भारतीय रेल का निजीकरण – भाग 4 : रेलवे के निजीकरण का अंतर्राष्ट्रीय अनुभव

दुनिया के विभिन्न देशों में रेलवे के निजीकरण के अध्ययन से पता चलता है कि इसका लाभ केवल पूंजीवादी इजारेदारों को ही मिला है। लोगों को भारी नुकसान हुआ है। (ब्रिटेन, जापान, मलेशिया, लैटिन अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्राजील और मैक्सिको के बारे में बॉक्स देखें)।

रेलवे के निजीकरण ने इन इजारेदार पूंजीपतियों को जनता के पैसे से निर्मित विशाल बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल करने की सुविधाएं दीं। अंतर्राष्ट्रीय अनुभव यह भी दर्शाता है कि पूंजीपति निजी रेल सेवाएं तभी तक चलाते हैं, जब तक वे इसके द्वारा अधिकतम मुनाफ़ा बना सकते हैं। यदि रेल परिचालन से अपेक्षित मुनाफे़ की दर उन्हें नहीं मिलती है, तो पूंजीपति अपनी सरकार कहते हैं कि वह उन्हें उबारे। इतने सारे देशों के अनुभव से पता चलता है कि निजीकरण के बाद, निजी मालिक रेल के नए बुनियादी ढांचे के निर्माण में बहुत कम पूँजी-निवेश करते हैं।

उन देशों की सरकारों द्वारा निजी संचालकों को सब्सिडी का भुगतान किये जाने के बावजूद, रेलवे के निजीकरण से रेल किराए में तेज़ी से वृद्धि हुई है। इससे गैर-लाभकारी मार्ग बंद हो गए हैं। निजी संचालकों ने मनमाने किराए निर्धारित करने की खुली छूट का सहारा लेकर अपने मुनाफ़े में और अधिक वृद्धि की है, इसका मतलब है कि निजी संचालकों द्वारा यात्रा के सबसे व्यस्ततम समय के दौरान, सबसे अधिक किराया वसूला जाता है, क्योंकि उस समय पर अधिकांश कामकाजी लोगों को अपने काम करने की जगह तक यात्रा करने या वहां से घर लौटने के लिए रेल से यात्रा करने की ज़रूरत होती है। ज्यादातर जगहों में देखा गया है कि निजीकरण के तुरंत बाद कम लाभ वाले मार्गों पर रेल यात्रा को बंद कर दिया गया, जिससे यात्रियों के लिए सेवाओं में गंभीर गिरावट आई। अधिकांश कटौती यात्रियों को दी जाने सुविधाओं में की गई थी। बड़ी संख्या में कम यातायात वाले रेल मार्ग बंद होने से माल सेवाओं में भी कटौती देखी गई।

निजीकरण के तुरंत बाद, मज़दूरों की संख्या में तेज़ी से कमी आती देखी गयी है और लागत में कटौती करने के लिए बड़े पैमाने पर, ठेका मज़दूरों और अप्रशिक्षित मज़दूरों का सहारा लिया गया।

रेल-सुरक्षा में गिरावट देखी गई क्योंकि लागत में कटौती करने के लिए रखरखाव की उपेक्षा की गई थी। बुनियादी ढांचे पर नया खर्च करने से बचने के लिए, पुराने बुनियादी ढांचे को समय पर नहीं बदला गया। मज़दूरों पर काम का अत्याधिक बोझ डालने का सुरक्षा पर बुरा प्रभाव भी देखा गया। अर्जेंटीना में रेलवे के निजीकरण के बाद, दुर्घटनाओं का तांता लग गया,, जिसके परिणामस्वरूप दर्जनों लोगों की जानें चली गईं – लोगों ने बड़े पैमाने पर निजीकरण के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किये। इस प्रकार उन प्रदर्शनों ने, उस देश की सरकार को रेलवे के पुनर्राष्ट्रीयकरण के लिए मजबूर कर दिया।

ब्रिटिश रेल में भी निजीकरण के बाद दुर्घटनाओं में वृद्धि हो गई। पैसे बचाने के लिए कई अप्रशिक्षित मज़दूरों को अस्थायी अनुबंध (ठेक) पर रखा गया था।

राज्य के स्वामित्व वाली रेलवे के निगमीकरण को उचित ठहराने के लिये यह दावा किया गया कि सरकार को उन्हें वित्तीय सहायता देने की आवश्यकता नहीं होगी। फ्रांस और स्विटजरलैंड का अनुभव बताता है कि यह सच नहीं है। (निगमीकरण के बाद सरकारी सहायता के बारे में बॉक्स देखें)।

