भारतीय रेल का निजीकरण – भाग-2 : रेलवे का निजीकरण – किसके हित में?

भारतीय रेल का निजीकरण देशी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के इशारे पर किया जा रहा है। ये पूंजीपति सस्ते दामों पर भारतीय रेल के विशाल बुनियादी ढांचे, भूमि और प्रशिक्षित मज़दूरों का अधिग्रहण करना चाहते हैं। दशकों से सत्ता में रही सभी पार्टियों द्वारा क़दम-दर-क़दम अपनाए गए निजीकरण का असली कारण यही है। भारतीय रेल के निजीकरण को पिछले कुछ वर्षों के दौरान इजारेदार पूजीपतियों के आग्रह पर, फिर से तेज़ किया गया है क्योंकि 2008 के बाद से जारी आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए, इस समय अधिकतम मुनाफ़े कमाने के लिए पूंजीपति नए रास्ते तलाश रहे हैं।

हालांकि लोगों को बताया जाता है कि निजीकरण का उद्देश्य भारतीय रेल को आधुनिक बनाकर बेहतर सेवाएं प्रदान करना है। लोगों को यह भी बताया जाता है कि सरकार के पास भारतीय रेल को आधुनिक बनाने के लिए धन नहीं है इसलिए देशी और विदेशी पूंजीपतियों से निजी पूंजी आमंत्रित की जा रही है।

‘आधुनिकीकरण’ में निवेश करने के लिए पूंजीपतियों को पेश किये जा रहे विभिन्न प्रस्तावों की एक गहरी समीक्षा से पता चलता है कि निजी मुनाफ़ों के लिए, लोगों के धन से निर्मित संपत्ति को कैसे पूंजीपतियों को सौंपा जा रहा है और कैसे भारतीय रेल जैसी एक आवश्यक सेवा के निजीकरण कारण देश की कामकाजी आबादी के लोगों की पहुंच से बाहर हो जायेगी और वे इन सेवाओं से वंचित कर दिए जायेंगे।

भारतीय रेल ने निजी कंपनियों को आमंत्रित किया है कि वे 2023 से रेलवे के 12 क्लस्टरों में 109 मार्गों पर 151 रेलगाड़ियों को चलायें। भारतीय रेल इन निजी कंपनियों को पटरियां और सिग्नलिंग सिस्टम जैसी सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करेगी। शुरू में निजी रेलगाड़ियों के संचालन का अनुबंध 35 वर्षों के लिए होगा। पूंजीपतियों को केवल “आधुनिक सवारी डिब्बों” के लिये निवेश करने की आवश्यकता होगी और यदि वे चाहें तो भारतीय रेल के मौजूदा सवारी डिब्बों को पट्टे (लीज) पर लेने और उन्हें अपग्रेड करने की सुविधा भी मिलेगी।

30 जून, 2021 तक अपनी अंतिम बोली लगाने से पहले निजी कंपनियों ने कई रियायतें मांगी हैं। वे चाहते हैं कि भारतीय रेल उन्हें एक अन्य मार्ग लेने की सुविधा भी दे, यदि वे प्रस्तावित मार्ग से मुनाफ़ा नहीं बना पाते हैं। वे इस बात की भी गारंटी चाहते हैं कि किसी भी स्टेशन से 50 किलोमीटर की सीमा के अंदर, निजी रेलगाड़ियों के चलने के एक घंटे पहले या बाद में, भारतीय रेल की रेलगाड़ी को चलाने के अनुमति न मिले। इसके अलावा वे चाहते हैं कि भारतीय रेल किसी भी रेलगाड़ी को तब तक न चलाए जब तक कि निजी रेलगाड़ी की क्षमता का उपयोग 90 प्रतिशत तक न पहुंच जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो निजी संचालक यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि निजी रेलगाड़ी के संचालन से उनके मुनाफ़े की गारंटी हो। वे चाहते हैं कि भारतीय रेल उनके साथ प्रतिस्पर्धा न करे और वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यात्रियों के सामने कोई और रास्ता न हो ताकि वे यात्रियों से मनमाना किराया वसूल कर सकें। निजी संचालकों को पहले से ही रेलगाड़ी का किराया तय करने की स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया है।

