राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड के निजीकरण का विरोध करें!

कामगार एकता कमेटी द्वारा आयोजित “निजीकरण के ख़िलाफ़ एकजुट हों!” श्रृंखला की 12वीं सभा

कामगार एकता कमेटी (के.ई.सी.) ने राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आर.आई.एन.एल.) के निजीकरण के विरोध में 30 मई, 2021 को एक जनसभा आयोजित की। इसमें स्टील, रेलवे, बीमा, बंदरगाह और डॉक, बिजली, पेट्रोलियम, बी.एस.एन.एल. और अन्य क्षत्रों के लगभग 300 नेताओं और प्रतिभागियों ने भाग लिया। सितंबर 2020 में शुरू हुई “निजीकरण के ख़िलाफ़ एकजुट हों!“ श्रृंखला की यह 12वीं बैठक थी। पिछली बैठकें रेलवे, बैंकों, बीमा, कोयला, पेट्रोलियम, बंदरगाह और डॉक, शिक्षा और बिजली वितरण के निजीकरण से संबंधित थीं।

वाइज़ेक स्टील प्लांट में हड़ताल (फाइल फोटो )

के.ई.सी. के सचिव कामरेड मैथ्यू ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और बताया कि इन वेबिनार के माध्यम से के.ई.सी. निजीकरण के ख़िलाफ़ आम संघर्ष के इर्द-गिर्द एकता बनाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि हम एक राष्ट्रीय महामादी कोविड के समय पर मिल रहे हैं, जब केंद्र सरकार की लापरवाही के कारण हमारे लोग पूरी तरह से तबाह हो गये हैं। स्टील, बिजली, स्वास्थ्य से जुड़े हजारों फ्रंटलाइन वर्कर, रेलवे, बैंक, बीमा और कोयला आदि क्षेत्रों के मज़दूर बीमार पड़ गए हैं और संक्रमित होकर मारे गए हैं। लेकिन इन क्षेत्रों के श्रमिकों ने इन सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए हिन्दोस्तानी लोगों की सेवा करना जारी रखा है।

इसके बाद कामरेड मैथ्यू ने आमंत्रित वक्ताओं – विशाखा उक्कू परिक्षण पोराटा समिति के अध्यक्ष कॉमरेड चै. नरसिंह राव, सीटू की आंध्र प्रदेश राज्य समिति के अध्यक्ष  कामरेड. जे. अयोध्याराम, विशाखा उक्कू परिक्षण पोराटा समिति (वी.यू.पी.पी.सी.) के संयोजक और स्टील प्लांट कर्मचारी संघ (सीटू) के अध्यक्ष, श्री राजशेखर मंत्री, विशाखा स्टील कर्मचारी कांग्रेस (इंटक) के महासचिव और इंटक एपी राज्य समिति के उपाध्यक्ष कॉम. डी. आदिनारायण, विशाखा स्टील वर्कर्स यूनियन (ए.आई.टी.यू.सी.) के अध्यक्ष डाक्टर पी. सत्यनारायण, आर.आई.एन.एल. की स्टील एक्जीक्यूटिव्स एसोसिएशन के महासचिव तथा संचार एवं पत्रकारिता विभाग, उस्मानिया विश्वविद्यालय और आंध्र प्रदेश विधानसभा के पूर्व एमएलसी प्रोफेसर के. नागेश्वर, आंध्र विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और द्रविड़ विश्वविद्यालय, कुप्पम, आंध्र प्रदेश के पूर्व कुलपति प्रोफेसर के.एस. चलम, स्टील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीटू) के महासचिव कामरेड ललित मिश्रा और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की समन्वय समिति, तेलंगाना के कामरेड एम. साईबाबू का स्वागत किया।

