सिग्नल एंड टेलिकॉम के मज़दूर

रेलवे मज़दूरों के कार्य की परिस्थिति – भाग 5:

आम तौर पर भले ही वे यात्रियों के संपर्क में न आते हों, लेकिन गाड़ियों के संचालन में सिग्नल एंड टेलिकॉम (एस. एंड टी.) के मज़दूरों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। भारतीय रेल का सिग्नल एंड टेलिकॉम विभाग यह सुनिश्चित करता है कि गाड़ियां ठीक समय पर और सकुशल अपने गंतव्य स्थानों पर पहुंचें। यह संचार तंत्र को सुचारू रखने के लिए, उसका रखरखाव करता है। इसमें रेलगाड़ी के कंट्रोलर तथा स्टेशन मास्टर के बीच का संपर्क शामिल है तथा विविध स्टेशनों के बीच का संपर्क भी शामिल है। टेलिकॉम विभाग रेलगाड़ियों के गतिविधियों की सूचनाएं स्टेशनों तक पहुंचाता है। वह रेलगाड़ियों की गतियों का भी नियंत्रण करता है। रेलगाड़ियों का ठीक से परिचाल के लिए इस विभाग का कार्य बहुत आवश्यक है।

टेलिकॉम विभाग रेलवे की सभी हेल्पलाइनों को चलाता है। जो यात्री आरक्षित या अनारक्षित टिकट खरीदता है, उसको यह विभाग इंटरनेट लिंक भेजता है। इसके ऊपर सभी सी.सी.टी.वी. कैमरों की ज़िम्मेदारी होती है। यह विभाग प्लेटफॉर्मों के बारे में, प्लेटफार्मों पर डिब्बों के स्थान की सूचनायें, गाड़ी के समय तथा समय सारणी के बारे में भी यात्रियों को सूचनाएं देता है। यह वाईफाई सुविधाओं का प्रबंधन करता है। सामान स्केनर, वेब स्केनर, डिज़िटल चार्ट तथा मनोरंजन के लिए लगाये गये डिज़िटल बोर्डों का प्रबंधन भी करता है तथा इन सभी का रखरखाव भी टेलिकॉम विभाग खुद करता है।

जैसे भारतीय रेल के अन्य विभागों में होता है, वैसे ही सिग्नल एंड टेलिकॉम के मज़दूरों से बड़ी बेरहमी से बहुत अधिक काम करवाया जाता है। भारतीय रेल के अनेक महत्वपूर्ण विभागों में मज़दूरों की संख्या बहुत ही कम है। अनेक रिक्त पदों के लिये भर्ती नहीं की जाती है। एस. एंड टी. विभाग में यह इतनी बड़ी समस्या बन गई है कि आप सोच ही नहीं सकते! आज के दिन संपूर्ण भारतीय रेल में ग्रुप-सी में केवल 21,000 तथा ग्रुप-डी में मात्र 20,000 मज़दूर हैं। हालांकि मापदंड-2010 के मुताबिक ग्रुप-सी में करीबन 65,000 तथा ग्रुप-डी में करीबन 58,000 पद मान्य किये गये हैं। इसका मतलब है कि इस विभाग में करीबन 2/3 पद खाली हैं। इसके अलावा सिग्नल टेक्निशियन ग्रेड-1 में 15 प्रतिशत की सीधी भर्ती के लिए 2018 में यूनियनों के ज़ोर देने पर रेलवे बोर्ड ने आदेश पारित किया था, लेकिन आज तक एक पर पर भी भर्ती नहीं हुई है।

प्रशासन इस विभाग में हर साल हजारों पदों को समाप्त कर रहा है। विविध पदों को धीरे-धीरे ख़ारिज़ किया जा रहा है हालांकि ये कार्य ज़रूरी होते हैं और उनके बिना यह विभाग नहीं चल सकता।

एस. एंड टी. विभाग के मज़दूरों के सामने सबसे बड़ी समस्याओं में एक यह है कि जैसा और विभागों में होता है, इसका बहुत बुरा असर यात्रियों की सुरक्षा पर तथा मज़दूरों के सुख-चैन पर होता है। एच.ओ.ई.आर.-2005 (काम के घंटे तथा विश्राम की छुट्टी से संबंधित नियम) का बार-बार उल्लंघन होता है। इससे मज़दूरों के ऊपर काम का बोझ कई गुना बढ़ जाता है। विभाग में कोई ड्यूटी रोस्टर या काम की सूची नहीं होती है। अगर रात में कोई ख़राबी हो जाती है तो उसे ठीक करने के लिए, जो व्यक्ति पूरे दिन में काम करके थका होता है, जिसने विश्राम के लिये छुट्टी ली होती है या जो पारिवारिक काम में व्यस्त होता है उसे वापस काम पर बुला लिया जाता है।