निजी यात्री-रेलगाड़ियों को केवल तभी चलाया जाएगा जब वे लाभदायक होंगी। महामारी के कारण जैसे ही यात्रियों का आवागमन कम हो गया, निजी रेलगाड़ी ‘तेजस’ को निलंबित कर दिया गया। जब यात्रियों की संख्या में फिर से बढ़ोतरी हुई तो उसे फिर से शुरू कर दिया गया, लेकिन जब महामारी की दूसरी लहर के कारण यात्रियों की संख्या फिर से कम हो गई तो उसे फिर से निलंबित कर दिया गया। इससे बिलकुल साफ़ नज़र आ रहा है कि निजी रेलगाड़ियों के संचालकों का उद्देश्य लोगों को यातायात की विश्वसनीय सेवा प्रदान करना नहीं है।

निजी रेलगाड़ियों से रेलवे की समग्र परिचालन क्षमता में वृद्धि की उम्मीद नहीं की जा सकती। वास्तव में, इन निजी रेलगाड़ियों के आने से भारतीय रेल द्वारा संचालित रेलगाड़ियों के संचालन की स्थिति और बदतर होने संभावना दिखाई पड़ती है। रेलवे कर्मी पहले से ही अन्य रेलगाड़ियों के बजाय, निजी तेजस रेलगाड़ियों को प्राथमिकता देने के लिए दबाव में हैं। जैसे-जैसे निजी रेलगाड़ियों की संख्या बढ़ेगी, भारतीय रेल की गाड़ियों के समय पर चलने और उनके द्वारा प्रदान की जा रही अन्य सेवाओं पर और भी इसका बुरा असर पड़ेगा। निजी संचालकों द्वारा इस मांग पर ज़ोर देने की भी उम्मीद की जा रही है कि भारतीय रेल द्वारा किसी लापरवाही के लिए वह भारी जुर्माना भरे।

सवारी गाड़ियों का निजीकरण रेल के नेटवर्क के विस्तार और उसको बेहतर बनाने के लिए निवेश में कोई मदद नहीं करेगा, खासकर रेल की पटरियों के विस्तार और रखरखाव के लिए, जो भारतीय रेल के सामने आज की सबसे बड़ी समस्या है। फरवरी 2015 के भारतीय रेल के एक श्वेत पत्र के अनुसार, भारतीय रेल के 1,219 लाइन-अनुभागों में से 40 प्रतिशत का उपयोग, क्षमता के 100 प्रतिशत से भी अधिक किया जाता है। तकनीकी रूप से अपनी क्षमता का 90 प्रतिशत से अधिक उपयोग करने वाले अनुभाग को संतृप्त माना जाता है और उसका उपयोग उससे ज्यादा नहीं किया जाना चाहिए।

इसके विपरीत, निजी ऑपरेटरों को अधिक गति से चलने वाली गाड़ियां सौंपने के पहले, जनता का पैसा रेलवे की बुनियादी सुविधाओं को उन्नत करने के लिए खर्च किया जा रहा है। मुंबई-दिल्ली और मुंबई-हावड़ा मार्गों पर उच्च गति की गाड़ियों को चलाने के लिए पटरियों और सिग्नलिंग और सिस्टम को बेहतर बनाने के लिये 13,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत की एक परियोजना पर काम चल रहा है, जिसे 2023 तक पूरा किया जायेगा, जबकि इसी वर्ष से निजी ऑपरेटरों द्वारा अपनी निजी गाड़ियों को चलाने की योजना है। लोग पूछ रहे हैं कि इन मार्गों पर बुनियादी ढांचे के बेहतर होने के बाद निजी संचालकों की बजाय, तेज़ गति से चलने वाली रेलगाड़ियां भारतीय रेल खुद क्यों नहीं चला सकती और क्या स्वयं भारतीय रेल लोगों को बेहतर सेवा नहीं दे सकती।