इन देशों की सरकारों ने निजी कंपनियों की मांग मान ली कि पूंजीपतियों के निवेश पर उन्हें सुनिश्चित मुनाफे़ का आश्वासन दिया जाये। भले ही किराए में बढ़ोतरी न की गई हो लेकिन यह देखा गया कि पूंजीपतियों की जेब, जनता के पैसे से भरी जा रही है।

जब भी निजी संचालक संकट में आये और उन्हें घाटा होने लगा तो उन्होंने तुरंत यात्रा सेवाओं की आपूर्ति को जारी रखने में असमर्थता प्रकट की और इस प्रकार, सरकारें उन्हें आर्थिक मदद देकर या उनका पुनर्राष्ट्रीयकरण करके उन्हें घाटे से बाहर निकालने के लिए मजबूर हो गईं। इस प्रकार हकीकत में रेल कंपनियों के निजी मालिकों का घाटा सरकारों को ही वहन करना पड़ता है जबकि मुनाफ़ा मालिकों की जेब में जाता है!

एक भ्रम फैलाया गया है कि राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम, लोगों को कुशल, उच्च गुणवत्ता वाली रेल सेवाएं प्रदान नहीं कर सकते हैं। सरकार के स्वामित्व वाली स्विस फेडरल रेलवे (एस.बी.बी.) को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रेल सेवाओं में से एक माना जाता है। रूस और चीन में, जिन देशों में दुनिया के दो सबसे बड़ी रेल सेवाओं के उद्यम हैं, दोनों ही राज्य के स्वामित्व वाले हैं। यूरोप में अधिकांश रेलवे सेवायें, उनके निगमीकरण के बावजूद मुख्य रूप से सरकारी स्वामित्व में हैं।

विश्व प्रसिद्ध मॉस्को मेट्रो और उसके स्टेशन, तत्कालीन सोवियत संघ समाजवादी गणराज्य (यू.एस.एस.आर.) द्वारा 1920-30 के दशक में बनाए गए थे, और वे आज भी राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम हैं और अभी भी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रेल सेवाओं में से एक माने जाते हैं। 1930 और 1940 के दशक में समाजवादी सोवियत संघ के निर्माण में रेलवे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। (सोवियत संघ में रेलवे पर बॉक्स देखें)

कुल मिलाकर, निजीकरण-निगमीकरण के द्वारा उपभोक्ताओं और समाज का भला हो सकता है, हक़ीक़त में इस दावे को कहीं भी साबित नहीं किया गया है। इसके विपरीत, निजीकरण के बाद ऐसा देखने में आया है कि रेल सेवाओं का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं की स्थिति और भी बदतर हो जाती है। रेलवे के निजीकरण के हर एक उदाहरण में यह स्पष्ट देखने में आया है कि मज़दूरों का काफी नुकसान होना निश्चित है। कई मामलों में, निजीकरण के बाद रेलवे को फिर से सक्षम बनाने के लिए सरकार को रेल बजट में वृद्धि करनी पड़ी है। रेलवे, जो कि सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने वाला एक साधन है, एक बार जब वह निजी हाथों में चला जाता है तो जनता को सुरक्षित और किफ़ायती दामों पर परिवहन का साधन प्रदान करने की सार्वजनिक हित की सेवा मिलनी बंद हो जाती है। यह इजारेदार पूंजीपतियों के अधिकतम मुनाफ़े बनाने के लालच को पूरा करने का एक साधन बन जाता है।

विफल हुआ ब्रिटिश रेल का निजीकरण

रेल उपयोगकर्ताओं के लिए बेहतर और सस्ती सेवा के वादे के साथ, 1993 के रेलवे अधिनियम के माध्यम से, ब्रिटिश रेल का निजीकरण किया गया था। ब्रिटिश रेल को दर्जनों कंपनियों में बांट दिया गया और इस प्रकार उसका निजीकरण कर दिया गया। देशभर में लगभग 25 निजी कंपनियों ने यात्री ट्रेनों का संचालन किया और छह कंपनियों ने मालगाड़ियां चलाईं। रेलवे के बुनियादी ढांचे जैसे ट्रैक, सिग्नलिंग और स्टेशनों का रखरखाव, रेलट्रैक नामक निजी कंपनी द्वारा किया जाता था।

रेलट्रैक ने रेलवे के बुनियादी ढांचे का रखरखाव करने के लिये, अपने मुनाफ़े से कोई पुनर्निवेश नहीं किया, जिससे पटरियां ख़राब हो गईं और परिणामस्वरूप बहुत-सी रेल दुर्घटनाएं हुईं। इसके बावजूद, रेलट्रैक को 2001 में बड़ी वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा और एक नई सरकारी-स्वामित्व वाली कंपनी नेटवर्क रेल को 2004 में रखरखाव और नवीनीकरण का कार्यभार संभालना पड़ा।

