रेल मज़दूरों के कार्य की परिस्थिति – भाग 4:
मज़दूर एकता लहर (म.ए.ल.) भारतीय रेल में लोको पायलट, गार्ड, स्टेशन मास्टर्स, रेलगाड़ी कंट्रोलर, सिग्नल व टेलीकॉम मेन्टेनन्स स्टाफ, ट्रैक मेन्टेनर्स, टिकट चेकिंग स्टाफ, आदि का प्रतिनिधित्व करने वाली श्रेणीबद्ध एसोसिएशनों के नेताओं के साथ साक्षात्कार करके, उनका प्रकाशन कर रहा है। इस श्रृंखला के चैथे भाग में, यहां पर हम ऑल इंडिया ट्रेन कंट्रोलर्स एसोसिएशन के महासचिव कामरेड डी. वरा प्रसाद (डी.वी.पी.) के साथ किये गए साक्षात्कार को प्रस्तुत कर रहे हैं।
म.ए.ल. : बहुत सारे रेल मज़दूरों से ट्रेन कंट्रोलर्स इसलिए भिन्न हैं क्योंकि आप पर्दे के पीछे काम करते हैं। हमें मालूम है कि आप का काम बहुत ही ज़रूरी तथा महत्वपूर्ण है। क्या आप हमारे पाठकों के लिए बताएंगे कि आपकी क्या भूमिका होती है?
डी.वी.पी. : जैसा आपने कहा, भारतीय रेल को चलाने में ट्रेन कंट्रोलर्स बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं। रेलगाड़ियों को चलाने के सभी कार्यों की योजना बनाना, उसे लागू करना, नियंत्रण करना तथा उसकी निगरानी करना, ये सभी हमारे काम के तहत आते हैं। इसके अलावा अगर रेलगाड़ियों के चलते समय कहीं कोई खराबी आती है या फिर कोई दुर्घटना हो जाती है तो उपचारात्मक कार्य की जिम़्मेदारी हम पर आ जाती है। हमें उसकी योजना बनानी पड़ती है तथा निगरानी और निरीक्षण करना पड़ता है। यह काम चैबीसों घंटे होता है। हमारा काम बहुत ही तनावपूर्ण होता है। और ड्यूटी दौरान हमें उसकी तरफ पूरा ध्यान देना पड़ता है। इसलिए हमारी श्रेणी को “इन्टेन्सिव” (प्रखर) करार दिया गया है और प्रति दिन हमारी 6 घंटे की ड्यूटी ही होती है। हमारे काम के बिना रेलगाड़ियां नहीं चल सकती हैं। हमें भारतीय रेल का “मस्तिष्क” तथा “नसों का केंद्र” माना जाता है। इससे आपके पाठकों को पता चलेगा कि हमारा काम कितना अत्यावश्यक है।
म.ए.ल. : आपके काम की परिस्थिति कितनी सुरक्षित है? सुरक्षा के अभाव से क्या ट्रेन कंट्रोलर्स में से किसी की जान गयी है या फिर क्या कोई घायल हुआ है?