पूंजीपतियों की मांग है कि हर तरह की सब्सिडी को खत्म करके सवारी किराए में वृद्धि की जानी चाहिए और वे इस बात पर भी ज़ोर दे रहे हैं कि रेल द्वारा माल की ढुलाई की दरों में कमी की जाये। सरकार ने यात्री किराए में वृद्धि करने के लिए महामारी को बहाने की तरह इस्तेमाल किया है। चूंकि महामारी फैल गई थी, भारतीय रेल ने नियमित रेलगाड़ियों की सामान्य सेवा को एक वर्ष के बाद भी निलंबित ही रखा है और केवल विशेष रेलगाड़ियों के रूप में सीमित संख्या में गाड़ियां चल रही हैं। इन रेलगाड़ियों का किराया नियमित गाड़ियों की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत अधिक है। यह बढ़ा हुआ रेल किराया निजी संचालकों के लिए अपने किराये तय करने का आधार बन जाएगा। निजी संचालकों को गाड़ियों का किराया तय करने की स्वतंत्रता पहले से दी गई है।

भारतीय रेल की सेवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों में वे कामकाजी लोग भी हैं जो ऐसी सुरक्षित, आरामदायक और सस्ती सेवा चाहते हैं जो उनकी पहुंच से बाहर न हो। उनकी पहुंच से बाहर निजी गाड़ियों का किराया, करोड़ों लोगों को परिवहन के एक अत्यावश्यक साधन से वंचित करे देगा। इजारेदार पूंजीपतियों के मुनाफ़ों को सुनिश्चित करने के लिए किराए को बढ़ाने के लिए, आधुनिकीकरण का बहाना पेश नहीं किया जा सकता। लाखों कामकाजी लोग जो बड़े शहरों में हर रोज़ अपने काम के स्थानों तक की यात्रा करने के लिए रेल की सेवाओं पर निर्भर हैं, उन पर भारतीय रेल के निजीकरण का बहुत ही बुरा असर पडे़गा।

2021-22 के केंद्रीय बजट में रेलवे सहित सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण पर बड़ा ज़ोर दिया गया है। वित्त मंत्री ने घोषणा की कि “डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डी.एफ.सी.) के पूरा होने के बाद, संचालन और रखरखाव के लिए रेलवे विमुद्रीकृत करेगा।” दो फ्रेट कॉरिडोर – एक पश्चिमी डी.एफ.सी. जो उत्तर प्रदेश में दादरी से मुंबई में जे.एन.पी.टी. तक और दूसरा पूर्वी कॉरिडोर जो पंजाब में सोहनेवाल (लुधियाना) से पश्चिम बंगाल में कोलकाता के पास दनकुनी तक होगा, ये दोनों फ्रेट कॉरिडोर लगभग 80,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाये जा रहे हैं और उम्मीद की जा रही है कि दोनों 2022 में चालू हो जायेंगे।

भारतीय रेल का मानना है कि डी.एफ.सी. पर, माल की ढुलाई के खर्च में 50 प्रतिशत की कमी आएगी और परिवहन के लिए लगने वाले समय में और भी कमी हो जाएगी, क्योंकि डी.एफ.सी. पर मालगाड़ी की औसत गति वर्तमान की गति से दोगुनी होगी।

डी.एफ.सी. के निर्माण पर जनता की इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने के बाद सरकार चाहती है कि उन्हें पूंजीपतियों को सौंप दिया जाए ताकि भारतीय रेल के बजाय पूंजीपति इसका लाभ उठा सकें! वास्तव में मुद्रीकरण का अर्थ है आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए लोगों के धन का उपयोग किया जाए और फिर इसे पूंजीपतियों को सौंप दिया जाए ताकि वे मुनाफ़े कमाने के लिए इस ढांचे का उपयोग करें। भारतीय रेल पूंजीपतियों से डी.एफ.सी. पटरियों और अन्य बुनियादी ढांचों के उपयोग के लिए केवल कुछ शुल्क अर्जित करेगा लेकिन उसके हाथ से रेल सेवाओं का सबसे आकर्षक हिस्सा माल-व्यापार को छीनकर निजी पूंजीपतियों को मुनाफ़े बनाने के लिए दे दिया जाएगा।

यात्रियों को बेहतर सेवाएं देने के लिए और रेलवे स्टेशनों को आधुनिक बनाने के नाम पर रेलवे स्टेशनों का निजीकरण किया जा रहा है। अधिकांश रेलवे स्टेशन उन शहरों के केंद्र में स्थित हैं जहां पर उनकी भूमि बहुत मूल्यवान जिसके वे मालिक हैं। बड़ी रियल एस्टेट कंपनियां और पूंजीपति चाहते हैं कि भारतीय रेल, स्टेशन पुनर्विकास का काम करे ताकि बड़े मुनाफे के लिए यह ज़मीन 35 से 60 साल की लंबी लीज पर उन्हें उपलब्ध हो सके।

