बैंकों का कर्ज़ा न चुकाने वाले पूंजीपतियों के गुनाहों की सज़ा लोगों को भुगतनी पड़ रही है

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजीवादी कंपनियों के निजी हितों में चलाया जा रहा है।

11 जुलाई को रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों के एक सम्मलेन में बताया कि कोरोना महामारी के आर्थिक प्रभाव की वजह से “गैर-निष्पादित संपत्ति (एन.पी.ए.) में भारी बढ़ोतरी और बैंकों की पूंजी में गिरावट हो सकती है। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र और निजी बैंकों का पुनः पूंजीकरण करना बेहद ज़रूरी हो गया है”।

चित्र-1 : कुल गैर-निष्पादित संपत्ति और कर्ज़ माफ़ी की कुल रकम (हज़ार करोड़ रुपये में)

गैर-निष्पादित संपत्ति बैंकों द्वारा कर्ज़दारों को दिया गया वह कर्ज़ होता है जिसका पिछले तीन महीने में ब्याज भी अदा नहीं किया गया हो। यदि कोई कंपनी पिछले तीन महीने से लिये गये कर्ज़ पर ब्याज भी अदा नहीं कर रही है, तो इसका ख़तरा बढ़ जाता है कि कर्ज़ का मूलधन भी वापस नहीं आएगा। ऐसी स्थिति में बैंक को या तो संकटग्रस्त पूंजी की वसूली के लिए कठोर क़दम उठाने होंगे या तो यह मान लेना होगा कि बकाया कर्ज़ की पूरी रकम या उसके एक अंश की रकम का नुकसान बैंक को उठाना पड़ेगा और उसे अपने बही-खाते में इस नुकसान के हिसाब के लिये पर्याप्त प्रावधान करने होंगे।

पुनः पूंजीकरण का अर्थ है बैंकों द्वारा पूंजीपतियों के लिये की गई कर्ज़ माफ़ी से हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए बैंक में पूंजी डालना। सार्वजनिक बैंकों के मामले में इस नुकसान की भरपाई करने के लिए लोगों के धन को लगाया जायेगा। इस पुनः पूंजीकरण को केंद्र सरकार या तो लोगों के धन को सीधे बैंक में इक्विटी के रूप में डालकर करती है या फिर बैंकों के “पुनः पूंजीकरण बांड” के ज़रिये कर सकती है। पुनः पूंजीकरण बांड जारी करने के लिए सरकार बैंक से धन उधार लेती है और फिर उसे इक्विटी निवेश के रूप में वापस करती है। पुनः पूंजीकरण बांड से सरकार पर कर्ज़ा बढ़ जाता है और इसका बोझ लोगों पर लाद दिया जाता है।

सार्वजनिक बैंक साल दर साल पूंजीपतियों के बकाया कर्ज़ को माफ़ करते रहे हैं, जिसकी वजह से बैंकों को भारी नुकसान और पूंजी में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है और पूंजीपतियों से इन कर्ज़ो की वसूली करने के लिए सरकार बैंकों पर दबाव डालने की बजाय, साल दर साल बैंकों को भारी मात्रा में पूंजी देती जा रही है। इस तरह से कर्ज़दार पूंजीपतियों द्वारा कर्ज़ा न चुकाने से बैंक को जो नुकसान हो रहा है उसका बोझ लोगों पर डाला जा रहा है।

पिछले 7 वर्षों में बैंकों द्वारा पूंजीपतियों को दी गयी 6.7 लाख करोड़ रुपये की कर्ज़ माफ़ी से हुए नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने सार्वजनिक बैंकों को 3.15 लाख करोड़ की पूंजी दी है। देशभर में बैंकों द्वारा की गयी कुल कर्ज़ माफ़ी का 80 प्रतिशत सार्वजनिक बैंकों से गया है। सार्वजनिक बैंकों के पुनः पूंजीकरण के लिए वर्तमान वित्त वर्ष में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक पूंजी की ज़रूरत पड़ सकती है।

माफ़ किया गया कुल बकाया कर्ज़ का प्रमाण, बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्ति के करीब आधे हिस्से जितना बड़ा है। केवल वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान सार्वजनिक बैंकों ने अपने बही-खाते में बकाया कर्ज़ की रकम को कम दिखाने के लिए 2.37 लाख करोड़ रुपये की कर्ज़ माफ़ी दिखाई है। कुल गैर-निष्पादित संपत्ति और कर्ज़ माफ़ी की रकम जानने के लिए चित्र 1 देखें। चित्र-2 में कुल कर्ज़ की तुलना में गैर-निष्पादित संपत्ति के प्रतिशत को दिखाया गया है।