निजीकरण के 25 वर्षों के बाद, इंग्लैंड में रेल सेवाओं का अब व्यवहार में पुनर्राष्ट्रीयकरण हो गया है। जब 2020 में महामारी के कारण यात्रियों की संख्या कम हुई और घाटा बढ़ा, तो सरकार ने 1 अप्रैल, 2020 से सभी निजी रेल कंपनियों के घाटे को अपने ऊपर ले लिया। रेल कंपनियों को अब सरकारी रिकॉर्ड में “सार्वजनिक गैर-वित्तीय निगम” माना जाता है।

2020 में महामारी के फैलने से पहले ही निजी कंपनियों ने कई मार्गों पर अपना संचालन जारी रखने से इनकार कर दिया था और उन्होंने इन मार्गों को संचालन वापस लेने के लिए सरकार को मजबूर कर दिया था।

ब्रिटिश सरकार को जून 2020 में ब्रिटिश रेलवे के भविष्य की समीक्षा के लिए, एक कमेटी  का गठन करना पड़ा क्योंकि बड़ी संख्या में लोग पुनर्राष्ट्रीयकरण की मांग कर रहे थे। ब्रिटेन में हाल ही में एक जनमत संग्रह से पता चला है कि 75 प्रतिशत लोग ब्रिटिश रेल के पुनः राष्ट्रीयकरण के पक्ष में थे।

ब्रिटिश सरकार ने हाल ही में, 20 मई, 2021 को एक श्वेत पत्र जारी किया है, जिसमें समीक्षा के आधार पर रेलवे के लिए एक योजना प्रस्तुत की गयी है। यह योजना 90 के दशक की निजीकृत रेलवे प्रणाली को ख़त्म करके, कई मायनों में निजीकरण से पहले की कार्य प्रणाली को वापस लाने की सिफारिश करती है और इस तरह एक बार फिर पटरियों, गाड़ियों, किराए और टिकटिंग को एक ही सार्वजनिक निकाय के तहत लाने की योजना प्रस्तुत करती है, जो 2023 से अमल में आएगी। उम्मीद की जा रही है कि निजी संचालकों को ट्रेनों के संचालन के लिए ठेके दिए जायेंगे। नया मॉडल एक “ऑपरेशन कॉन्ट्रैक्ट” की तरह होगा, जहां निजी संचालक को शुल्क मिलेगा और राजस्व के कुछ हिस्से को और देकर, उन्हें और अधिक यात्रियों को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

रेल निजीकरण मंत्री ने 1993 में घोषणा की थी कि, “मुझे कोई कारण नहीं दिखता कि निजीकरण के तहत, किराए में तेज़ी से वृद्धि होगी। कई स्थानों पर, वे अधिक लचीले होंगे और कम हो जाएंगे।” इसके विपरीत हक़ीक़त यह है कि ब्रिटेन में निजीकरण के बाद रेल सेवाएं और महंगी हो गईं। 1995 और 2015 के बीच यात्री किराए में औसतन 117 प्रतिशत की वृद्धि हुई और कई मार्गों पर तो 200 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि देखने में आयी।

यूरोप के कुछ देशों में मासिक पासों का मूल्य

ब्रिटेन में मासिक सीजन टिकटों की क़ीमत, फ्रांस और इटली की तुलना में पांच गुना अधिक और जर्मनी की तुलना में तीन गुना अधिक है। ब्रिटेन में रेल यात्रा अधिक आरामदायक और कुशल होने की बजाय जर्मनी, फ्रांस, इटली और स्पेन में मुख्य रूप से सार्वजनिक स्वामित्व वाली रेल सेवाओं की तुलना में धीमी और अधिक भीड़भाड़ वाली है।

निजी कंपनियों ने बहुत कम नई पूंजी का निवेश किया है। हाल के वर्षों में रेलवे में किये गए नए निवेश का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा, करदाता के पैसे से या सरकार द्वारा गारंटीकृत उधार से आया है।

पूंजीपतियों को ब्रिटिश राज्य से वित्तीय सहायता मिलती रही। अनुबंधों के तहत निजी संचालकों को विभिन्न कारणों से मुआवजा देना सरकार के लिए आवश्यक था। उदाहरण के लिए, यदि कोई ट्रेन लेट हो जाती है तो सरकार के स्वामित्व वाली नेटवर्क रेल को निजी कंपनी को मुआवज़ा देना पड़ता है। यदि सरकार ने एक नई ट्रेन चलाने के लिए कहा और यातायात एक निर्दिष्ट स्तर से नीचे पाया गया, तो सरकार को नुकसान की भरपाई करनी पड़ती है।