सालों से मज़दूर यह मांग उठाते आ रहे हैं कि रात में हुई ख़राबी का सुधार करने के लिये एक हर यूनिट में समूह की स्थापना करनी चाहिए, जो नजदीक के 4-5 स्टेशनों के पर होने वाली ख़राबी को रात में ठीक कर पाए। पूरे दिन काम करके थके हुए या नींदग्रस्त मज़दूरों से जो गलतियां होने संभावना हो सकती हैं वे इससे बिल्कुल नहीं होंगी। लेकिन लगता नहीं कि अधिकारियों को इसके बारे में कोई भी परवाह है।

आने वाले दिनों में तो मज़दूरों की कमी की यह समस्या और गंभीर बन जायेगी जैसे-जैसे रेलगाड़ियों की गति बढ़ेगी और नई-नई तकनीकें आएंगी।

काम की अति असुरक्षित परिस्थिति में, केबल का रखरखाव तथा ख़राबी को ठीक करने का काम तो रेल की पटरी के पास ही करना पड़ता है। यह काम कितना ख़तरनाक है इसकी कल्पना यह जानकर मिल सकती है कि केवल, पिछले चार सालों में काम के दौरान 80 मज़दूरों की जानें चली गई हैं। वे 440 वोल्ट के सीधे लाइव सर्किट पर तथा 25,000 वोल्ट के ए.सी. सर्किट पर काम करते हैं। बहुत बार उन्हें सिग्नल पोस्ट पर बिजली के झटकों को झेलना पड़ता है।

जब सिग्नल के यंत्र ख़राब हो जाते हैं तब जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी उन्हें ठीक करने के लिए इन मज़दूरों के ऊपर अनेक प्रकार के अत्याधिक दबाव डाले जाते हैं। जिससे गलितयां होती हैं या काम चलाऊ काम ही हो पाता है। इसके बाद अगर कोई दुर्घटना होती है तो मज़दूरों को अपनी नौकरियां खोनी पड़ती हैं। बहुत बार ख़राबी स्थल पर पहुंचने के लिए इतना दबाव डाला जाता है कि वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं या कई बार मौत के शिकार भी हो जाते हैं। कई बार रेलगाड़ियों के चलने के बारे में उन्हें सूचना नहीं मिलती है जिसकी वजह से वे रेलगाड़ियों की चपेट में आ जाते हैं। और तो और ख़राबी के वक्त कभी-कभी हम मज़दूरों को लोगों के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है। कभी-कभी उनके ऊपर शारीरिक हमले भी हुये हैं और कई मज़दूर जान से भी मारे गये हैं।

निजीकरण को धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है। अभी कई सारे रेलवे के ज़ोनों में सिग्नल तथा टेलिकॉम यंत्रों का रखरखाव निजी कम्पनियों के हाथों में दे दिया गया है। वे पैसा तो ले लेती हैं लेकिन काम के लिए मज़दूरों की नियुक्ति ही नहीं करती हैं, इसलिए रेल मज़दूरों को ही यह काम भी करना पड़ता है, जिससे निश्चित तौर पर उनके ऊपर का बोझ बढ़ता है।

कर्मियों की कमी और काम के बोझ में बहुत ज्यादा वृद्धि, यह इन मज़दूरों की सबसे बड़ी समस्या है। इंडियन रेलवे सिग्लन एंड टेलिकॉम मेन्टेनर्स यूनियन (आई.आर.एस.टी.एम.यू.) ने इसके बारे में विभिन्न स्तरों के अधिकारियों तक, अलग-अलग माध्यमों द्वारा यह बात पहुंचाई है। चक्रधरपुर, गांधीनगर, कोटा, इंदौर तथा बंदीकुई स्टेशनों पर रेलवे बोर्ड के पूर्व प्रमुख (सी.आर.बी.), श्री अश्वनी लोहानी जी से मीटिंगें की गई हैं। इसके अलावा मज़दूरों की टीम ने दो बार पूर्व सी.आर.बी. श्री विनोद यादव जी को अपनी सब समस्याओं से अवगत कराया था। नये सी.आर.बी. या रेलवे बोर्ड के सी.ई.ओ.  श्री विनोद शर्मा जी से मीटिंग के लिए विनति की है। इसके अलावा वे ख़तरा तथा कठिनाई भत्ता हासिल करने की भी कोशिश कर रहे हैं। वे इस बात पर भी ज़ोर दे रहे हैं कि हर यूनिट के पास एक चार पहिये का वाहन होना चाहिए ताकि ख़राबी के स्थान पर जल्दी से जल्दी पहुंचकर सुधारने का काम शीघ्रता से किया जा सके।

भारतीय रेल को न अपने मज़दूरों की सुरक्षा की कोई परवाह है और न ही यात्रियों की। वह रिक्त पदों पर भर्ती नहीं कर रही है और तो और खाली पदों को समाप्त किया जा रहा है। भारतीय रेल में बड़े पैमाने पर कुशल तथा अकुशल काम के लिए मज़दूरों को ठेके पर रखा जा रहा है। मौजूदा मज़दूरों की काम की हालतें बद से बदतर बनती जा रही हैं। इस बहुत ही ख़तरनाक रास्ते का विरोध करने में रेल मज़दूरों का समर्थन सभी मज़दूरों को करना चाहिए।

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