भारतीय रेलवे, देश की अर्थव्यवस्था में, एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसके निर्माण में मजदूरों और उनके परिवारों की कई पीढ़ियों ने योगदान दिया है। हिन्दोस्तानी सरकार द्वारा, देश के इस प्रमुख संस्थान को एक सुनियोजित तरीके से तोड़ा जा रहा है और लोगो से छिपाकर, उसका निजीकरण किया जा रहा है। पिछले 25 वर्षों के दौरान, चाहे केंद्र में कोई भी राजनीतिक पार्टी सत्ता में हो, हर सरकार ने “पुनर्गठन”, “तर्कसंगतता” (रेशनलाइजेशन) और “आधुनिकीकरण” के नाम पर, भारतीय रेलवे के निजीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया है।
अब हक़ीकत में, माल और यात्रियों के परिवहन सहित, भारतीय रेलवे की शायद ही कोई गतिविधि हो, जो निजीकरण के एजेंडा और प्रयासों से अछूती रही हो।
आज भारतीय रेलवे के निजीकरण को एक साथ कई मोर्चों पर आगे बढ़ाया जा रहा है।
भारतीय रेलवे को, सुनियोजित तरीके से विभिन्न निगमों में विभाजित किया जा रहा है। निगमीकरण का अर्थ है भारतीय रेलवे की कुछ गतिविधियों को सरकारी स्वामित्व के तहत, एक अलग निगम के में परिवर्तित करना। इन अलग-अलग कंपनियों को, फिर कुछ निजी इजारेदार पूंजीपतियों को या शेयरों की बिक्री के माध्यम से आंशिक रूप, या एक रणनीतिक बिक्री के रूप में पूरी तरह से से बेचा जा सकता है। निगमीकरण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य, रेल कर्मचारियों की एकता को कमज़ोर करना भी है क्योंकि वे विभिन्न कंपनियों में बंट जाते हैं।
अब तक भारतीय रेलवे द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों के लिए लगभग दो दर्जन निगमों का गठन किया जा चुका है। (विवरण के लिए बॉक्स 1 देखें)
बॉक्स 1: निगमीकृत रेल गतिविधियाँभारतीय रेलवे से अलग करके निगमित की गई गतिविधियां
पृथक रेल निगम के रूप में गतिविधियां प्रारंभ – कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन – महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के तटीय जिलों में रेलवे सेवा प्रदान करता है। – मेट्रो रेल कॉर्पोरेशनें – दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बैंगलोर, कोच्ची, जयपुर, अमरावती (आंध्र प्रदेश), महाराष्ट्र (पुणे, नागपुर), गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आदि के लिए संबंधित राज्य सरकारों के साथ संयुक्त उद्यम के रूप में मेट्रो ट्रेन सेवाओं का निर्माण और संचालन। |
2020 में, रेलवे की बोगियों और इंजन का उत्पादन करने वाली सात उत्पादन इकाइयों के निगमीकरण की एक प्रमुख योजना की घोषणा की गई थी। कर्मचारियों के भारी विरोध के चलते, इसे फिलहाल टाल दिया गया है।
निगमीकरण, निजीकरण की दिशा में पहला कदम है। गौर करने की जरूरत है कि शेयर बाजार में भारतीय रेलवे की छह कंपनियों के शेयर पहले ही बिक चुके हैं। (बॉक्स 2 देखें)
बॉक्स 2: शेयरों की बिक्री के माध्यम से आंशिक रूप से निजीकृत निगम