रेल सब्सिडी वास्तव में 1992-93 में 270 करोड़ पाउंड से बढ़कर 2018-19 में 730 करोड़ हो गई। 2013-14 में, सरकार ने निजी रेल कंपनियों को 380 करोड़ पाउंड दिये। यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) की सरकार ने 2016-2017 में राष्ट्रीय रेल को 420 करोड़ पाउंड की सब्सिडी दी और यूनाइटेड किंगडम के रेल के बुनियादी ढांचे का प्रबंधन करने वाली सार्वजनिक संस्था नेटवर्क रेल को 570 करोड़ पाउंड का ऋण दिया।

2007 और 2011 के बीच, केवल पांच कंपनियों को सरकार से लगभग 300 करोड़ पाउंड प्राप्त हुए। इस भुगतान के बल-बूते पर, उन्होंने 50.4 करोड़ पाउंड के मुनाफे़ की घोषणा की और इसका 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा 46.6 करोड़ पाउंड शेयरधारकों को भुगतान किया गया। इस प्रकार, पूंजीपतियों का पूरा मुनाफ़ा और आय, जिसका डिविडेंड के रूप में भुगतान किया गया, वह हक़ीक़त में सभी बर्तानवी लोगों की जेब से ही आया था।

ब्रिटेन में सरकार द्वारा रेलवे को दी जाने वाली सब्सिडी

ब्रिटेन के लोगों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश रेल के निजीकरण की भारी क़ीमत चुकाई है। वे बहुत खराब-गुणवत्ता वाली सेवाओं के लिए पहले से भी बहुत अधिक किराए का भुगतान करते हैं। पूंजीपतियों को उनका मुनाफा सुनिश्चित करने के लिए हर साल जनता का पैसा दिया जाता है। जब भी निजी रेल कंपनियों को नुकसान होता है, वे रेल सेवाओं के पुनर्राष्ट्रीयकरण के लिए सरकार को बाध्य करती हैं; निजी कंपनियों द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाती है। पूंजीपतियों के मुनाफे़ निश्चित करने  के लिए, कुछ मार्गों के निजीकरण, पुनर्राष्ट्रीयकरण और पुनर्निजीकरण का चक्र, कई बार दोहराया गया है। देश के लोगों को इस चक्र की बढ़ती लागत चुकानी पड़ती है, जबकि पूंजीपति और भी अमीर होते जाते हैं।

जापान

जापान में रेलवे का निजीकरण 1987 में किया गया था और निजीकरण के दावेदार, इसके द्वारा लोगों को बेहतर सुविधाओं को प्रदान करने के लिए, एक मॉडल के रूप में पेश करते हैं। जापान नेशनल रेलवे को छह क्षेत्रीय रेल कंपनियों और एक फ्रेट कंपनी में बांटकर निजीकरण किया गया था। निजीकरण के बाद, निजी रेल संचालकों को कॉमर्शियल और रियल एस्टेट-व्यवसायों में प्रवेश करने की भी अनुमति दी गई। आज कुछ निजी ऑपरेटरों के लिए, गैर-परिवहन राजस्व उनके कुल राजस्व का 30 प्रतिशत से 60 प्रतिशत हिस्सा हैं! इसका मतलब है कि रेलवे कंपनियां शॉपिंग सेंटर, रेस्तरां और होटल चला रही हैं।

निजीकरण के दावेदार इस हक़ीक़त को छिपाते हैं कि जापान के लोग आज भी रेल के निजीकरण की क़ीमत चुका रहे हैं। जापान नेशनल रेलवे ने पहली बार निजी कंपनियों को सौंपने से पहले, विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, सार्वजनिक धन का उपयोग करके, एक आधुनिक रेल ढांचे का निर्माण किया था। इसमें मशहूर शिंकानजेन (बुलेट ट्रेन) चलाने के लिए पूरी तरह से नई रेल लाइनों के साथ-साथ, सिग्नलिंग और संचार प्रणाली भी शामिल थी। आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सरकार द्वारा भारी ऋण लिया गया था लेकिन ऋण चुकाने की ज़िम्मेदारी, निजीकरण के बाद भी जापानी सरकार के पास ही रही!

निजीकरण के 30 साल से अधिक समय के बाद भी, नए शिंकानजेन मार्गों के लिए रेल लाइनें सरकारी धन से बनाई जा रही हैं और जो निजी कंपनियों को इस्तेमाल के लिए सौंपी जा रही हैं!!

