10 अक्तूबर, 2020 को उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित हिंदू राव अस्पताल के डाक्टरों और नर्सों ने अस्पताल के मुख्य द्वार पर विरोध प्रदर्शन किया। तख्तियां पकड़े हुए और अपनी दुर्दशा को उजागर करते नारे लगाते हुए, आंदोलन करने वाले डॉक्टरों और नर्सों ने अपने बकाया वेतन के भुगतान की मांग की। उन्हें पिछले तीन महीने से वेतन नहीं दिया गया है। रेजिडेंट डॉक्टरों और नर्सों के एसोसिएशन ने अस्पताल के अधिकारियों के साथ-साथ नगर निगम के अधिकारियों के साथ भी कई बार अपनी समस्याओं को उठाया था। इस “सांकेतिक” विरोध प्रदर्शन के बाद, हिन्दू राव अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन और नर्सेज एसोसिएशन ने 11 अक्तूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की घोषणा की है, क्योंकि उनका पिछले तीन महीने का वेतन बकाया है।
हिन्दू राव अस्पताल 900 बेड की क्षमता वाला दिल्ली का सबसे बड़ा नगर निगम अस्पताल है और फिलहाल जून के मध्य से यह कविड-19 उपचार के समर्पित केंद्र के रूप में काम कर रहा है। अस्पताल में 343 बेड कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए उपलब्ध हैं। कोविड-19 केंद्र में काम कर रहे कई डॉक्टरों और नर्सों को संक्रमण हो गया है। वे इस समय अपने परिवार की वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद बेहद बहादुरी से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
10 अक्तूबर को दिल्ली सरकार ने हिन्दू राव अस्पताल में भर्ती सभी कोविड-19 मरीजों को दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में स्थानांतरित करने का आदेश दे दिया।
हड़ताल के कारणों को समझाते हुए, हिन्दू राव अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि, “कोविड-19 के ख़िलाफ लड़ाई में सबसे आगे खड़े होकर लड़ रहे डॉक्टरों और नर्सों को वेतन जैसे मूलभूत अधिकार के लिए हड़ताल पर क्यों जाना पड़ रहा है?” उन्होंने दावा किया कि, हर महीने निगम के पास सैकड़ों करोड़ रुपये का टैक्स आता है। डॉक्टरों और नर्सों के बकाया वेतन का भुगतान करने के लिए करीब 13 करोड़ रुपये काफी होंगे, लेकिन निगम अधिकारी ऐसा करने से इंकार कर रहे हैं।
इस बीच, उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने डॉक्टरों और नर्सों के वेतन का भुगतान करने में असमर्थता का कारण “पैसे की कमी” बताया है। दिल्ली के महापौर ने दिल्ली सरकार पर उत्तरी दिल्ली नगर निगम को 1,600 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान न करने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर दिल्ली सरकार ने भाजपा (जिसका निगम पर नियंत्रण है) पर “धन के कुप्रबंधन” का आरोप लगाया है और मांग की है कि अगर निगम अपने डॉक्टरों और नर्सों के वेतन नहीं दे सकता तो अपने अस्पताल दिल्ली सरकार को सौंप दे।
डॉक्टर और नर्स जो इन कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए काम कर रहे हैं, वे इनकी आपसी तू-तू मैं-मैं की लड़ाई फंस कर रह गए हैं।