उन्होंने वेबिनार में भाग लेने वाले विभिन्न अखिल भारतीय फेडरेशनों और एसोसिएशनों के बड़ी संख्या में उपस्थित राष्ट्रीय नेताओं का भी स्वागत किया। कामरेड मैथ्यू ने अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ (ए.आई.ई.ए.) के अध्यक्ष कामरेड अमानुल्ला खान, विद्युत कर्मचारी संघों की समन्वय समिति के सह-संयोजक कामरेड दीपक कुमार साहा, दक्षिण रेलवे कर्मचारी संघ (डी.आर.ई.यू.) के पूर्व महासचिव कामरेड आर. एलंगोवन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कर्मचारी संघ (विशाखापट्टनम) के महासचिव कामरेड के.एन. सत्यनारायण, ऑल इंडिया गाड्र्स काउंसिल (ए.आई.जी.सी.) के महासचिव कामरेड एस.पी. सिंह, अखिल भारतीय ट्रेन नियंत्रक संघ (ए.आई.टी.सी.ए.) के महासचिव कामरेड डी. वारा प्रसाद, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स (ए.आई.एफ.पी.डी.ई.) के महासचिव कामरेड अभिमन्यु धनखड़, भारतीय रेलवे तकनीकी पर्यवेक्षक संघ (आई.आर.टी.एस.ए.) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव कामरेड के.वी. रमेश, चित्तरंजन लोको वर्क्स (सी.एल.डब्ल्यू.) लेबर यूनियन (सीटू) के पूर्व महासचिव कामरेड निर्मल मुखर्जी, ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन (ए.आई.एस.एम.ए.) के पूर्व उपाध्यक्ष कामरेड एस.के. कुलश्रेष्ठ, ऑल इंडिया पॉइंट्समैन एसोसिएशन (ए.आई.पी.एम.ए.) के अध्यक्ष कामरेड अमजद बेग, ऑल इंडिया पॉइंट्समैन एसोसिएशन (ए.आई.पी.एम.ए.) के सेंट्रल ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी कामरेड एन.आर. साई प्रसाद, संचार निगम कार्यकारी संघ (एस.एन.ई.ए.) – बी.एस.एन.एल. के अध्यक्ष कामरेड आफताब खान, उत्तर प्रदेश की रायबरेली के रेल कोच फैक्ट्री (आर.सी.एफ.) मेन्स कांग्रेस (एन.एफ.आई.आर.) के महासचिव कामरेड नायब सिंह, मध्य रेलवे मज़दूर संघ (सी.आर.एम.एस.) के उपाध्यक्ष कामरेड जो. डिसूजा, अखिल भारतीय बंदरगाह और डॉक वर्कर्स पेंशनर्स एसोसिएशन के महासचिव कामरेड कस्टोडियो मेंडोंसा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एन.एफ.आई.आर.) के केंद्रीय उपाध्यक्ष और शिक्षा निर्देशक कामरेड पी.एस. सिसोदिया, उत्तर प्रदेश की रायबरेली के रेल कोच फैक्ट्री (आर.सी.एफ.) के मेन्स यूनियन (ए.आई.आर.एफ.) के आयोजन सचिव कामरेड रोहित मिश्रा, उत्तर प्रदेश, वाराणसी के  डीजल लोको वर्क्स (डी.एल.डब्ल्यू.) मेन्स यूनियन (ए.आई.आर.एफ.) के डॉ. प्रदीप शर्मा, दक्षिण रेलवे कर्मचारी संघ के संयुक्त महासचिव कामरेड आर.जी. पिल्लई,  और अखिल भारतीय रेल ट्रैक अनुरक्षक संघ (दादर शाखा) के अध्यक्ष कामरेड प्रणव कुमार का स्वागत किया।

सभा में पहली प्रस्तुति के.ई.सी. के कामरेड अशोक ने की, उन्होंने हिन्दोस्तान में इस्पात क्षेत्र की पृष्ठभूमि बताई और हिन्दोस्तान में मज़दूर वर्ग के आगे के कार्यों के बारे में के.ई.सी. के विचारों को पेश किया।

वाइज़ेक स्टील प्लांट में प्रदर्शन (फाइल फोटो )

प्रस्तुति के बाद आमंत्रित वक्ताओं ने भाषण दिए। विशाखा उक्कू परिक्षण पोराटा समिति (वी.यू.पी.पी.सी.) के अध्यक्ष तथा सीटू की एपी राज्य समिति के अध्यक्ष कामरेड नरसिंह राव और स्टील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीटू) के महासचिव कामरेड ललित मिश्रा के भाषणों के मुख्य बिंदुओं को संलग्न बक्सों में दिया गया है।

कई वक्ताओं ने आर.आई.एन.एल. की पृष्ठभूमि के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने देश और आंध्र प्रदेश (एपी) के लिए इसके महत्व की ओर ध्यान दिलाया। यह दक्षिणी हिन्दोस्तान में एकमात्र एकीकृत इस्पात संयंत्र है और देश में एकमात्र समुद्री तट पर स्थित इस्पात संयंत्र भी है। लाखों लोग आर.आई.एन.एल. पर निर्भर हैं।

