमलों के पीछे अफ़ग़ानिस्तान की तत्कालीन सरकार का कोई हाथ था। बल्कि, गतिविधियों के आधार पर काफी ऐसे सबूत बरामद हुए हैं जो 11 सितम्बर, 2001 को न्यू यॉर्क में हुए आतंकवादी हमलों को अंजाम देने में अमरीकी राज्य की भूमिका की ओर इशारा करते हैं। इस बात का स्पष्ट सबूत है कि अमरीका ने 11 सितम्बर, 2001 से पहले ही अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करने की तैयारी कर रखी थी और उसे सिर्फ सही मौके का इंतज़ार था।

अमरीकी राज्य ने 11 सितम्बर, 2001 के आतंकवादी हमलों का इस्तेमाल करके, एशिया और अफ्रीका के कई इस्लामी देशों पर कब्ज़ाकारी जंग छेड़े और अमरीका में उन जंगों के समर्थन में जनमत पैदा किया। अमरीकी राज्य ने 11 सितम्बर, 2001  के आतंकवादी हमलों का इस्तेमाल करके, अमरीका के अन्दर और पूरी दुनिया में इस्लामोफोबिया, यानी मुसलमानों से नफ़रत, को फैलाया। अमरीका ने तथाकथित “इस्लामी आतंकवाद पर जंग” को अगुवाई देने का दावा किया। अरब और मुसलमान लोगों को पिछड़े, महिला-विरोधी, असभ्य रूढ़िवादी और आतंकवादी जैसे पेश करके, उन्हें बदनाम करने के इरादे से सुनियोजित प्रचार अभियान चलाया गया। इस झूठे प्रचार को बल देने के लिए, अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियां समय-समय पर आतंकवादी हमले आयोजित करती थीं और उनके लिए “इस्लामियों” को दोषी ठहराती थीं। दुनियाभर में मुसलमानों को आतंकित किया गया और उत्पीड़न का शिकार बनाया गया।

“आतंकवाद पर जंग” का बहाना देकर, अनेक देशों पर सैनिक हमले और उन देशों के सम्पूर्ण विनाश को जायज़ ठहराया गया है। अफ़ग़ानिस्तान के बाद, अमरीका और उसके मित्रों ने इराक और लीबिया पर तबाहकारी हमले किये और इस समय वे सीरिया तथा पश्चिम एशिया व उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों में ऐसा ही करने के प्रयास कर रहे हैं।

11 सितम्बर, 2001 को न्यू यॉर्क में हुए आतंकवादी हमलों को, उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान पर हमले और कब्ज़े को और दुनियाभर में अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा चलाये जा रहे “आतंकवाद पर जंग” को शीत युद्ध के अंत में अमरीकी साम्राज्यवाद की रणनीति के सन्दर्भ में समझना होगा। उस रणनीति का लक्ष्य सारी दुनिया पर अमरीका का निर्विरोध आधिपत्य जमाना था और आज भी उसका यही लक्ष्य है।

सोवियत संघ के विघटन का फ़ायदा उठाकर, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने पूर्वी यूरोप के कई भूतपूर्व समाजवादी देशों और सोवियत संघ के कई यूरोपीय गणराज्यों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। युगोस्लाव संघ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने 1990 में अपनाये गए, ‘नए यूरोप के लिए पेरिस चार्टर’ के ऐलाननामे के अनुसार, यूरोप के सभी देशों पर “मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था” और “बहुपार्टीवादी लोकतंत्र” के नुस्खों को बलपूर्वक लागू किया।

अमरीकी साम्राज्यवादियों ने एशिया पर कब्ज़ा करने के इरादे से, और आगे चलकर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा करने के इरादे से, “आतंकवाद पर जंग” को छेड़ा। अरब और मुसलमान लोगों को निशाना बनाया गया क्योंकि उनका अपना प्राचीन इतिहास, संस्कृति, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाएं हैं, और वे यूरोपीय व अमरीकी नुस्खों को स्वीकार नहीं करते हैं। इसके अलावा, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका में तेल व प्राकृतिक गैस के प्रचूर भंडार हैं। इसलिए अमरीका उस पूरे इलाके पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहता था।

