द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 75वीं वर्षगांठ पर

भाग 6 : द्वितीय विश्व युद्ध के सबक

इस समय द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 75वीं वर्षगांठ पर हमें कौन से मुख्य सबक लेने चाहिएं?

20वीं सदी के दोनों विश्व युद्ध दुनियाभर के बाज़ारों, संसाधनों और प्रभाव क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच तीव्र अंतर्विरोधों की वजह से हुए थे। साम्राज्यवादी ताक़तों ने अपनी लालच और मुनाफ़ों की चाहत के लिए, अपने तथा अन्य देशों के लोगों का इस्तेमाल कर युद्ध में उनकी बलि चढाई। लेकिन इन दोनों ही युद्धों में हुई अंतर-साम्राज्यवादी लड़ाई को इन देशों के इजारेदार पूंजीपतियों ने अपनी लड़ाई को लोकतंत्र और अपनी मातृभूमि की रक्षा की लड़ाई के रूप में पेश किया था।

क्रांति और समाजवाद अंतर-साम्राज्यवादी युद्धों और उससे होने वाली तबाही के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा रहे हैं। पहले विश्व युद्ध के दौरान, रूस में हुई समाजवादी क्रांति ने युद्ध को समाप्त करने में एक निर्णायक भूमिका निभाई थी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान समाजवादी सोवियत संघ की विशाल ताक़त एक्सिस शक्तियों के पराजय की मुख्य वजह बनी। क्रूर फासीवाद के ख़िलाफ़ दुनियाभर के लोगों के प्रतिरोध मोर्चे का सोवियत संघ दिल था। सोवियत संघ के साथ मिलकर जिन करोड़ों लोगों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रतिरोध की जंग लड़ी थी वह कुछ बाज़ारों या मुनाफ़े के लिए नहीं बल्कि अपनी ज़िन्दगी और आज़ादी के लिए थी। जंग के दौरान और उसके बाद भी सोवियत संघ ने जो भूमिका निभाई उसने यह सुनिश्चित कर दिया कि जंग के समाप्त हो जाने के बाद दुनिया को लुटेरी साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच फिर से बांटा नहीं जा सकेगा, जैसा कि पहले विश्व युद्ध के बाद हुआ था। सोवियत संघ की भूमिका ने यह सुनिश्चित किया कि यह जंग कई देशों में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन और लोकतंत्र की सफलता के साथ समाप्त होगी।

पिछले 75 वर्षों में, अमरीकी साम्राज्यवाद ने दुनिया की सबसे आक्रामक शक्ति होने का बदनुमा ख़िताब हासिल किया है। एक्सिस शक्तियों ने एक साथ मिलकर जंग के दौरान जितने अत्याचार किये थे उन सबकी तुलना में अमरीकी साम्राज्यवाद ने दुनिया के लोगों पर कई गुना अधिक तबाही मचाई है, फिर वह चाहे कम्युनिज़्म से लड़ने के नाम पर हो या इस्लामी आतंकवाद से लड़ने के नाम पर की गई लड़ाई हो। एक नए विश्व युद्ध के शुरू होने की संभावना है, जिसके नतीजे पिछले के युद्धों से और भी अधिक विनाशकारी होंगे।

मौजूदा हालातों में नए विश्व युद्ध को रोकने का मतलब है अमरीकी साम्राज्यवाद के मंसूबों का पर्दाफ़ाश करना और उनका विरोध करना और साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच बढ़ रहे अंतर्विरोधों में शामिल होने से इंकार करना। हमें एक बार फिर, दुनिया के लोगों का एक महान मोर्चा खड़ा करने की ज़रूरत है जो साम्राज्यवादी आक्रमण और युद्ध के ख़िलाफ़ और राष्ट्रों की संप्रभुता की हिफ़ाज़त के लिए खड़ा होगा।

हर एक देश के मज़दूर वर्ग और कम्युनिस्टों का यह फर्ज़ है कि वे अमरीकी साम्राज्यवाद, उसके सहयोगियों और उसकी प्रतिद्वंद्वी ताक़तों द्वारा दुनिया को एक नए युद्ध में खींचने से रोकने में प्रधान भूमिका निभाएं। इसका मतलब है कि अपने सरमायदारों द्वारा अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ किये गये सैनिक और रणनीतिक गठबंधनों को विरोध करना। इसका यह भी मतलब है कि हम सब अपने-अपने देशों में क्रांति और समाजवाद की जीत के लिए इस समझ के साथ काम करें साम्राज्यवादी कड़ी को तोड़ने और साम्राज्यवादी युद्ध और उत्पीड़न की समस्या को हमेशा के लिए ख़त्म करने का यही एकमात्र रास्ता है।

आगे पढ़ने के लिये

द सोवियत यूनियन एंड इंटरनेशनल – रिपोर्ट ऑन द वर्क ऑफ सेंट्रल कमेटी टू द एट्टींथ कांग्रेस ऑफ द सी.पी.एस.यू. (बोल्शेविक) 10 मार्च 1939 में स्टालिन द्वारा पेश की गई रिपोर्ट, जे.वी. स्टालिन कलेक्टिड वर्कर्स खंड-14

फाल्सीफीकेशन ऑफ हिस्ट्री (एन. हिस्टोरिकल नोट) टैक्स्ट ऑफ ए कम्युनिके – 1 फरवरी, 1948, सोवियत इंफोरमेशन ब्यूरो, मॉस्को

https://www.revolutionarydemocracy.org

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