केंद्र सरकार 1990 के दशक से आर.आई.एन.एल. का निजीकरण करने और इसके निजीकरण को सही ठहराने के लिए इसे घाटे में चल रहे संयंत्र में बदलने की कोशिश कर रही है।

हिन्दोस्तानी सरकार ने अब तक केवल 4,900 करोड़ रुपये आर.आई.एन.एल. की स्थापना के लिए खर्च किये हैं; निगम ने लाभांश और करों के रूप में 45,000 करोड़ रुपये से अधिक केंद्र सरकार को वापस कर दिये हैं तथा राज्य सरकार को 9,000 करोड़ रुपये दिये हैं। जब इसकी उत्पादन क्षमता को 30 लाख टन सालाना से बढ़ाकर 73 लाख टन सालाना किया गया तो केंद्र सरकार ने इसके लिए एक पैसा भी नहीं दिया।

आर.आई.एन.एल. को अपने अस्तित्व के इतने वर्षों के बाद भी कोई लौह खनिज की खदान आवंटित नहीं की गई है, जिस पर उनका ही कब्ज़ा हो। यह एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है जिसके कब्ज़े में कोई खदान नहीं है। दूसरी ओर, एन.एम.डी.सी. (राष्ट्रीय खनिज विकास निगम) बाज़ार दर पर आर.आई.एन.एल. को लौह खनिज की आपूर्ति कर रहा है।

गंगावरम बंदरगाह को स्टील प्लांट की सेवा के लिए आर.आई.एन.एल. की ज़मीन पर बनाया गया था। लेकिन अब इस बंदरगाह को अडानी को सौंप दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप, आर.आई.एन.एल. ने समुद्र के किनारे का संयंत्र होने का अपना रणनैतिक लाभ खो दिया है।

यदि आर.आई.एन.एल. का निजीकरण किया जाता है, तो सरकार को कर के लाभांश आदि के रूप में होने वाली आय बंद हो जाएगी। निजी मालिक अधिकतम लाभ के अपने लालच से ही संचालित होंगे। सरकार आर.आई.एन.एल. को दक्षिण कोरियाई समूह, पोस्को को सौंपना चाहती है। पोस्को अपनी मज़दूर-विरोधी नीतियों के लिए कुख्यात है।

कई वक्ताओं ने आर.आई.एन.एल. के निजीकरण की बार-बार कोशिशों के ख़िलाफ़ मज़दूरों की बहादुर लड़ाई के बारे में बताया। जब 27 जनवरी, 2021 को यह घोषित किया गया कि आर.आई.एन.एल. का निजीकरण किया जाएगा, तो अधिकारियों और अनुबंध मज़दूरों सहित सभी यूनियनों ने विशाखा उक्कू परिक्षण पोराटा समिति (वी.यू.पी.पी.सी.) का गठन किया और विभिन्न विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया। वी.यू.पी.पी.सी. ने हजारों लोगों को संगठित करते हुए कई कार्यक्रम आयोजित किए। आर.आई.एन.एल. के गेट के सामने पिछले 108 दिनों से भूख हड़ताल चल रही है। पिछले 60 दिनों से ग्रेटर विशाखापट्टनम नगर निगम (जी.वी.एम.सी.) के सामने धरना प्रदर्शन चल रहा है। वी.यू.पी.पी.सी. ने किसानों और मज़दूरों की एकजुटता बनाने के लिए एक संयुक्त कार्यक्रम भी आयोजित किया है। सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ-साथ किसान आंदोलन ने भी इस संघर्ष में भाग लिया है। आर.आई.एन.एल. के कार्यकर्ताओं को देश के कोने-कोने से समर्थन मिला है।

नेताओं ने घोषणा की कि जब तक सरकार आर.आई.एन.एल. के निजीकरण के अपने फै़सले को वापस नहीं लेती, तब तक सभी यूनियन अपना आंदोलन को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे अपनी एकजुट कार्रवाई और लोगों के समर्थन से निजीकरण के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जीतने के लिए आश्वस्त हैं। उन्होंने इस लड़ाई में अन्य क्षेत्रों के कर्मचारियों से एकजुट होने का आग्रह किया है।

