देश में मौजूदा स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था के पूरी तरह से नाकाम और निष्क्रिय होने के बाद पूरे देश में मौत और तबाही ही नज़र आती है।

पिछले कुछ हफ्तों में कोरोना महामारी, जंगल की आग की तरह फैल गई है। हजारों अत्यंत बीमार लोग, जो सांस लेने तक में असमर्थ हैं, उनको उनके निकट संबंधियों और दोस्तों द्वारा अस्पतालों में भरती करने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। हालत यह है कि अस्पतालों के पास, मरीजों को भरती करने के लिए जगह नहीं बची है। मरीजों को, अस्पतालों के फाटकों पर पहुंचते ही, अन्य अस्पतालों की तलाश करने के लिए कहा जा रहा है। कई लोग तो अस्पताल खोजने की कोशिश में ही मौत का शिकार हो जाते हैं। बहुत से लोग तो अस्पतालों के बरामदों में ही दम तोड़ने के लिए मजबूर हैं।
हर जगह स्वास्थ्य-सेवाओं की ख़तरनाक कमी दिखाई दे रही है। अस्पतालों में कोई खाली बिस्तर उपलब्ध नहीं हैं – न तो आई.सी.यू. बेड मिल रहे हैं न ही ऑक्सीजन के साथ बेड मिल रहे हैं, यहां तक कि साधारण बेड भी उपलब्ध नहीं हैं। डॉक्टरों द्वारा निर्धारित दवाएं, बाज़ार में उपलब्ध नहीं हैं और दूसरी तरफ दवाओं का एक काला बाज़ार चालू है। एम्बुलेंस सेवाओं की भी सख़्त कमी है। श्मशान-स्थलों और कब्रिस्तानों में लंबी लाइनें लगी हैं। सामूहिक दाह संस्कार करने के लिए, लोग मजबूर हैं और दिल्ली तथा अन्य शहरों से रिपोर्ट आ रही है कि दाह संस्कार के लिए लोगों को लकड़ी की भी कमी का सामना करना पड़ रहा है। फोन कॉल, सोशल मीडिया पोस्ट और व्हाट्सएप लोगों की विनम्र गुज़ारिशों से भरे हुए हैं, इस उम्मीद के साथ कि कोई व्यक्ति, उनके गंभीर रूप से बीमार अपने दोस्तों या रिश्तेदारों की मदद कर सकेगा। स्वास्थ्यकर्मी थक गए हैं और अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं।
हमारे कस्बों और गांवों में स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था, जो अच्छे समय में भी इतनी दयनीय स्थिति में होती है, अब इस आपातकालीन स्थिति में तो पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है।
इस खौफनाक स्थिति के लिए पूरी तरह से, केंद्र सरकार ज़िम्मेदार है। जब सरकार ने चौदह महीने पहले, मार्च 2020 में लॉकडाउन की घोषणा की थी तो उसके साथ यह भी घोषणा की थी कि वह महामारी से निपटने में सक्षम होने के लिए, एक बेहतर स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था तैयार करना चाहती है। जनवरी 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के अन्य देशों को बताया कि महामारी से कैसे निपटें यह भारत से सीखें!
अपने स्वयं के स्वास्थ्य-सेवा विशेषज्ञों की सिफारिशों में से किसी भी सिफारिश को, हक़ीक़त में सरकार ने लागू नहीं किया है। इन विशेषज्ञ-समितियों ने भविष्यवाणी की थी कि इससे पहले कि इस महामारी का हम कोई इलाज ढूंढ पायंे या अधिकांश लोगों को टीका लगाया जा सके, इस महामारी की कई लहरें आएंगी। उन्होंने एक वर्ष से अधिक समय पहले ही देश में पर्याप्त ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना की सिफारिश की थी। इसे अमल में लाने के लिए कुछ भी नहीं किया गया।
आज हालत इस हद तक पहुंच गयी है कि हर दिन हमको एक नई अनकही मानवीय पीड़ा और दर्दनाक मौतों की ख़बरें मिल रही हैं। इस समय जब अस्पतालों में बिस्तर और ऑक्सीजन की आपूर्ति की भारी मात्रा में कमी से हम सब जूझ रहे हैं, निजी अस्पतालों ने इस स्थिति का फ़ायदा उठाकर उन सभी सेवाओं के लिए जिन्हें वे प्रदान करने में सक्षम हैं, उन सेवाओं के लिये मरीजों पर अत्यधिक शुल्क वसूलकर, बड़े पैमाने पर पैसा कमा रहे हैं और अन्य कई सामानों की आपूर्ति और अन्य सेवाओं के लिए मरीजों को अस्पताल के बाहर से ख़रीदने पर मरीजों को भारी रकम का भुगतान करने के लिये मजबूर किया जा रहा है। ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति को विभिन्न कंपनियों के लिए एक मुनाफ़ाख़ोरी के अवैध धंधे में बदल दिया गया है। मरीजों को ऑक्सीजन की ज़रूरी आपूर्ति के लिए भारी रकम का भुगतान करना पड़ रहा है।
इजारेदार पूंजीपतियों, फार्मा कंपनियों, निजी अस्पतालों और टीका बनाने वाली कंपनियों के मुनाफ़ों को सुनिश्चित करने और “कुशल प्रबंधन” की एक अंतर्राष्ट्रीय छवि को बनाए रखने में ही, हिन्दोस्तानी राज्य व्यस्त है। सरकार के झूठे प्रचार से लोग परेशान हैं और तंग आ गए हैं लोग अब अधिकारियों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं।