“इस्लामी आतंकवाद पर जंग” में अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान को अपना पहला निशाना इसलिए बनाया क्योंकि उस देश की सरकार सैनिक तौर से कमज़ोर थी और अंतर्राष्ट्रीय तौर पर अकेली थी। इसके अलावा, अफ़ग़ानिस्तान बहुत ही रणनैतिक महत्व वाली जगह पर स्थित है। तेल और गैस संपन्न ईरान और भूतपूर्व सोवियत संघ के मध्य एशियाई गणराज्यों, पाकिस्तान और चीन के साथ उसकी सरहदें हैं। अफ़ग़ानिस्तान पर अपना नियंत्रण जमाकर, अमरीका उन सभी देशों में दखलंदाज़ी करने और उनके अन्दर अस्थायी हालतें पैदा करने में सक्षम हो जाता।

80 का दशक वह समय था जब अफ़ग़ानिस्तान अमरीका और सोवियत संघ की आपसी लड़ाई की रणभूमि बन गया। दिसंबर 1979 में सोवियत सेना ने, अफ़ग़ानिस्तान में सैनिक तख़्तापलट के ज़रिये सत्ता पर आई सोवियत-परस्त सरकार की रक्षा करने के लिए, वहां प्रवेश किया। अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ने अपनी संप्रभुता के इस हनन का पुरजोर विरोध किया और कब्ज़ाकारी सेनाओं के ख़िलाफ़ बग़ावत की।

अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अपने इरादों को पूरा करने के लिए, अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के मुक्ति संघर्ष के साथ दांवपेच किया। उन्होंने सोवियत सेनाओं का मुक़ाबला करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान में तरह-तरह के गिरोहों, अलग-अलग इलाकों और समुदायों के सरदारों को धन, हथियार और प्रशिक्षण दिए। 1989 में जब सोवियत सेना अफ़ग़ानिस्तान से निकल गयी, तब उन अलग-अलग हथियारबंद गिरोहों के बीच में गृह युद्ध शुरू हो गया। वह गृह युद्ध 6 साल तक चला, जिसके बाद 1996 में तालिबान ने काबुल में सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। परन्तु उसके बाद भी, अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग इलाके उन अलग-अलग प्रतिस्पर्धी गिरोहों के नियंत्रण में रहे।

अमरीका ने इस दौर में, सोवियत कब्ज़े के खि़लाफ़ जिहाद लड़ने की आड़ में, कई आतंकवादी गिरोहों को खड़ा किया। अमरीकी सी.आई.ए. ने उन गिरोहों को प्रशिक्षण दिया। जब सोवियत सेना अफ़ग़ानिस्तान से निकल गयी, तब अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अपने रणनैतिक हितों को बढ़ावा देने के लिए, उन्हीं सी.आई.ए. प्रशिक्षित आतंकवादी गिरोहों को यूरोप, एशिया और अफ्रीका के देशों में अस्थायी हालतें पैदा करने के लिए तैनात किया। युगोस्लाविया, मध्य एशिया के गणराज्यों, रूसी संघ, चीन, सीरिया और उत्तरी अफ्रीका के विभिन्न देशों में ऐसा ही किया गया।

बीते 20 वर्षों में अमरीका ने “आतंकवाद पर जंग” के नाम से, अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के ऊपर ऐसे-ऐसे जुर्म किये हैं जिनकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। गांव-गांव पर बेरहमी से बम बरसाए गए हैं, जिनसे लाखों-लाखों अफगानी लोग मौत के घाट उतारे गए हैं। अमरीकी कब्ज़ाकारी सेनाओं ने अफ़ग़ानी लोगों को नस्ल, जाति-जनजाति आदि के आधार पर बांट कर आपस में भिड़ाने की कोशिश की है। परन्तु अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ने अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा अपने देश पर कब्ज़े को कभी स्वीकार नहीं किया है। उनहोंने विदेशी ताक़तों से अपनी आज़ादी के लिए दिलेरी से संघर्ष किया है।