कई नेताओं ने वेबिनार आयोजित करने के लिए के.ई.सी. की सराहना की जो आर.आई.एन.एल. में चल रहे संघर्ष के लिए सभी सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूरों की एकता और एकजुटता के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है। आर.आई.एन.एल. के संघर्ष का अब तक का अनुभव उन लोगों के लिए एक अच्छा उदाहरण है जो पूरे देश में सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह प्रेरणादायक है कि कैसे वे सभी यूनियनों को लामबंध कर सकते हैं और साथ ही आंध्र प्रदेश के लोगों का समर्थन भी प्राप्त कर सकते हैं। लोगों के संघर्षों और भागीदारी से ही सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा की जा सकती है। ट्रेड यूनियनों को लोगों से बात करनी चाहिए और उन्हें निजीकरण-विरोधी संघर्षों में शामिल करना चाहिए, जैसा कि आर.आई.एन.एल. ने किया है। इस वेबिनार ने इस संघर्ष को सर्व हिन्द संघर्ष तक विस्तारित करने में मदद की है और कई वक्ताओं ने इसके लिए के.ई.सी. को धन्यवाद दिया। वे इस बात पर सहमत थे कि मज़दूरों, किसानों और आम लोगों को निजीकरण के ख़िलाफ़ एकजुट होकर संघर्ष करना होगा।

श्री राजशेखर मंत्री विशाखा स्टील कर्मचारी कांग्रेस (इंटक) के महासचिव और उपाध्यक्ष, इंटक एपी राज्य समिति ने कहा कि इस महत्वपूर्ण समय में सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य इकाइयों के नेताओं की भागीदारी के साथ यह वेबिनार उनकी लड़ाई को बढ़ावा देगा। राजनीतिक संबद्धता के बावजूद हमें एकजुट होना चाहिए और निजीकरण के ख़िलाफ़ लड़ना चाहिए। सरकार को लोगों के कल्याण की कोई परवाह नहीं है। लोग इस महामारी के दौरान आर.आई.एन.एल. और कई अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों में अपने जीवन को ख़तरे में डालकर काम कर रहे हैं। इस कठिन समय के दौरान आर.आई.एन.एल. ने कई अन्य राज्यों को भी कोविड रोगियों के इलाज के लिए हजारों टन तरल ऑक्सीजन की आपूर्ति की है।

प्रोफेसर के. नागेश्वर, संचार एवं पत्रकारिता विभाग, उस्मानिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और आंध्र प्रदेश विधानसभा के पूर्व एमएलसी ने बताया कि आर.आई.एन.एल. से संबंधित 20,000 एकड़ प्रमुख भूमि की कीमत 1,00,000 करोड़ रुपये और पूरे संयंत्र और बुनियादी ढांचे की क़ीमत लगभग 2,00,000 करोड रुपये है। परन्तु, केंद्रीय इस्पात मंत्री ने संपत्ति के मूल्य का अनुमान केवल लगभग 30,000 करोड़ रुपये लगाया है। यह स्पष्ट रूप से उन इजारेदार पूंजीपतियों की मदद करने के लिए था, जो आर.आई.एन.एल. को सस्ते में खरीदना चाहते हैं। सरकार का उद्देश्य मुनाफ़े का निजीकरण और घाटे का राष्ट्रीयकरण के अलावा और कुछ नहीं है।

आर.आई.एन.एल. को निजी खदानें आवंटित करने से सरकार के इंकार के कारण उसे लौह खनिज लगभग 5,260 रुपये प्रति मीट्रिक टन की बाज़ार दर पर ख़रीदना पड़ता है। इससे आर.आई.एन.एल. को 3,542 करोड़ रुपये सालाना का नुकसान होता है। इसके अलावा, इस्पात उद्योग अपने चक्रीय चरित्र के लिए जाना जाता है। यहां तक कि निजी क्षेत्र को भी पिछले कुछ वर्षों में घाटा हो रहा है। जब निजी क्षेत्र संकट में पड़ जाता है, तो बैंकों से कहा जाता है कि वे घाटे को वहन करें जो गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एन.पी.ए.) में बदल जाता है। निजी क्षेत्र के विपरीत, आर.आई.एन.एल. ने घाटा होने के बावजूद, कभी भी बैंक के किसी भी भुगतान में चूक नहीं की है। आर.आई.एन.एल. ने दिसंबर 2020 में 200 करोड़ का मासिक मुनाफा कमाया।