पुनर्विकसित स्टेशनों में शॉपिंग मॉल, फूड प्लाजा और होटल आदि जैसी आधुनिक सुविधाएं होंगी लेकिन उनमें से अधिकांश, आम यात्रियों के लिए बहुत कम उपयोगी होंगी। उदाहरण के लिए, गुजरात के गांधीनगर स्टेशन के पुनर्विकास के एक हिस्से के रूप में रेल की पटरियों के ऊपर, एक 5-सितारा होटल बनाया जा रहा है और उस होटल का संचालन एक बडे़ कॉर्पोरेट होटल श्रृंखला, लीला ग्रुप को सौंप दिया गया है।

आधुनिक हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण के अपने अनुभव के आधार पर हम यह कह सकतें हैं कि ऐसे स्टेशनों के आधुनिकीकरण के बाद, जिन सुविधाओं की बात की जा रही है वे सुविधायें अधिकांश कामकाजी लोगों की पहुंच से बाहर होंगी जहां पर एक कप चाय की क़ीमत 100 रुपये से अधिक होगी और एक बोतल पानी के लिए भी उसकी नियमित क़ीमत से दोगुनी क़ीमत देनी पड़ेगी।

निजी डेवलपर्स को आय का एक नियमित स्रोत प्रदान करने के लिए, भारतीय रेल ने आधुनिक स्टेशनों पर उपयोगकर्ता विकास शुल्क लगाने का फ़ैसला लिया है, जिस तरह से सभी हवाई अड्डों पर यह शुल्क लिया जा रहा है। इस शुल्क को टिकट का हिस्सा बनाया जाएगा और ऐसे आधुनिक स्टेशन पर सभी यात्रियों से, यहां तक कि उन यात्रियों से भी यह शुल्क लिया जाएगा, जो आगमन स्टेशन पर मुश्किल से कुछ मिनट बिताएंगे और किसी भी आधुनिक सुविधा का उपयोग नहीं करेंगे। योजना यह है कि हर बड़े स्टेशन के उपयोग के लिए उपयोगकर्ता से विकास शुल्क लिया जाए चाहे उस स्टेशन का पुनर्विकास किया गया है या नहीं। इस प्रकार लोग पुनर्विकसित स्टेशनों पर हर सेवा के लिए भुगतान करने के अलावा, एक विकसित करने वाले पूंजीपति के मुनाफ़े में सीधे तौर पर योगदान देने के लिए मजबूर किये जायेंगे।

स्टेशन के पुनर्विकास को भी बुनियादी ढांचे की परियोजना बताकर, पूंजीपतियों की मदद की जा रही है। उन्हें कम ब्याज दरों पर बैंक से ऋण प्राप्त करने और अपने मुनाफ़ों पर टैक्स रियायतें प्राप्त करने जैसी सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति दी जायेगी।

पूंजीपतियों के मुनाफ़ों के लिए स्टेशनों को पुनर्विकासत करने की इस योजना के द्वारा कई लाख कुलियों, फेरीवालों और अन्य सेवा प्रदाताओं को बेरोज़गार कर दिया जायेगा।

रेलवे स्टेशनों की भूमि के अलावा, बड़े पंूजीपति रेलवे की खाली पड़ी भूमि और जो ज़मीन अभी रेलवे कॉलोनियों के पास है, उन सभी ज़मीनों पर कब्ज़ा करने में रुचि रखते हैं, क्योंकि ये सभी ज़मीनें शहरों के बीच में हैं। भारतीय रेल के पास लगभग 4.81 लाख हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से 90 प्रतिशत भूमि का उपयोग स्टेशनों, कॉलोनियों सहित ट्रैक और संरचनाओं के लिए किया जाता है। जबकि 0.51 लाख हेक्टेयर भूमि खाली पड़ी है।

रेलवे की ज़मीन आवास और वाणिज्यिक विकास के लिए लंबे पट्टे पर दी जा रही है जिसके लिए भारतीय रेल केवल पट्टे का किराया कमाएगा।

हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों के साथ-साथ, विदेशी इजारेदार पूंजीपति भी भारतीय रेल के निजीकरण में रुचि रखते हैं। 2014 में ही रेलवे के 17 प्रमुख क्षेत्रों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दी गई थी। भारतीय रेल द्वारा लगभग 19,000 करोड़ रुपये की लागत से 800 लोकोमोटिव आपूर्ति करने और उन्हें बनाने के लिए बिहार में एक कारखाना लगाने के लिए, एक अनुबंध हो जाने के बाद उच्च-शक्ति वाले इलेक्ट्रिक इंजनों की आपूर्ति, अब फ्रांस की एक बड़ी कंपनी एल्स्टॉम कर रही है। इसी तरह, उच्च-शक्ति वाले डीजल इंजनों की आपूर्ति 2.5 बिलियन डॉलर (18,500 करोड़ रुपये) की लागत से 1,000 इंजनों की आपूर्ति करने और उसी के लिए एक कारखाना स्थापित करने का एक अनुबंध होने के बाद, इस पर अब अमरीका की बड़ी कंपनी जी.ई. की इजारेदारी बन गई है। 2020 में, भारतीय रेल ने सभी रेल मार्गों को विद्युतीकृत करने की अपनी योजना की घोषणा की थी इसलिए ऐसे महंगे डीजल इंजनों का उपयोग केवल बिजली के इंजनों के फेल होने की स्थिति में ही किया जाएगा!

मेट्रो ट्रेनों की आपूर्ति के लिए भी एल्स्टॉम के साथ-साथ कनाडा के बॉम्बार्डियर को यह एकाधिकार दिया गया है, (एल्सटॉम ने हाल ही में बॉम्बार्डियर को ख़रीद लिया है) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बी.ई.एम.एल. को भी कुछ सप्लाई का आर्डर मिला है।

यह भी गौर करने की बात है कि भारतीय रेल की लोकोमोटिव और कोच जैसी सभी ज़रूरतों को अभी तक उसकी स्वयं की उत्पादन इकाइयां पूरा कर रही थीं और उसकी लागत बहुत ही कम थी। अब उन्हीं ज़रूरतों को पूरा करने के अनुबंध इन बड़ी इजारेदार कंपनियों को दिए गए हैं, जिससे भारतीय रेल को कहीं ज्यादा लागत का भुगतान करना पड़ेगा।

पूंजीपतियों को लगभग 6 लाख करोड़ रुपये की भारतीय रेल की विशाल संपत्ति और इसके बड़े पैमाने पर संचालन में अपना मुनाफ़ा बनाने का एक बड़ा मौका दिखाई देता है। 2018-19  में भारतीय रेल का कुल राजस्व 2,00,000 करोड़ रुपये से अधिक था जो भारतीय रेल को, यदि वह एक निगम होता तो देश की दस सबसे बड़ी कंपनियों की सूची में एक स्थान दिलाता है। इतने बड़े पैमाने के एक संस्थान को जनता के पैसों से 150 से भी अधिक वर्षों की कड़ी मेहनत से बनाया गया है। पूंजीपति इसके बड़े राजस्व के मुनाफ़े वाले हिस्सों पर कब्ज़ा करना चाहतें हैं और सामाजिक रूप से आवश्यक लेकिन अक्सर जिनमें मुनाफ़ा बनाने के अवसर कम दिखते हैं उन सभी गतिविधियों को (जैसे कि देश के दूर-दराज़ के क्षेत्रों को जोड़ने के लिए और आवश्यक वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए), भारतीय रेल के हाथ में उनको चलाने के लिए छोड़ देना चाहते हैं।

निजी कंपनियों को लोगों को बेहतर सेवाएं प्रदान करने नाम पर आमंत्रित किया जा रहा है, इस दावे का उद्देश्य केवल भारतीय रेल के निजीकरण के लिए लोगों का समर्थन जीतना है। यह करोड़ों मेहनतकशों के हित में बिलकुल नहीं है। यह केवल बड़े देशी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के हितों की सेवा करेगा।

अगला भाग पढ़ें : भारतीय रेलवे का निजीकरण – भाग 3: भारतीय रेलवे का चरणबद्ध निजीकरण

पिछला भाग पढ़ें :  भारतीय रेल का निजीकरण भाग-1 : भारतीय रेल के निजीकरण के ख़िलाफ़ बढ़ता विरोध 

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