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केंद्र सरकार, भारतीय रेलवे को दो भागों में – एक ट्रैक की मालिकी वाली कंपनी और दूसरी ट्रेन-संचालन कंपनी, इन दो टुकड़ों में तोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रही है। जहां ट्रैक-मालिकी वाली कंपनी सरकारी स्वामित्व (सार्वजनिक क्षेत्र) वाली रहेगी, ट्रेन संचालन कंपनियां या तो सरकारी स्वामित्व वाली या निजी स्वामित्व वाली – दोनों प्रकार की हो सकती हैं। ट्रैक-मालिकी वाली कंपनी पूर्व-निर्धारित शुल्क पर, दोनों सरकारी और निजी-स्वामित्व वाली ट्रेन कंपनियों को अपना बुनियादी ढांचा, उनके इस्तेमाल के लिए प्रदान करेगी। पूंजीपति, यात्री और माल सेवाएं केवल उन्ही मार्गों पर ही उपलब्ध कराएंगे जिन पर उनको मुनाफा बनाने का मौक़ा मिलेगा। भारतीय रेलवे के हिस्से में उन सभी सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करने की ज़िम्मेदारी रह जायेंगी जो या तो पहले से ही घाटे में चल रही हैं, या उनमें मुनाफ़ा बनाने की गुन्जायिश नहीं है लेकिन जो सामाजिक रूप से लोगो के लिए निहायत जरूरी हैं।
निजी यात्री और मालगाड़ी सेवाओं को चलाने की योजना पहले ही शुरू की जा चुकी है। निजी यात्री ट्रेनों की शुरुआत 2019 में तेजस ट्रेनों के साथ हुई थी और अब अगले कुछ वर्षों में 109 मार्गों पर निजी-मालिकी पर चलने वाली 151 ट्रेनों की शुरुआत के साथ इसे और आगे बढ़ाया जा रहा है। निजी ट्रेनों के लिए चुने गए मार्ग सबसे व्यस्त मार्ग हैं और भारतीय रेलवे के लिए सबसे अधिक लाभदायक हैं।
2021 के केंद्रीय बजट में पश्चिमी और पूर्वी डेडिकेटेड-फ्रेट-कॉरिडोर पर निजी मालगाड़ियों को शुरू करने की योजना की घोषणा कर दी गई है, और 2022 में ये दोनों डेडिकेटेड-फ्रेट-कॉरिडोर निजी मालगाड़ियों को चलाने के लिए तैयार हो जाएंगे।
यात्री सुविधाओं में सुधार के लिए, रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण के नाम पर, रेलवे स्टेशनों के निजीकरण का एक और क्षेत्र खोल दिया गया है। इस उद्देश्य के लिए, एक नये संगठन, भारतीय रेलवे स्टेशन विकास निगम, का गठन किया गया है। रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण के बाद, 8 से 30 वर्ष की लीज़ अवधि के लिए फूड स्टॉल, रिटायरिंग रूम, बिजली, प्लेटफॉर्म रखरखाव, पार्किंग जैसी सुविधाओं का प्रबंधन, निजी डेवलपर के हाथ में होगा। निजी डेवलपर्स को भी स्टेशनों की जमीन पर, मुनाफ़े बनाने हेतु शॉपिंग मॉल, होटल और आवासीय सुविधाओं जैसे अन्य धंधों को विकसित करने की पूरी खुली छूट दी जा रही है। इसके लिए जमीन 60 साल तक की लीज़ पर दी जाएगी। यात्रियों को अपने टिकट के एक हिस्से के रूप में इन निजीकृत स्टेशनों पर ‘उपयोगकर्ता शुल्क’ का भुगतान करना होगा। यह धन राशि, पूंजीपतियों को भी मिलेगी। 110 स्टेशनों का आधुनिकीकरण और निजीकरण शुरू हो चुका है।
निजी यात्री और मालगाड़ियों की शुरूआत की तैयारी के लिए, सरकार ने 2018 में एक रेल विकास प्राधिकरण के गठन को मंजूरी दी थी जो रेलवे की एक सलाहकार / सिफ़ारिशी निकाय के रूप में काम करेगा। इस प्राधिकरण की जिम्मेदारी होगी, ‘सेवाओं के खर्च के अनुरूप मूल्य निर्धारण करना’ (जिसका अर्थ है सब्सिडी और रियायतों को हटाना), ‘प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना’ (जिसका अर्थ है ट्रेन संचालन का निजीकरण), और ‘निवेश के लिए सकारात्मक वातावरण’ (जिसका अर्थ है निजी-पूंजी के लिए आकर्षक शर्तें प्रदान करना) – यह प्राधिकरण इन सब मुद्दों के बारे में सिफारिशें देगा।