प्रोफेसर के.एस. चलम, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, आंध्र विश्वविद्यालय और पूर्व कुलपति, द्रविड़ विश्वविद्यालय, कुप्पम, आंध्र प्रदेश ने बताया कि हमारे देश में सार्वजनिक क्षेत्र प्राचीन काल से मौजूद है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि राज्य ने सिंचाई और कृषि, कपड़ा उत्पादन, खदानों आदि के विकास की ज़िम्मेदारी ली है। प्राचीन काल से, राज्य अपने लोगों के कल्याण और उनकी देखभाल करने के लिए बाध्य था। आज हमारी व्यवस्था ऐसी है जिसमें इजारेदार पूंजीपति सरकारों को नियंत्रित करते हैं।

कामरेड जे. अयोध्याराम, संयोजक, विशाखा उक्कू परिक्षण पोराटा समिति और अध्यक्ष, स्टील प्लांट कर्मचारी संघ (सीटू) ने बताया कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2000 में आर.आई.एन.एल. के 50 प्रतिशत शेयरों को निजी खिलाड़ियों को लगभग 2000 करोड़ रुपये में बेचने की कोशिश की थी। लेकिन निजी खिलाड़ी 51 प्रतिशत शेयर चाहते थे ताकि वे नियंत्रण कर सकें। 2004 में जब आर.आई.एन.एल. ने 2008 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया, केंद्र सरकार इसे सिर्फ एक साल के मुनाफ़े की क़ीमत पर बेचने को तैयार थी! 2012 में फिर से, उन्होंने एक आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक पेशकश) की कोशिश की, लेकिन मज़दूरों ने उन्हें हरा दिया। 2018 में दक्षिण कोरियाई कंपनी, पोस्को आर.आई.एन.एल. संयंत्र परिसर में एक रोलिंग मिल स्थापित करना चाहती थी। लेकिन आर.आई.एन.एल. के पास पहले से ही 6 रोलिंग मिलें थीं जो वर्तमान में 73 लाख टन की क्षमता के लिए पर्याप्त हैं। यदि पोस्को को एक और रोलिंग मिल स्थापित करने की अनुमति दी जाती, तो आर.आई.एन.एल. की रोलिंग मिलें बेकार हो जातीं। मज़दूरों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और यह विफल हो गया। अब पॉस्को आर.आई.एन.एल. को पूरी तरह से औने-पौने दाम में ख़रीदने की साज़िश कर रहा है।

डॉ. पी. सत्यनारायण, महासचिव, स्टील एक्जीक्यूटिव एसोसिएशन, आर.आई.एन.एल. ने बैठक में बताया कि 4 अप्रैल, 2021 को स्टील एग्जीक्यूटिव फेडरेशन ऑफ इंडिया (एस.ई.एफ.आई.) ने सर्वसम्मति से सभी स्टील सार्वजानिक क्षेत्र के उद्यमों के रणनीतिक विलय की मांग करने का फ़ैसला किया है। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) इसकी सहायक कंपनियों आर.आई.एन.एल. और इसकी सहायक कंपनियों, नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड (एन.आई.एन.एल.) के साथ-साथ एन.एम.डी.सी. को मिलाकर एक एकल विशाल स्टील उद्यम का गठन किया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए 2013 में प्रस्तुत संसदीय समिति की सिफ़ारिशों के अनुरूप है। उन्हें एक इकाई में विलय करने से उनके बीच तालमेल स्थापित होगा। तब देश और विदेश दोनों जगह सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा करना संभव होगा। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक मजबूत इस्पात उद्योग आवश्यक है इसलिए इसे एक रणनीतिक क्षेत्र माना जाना चाहिए।

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की समन्वय समिति, तेलंगाना के कामरेड एम. साईबाबू ने बताया कि यहां तक कि रक्षा उत्पादन इकाइयों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों का भी तेज़ी से निजीकरण किया जा रहा है। बी.ई.एल. (भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड) में 49 प्रतिशत, बी.डी.एल. (भारत डायनेमिक्स लिमिटेड) और एच.ए.एल. (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) में 25 प्रतिशत, बी.ई.एम.एल. (भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड) में 46 प्रतिशत, बी.एच.ई.एल. में 25 प्रतिशत, भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) में 35 प्रतिशत, कोल इंडिया लिमिटेड (सी.आई.एल.) में 33 प्रतिशत, एन.एम.डी.सी. में 31 प्रतिशत, बी.पी.सी.एल. में 47 प्रतिशत, ओ.एन.जी.सी. में 40 प्रतिशत, एच.पी.सी.एल. में 46 प्रतिशत, एन.टी.पी.सी. में 48 प्रतिशत और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन में 48 प्रतिशत विनिवेश पहले ही हो चुका है।