इसलिए यह समझना जरूरी है कि जापान में, तथाकथित सफल रेल निजीकरण हक़ीकत हक़ीक़त में, आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सार्वजनिक धन के निरंतर उपयोग और फिर इसे निजी मुनाफे़ अर्जित करने के लिए पूंजीपतियों को सौंपने के मॉडल पर आधारित है।

मलेशिया में पुनः राष्ट्रीयकरण

मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में, पहली लाइट रेल ट्रांजिट (एल.टी.आर.) लाइन, स्टार एल.आर.टी. को एक निजी कंपनी द्वारा बनाया गया था और 1998 में चालू किया गया था। दूसरा एल.टी.आर. बनाने और संचालित करने का अनुबंध भी उसी समय एक दूसरी निजी कंपनी, पुत्रा को दिया गया था। 1997-98 में जब मलेशिया पर वित्तीय संकट आया तो दोनों निजी कंपनियों ने कर्ज़ चुकाना बंद कर दिया और निर्माण कार्य बंद कर दिया। दोनों कंपनियों ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया और इस तरह सरकार को दोनों कंपनियों को अपने हाथ में लेना पड़ा।

मलेशिया के अनुभव ने एक बार फिर दिखाया है कि पूंजीपति रेलवे तभी तक चलाते हैं जब तक उन्हें मुनाफ़ा होता है। जब वे नुकसान का सामना करते हैं तो वे अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना बंद कर देते हैं और राज्य को रेलवे का राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर करते हैं।

लैटिन अमरीका में रेल के निजीकरण का अनुभव

आठ लैटिन अमरीकी देशों – अर्जेंटीना, बोलीविया, ब्राजील, चिली, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला, मैक्सिको और पेरू – ने विश्व बैंक के समर्थन और प्रभाव में 1990 के दशक में रेलवे का कुछ सीमाओं तक निजीकरण किया।

2001 में निजीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय परिवहन श्रमिक संघ (आई.टी.एफ.) ने एक अध्ययन किया जिसने निम्नलिखित बातों को दर्शाया:

  1. निजीकरण के एक दशक से भी कम समय के भीतर ही अधिकांश निजी संचालकों ने अपेक्षा के अनुरूप लाभ न होने के कारण अनुबंधों को संशोधित करने की मांग की हालांकि यह सारे अनुबंध लंबी अवधि के लिए थे।
  2. अधिकांश शहरी यात्री सेवाओं के लिए रेल किराए में वृद्धि हुई। सामान्य तौर पर यह पाया गया कि निजीकृत यात्री सेवाओं में रियायत देने के लिए अनुदान देने की ज़िम्मेदारी सरकारों की हो गयी।
  3. घाटे में चल रही सेवाओं को सामाजिक रूप से आवश्यक होने पर भी बंद कर दिया गया। अंतर-शहरीय यात्री सेवाओं के साथ भी लैटिन अमरीका में यही हुआ।
  4. निजी कंपनियों ने मुख्य रूप से बहुत बड़े पैमाने पर नौकरियों में कटौती करके खर्चा कम किया तथा विश्व बैंक ने यह करने में निजी कंपनियों को मदद दी। रेलवे में प्रत्यक्ष रोज़गार साधारणतः 75 प्रतिशत कम किया गया। कुछ नए रोज़गार उत्पन्न हुए पर वे मुख्य रूप से, ठेकेदारों और उप-ठेकेदारों के माध्यम से थे।

लैटिन अमरीका के तीन बड़े देशों – ब्राजील, अर्जेंटीना और मैक्सिको के अनुभव पर एक विस्तृत नज़र इस बात की पुष्टि करती है कि रेल निजीकरण मज़दूर-विरोधी, समाज-विरोधी और पूंजीपतियों के लालच को पूरा करने का साधन है।

अर्जेंटीना में रेल के निजीकरण को उलटा गया

अर्जेंटीना के रेल नेटवर्क को तीन भागों में विभाजित किया गया था – माल ढुलाई, अंतर- शहरीय यात्रा और मेट्रोपॉलिटन यात्री रेल सेवा (अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के लिए)। 1948 में राष्ट्रीयकरण के बाद, पुराने निजी-ढांचे के समान, माल ढुलाई की सेवाओं को छह क्षेत्रीय कंपनियों में विभाजित किया गया था। 30 साल के पट्टे पर 1996 में उनका निजीकरण किया गया पर अचल संपत्ति जैसे ट्रैक, स्टेशन और रोलिंग स्टॉक राज्य की मिलिकी में रहे। इनको ठेके के तहत निजी कंपनियों को पट्टे पर दिया गया था। अनुबंधों में यात्री सेवाओं के लिए भुगतान किया जाने वाला अनुदान भी शामिल था।