जबकि भारतीय रेलवे के निजीकरण का कार्यक्रम पिछले छ: वर्षों के दौरान भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा तेज किया गया है, यह उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के समग्र कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, 1994 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू किया गया था।
कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों द्वारा, समय-समय पर विभिन्न समितियों का गठन यह कहकर किया गया था कि उनका उद्देश्य, भारतीय रेलवे की दक्षता में सुधार के लिए, युक्तिसंगत-पुनर्गठन की जरूरत को पूरा करना है। (विवरण के लिए बॉक्स 3 देखें)
बॉक्स 3: निजीकरण को न्यायोचित ठहराने के लिए कमेटियों का गठन1994: भारतीय रेलवे में सुधारों की सिफारिश करने के लिए तीन कमेटियों का गठन किया गया –
2001: डॉ. राकेश मोहन, पूर्व महानिदेशक, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनोमिक रिसर्च (आर्थिक अनुसंधान), नई दिल्ली की अध्यक्षता में भारतीय रेलवे पर विशेषज्ञ समूह (एक्सपर्ट ग्रुप) ने ” पुन:-आविष्कार और विकास के लिए नीति-अनिवार्यता” शीर्षक से, एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के द्वारा, रेलवे गतिविधियों को ‘कोर’ और ‘नॉन-कोर’ में विभाजित करने और गैर-कोर गतिविधियों के आउट-सोर्सिंग और उनके निगमीकरण का प्रस्ताव रखा गया। 2011: ‘भारतीय रेलवे का आधुनिकीकरण’ के लिए सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने निजी-सार्वजानिक- साझेदारी के माध्यम से निजीकरण को और आगे बढावा दिया। 2014: ‘मुख्य प्रकल्पों के लिए संसाधनों का इंतज़ाम और रेलवे मंत्रालय एवं रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन’ विषय पर नीति आयोग के सदस्य, बिबेक देबराय की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया। उसने भारतीय रेलवे के साथ स्पर्धा में निजी यात्री और माल गाड़ियां शुरू करने की सिफ़ारिश की। |
उनका वास्तविक उद्देश्य, हमेशा पूंजीपतियों के लिए, उन गतिविधियों को, जो परंपरागत रूप से भारतीय रेलवे द्वारा की जाती रही हैं लेकिन जिनसे निजी मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, ऐसे नए क्षेत्रों को पूंजीपतियों के लिए खोलना रहा है और ऐसे क्षेत्र जिनमें मुनाफा बनाने की गुंजाईश कम है, ऐसी गैर-लाभकारी सेवाओं को सरकार द्वारा जनता के पैसे से चलाने के लिए छोड़ दिया जाता है।
पहले यह सुझाव दिया गया था कि भारतीय रेलवे को केवल उन्हीं गतिविधियों में संलग्न होना चाहिए जो सीधे तौर पर रेलवे की ‘मूल’ (कोर) गतिविधि से संबंधित हैं और सभी ‘गैर-कोर’ गतिविधियों को आउटसोर्स या निगमीकृत किया जा सकता है। माल और यात्री परिवहन को “कोर” गतिविधि के रूप में परिभाषित किया गया था।
पिछले कुछ वर्षों में, रेलवे स्टेशनों की सफाई, ट्रेनों की धुलाई, भोजन खानपान, बेड रोल की लोडिंग/अनलोडिंग, ए.सी. डिब्बों के एयर कंडीशनिंग के रखरखाव, आदि जैसी बहुत सी गतिविधियों को आउटसोर्स किया गया है। लोकोमोटिव, कोचों और वैगनों के उत्पादन, दूरसंचार नेटवर्क के रखरखाव और आईटी सिस्टम जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियों को भी आउटसोर्स किया गया। रेल कर्मचारियों के कल्याण के लिए स्कूल, कॉलेज और अस्पताल चलाने की गतिविधियों को भी आउटसोर्स किया गया। आउटसोर्सिंग का मतलब है कुछ विशेष गतिविधियां, जो अब तक भारतीय रेलवे के मज़दूरों द्वारा चलायी जा रही थीं, अब एक निजी ऑपरेटर को अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर चलाने के लिए दे दी जायेंगी।