रेलवे, बिजली, नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड, हिंदुस्तान शिपयार्ड और अन्य क्षेत्रों के कई नेताओं ने भी निजीकरण के ख़िलाफ़ हिन्दोस्तान के मज़दूर वर्ग को एकजुट करने के लिए इस वेबिनार श्रृंखला में के.ई.सी. द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की और अपनी बातों को रखा।

अंत में कॉमरेड मैथ्यू ने घोषणा की कि इस श्रृंखला में अगले दो वेबिनार बी.एस.एन.एल. और हिन्दोस्तान में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर होंगे।

कामरेड नरसिंह राव विशाखा उक्कू परिक्षण पोराटा समिति अध्यक्ष और सीटू एपी राज्य समिति के अध्यक्ष के भाषण के मुख्य बिंदु

उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति की घोषणा और आर.आई.एन.एल. में इस्पात उत्पादन, दोनों की शुरुआत 1991 में हुई। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा इसके उद्घाटन के बाद से शासक वर्ग और सभी केंद्र सरकारें आर.आई.एन.एल. का निजीकरण विभिन्न तरीकों से करने की कोशिश कर रही हैं।

सरकार आर.आई.एन.एल. की समस्याओं का समाधान नहीं करना चाहती, आर.आई.एन.एल. को उसके कब्ज़े वाली खदानें आवंटित करने जैसे कई प्रस्ताव आए, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। वित्त मंत्री ने संसद में घोषणा की कि चाहे कुछ भी हो, सरकार आर.आई.एन.एल. का निजीकरण करेगी।

दो दशकों से अधिक समय से शासक वर्ग के सभी प्रयासों के बावजूद, आर.आई.एन.एल. मज़दूरों और आंध्र प्रदेश के लोगों के एकजुट विरोध के कारण यह सफल नहीं हो सका। लोगों के दबाव के कारण, आंध्र प्रदेश राज्य विधानसभा ने आर.आई.एन.एल. के निजीकरण के केंद्र सरकार के फ़ैसले का विरोध करते हुए 22 मई, 2021 को एक प्रस्ताव पारित किया।

विशाखापट्टनम के सभी सात कुलपति, कई बुद्धिजीवी और राज्य के लोग आर.आई.एन.एल. के मज़दूरों के समर्थन में सामने आए हैं। आंदोलन की एक कमजोरी यह है कि अलग-अलग सेक्टर के कार्यकर्ता अलग-थलग होकर लड़ रहे हैं। बैंक, बीमा, कोयला आदि की यूनियनें कई बार हड़ताल पर जा चुकी हैं लेकिन ये अलग-अलग संघर्ष पर्याप्त नहीं हैं। उन्हें भी लोगों को विश्वास में लेना चाहिए। इस संघर्ष में समाज के सभी तबके के लोगों को एकजुट होने की ज़रूरत है। विशाखापट्टनम में किसान आंदोलन के नेताओं को आमंत्रित करके और एक विशाल जनसभा आयोजित करके आर.आई.एन.एल. के मज़दूरों ने पहले ही इस दिशा में एक क़दम उठाया है।

आर.आई.एन.एल. मज़दूरों को विश्वास है कि वे जीत कर रहेंगे!

 

स्टील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीटू) के महासचिव कामरेड ललित मिश्रा के भाषण के मुख्य बिंदु

1991 और 2014 के बीच केंद्र सरकार ने सार्वजनिक संपत्ति बेचकर 1,52,000 करोड़ रुपये कमाये। 2014 से 2019 तक, इसने 2,31,500 करोड़ रुपये कमाये तथा तब से सार्वजनिक संपत्ति की बिक्री में और तेज़ी आई है।

स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की विभिन्न इकाइयों के निजीकरण के प्रयास भी कई वर्षों से चल रहे हैं। 21 सितंबर, 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल में अलॉय स्टील प्लांट (ए.एस.पी.), सेलम तमिलनाडु में सेलम स्टील प्लांट (एस.एस.पी.) और भद्रावती, कर्नाटक में विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील प्लांट (वी.आई.एस.पी.) की रणनीतिक बिक्री को मंजूरी दी। ये सभी सार्वजनिक क्षेत्र के सेल के स्वामित्व वाले विशेष इस्पात संयंत्र हैं। इन विशेष इस्पात संयंत्रों की रणनीतिक बिक्री के लिए रुचि की अभिव्यक्ति (ई.ओ.आई.) के लिए वैश्विक निविदाएं आमंत्रित की गईं, लेकिन अंतिम तिथि के बार-बार विस्तार के बावजूद किसी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। ये सभी फेडरेशनों द्वारा इन इस्पात संयंत्रों के निजीकरण के ख़िलाफ़ मजबूत एकजुट आंदोलन छेड़ने के कारण हुआ।

