हमारे पाठकों से : वैक्सीन उत्पादन पर इजारेदारी अधिकारों का विरोध किया जाना चाहिए!

प्रिय संपादक,

मैं यह पत्र 13 मई, 2021 को हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित “वैक्सीन उत्पादन पर इजारेदारी अधिकारों का विरोध किया जाना चाहिए!” शीर्षक वाले लेख के सन्दर्भ में लिख रही हूं। लेख बहुत ही सही समय पर लिखा गया है और बड़ी फार्मा कंपनियों की घिनौनी हरकतों को, जिनका उपयोग वे हमेशा से अपने फायदे के लिए करते आए हैं और इस बार फिर कर रहे हैं, उनको सामने लाता है। ऐसे समय पर जब पूरी दुनिया एक खतरनाक वायरस के संकट से जूझ रही है, इजारेदारी फार्मा कम्पनियां सिर्फ अपने “मुनाफे” के बारेमें सोच रही हैं। ऐसे समय पर जब हमें तेज़ी से वैक्सीन लगाने की गति बढ़ती हुई दिखनी चाहिये, तब हम अधिकांश विकासशील देशों को हर दिन कुछ हजार खुराक के लिए संघर्ष करते हुए देख रहे हैं। इस दर से अनुमान है कि दुनियाभर के कई देशों में लाखों लोगों को कम से कम 2023 के वर्ष तक वैक्सीन नहीं मिलेगी। यानि अगले दो साल तक इस संकट को रोका नहीं जा सकता है और वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वैक्सीन के उत्पादक बाजार पर अपना एकाधिकार बनाए रखना चाहते हैं और मुनाफा बढ़ाना चाहते हैं।

इस लेख में हम समझते हैं कि किस तरह सभी देशों की सरकारों ने वैक्सीन को विकसित करने में बेशुमार धन लगाया है। मूलभूत शोध से लेकर, वैक्सीन को विकसित करके उसके उत्पादन साधन कार्यशील करने तक, सभी क़दमों पर लोगों के पैसों का इस्तेमाल किया गया है। उसके बावजूद, सबसे बड़ी फार्मा कंपनियां वैक्सीन के पेटेंट पर और उसके उत्पादन पर कब्ज़ा कर बैठी हैं। सच तो यह है की “बौद्धिक” संपत्ति (पेटेंट) का अधिकार ज़मानेवाली कंपनियों ने वैक्सीन के संशोधन में बिलकुल “बुद्धि” नहीं लगाई है। उदहारण के लिए, हिन्दुस्तान में इस्तेमाल होनेवाली कोविशिएल्ड, इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में विकसित की गई है। उसकी प्रमाणता लोगों के एक छोटे समूह पर प्रमाणित होने पर, अस्ट्राजेनेका ने उसकी टेस्टिंग और उत्पादन के विशेष अधिकार दुनिया भर में हासिल कर लिए। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया, जिसने अस्ट्राजेनेका से वैक्सीन उत्पादन का लाइसेंस हासिल किया है, जिससे वे हज़ारों करोड़ों का मुनाफा कमाएंगे, उसने वैक्सीन को विकसित करने में कुछ नहीं किया है।

ये वैक्सीन दुनिया भर के लोगों की सम्पति है क्योंकि इसे विकसित करने में किये गए प्रयास विज्ञान के उस विकास पर आधारित है, जिसे कई वर्षों से दुनिया भर के वैज्ञानिक कर रहे हैं। लेकिन फिर भी, कोविड-19 वैक्सीन पर पेटेंट से छूट की मांग कर रहे अलग अलग देशों की जनता का जोरदार विरोध बड़ी फार्मा कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। वे कहते हैं कि पेटेंट अधिकार पर छूट देने से संशोधन को मिलने वाला प्रोत्साहन कम हो जाएगा। वे यह भी कहते हैं कि छूट देने से अधिकांश विकासशील देशों  को उसका कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि उनके पास एम-आरएनए तकनीक पर आधारित कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिए पर्याप्त कौशल नहीं है ।