माल परिवहन के निजीकरण का पहला प्रयास, 2006 में किया गया था जब निजी ऑपरेटरों द्वारा कंटेनर ट्रेन चलाने की नीति की घोषणा की गई थी। इस नीति के आधार पर, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (कॉनकोर) सहित 19 कंपनियों को, कंटेनर ट्रेन चलाने के लिए लाइसेंस दिया गया था। ये कंटेनर ट्रेनें, पूर्व-निर्धारित ढुलाई शुल्क के भुगतान पर, लाइसेंस-प्राप्त निजी कंटेनर ट्रेन ऑपरेटरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए चलाई जाती हैं।
भारतीय रेलवे ने, निजीकरण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी-साझेदारी (पी.पी.पी.) मॉडल का भी इस्तेमाल किया। जबकि इसे साझेदारी कहा जाता है, पी.पी.पी. वास्तव में एक अत्यंत असमान और एकतरफी व्यवस्था है, जहां निजी कंपनी को मुनाफ़े का आश्वासन दिया जाता है, जबकि राज्य, लोगों के प्रतिनिधि के रूप में, सभी जोखिमों को वहन करता है। राज्य (केंद्र सरकार), निवेश की गई निजी पूंजी पर मुनाफ़े की एक गारंटीकृत दर दिलाने का वायदा करता है। इस तरह से, जब कि मुनाफ़ा निजी पूजीपतियों की ज़ेबों में जाता है, किसी भी तरह का नुकसान होने पर, सरकार लोगों की पूंजी से लोगों के नाम पर उसकी भरपाई करती है।
पी.पी.पी. मॉडल पूंजीपतियों के लिए रेलवे स्टेशनों, हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर, एलिवेटेड रेल कॉरिडोर, फ्रेट टर्मिनलों, वैगनों को पट्टे पर देने, लोको और कोच निर्माण, और कैप्टिव बिजली उत्पादन जैसे विभिन्न रेल परिचालनों से लाभ के लिए पसंदीदा तरीका बन गया है।
2014 में, 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) के लिए रेलवे के 17 प्रमुख क्षेत्रों को खोलने के साथ ही, निजी भारतीय और विदेशी पूंजी के लिए मुनाफ़ा बनाने के लिए, और अधिक आकर्षक अवसर पैदा हुए। अमेरिका की कंपनी, जनरल इलेक्ट्रिक (जी.ई.) और फ्रांस की एल्सथाम कंपनी की विदेशी पूंजी के साथ, दो उच्च-मूल्य के डीजल और इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव निर्माण संयंत्र, पहले से ही बिहार के मधेपुरा और मढ़ौरा में चल रहे हैं और इन दोनों कंपनियों को दीर्घकालीन व्यापार का आश्वासन भी दिया गया है।
यह स्पष्ट है कि भारतीय रेलवे का निजीकरण, दो दशकों से भी अधिक समय से, लोगों की पीठ-पीछे, कदम-दर-कदम चलता रहा है। इसे शुरू में, आउटसोर्सिंग और पी.पी.पी. के नाम से किया गया था। अब इसे, खुलेआम निजीकरण के नाम पर, अंजाम दिया जा रहा है।
यह एक ऐसा कार्यक्रम है जो अंततः भारतीय रेलवे की सभी लाभदायक गतिविधियों को पूंजीपतियों को हस्तांतरित कर देगा। सरकारी स्वामित्व वाली भारतीय रेलवे के पास घाटे में चल रहे यात्री और माल ढुलाई संचालन के साथ-साथ केवल पटरियों, सिग्नलिंग सिस्टम और इस से संबंधित बुनियादी ढांचे का स्वामित्व ही बचेगा – बाकी सब निजी पूजीपतियों को सौंप दिया जाएगा।
पिछला भाग पढ़ें : भारतीय रेल का निजीकरण – भाग-2 : रेलवे का निजीकरण – किसके हित में?