सभी राज्यों की स्वतंत्रता, संप्रभुता और समानता के आधार पर ही विश्व शांति सुनिश्चित की जा सकती है
इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.) की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ है। 24 अक्तूबर, 1945 को, संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर को उस समय के अधिकांश राज्यों द्वारा अनुमोदित किया गया था और तब संयुक्त राष्ट्र संघ आधिकारिक तौर पर अस्तित्व में आया था।
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में हुई थी, जो उस समय तक की मानव जाति के इतिहास का सबसे खूनी युद्ध था। संयुक्त राष्ट्र संघ की कल्पना एक ऐसे संगठन के रूप में की गयी थी, जिसमें दुनिया के सभी राज्य शामिल होंगे और जिसका प्राथमिक उद्देश्य होगा सभी तरह के युद्धों और लोगों के दुःख-दर्द को समाप्त करना।
उस समय से लेकर आज तक पिछले सात दशकों में, संयुक्त राष्ट्र संघ ने कई चुनौतियों का सामना किया है। जैसे-जैसे, विभिन्न पूर्व उपनिवेशों और आश्रित देशों ने अपने औपनिवेशिक शासकों से आज़ादी पाई और इस संगठन में शामिल होते गए, संयुक्त राष्ट्र संघ में बहुत विस्तार हुआ। शीत युद्ध की समाप्ति और सोवियत संघ, यूगोस्लाव महासंघ और चेकोस्लोवाकिया जैसे बहुराष्ट्रीय राज्यों के विघटन के बाद बने नए राज्यों के जुड़ने से, संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता और भी बढ़ गयी है। 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय इसमें 51 सदस्य राज्य थे जो बढ़कर आज 193 सदस्य हो गये हैं। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद से अभी तक कोई विश्व युद्ध नहीं हुआ है, लेकिन दुनियाभर के देशों और लोगों पर साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा चलाये गए सशस्त्र हमले लगातार होते रहे हैं। ये सब लोग और देश अपनी संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए गंभीर ख़तरों का सामना करते आये हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की मांग कई वर्षों से उठाई जाती रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ में महत्वपूर्ण निर्णय लेने के अधिकार से अधिकांश सदस्य राज्यों को बाहर रखा गया है। ये सभी राज्य, संयुक्त राष्ट्र संघ और इसकी एजेंसियों में एक बड़े पुनर्गठन की मांग कर रहे हैं।
जिस उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी थी उसको हासिल करने के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा अमरीकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में चल रही साम्राज्यवादी व्यवस्था की मौजूदगी है। साम्राज्यवादी शक्तियों का दुनिया में अपना प्रभुत्व क़ायम रखने का निरंतर प्रयास ही सभी आक्रामक युद्धों और राज्यों की स्वतंत्रता और संप्रभुता के उल्लंघन का मुख्य कारण है। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करते हुए, अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके सहयोगी अन्य देशों पर हमलावर युद्ध शुरू कर देते हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके संबद्ध संगठनों में वे अपने कार्यों की किसी भी तरह की आलोचनाओं को दबाने का काम करते हैं। यहां तक कि अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए वे संयुक्त राष्ट्र संघ का एक साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
इन सबके बावजूद, दुनिया के सभी देशों द्वारा मिलकर बनाए गए एकमात्र निकाय के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ, मानव जाति के लिए एक महत्वपूर्ण संगठन है। सदस्य देशों द्वारा साम्राज्यवादी ताक़तों के हमलों का पर्दाफाश करने के लिये और उसकी निंदा करने के लिए, इस मंच का प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है, और किया भी गया है। गरीबी, भुखमरी, बीमारी, पर्यावरण विनाश और इसी तरह के अन्य महत्वपूर्ण मसलों से निपटने के लिए सदस्य देशों के संयुक्त प्रयासों को अंजाम देने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक अहम भूमिका निभाई है। इसके साथ ही, संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रतिनिधित्व करने वाले बहुतांश देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के सिद्धांतों का सख्ती से पालन करने और संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे में सुधार की मांग के लिए एकजुट होना ज़रूरी है, ताकि संयुक्त राष्ट्र संघ पर बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा अपना प्रभुत्व बनाए रखने से रोका जा सके।
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