1993 में निजीकरण से पहले अर्जेंटीना में 47,000 कि.मी. (भारत के रेल नेटवर्क की लंबाई लगभग 68,000 कि.मी. है) का रेल नेटवर्क था। निजीकरण के तुरंत बाद, रेलवे नेटवर्क की क्षमता एक चैथाई तक कम हो गयी थी और 1998 तक लगभग 793 रेलवे स्टेशनों को बंद कर दिया गया था।

रेल प्रणाली के बंद होने से इस पर निर्भर अधिकांश ग्रामीण शहर खाली हो गए, शून्य बन कर रह गए और इन शहरों में हुआ विकास भी ख़तम हो गया। अर्जेंटीना के कृषि उत्पादकों ने अपने उत्पाद की ढुलाई के लिए कम कुशल सड़क परिवहन के उपयोग के कारण  कठिनता का सामना करना पड़ा क्योंकि भाड़ा राज्य के स्वामित्व वाली रेल सेवाओं की तुलना में लगभग 70 प्रतिशत अधिक था।

श्रमिकों की संख्या में भी एक बड़ी कमी नज़र आई जो कि 1989 में 94,800 से घटकर 1997 में लगभग 17,000 ही रह गई।

निजी कंपनियों ने इंजनों और रोलिंग स्टॉक में पूंजीनिवेश नहीं किया, जो क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक थे। अतः सेवा की गुणवत्ता और यात्री संख्या में गिरावट आई।

कुछ वर्षों के भीतर ही निजी संचालाकों ने संचालन-व्यय और कुछ निवेश को कवर करने के लिए अनुदान में वृद्धि की मांग की।

निजीकरण के तहत पर्याप्त सरकारी अनुदान जारी रहा ताकि रेल व्यवस्था पूर्ण रूप से तहस-नहस न हो। सिर्फ एक साल, 2011 में पूंजीपतियों को लगभग 700 मिलियन डॉलर का अनुदान मिला। गुजरे हुए वर्षों से यह देखने में आया कि निजी कंपनियों को मिलने वाला सरकारी अनुदान रेलवे के राज्य प्रबंधन के तहत होने वाले नुकसान के बराबर स्तर तक पहुंच गया, जबकि रेल सेवा सीमित ही रही और बुनियादी ढांचा अधिक ख़राब हो गया था।

पांच साल के भीतर, निजी संचालाकों ने किराए में 40 प्रतिशत से 60 प्रतिशत के बीच वृद्धि की। इसके अलावा उन्हें अगले चार वर्षों में औसतन 80 प्रतिशत, 50 से 100 प्रतिशत के बीच, किराए में वृद्धि की अनुमति दी गई थी। अर्जेंटीना के महानगरीय यात्री, निजीकरण के दस वर्षों के भीतर उसी यात्रा के लिए पहले की तुलना में लगभग तीन गुना किराया दे रहे थे। निजीकरण ने रेल चलाने की लागत का बोझ सरकार से यात्रियों पर स्थानांतरित कर दिया।

भीड़भाड़ और सुरक्षा में कमी, प्रकाश व्यवस्था और स्वच्छता यात्रियों की आम शिकायतें बन गईं।

निजीकरण का सबसे ज्यादा असर यात्रियों की सुरक्षा पर देखने में आया। राजधानी ब्यूनस आयर्स में, 2011 और 2012 के बीच छह महीने के भीतर ही दो बड़ी दुर्घटनाओं में 60 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। इन दुर्घटनाओं ने लोगों को सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया और वे पुनः राष्ट्रीयकरण की मांग करने लगे। इस मांग को अब और नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था। अंततः 2015 में निजीकरण को एक नई सार्वजनिक क्षेत्र की रेल कंपनी में पूरे रेल सिस्टम का विलय करके अर्जेंटीना में रेलवे के निजीकरण को उलट दिया गया।

अर्जेंटीना में रेल के निजीकरण का अनुभव हिन्दोस्तान के लिए बहुत प्रासंगिक है। भारतीय रेल के निजीकरण के साथ ही, हमारे यहां भी बड़े पैमाने पर रेल मार्गों का बंद होना, किराए में वृद्धि के साथ-साथ यात्रियों की सुरक्षा की उपेक्षा की उम्मीद की जा सकती है।

