भारतीय रेल का निजीकरण करने की शासक वर्ग की योजना जोरों से आगे बढ़ रही है। केंद्र सरकार ने इस कार्यक्रम को तेज़ी से लागू करने के लिए कोरोना महामारी का फ़ायदा उठाया है। सभी प्रधानमंत्रियों द्वारा बार-बार किए गए वादे, कि भारतीय रेल का निजीकरण कभी भी नहीं किया जाएगा, ये सरेआम बिलकुल झूठे साबित हुये हैं।
रेलमंत्री ने निजीकरण को नया नाम दिया है। उन्होंने इसे “संपत्ति मुद्रीकरण” कहा है। मंत्री ने समझाया कि इसका मतलब है कि निजी निवेशकों को सबसे अधिक लाभदायक मार्ग सौंपना, तथाकथित सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से स्टेशनों का पुनर्विकास करना, और सार्वजनिक संपत्ति द्वारा निजी लाभ के अन्य तरीकों को बाहर निकालना है।
वास्तव में भारतीय रेल विशाल संपत्ति का मालिक है। यह संपत्ति पूरे समाज की है। इन संपत्तियों को निजी निवेशकों को सौंपना राष्ट्र-विरोधी काम है। सरकार को इन संपत्तियों को भारतीय या विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों को सौंपने का कोई अधिकार नहीं है – वह चाहे किसी भी नाम से या किसी औचित्य के साथ किया जा रहा हो।
रेलवे ने नवंबर 2020 में रेलवे के सभी जोनों को अपनी सभी नई भर्तियों को रोकने और सभी रिक्त पदों के 50 प्रतिशत को समाप्त करने के निर्देश जारी किए।
भारतीय रेल पर जबरदस्त हमला हो रहा है। साथ ही यह पूरे समाज पर हमला है।
रेलवे के निजीकरण के अंतरराष्ट्रीय अनुभव से पता चलता है कि उपयोगकर्ताओं और समाज के लिए निजीकरण के लाभों के विभिन्न दावे झूठे हैं। इसके विपरीत, श्रमिकों को अत्यधिक नुकसान हुआ और निजीकरण के बाद उपयोगकर्ताओं की स्थिति बहुत ख़राब हो गई। निजीकरण के कारण सुरक्षा की पूरी तरह से उपेक्षा की गई, क्योंकि पूंजीपति अधिकतम लाभ के लिए अपने अभियान में प्रशिक्षित मज़दूरों में निवेश नहीं करना चाहते हैं या सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित नहीं करना चाहते हैं।
जहां कहीं भी रेलवे का निजीकरण किया गया है, वहां पर राज्य ने नए पूंजीपति मालिकों का बड़े पैमाने पर वित्त पोषिण किया है, ताकि उन्हें अधिक से अधिक लाभ की गारंटी दी जा सके। तथाकथित सार्वजनिक-निजी-भागीदारी का मतलब है कि नुकसान की भरपाई लोगों के धन से की जाये और मुनाफ़ा पूंजीपतियों द्वारा हड़प लिया जाये।
कामकाजी लोगों की पहुंच सुरक्षित और किफ़ायती रेल यात्रा तक करने की आवश्यकता है। यह सेवा पूंजीपतियों को सौंपने से इस आवश्यकता की आपराधिक उपेक्षा सुनिश्चित होगी।
रेल का निजीकरण असामाजिक और राष्ट्र-विरोधी है। हिन्दोस्तानी पूंजीपति समाज पर होने वाले परिणामों की परवाह किए बगैर, इस राष्ट्र-विरोधी रास्ते पर चल रहे हैं। रेल मज़दूर और हमारे देश की जनता उसे इस रास्ते पर चलने की अनुमति नहीं दे सकते।
रेल मजदूरों ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने घोषणा की है कि वे किसी भी नाम से निजीकरण को स्वीकार नहीं करेंगे। वे सभी अपनी पार्टी और यूनियनों की संबद्धताओं को अलग करके एक संयुक्त संघर्ष छेड़ेंगे।