डी.वी.पी. : इस माइने में हमारी काम की परिस्थिति सुरक्षित है कि हमारी जान को कोई सीधा ख़तरा नहीं है। लेकिन कई ऐसे परिणाम ज़रूर होते हैं जो लम्बे अरसे के बाद ही प्रकट होते हैं।
हमें लगातार ए.सी. कमरों में ही काम करना पड़ता है क्योंकि यह हमारे यंत्रों के लिए अनिवार्य होता है। परिणामतः इस वैश्विक महामारी के चलते 30 प्रतितशत ट्रेन कंट्रोलर्स करोना के टेस्ट में संक्रमित हो चुके हैं जो सब श्रेणियों में उच्चतम दर है। वैश्विक महामारी का व्यवस्थापन करने के लिए रेलवे ने प्रमाणित परिचालन प्रणाली (स्टेन्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी की थी। उसके मुताबिक कोरोना संक्रमित व्यक्ति के साथ नजदीकी से काम करने वाले हर व्यक्ति को संक्रमण मुक्त होने तक घर में अलग से रहना चाहिए। लेकिन कंट्रोल कार्यालयों में इसका पालन नहीं किया जा रहा है। अगर इसका पालन करेंगे तो 30 प्रतिशत कंट्रोल कार्यालयों को इस दौरान बंद रखना पड़ेगा और इसका ट्रेनों के चलने पर बहुत बुरा असर होगा। लेकिन बीमार होने के ख़तरे के बावजूद हम आपन ड्यूटी पर डटे रहे थे, कोई भी कंट्रोल कार्यालय बंद नहीं होने दिया और आवश्यक चीजों की आपूर्ति तथा यात्री सेवाएं चलाते रहे।
ड्यूटी के दौरान हमें एक कप चाय पीने का या शौचालय जाने का वक्त भी नहीं मिलता है। हमें लगातार आंखें स्क्रीन पर चिपका कर बैठे रहना पड़ता है। इससे आंखों पर बहुत तनाव आता है जो लम्बे अरसे में हानिकारक होता है। ए.सी. यंत्रों का बुरा रखरखाव, अतिसंकुलित तथा भीड़ भरे कार्यालय, साफसफाई की कमी आदि का हमारी श्रेणी के लोगों पर बुरा असर हो जाता है और हम ऐसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं जो तुरंत नज़र में नहीं आती। लगातार तनावपूर्ण काम की वजह से अंततः हम उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। यह तो चिकित्सा विज्ञान ने प्रमाणित किया है कि घंटों-घंटों तक लगातार बैठकर काम करने वाले लोगों को रक्त प्रवाह से संबंधित बीमारियां होती हैं तथा पीठ दर्द, गर्दन का दर्द जैसे अलग-अलग प्रकार के अस्थी रोगों के भी वे शिकार हो जाते हैं।
म.ए.ल. : भारतीय रेल में आज कुल मिलाकर ट्रेन कंट्रोलर्स की कितनी संख्या है और कितने पदों को मान्यता मिली है?
डी.वी.पी. : आज सिर्फ करीबन 2250 ट्रेन कंट्रोलर्स हैं जबकि लगभग 2700 पद अनुमोदित किये गये हैं।
म.ए.ल. : आपकी काम की परिस्थिति का यात्रियों की सुरक्षा तथा सुविधा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
डी.वी.पी. : काम करने वालों की संख्या बहुत कम होने की वजह से ट्रेन कंट्रोलर्स को पर्याप्त विश्राम किये बिना काम करना पड़ता है। इसका ट्रेनों की सुरक्षा पर सीधा प्रभाव होना तो लाजमी ही है। 6 जून, 2016 के रेलवे बोर्ड के खुद के सर्कुलर ने 40 घंटे के साप्ताहिक विश्राम को मान्यता दी है। इसके बावजूद अनेक मंडलों में आज तक रेलवे बोर्ड की इस आज्ञा का पालन नहीं हुआ है।
उदाहरण के तौर पर 7 नवंबर, 2016 को लिखे हुए एक पत्र के द्वारा सेंट्रल रेलवे के अधिकारियों ने इस आदेश का विरोध किया था। उनका कहना था कि रनिंग स्टाफ को, यानी कि इंजन चालकों तथ गार्डों को जब केवल 30 घंटों का साप्ताहिक विश्राम मिलता है, तब ट्रेन कंट्रोलर्स को 40 घंटे देने की क्या ज़रूरत है! इसका मतलब है कि एक गलत को दूसरे गलत के समर्थन में दिया जा रहा है, जबकि दोनों ही रेल यात्रियों के लिए हानिकारक हैं। उसी पत्र में वे यह भी कहते हैं कि अगर ट्रेन कंट्रोलर्स को ज्यादा विश्राम दिया जाएगा तो अतिरिक्त मज़दूरों को रखना पड़ेगा! मतलब यही है कि हमें अनिवार्य विश्राम देने के बजाय उन्हें कम स्टाफ रख कर हम से ज्यादा काम करवाने में ही उनकी ज्यादा रुचि है। इसीलिए अति श्रम की वजह से हम ट्रेन कंट्रोलर्स को पर्याप्त विश्राम नहीं मिलता। तो रेलगाड़ियों की सुरक्षा पर इसके बहुत बुरे असर तो होंगे ही। और तो और हमारे स्वास्थ्य पर बुरे असर होते हैं।
म.ए.ल. : ठेके पर रखे हुए ट्रेन कंट्रोलर्स की संख्या कितनी है?