ब्राजील

1993 में ब्राजील सरकार के सामान्य निजीकरण कार्यक्रम के एक भाग के रूप में, राज्य के स्वामित्व वाली रेल लाइनों का पुनर्गठन और निजीकरण शुरू हुआ। ब्राजील रेलवे, आर.एफ.एफ.एस.ए. को छह क्षेत्रीय रेलवे में पुनर्गठित किया गया और 1997 के अंत तक उनका निजीकरण कर दिया गया था। परिचालन-संपत्ति को 30 वर्षों के पट्टे पर दे दिया गया था जबकि आर.एफ.एफ.एस.ए. ने बुनियादी ढांचे का स्वामित्व अपने पास बरकरार रखा लेकिन निजी कंपनियों पर सेवाओं को चलाने और बुनियादी ढांचे के रखरखाव तथा नवीनीकरण की ज़िम्मेदारी थी।

1995 से 1999 तक यात्री किलोमीटर आधे से अधिक घट गए।

यात्री सुरक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई। निजीकरण के बाद के वर्ष में इससे पहले के छह वर्षों के सबसे ख़राब वर्ष की तुलना में, एक लाइन पर दुर्घटना दर में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई। दूसरी लाइन पर दुर्घटना दर में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई। निजीकरण के तीन साल के बाद भी, सरकार दुर्घटनाओं में कमी लाने के निजीकरण के उद्देश्य को पूरा करने में विफल रही।

निजीकरण ने श्रमिकों को बहुत ज्यादा प्रभावित किया। तीन वर्षों के भीतर ही श्रमिकों की संख्या लगभग आधी हो गई।

निजीकरण के बाद कोई महत्वपूर्ण नयी रेलवे लाइन नहीं बनायी गयी। निवेश के लिए अधिकांश पूंजी राज्य के स्वामित्व वाले निवेश बैंक के माध्यम से जुटाई गई थी। निजी संचालकों ने एक नई लाइन बनाने के लिए निवेश करने के अपने अनुबंध का सम्मान करने से इंकार कर दिया।

अर्जेंटीना की तरह ब्राजील में भी निजी कंपनियों ने कुछ ही वर्षों के भीतर अनुबंधों पर फिर से बातचीत करने के लिए कहा क्योंकि उन्हें पर्याप्त लाभ नहीं हो रहा था।

जैसा कि कई अन्य देशों में पाया गया, ब्राजील में भी निजी रेल कंपनियों ने सरकार से कहा है कि कोविड महामारी के परिणामस्वरूप यात्रियों की संख्या में आई गिरावट के कारण हुए नुकसान का पुनर्भुगतान करें।

ब्राजील में रेलवे के निजीकरण से भी वही जन-विरोधी परिणाम सामने आए – घाटे में चल रहे मार्गों को बंद करना, सुरक्षा की उपेक्षा करना और बड़ी संख्या में नौकरियों को समाप्त करना, किसी भी नये निवेश से मुंह मोड़ना और जब भी पूंजीपतियों को नुकसान हुआ, उसका वहन करने के लिए राज्य को कहा गया।

मैक्सिको

मैक्सिको में भी रेलवे को तीन क्षेत्रीय कंपनियों, राजधानी की सेवा करने वाली चौथी कंपनी और कुछ छोटे रेल मार्गों में विभाजित किया गया था। तीन क्षेत्रीय कंपनियों में से प्रत्येक मुख्य रूप से माल ढुलाई करती थी और इन सभी का 1998 तक 50 वर्ष के पट्टों पर निजीकरण कर दिया गया था। उत्तरी अमरीका मुक्त व्यापार समझौते (एन.एफ.टी.ए.) पर हस्ताक्षर होना मैक्सिको में रेलवे के निजीकरण की प्रमुख प्रेरक शक्ति था जिसका मुख्य उद्देश्य सीमा पार माल यातायात (संयुक्त राज्य अमेरिका में) कम लागत पर पहुंचाना था।

निजीकरण के बाद यात्री और माल-ढोने वाली लाभहीन सेवाओं को बंद कर दिया गया। सभी “पूर्ण से कम वैगन-लोड” वाली माल ढुलाई सेवाओं और अपर्याप्त यात्री तादाद वाले मार्गों को समाप्त कर दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि पहले साल में ही यात्रियों की संख्या में 80 फीसदी की गिरावट आ गयी। निजी कंपनियों की प्राथमिकता थी लाभप्रद बड़े औद्योगिक ग्राहकों को परिवहन सेवाएं प्रदान करना।

रेलवे का निजीकरण स्पष्ट रूप से अमरीका और मैक्सिको के पूंजीपतियों की ज़रूरतों से प्रभावित था, जो नए बनाए गए मुक्त व्यापार क्षेत्र से अधिकतम लाभ अर्जित करना चाहते थे।