अधिकारियों के अपराधों और आधिकारिक चैनलों द्वारा फैलाई जा रही गलत सूचनाओं को उजागर करने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का सहारा लिया है। ऐसा करने के लिए उन्हें अधिकारियों द्वारा सताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री ने खुलेआम आई.सी.यू. बेड, ऑक्सीजन और अन्य आपूर्ति की कमी की रिपोर्ट करने वाले अस्पतालों को धमकी दी है कि उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। मरीजों और उनके परिवारों, जिन्होंने चिकित्सा आपूर्ति और सेवाओं में कमी के बारे में सोशल मीडिया पर रिपोर्ट पोस्ट की है उन्हें प्रताड़ित किया गया है और धमकी दी जा रही है। स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था के पतन और अधिकारियों की उदासीनता के कारण कोविड की दर्दनाक मौतों पर रिपोर्टिंग के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों को धमकियां दी जा रही हैं।
केंद्र और विभिन्न विपक्ष-शासित राज्य सरकारें, इस भयानक स्थिति के लिए एक दूसरे को दोषी ठहराने में व्यस्त हैं, जबकि उनमें से प्रत्येक अपने स्वयं के अपराधों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है। अभी दो महीने पहले यही सरकारें खुद को शाबाशी दे रही थीं, इसलिए कि उनके द्वारा उठाये गए क़दम बड़े कारगर साबित हुए और परिणामस्वरूप उनके राज्यों में, अस्पतालों में मरीजों की संख्या और मौतों की संख्या कम हो गई थी इसलिए इस का श्रेय उनको जाना चाहिए – ऐसा दावा किया जा रहा था। इससे साफ़ पता चलता है कि न तो केंद्र सरकार ने और न ही राज्य सरकारों ने हमारे देश की कमज़ोर स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था के सामने खड़ी समस्याओं के समाधान के लिए कभी गंभीरता से ध्यान दिया।
मार्च 2020 में जब कोविड महामारी शुरू हुईइ थी तो यह स्पष्ट रूप से सामने आया था कि हिन्दोस्तान को ऐसी स्थिति से निपटने के लिए, एक सर्वव्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था को स्थापित करने और मजबूत करने की आवश्यकता है। इस तरह की व्यवस्था को स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता पर केंद्र सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। हमारे शासक, इस महामारी से लोगों के लिए उत्पन्न एक बहुत ही दुखद स्थिति का फ़ायदा उठाकर बड़े पूंजीवादी घरानों के लिए अधिक से अधिक लाभ सुनिश्चित करने में अधिक रुचि रखते थे, बजाय उन उपायों को लागू करने में जिनसे इस महामारी के विनाशकारी परिणामों से समाज के सभी लोगों की रक्षा की जा सके। उन्होंने सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाकर, ऐसे मज़दूर और किसान-विरोधी कानूनों को पारित किया जिससे मज़दूरों के अधिकारों को और अधिक प्रतिबंधित किया जा सके, कृषि क्षेत्र को देशी और विदेशी पूंजीवादी घरानों के लिए खोल दिया गया और इस तरह से पंजीवादी घरानों को हमारे देश के लोगों की भूमि, श्रम और प्राकृतिक संसाधनों के और भी अधिक शोषण के माध्यम से अपने मुनाफ़े को कई गुणा बड़ा करने के और भी अधिक अवसर सुनिश्चित किए गए हैं। प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से बड़े पूंजीवादी घरानों को “आपदा को अवसर में बदलने” की सलाह दी!
कोविड महामारी एक बार फिर से हम सबको याद दिलाती है कि मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था पूरी तरह से अमानवीय व्यवस्था है। हिन्दोस्तानी राज्य, इस अमानवीय व्यवस्था की रक्षा करता है। इसका मुख्य उद्देश्य लाखों लोगों के जीवन की बलि चढ़ाकर हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीवादी घरानों को समृद्ध बनाना है। पूंजीपति वर्ग जो हमारे देश पर शासन करता है और जो सरकारें, सबसे बड़े इजारेदार पूंजीवादी घरानों के एजेंडे को पूरा करने के लिए काम करती हैं, वे समाज में लाखों मेहनतकश लोगों के सामने आने वाली समस्याओं को सुलझाने में पूरी तरह से असमर्थ और नाकाम हैं। शासक पूंजीपति वर्ग पूरी तरह से अपने वर्ग-चरित्र के अनुसार, इस मानव संकट का फा़यदा उठाकर अपने मुनाफ़ों को और बढ़ाने के लिए और अधिक अवसर ढूंढ रहा है। कोविड महामारी एक बार फिर साबित कर रही है कि पूंजीपति वर्ग शासन करने के क़ाबिल नहीं है। यह पूंजीवादी व्यवस्था मानव समाज को केवल अधिक से अधिक आपदाओं की ओर ही ले जाती है।