भारतीय रेल के निजीकरण का विरोध करने के लिए रेल मज़दूरों ने अपनी एकता को मजबूत करने के लिए एक निर्णायक क़दम उठाया है। उन्होंने नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ रेलवेमेंस स्ट्रगल (एन.सी.सी.आर.एस.) का पुनर्गठन किया है। 16 प्रमुख फेडरेशनों, यूनियनों और श्रेणी-वार एसोसिएशनों – ऑल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन, भारतीय रेल मजदूर संघ, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन, ऑल इंडिया गार्ड्स काउंसिल, ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया ट्रेन कंट्रोलर्स एसोसिएशन, इंडियन रेलवे टिकट चेकिंग स्टाफ ऑर्गनाइजेशन, इंडियन रेलवे सिग्नल एंड टेलीकम्युनिकेशंस मेंटेनर्स यूनियन, ऑल इंडिया ट्रैक मेंटेनर्स यूनियन, ऑल इंडिया रेलवेमेन्स कन्फेडरेशन, इंडियन रेलवे लोको रनिंग मेन्स ऑर्गनाइजेशन, रेलवे कर्मचारी ट्रैक मेंटेनर एसोसिएशन, दक्षिण रेलवे कर्मचारी संघ, इंडियन रेलवे टेक्नीकल सुपरवाइजर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया एससी और एसटी रेलवे एम्प्लॉईज़ एसोसिएशन तथा साथ ही कामगार एकता कमेटी (केईसी) – के सर्व हिन्द नेता संघर्ष में एक बैनर तले एक साथ आए हैं। एन.सी.सी.आर.एस. के बैनर तले 1974 में रेल कर्मियों ने ऐतिहासिक रेल हड़ताल की थी।
कामगार एकता कमेटी के साथ-साथ रेल मज़दूरों के फेडरेशन और यूनियन भारतीय रेल के निजीकरण के खि़लाफ़ रेल मज़दूरों के साथ लोगों की एकता बनाने के लिए जनसमूह के बीच निरंतर एक व्यापक अभियान चला रहे हैं। कई यात्री एसोसिएशनें इस जन संघर्ष में शामिल हो गई हैं। इससे निजीकरण के खि़लाफ़ अभियान को और मजबूती मिलेगी।
रेलवे के निजीकरण के कार्यक्रम को रोकना आवश्यक भी है और संभव भी। निजीकरण के खि़लाफ रेल मज़दूरों के संघर्ष को हमारे देश की जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त है।
जैसे-जैसे निजीकरण के खि़लाफ़ संघर्ष तेज़ होता जा रहा है, रेल मज़दूरों और उनकी यूनियनों को अपनी एकता को बनाए रखना और मजबूत करना चाहिए, चाहे पार्टी या यूनियन की संबद्धता कुछ भी हो। हमें पूंजीपति वर्ग के राजनीतिक दलों वह चाहे कांग्रेस हो, भाजपा हो या कोई और, उन्हें अपने बीच कलह बोने और हमारी एकता को तोड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
शासक पूंजीपति वर्ग की सभी पार्टियां रेलवे के निजीकरण के कार्यक्रम के लिए वचनबद्ध हैं। पूंजीपति वर्ग की एक पार्टी के स्थान पर पूंजीपति वर्ग के निजीकरण के उसी कार्यक्रम को लागू करने वाली दूसरी पार्टी को सरकार में लाने के लिए, रेलवे के मज़दूर संघर्ष और बलिदान नहीं करना चाहते हैं।
भारतीय रेल के निजीकरण के खि़लाफ़ संघर्ष इजारेदार पूंजीवादी घरानों के नेतृत्व वाले शासक पूंजीपति वर्ग के खि़लाफ़ संघर्ष है। निजीकरण का कार्यक्रम पूंजीपति वर्ग का कार्यक्रम है। रेल कर्मचारी अपने संघर्ष को शासक वर्ग की इस या उस पार्टी द्वारा नहीं भटकाने दे सकते।
मज़दूर निजीकरण के खि़लाफ़ जैसे-जैसे संघर्ष को तेज़ करते हैं, हमें पूंजीपति वर्ग के शासन को मज़दूरों और किसानों के शासन में बदलने का अपना रणनीतिक लक्ष्य रखना चाहिए। तभी हम इजारेदारी पूंजीवादी लालच को पूरा करने के लिए तैयार की गई अर्थव्यवस्था को मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तैयार करने में सक्षम होंगे।