फ्रांस – निगमीकरण के पश्चात भी निरंतर सरकारी सहायता

1938 में रेलवे के राष्ट्रीयकरण के बाद फ्रांसीसी राष्ट्रीय रेलवे एस.एन.सी.एफ. को एक नियमित कंपनी के रूप में स्थापित किया गया, जिसको सरकार से नियमित रूप से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। 2016 में एस.एन.सी.एफ. को सरकार से 14 बिलियन यूरो अनुदान के रूप में प्राप्त हुए और 2017 में 47 बिलियन यूरो का कर्ज़ भी। सरकार ने अधिकांश ऋण का भार अपने ऊपर लेने का निर्णय लिया।

इसके अलावा एस.एन.सी.एफ. को मुख्य रेल लाइनों के नवीनीकरण के लिए 2.3 बिलियन यूरो और अधिक पुलों, अधिक निर्माण और ज्यादा से ज्यादा नवीनीकरण के लिए 1.5 बिलियन यूरो दिए गए थे।

स्विट्जरलैंड

स्विस रेलवे एस.बी.बी. को 1999 में सरकार के स्वामित्व वाले निगम में तब्दील कर दिया गया और हर वर्ष इसे राज्य से वित्त पोषण प्राप्त होता है। 2018 में इसे 3.5 बिलियन स्विस-फ्रांक सार्वजनिक धन से प्राप्त हुआ, अन्यथा यह नुकसान में चली जाती।

सरकार ने महामारी के कारण हुए नुकसान की आंशिक भरपाई के लिए 80 करोड़ स्विस-फ्रांक की अतिरिक्त सहायता देने का वादा भी किया।

सोवियत संघ में रेल व्यवस्था
समाजवादी रूस में कोम्सोमोल्स्काया स्टेशन का भव्य दृश्य

सोवियत संघ ने औद्योगिकीकरण, देश के दूर-दराज़ के क्षेत्रों के विकास और समाजवादी समाज के निर्माण के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 1928 की अपनी पहली पंचवर्षीय योजना से ही रेलवे के विकास पर विशेष ध्यान दिया। प्रथम विश्व युद्ध और महान अक्तूबर क्रांति के बाद हुए गृहयुद्ध के दौरान, लगभग 80,000 किलोमीटर के रूसी रेलवे नेटवर्क का 60 प्रतिशत से अधिक और 80 प्रतिशत से अधिक रेलगाड़ियां और लोकोमोटिव नष्ट हो गए थे।

उसके पश्चात, अगले बीस वर्षों के भीतर समाजवादी राज्य और उसके मज़दूरों ने न केवल नष्ट हुए रेलवे का पुनर्निर्माण किया, अपितु क्रांति-पूर्व स्तर से नेटवर्क को एक तिहाई बढ़ाकर 1,06,000 किलोमीटर कर दिया। परिवहन का सबसे अधिक ऊर्जा-दक्ष और किफायती साधन होने के कारण रेल परिवहन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई जिसके परिणामस्वरूप, 1940 तक 85 प्रतिशत माल (टन-कि.मी.) और 92 प्रतिशत इंटरसिटी यात्री (यात्री-कि.मी.) परिवहन रेलवे के माध्यम से किया जा रहा था।

महान देशभक्ति प्रेरित युद्ध (द्वितीय विश्व युद्ध) के दौरान, फासीवादी ताक़तों को हराने में रेलवे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सैन्य कर्मियों, उपकरणों और सामानों को युद्ध के मोर्चे तक ले जाने के अलावा इसने यूरोपीय क्षेत्रों में स्थापित पूरे कस्बों और कारखानों को सोवियत संघ के भीतर सुरक्षित क्षेत्रों तक पहुंचाने में मदद की। युद्ध के बाद, रेल नेटवर्क को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 1.45.000 कि.मी. कर इसे दुनिया में सबसे बड़ा नेटवर्क बना दिया गया था।

संयुक्त राज्य अमरीका की तुलना में सोवियत संघ में रेल परिवहन के विस्तार को प्रमुखता देने के अंतर को नीचे दिए गये ग्राफ में देखा जा सकता है:

1930 में मास्को मेट्रो का निर्माण सोवियत संघ में रेलवे की प्रमुख उपलब्धियों में से एक है। मेट्रो स्टेशनों की परिकल्पना शानदार “लोगों के लिए महल” के रूप में की गयी थी। वे समाजवादी राज्य में जीवन का चित्रण और समाजवादी राज्य के निर्माण में मज़दूरों और किसानों के योगदान का शुक्रिया अदा करते हैं। 1930 और 1940 के दशक में बने मास्को मेट्रो स्टेशनों की भव्यता, वास्तुकला और सुंदरता दुनिया के किसी अन्य देश ने हासिल नहीं की है।

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