डी.वी.पी. : ट्रेन कंट्रोलर्स में कोई भी ठेके पर नहीं है। हालांकि रिक्त स्थानों की भर्ती नहीं हो रही है और इसकी वजह से व्यवस्था को चलाने के लिए फीडर श्रेणियों में से अप्रशिक्षित उम्मीदवारों को अनौपचारिक तरीके से ट्रेन कंट्रोलर्स बतौर काम पर लगाया जाता है। इससे रेलगाड़ियों की सुरक्षा पर तथा गुणवत्ता पर भी बुरा असर होता है। सुरक्षा विभाग से सख्त निर्देश हैं कि अनौपचारिक ट्रेन कंट्रोलर्स को स्वतंत्र चार्ज देने के पहले उन्हें योग्य प्रशिक्षण देना चाहिए, लेकिन ज्यादातर तो इसका हनन ही होता है। ज्यादातर विभागों में फीडर श्रेणियों के अप्रशिक्षित लोग ट्रेन कंट्रोलर्स बतौर काम करते हैं। और तो और, दूसरे विभागों के अस्वस्थ लोगों को रिक्त स्थानों में रखा जाता है। इससे कंट्रोल क्रिया की सुरक्षा तथा गुणवत्ता को क्या असर होगा यह तो स्पष्ट है।
म.ए.ल. : भारतीय रेल का क़दम दर क़दम जो निजीकरण हो रहा है, उसका ट्रेन कंट्रोलर्स पर क्या असर हो रहा है?
डी.वी.पी. : निजीकरण से काम का दबाव तो बढ़ेगा ही क्योंकि निजी रेलगाड़ियों को भीड़-भाड़ के रास्तों पर प्राथमिकता दी जाएगी और इन गाड़ियों के पहले उनके लिए अच्छा मार्ग खोला जाएगा। इन मार्गों पर रलेगाड़ियों की भीड़ और बढ़ेगी। दैनिक काम में दबाव बढ़ेगा। जहां तक सरकारी गाड़ियों में सफर करने वाले यात्रियों की बात है, उन्हें और ज्यादा देरी होगी। नौकरी के लिए रोजाना यात्रा करने वालों की यह रोज की समस्या हो जाएगी।
म.ए.ल. : रिक्त स्थानों की भरती के लिए रेल प्रशासन क्या कोई क़दम उठा रहा हैं? यह आप के लिए माइने तो रखता ही है और इसके अलावा यात्रियों तथा रनिंग स्टाफ, यानी कि चालकों तथा गार्डों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
डी.वी.पी. : इस पर विश्वास करना शायद किसी को कठिन लगे, लेकिन सच तो यह है कि रेलवे इसके विपरीत दिशा में आगे बढ़ रही है।
भर्ती के दो मार्ग हुआ करते थे। एक तो यह था कि ट्रेन कंट्रोलर्स का चयन यातायात प्रशिक्षुओं की सीधी भर्ती में से हुआ करता था। अब यह मार्ग बिलकुल बंद कर दिया गया है।
दूसरा मार्ग हुआ करता था स्टेशन मास्टर्स, गार्ड्स, शंटिंग जैसी फीडर श्रेणियों में से ट्रेन कंट्रोलर्स का चयन। औपचारिक तौर पर यह मार्ग खुला है, लेकिन उसके द्वारा भर्ती न के बराबर हुई है।
1990 के दशक तक ट्रेन कंट्रोलर की एक पोस्ट के लिए फीडर श्रेणियों में से सैकड़ों की अर्जियां आती थीं। इन सबके बीच में से एक कठिन चयन प्रक्रिया के द्वारा अच्छी योग्यता प्राप्त तथा कुशल उम्मीदवारों को चुना जाता था। इस प्रक्रिया में साक्षात्कार किया जाता था और सफल उम्मीदवारों को उसके बाद एक लिखित परीक्षा देनी पड़ती थी। फिर प्रशिक्षण दिया जाता था और अंत में फिर से एक परीक्षा होती थी।
इस प्रकार सैकड़ों के बीच में से बहुत कर्मकुशल उम्मीदवारों को चुना जाता था और वे सेक्शन कंट्रोलर बतौर काम करने लगते थे। बहुत उच्च स्तर के कंट्रोल कार्यालय हुआ करते थे, जो नियंत्रण करने वाले तथा कमांड देने वाले सही माइने में मस्तिष्क केंद्र थे।
1990 के दशक में चैथा वेतन आयोग आने तक कंट्रोलर को फीडर श्रेणियों के मुकाबले 2 ग्रेड ऊपर रखा जाता था। लेकिन चौथे वेतन आयोग और उसके बाद कंट्रोलर की श्रेणियों की गिरावट शुरू हो गयी। और अब तो कंट्रोलरों को फीडर श्रेणियों से कम रकम मिलती है!