20 साल पहले अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अपने रणनैतिक इरादों को पूरा करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान पर हमला और कब्ज़ा किया था। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अमरीकी लोगों और दुनिया के सभी पूंजीवादी देशों के लोगों पर “आतंकवाद पर जंग” के अपने एजेंडे को पूरी क़ामयाबी के साथ थोपा और दुनिया पर अपना प्रभुत्व जमाने के प्रयासों में काफी क़ामयाबी हासिल की। परन्तु अब, 20 साल बाद, यह अमरीका के इरादों को पूरा करने में इतना सफल नहीं रह गया है।

अमरीकी साम्राज्यवाद ने दुनिया में जगह-जगह पर जो बर्बर युद्ध शुरू किये हैं और जो अब भी जारी हैं, उन्हें जायज़ ठहराना अब उसके लिए ज्यादा से ज्यादा मुश्किल हो रहा है। दुनिया के अधिक से अधिक देश, उनकी सरकारें और उनके लोग अब यह मानने को तैयार नहीं हैं कि अमरीका अपनी मनमर्जी से किसी भी देश को आतंकवादी बताकर, खुद को वहां सैनिक हस्तक्षेप करने का अधिकार दे सकता है।

दूसरे देशों और लोगों के खि़लाफ़ अमरीका के युद्धों का अमरीका के अन्दर, अमरीकी लोग बढ़-चढ़कर विरोध कर रहे हैं। बढती संख्या में अमरीकी लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि वे किसके हित के लिए दूर-दूर देशों में जाकर अपना खून बहाते हैं।

अमरीकी राज्य अब अफ़ग़ानिस्तान पर अपने कब्ज़े को जारी रखना जायज़ नहीं ठहरा पा रहा है।

इन हालतों में, अमरीकी साम्राज्यवादी अपने उसी रणनैतिक लक्ष्य – एशिया पर कब्ज़ा और फिर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा – को हासिल करने के लिए अमरीकी लोगों और सारी दुनिया के लोगों को लामबंध करने के इरादे से, नए-नए नारों की रचना कर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियों के अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस लाने के फ़ैसले को इसी सन्दर्भ में समझना होगा।

अमरीका की अगुवाई में दुनिया के साम्राज्यवादियों ने अफ़ग़ानिस्तान के लोगों पर जो जघन्य अपराध किये हैं, उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को यह पूरा अधिकार है कि वे हर तरह की विदेशी साम्राज्यवादी हुक्मशाही से मुक्त होकर, अपनी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था और अपना भविष्य खुद निर्धारित करें। दुनिया के साम्राज्यवादियों को अपनी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं को अफ़ग़ानिस्तान के लोगों पर थोपने का कोई अधिकार नहीं है।

अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के सामने बहुत बड़ी चुनैतियां हैं। उन्हें 40 वर्षों के अनवरत युद्ध के परिणामों पर काबू पाना होगा, अमरीकी साम्राज्यवादियों की साजिशों के चलते उनके समाज के अन्दर पैदा किये गए बंटवारों को दूर करना होगा और अपने तबाह हुए देश का पुनः निर्माण करना होगा।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी अपने इंसाफ-पसंद देशवासियों से अपील करती है कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के अपनी संप्रभुता की हिफाज़त करने के संघर्ष का पूरा-पूरा समर्थन करें और साम्राज्यवादियों के झूठे प्रचार, कि अफ़ग़ानिस्तान के लोग खुद अपना शासन करने के क़ाबिल नहीं हैं, को ख़ारिज़ करें।

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