चित्र-2 : बैंकों के कुल कर्ज़ों की तुलना में गैर-निष्पादित संपत्ति का प्रतिशत

बड़े पैमाने पर पूंजीपतियों को दी गयी कर्ज़ माफ़ी के बाद 2017-19 के दौरान केवल दो वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 1,27,000 करोड़ रुपये का कुल घाटा हुआ है।

मौजूदा आर्थिक संकट के चलते बैंकों के 40 प्रतिशत कर्ज़ों के भुगतान पर मोरेटोरियम यानी रोक लगायी गयी है। डर है कि इसमें से 10 से 20 प्रतिषत धनराशि गैर-निष्पादित संपत्ति बन जाएगी। इंडिया रेटिंग कंपनी के अनुसार मार्च 2021 तक बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्ति 8.6 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत तक हो जाने की संभावना है। इस वित्त वर्ष में गैर-निष्पादित संपत्ति में बढ़ोतरी की वजह से कर्ज़दार पूंजीपतियों की कर्ज़ माफ़ी भी बढ़ जाएगी, जिसका नुकसान सार्वजनिक बैंकों को उठाना पड़ेगा।

जून 2016 में जब बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्ति कुल कर्ज़ों की तुलना में 8.4 प्रतिशत से बढ़कर 10.2 प्रतिशत हो गयी थी उस समय के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्वीकार किया था कि ख़राब कर्ज़ों की समस्या मुख्य तौर पर 50 बड़े पूंजीवादी घरानों तक सीमित है और 80 प्रतिशत से ज्यादा समस्या उन्हीं की वजह से है।

इन मुट्ठीभर पूंजीपतियों से बकाया कर्ज़ की रकम वसूलने के लिए कड़े क़दम उठाने के लिए बैंकों पर दबाव डालने की बजाय, राज्य इन पूंजीपतियों को बड़े पैमाने पर कर्ज़ माफ़ी देने के निर्देश बैंकों को दे रहा है। देश के सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले 8 वर्षों में पूंजीपतियों को 1.23 लाख करोड़ रुपये की कर्ज़ माफ़ी दी है और केवल 7 प्रतिशत कर्ज़ रकम की वसूली की है। दूसरी ओर यही राज्य रोना रोता है कि करोड़ों किसानों के छोटे-छोटे कर्ज़ों की माफ़ी के लिए उसके खजाने में पैसा नहीं है।

यदि कोई पूंजीपति बैंकों को कर्ज़ का भुगतान करने से चूक जाता है तो उसके ख़िलाफ़ कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है और न ही कोई सज़ा दी जाती है। बैंक खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि कई पूंजीपति कंपनियां जानबूझकर बैंकों से लिए कर्ज़े का पैसा नहीं लौटती हैं। बैंक इन पूंजीपतियों को “विल्फुल डिफाल्टर” (जानबूझकर कर्ज़ नहीं लौटाने वाले) कहते हैं। रिज़र्व बैंक के अनुसार हिन्दोस्तानी बैंकों ने 30 सितम्बर, 2019 तक ऐसे 50 “विल्फुल डिफाल्टर” कर्ज़दार पूंजीपतियों का 68,000 करोड़ रुपयों का कर्ज़ा माफ़ कर दिया है। और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ऐसे लोगों के नामों को सार्वजनिक करने से इंकार कर रहा है।

इस तरह से लाखों करोड़ों रुपये की कर्ज़ माफ़ी करने का मक़सद है ऐसे बड़े पूंजीपतियों की मदद करना जो कर्ज़ वापस करने से चूक गए हैं। ऐसी कर्ज़माफ़ी से बैंकों को जो नुकसान होता है उसकी भरपाई लोगों से इकट्ठा किये गए पैसों से की जाती है। और यह सब पुनः पूंजीकरण के ज़रिये बैंकों को “मजबूत” करने के नाम पर किया जाता है। इस तरह से पुनः पूंजीकरण का असली मतलब है बड़े पूंजीपतियों की अप्रत्यक्ष रूप से मदद करने के लिए बैंकों के ज़रिये लोगों के पैसांे का इस्तेमाल करना।

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