तीन विशेष इस्पात संयंत्रों की रणनीतिक बिक्री की घोषणा के तुरंत बाद, 20 दिसंबर, 2016 को राउरकेला में ट्रेड यूनियन नेताओं की एक बैठक आयोजित की गई।

स्टील यूनियनों की राष्ट्रीय संयुक्त परिषद और क्षेत्रीय/संयंत्र स्तर की यूनियनों के बीच एक मजबूत एकता और समन्वय बनाने के लिए सभी प्रयास किए गए। स्टील मज़दूरों की पूरी कार्यशक्ति एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा हो गई है। स्टील एक्जीक्यूटिव्स फेडरेशन को भी एकता के दायरे में लाया गया है। आयोजन के लिए विभिन्न पहलें ली गई हैं। संयुक्त बैठकों, सम्मेलनों और अभियानों के साथ निरंतर संघर्ष के लिए एक योजना तैयार की गई।

20 जनवरी, 2017 को भिलाई में केंद्रीय ट्रेड यूनियन नेताओं और सभी इस्पात संयंत्रों के नेताओं ने एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया और एक अखिल ट्रेड यूनियन तैयारी समिति का गठन किया गया। कन्वेंशन ने संकल्प लिया कि “किसी भी परिस्थिति में, इस्पात कर्मचारी राष्ट्रीय महत्व की इन महत्वपूर्ण संपत्तियों और सुविधाओं के निजीकरण की अनुमति नहीं देंगे।“

इस कन्वेंशन ने सरकार और सेल को तथा यहां तक कि संभावित बोलीदाताओं को भी एक कड़ा संदेश दिया कि इस्पात मज़दूर विशेष इस्पात संयंत्रों के निजीकरण को हराने के लिए अपनी लड़ाई में किसी भी हद तक जाएंगे।

27 मार्च, 2017 को सलेम में ए.एस.पी., एस.एस.पी. और वी.आई.एस.पी. की यूनियनों का एक संयुक्त सम्मेलन आयोजित किया गया। इसने 11 अप्रैल, 2017 को तीन विशेष इस्पात संयंत्रों द्वारा हड़ताल का और सभी अन्य इस्पात संयंत्रों द्वारा एकजुटता के प्रतीक के रूप में विरोध आंदोलनों और सुबह 5 बजे से 9 बजे तक इस्पात संयंत्रों के प्रवेश द्वारों के नाकाबंदी का आयोजन करने का आह्वान किया। यह हड़ताल तीन इस्पात संयंत्रों में सफलतापूर्वक आयोजित की गई।

9 अगस्त, 2017 को संसद के सामने सभी ट्रेड यूनियनों से संबद्ध हिन्दोस्तान के सभी इस्पात संयंत्रों के इस्पात मज़दूरों का एक दिवसीय विशाल धरना आयोजित किया गया। उस दिन भारी बारिश का सामना करते हुए, पूरे देशभर के अधिकारियों सहित हजारों इस्पात मज़दूरों ने निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन किया।

साथ ही राष्ट्रीय कार्यक्रमों और सम्मेलनों के साथ, ए.एस.पी., एस.एस.पी. और वी.आई.एस.पी. में स्थानीय संयंत्र स्तर के आंदोलन आयोजित किए गए। इसने मज़दूरों के दृढ़ संकल्प को दिखाया कि वे किसी भी निजी खिलाड़ी को इस्पात संयंत्रों पर कब्ज़ा नहीं करने देंगे।

इस महामारी के दौरान इस्पात श्रमिकों ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सामाजिक दूरी बनाए रखने में असमर्थ होने के बावजूद अपना काम जारी रखा है। इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में मज़दूर बीमार पड़े हैं और अकेले आर.आई.एन.एल. में 82 सहित पूरे हिन्दोस्तान में 400 से अधिक मज़दूरों की मृत्यु हो गई है।

 

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