अगर उच्चतर तथा ज्यादा सख्त ज़िम्मेदारी संभालने के लिए मौलिक लाभ नहीं मिलता है तो गुणवान उम्मीदवार तो छोड़ ही दो, फीडर श्रेणियों से आपको किसी का भी आवेदन नहीं मिलेगा। और आज यही हो रहा है। कंट्रोलर श्रेणी के रिक्त स्थान भरने के लिए फीडर श्रेणियों से न के बराबर आवेदन आते हैं।
आज यह हाल है कि कंट्रोलर कार्यालय दूसरे विभागों से लाये गये स्वास्थ्य की दृष्टि से अस्वस्थ करार दिये गये तथा अप्रशिक्षित लोगों से भरे हुए हैं, और यह ट्रेन संचालन की गुणवत्ता तथा सुरक्षितता के लिए बहुत बुरा है। इससे सीनियर ट्रेन कंट्रोलर्स पर असहनीय बोझ आता है क्योंकि इन लोगों की गलतियों के लिए उन्हें ज़िम्मेदार माना जाता है। ऐसे भी मौके आये हैं जहां सीनियर ट्रेन कंट्रोलर्स ने इसकी वजह से स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति (वी.आर.एस.) ली हों। इससे समस्या और बढ़ जाती है।
इस समस्या का निवारण बहुत जल्द करने की ज़रूरत है। नहीं तो परिस्थिति इतनी बिगड़ जाएगी कि प्रशासन के कंट्रोलर कार्यालयों में गुणवत्ता तथा सुरक्षितता बचेगी ही नहीं। तथाकथित “मस्तिष्क” तथा “नस के केंद्र” सिर्फ कागज़ पर रहेंगे और इतिहास में विलीन हो जाएंगे।
म.ए.ल. : इन समस्याओं को अधिकारियों के ध्यान में लाने के लिए आपकी यूनियन ने क्या किया है और अधिकारियों ने इस पर क्या काम किया है?
डी.वी.पी. : पिछले 20 वर्षों से हमारी असोसिएशन इन समस्याओं को उच्चतम स्तर के अधिकारियों के ध्यानों में ला रही है। इसमें रेल मंत्री तथा केंद्रीय वेतन आयुक्त भी शामिल हैं। लेकिन उनको इन समस्याओं का समाधान निकालने में बिल्कुल रुचि नहीं है। इससे व्यवस्था की हालत तथा सुरक्षा बद से बदतर हो रही है। हमारे सब प्रयासों के बावजूद उन्होंने इनके बारे में कुछ भी नहीं किया है।
म.ए.ल. : इस ज्ञानवर्धक मुलाकात के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हम भारतीय रेल के ट्रेन कंट्रोलर्स की जायज़ मांगों का पूरा समर्थन करते हैं। ज़रूरी है कि सभी रेल मज़दूर ही नहीं, बल्कि पूरा मज़दूर वर्ग उनका समर्थन करे।
रेलवे के हर विभाग के मज़दूरों की समस्याओं पर रोशनी डालकर हम सब विभागों के मज़दूरों की तथा सब लोगों की एकता बनाने के प्रयास में जुटे हैं। भारतीय रेल के करोड़ों यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेल मज़दूरों की स्थिति अच्छी होना बहुत ही ज़रूरी है। “एक पर हमला सब पर हमला!” लाजमी है कि मज़दूर वर्ग की इस चिरकालीन भावना से हम सभी विभागों के संघर्षों का समर्थन करें। हमें यह बात समझनी पड़ेगी जो दिन-ब-दिन और स्पष्ट होती जा रही है कि हर एक की अच्छी स्थिति यह सबकी अच्छी स्थिति पर निर्भर है।