ये सभी दलीलें सरासर झूठी हैं और उनका असली लक्ष्य है बाजार पर अपना वर्चस्व कायम रख अपने एकाधिकार को सुनिश्चित करना। वे डरते हैं की छूट देनेसे वे आनेवाले वर्षों में वैक्सीन उत्पादन के इजारेदारी अधिकार खो देंगे। वे सिर्फ वर्त्तमान संकट के बारे में नहीं सोच रहे हैं, बल्कि वे इस अवसर का उपयोग बाजारों पर एकाधिकार सुनिश्चित करने के लिए कर रहे हैं ताकि भविष्य में वार्षिक बूस्टर ख़ुराक भी उनके नियंत्रण में रहे।

लेख में बिलकुल सही कहा गया है कि पेटेंट से छूट की लढाई की अगुवाई हिंदुस्तानी राज्य हिंदुस्तानी लोगों के हित के लिए लिए नहीं कर रहा है बल्कि हिंदुस्तानी फार्मा इजारेदारों के फ़ायदे के लिए कर रहा है।

पेटेंट अधिकार पर कब्ज़ा करनेवाली विदेशी फार्मा कंपनियों पर आरोप धकेल कर, हिंदुस्तानी सरकार अपने स्वस्थ्य व्यवस्था की नाकामी को छुपाने की कोशिश कर रहा है।

हमें यह समझना होगा कि कम से कम हिन्दुस्तान में वैक्सीन निर्माण को बढ़ाने में पेटेंट कभी भी रोढ़ा नहीं था, क्योंकि दुनियाभर में स्वीकृत आठ कोविड टीकों में से पांच का लाइसेंस और उनमें से दो का उत्पादन पहले से ही हिन्दुस्तान में हो रहा था। जो हिंदुस्तानी राज्य पेटेंट छूट की लड़ाई की अगुवाई कर रहा है और उसे इस संकट से लड़ने में सबसे बड़े रोढ़े के रूप में पेश कर रहा है, वो राज्य खुद अपनी इजारेदार कंपनियों के पेटेंट की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है। उसने भारत बायोटेक को अपने देश में विकसित कोवैक्सिन पर पेटेंट अधिकारों का दावा करने की अनुमति दी। अब हिंदुस्तानी सरकार ने हैफकिन इंस्टिट्यूट जैसे सरकारी फार्मा कम्पनियों को कोवाक्सिन का उत्पदान करने को कहा है, लेकिन उन्हें वैक्सीन को बनाने में कम से कम एक वर्ष लग जाएगा क्योंकि उनके पास उत्पादन के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं। एक के बाद एक सत्ता में आनेवाली सरकारों के सुनियोजित तरीकेसे सार्वजनिक क्षेत्र की फार्मा कंपनियों को कमज़ोर कर उनकी जगह निजी खिलाडियों को बढ़ावा देने की कोशिशों का यह परिणाम है।

अमरीकी सरकार कोविड-19 वैक्सीन के पेटेंट पर छूट देने की चर्चा करने के लिए इसलिए तैयार है क्योंकि उन्हें पता है की असलियत में उससे कुछ भी फरक नहीं पड़ेगा। वैक्सीन के उत्पादन में बहुत सारी जानकारी और व्यापार गुप्त शामिल हैं जो पेटेंट का हिस्सा नहीं हैं। बहरहाल, लोगों और उनके संगठनों द्वारा डाले गए अत्यधिक दबाव ने दुनिया भर की सरकारों को कोविड -19 वैक्सीन पर पेटेंट अधिकारों के मुद्दे को संबोधित करने के लिए मजबूर किया है।

वैक्सीन दुनिया भर के लोगों की सम्पति है और फार्मा इजारेदार कमापनियों के लोगों के दुखों से मुनाफा कमाने के आपराधिक और बेशर्म उद्देश्य को चुनौती देनी होगी ।

शिरीन, पुणे

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