हमारे पाठकों से : मज़दूरों को इस देश का “मालिक” बनना ही होगा

प्रिय संपादक,

स्वतंत्रता दिवस पर जारी केंद्रीय समिति के बयान में बहुत अच्छी तरह से यह समझाया गया है की किस तरह सत्ताधारी हर साल इस दिन का उपयोग झूठ का प्रचार करने के लिए करते हैं। जो लोगों को पसंद आए वो बोलना लेकिन उसका पूरा उल्टा काम करने की कला में हमारे नेताओं ने महारथ हासिल कर ली है।

जबकि नीतियां पूंजपति वर्ग के हितों की अपनाई जाती हैं, उन्हें देशभक्ति की भावनाओं से सजा कर लोगों को बुद्धू बनाया जाता है। बयान में समझाया है कि प्रधानमंत्री मोदी का “आत्मनिर्भर” का नारा ऐसा ही एक धोखा है जिसके चलते सारे क्षेत्रों को देश और विदेश के पूंजीपतियों के लिए खोल दिया गया है लेकिन इस क़दम को “आत्मनिर्भर” बनाने की कोशिश कहा जा रही है। वास्तव में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पूंजीपति “आत्मनिर्भर“ बन रहे हैं क्योंकि इस नीति के चलते मज़दूर वर्ग का शोषण करने की उन्हें खुली छूट दी गई है।

सभी सरकारों ने निजीकरण की नीति को तेज़ी से लागू करने की तरफ क़दम बढ़ाए हैं। सभी सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के बुनियादी ढांचों का निर्माण मज़दूर वर्ग की मेहनत की कमाई से हुआ है। इन संस्थानों को धीरे-धीरे लचर बनाकर अंत में उन्हें पूंजीपतियों के हाथों में बेच दिया जाता है ताकि वे मज़दूरों का शोषण करके और उन्हें लूटकर मनचाहा मुनाफ़ा कमा सकें। बयान में बताया गया है कि हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग विदेशी बाज़ारों में अपने मुनाफ़ों को अधिकतम बढ़ाने की चाह को पूरा करने के लिए विदेशी पूंजीपतियों के साथ मिलकर उन्हें अपने देश में घुसने देने के लिए तैयार है।

एक तरफ जहाँ “अनेकता में एकता” हमारे देश में सबसे ज्यादा लगाया जाने वाला नारा है, वहीं दूसरी तरफ हम अभी भी जाति और सांप्रदायिक विभाजन के कारण भेदभाव के साक्षी हैं। “बांटो और राज करो” की नीति अंग्रेजों की एक विरासत है जो आज भी जारी है और वास्तव में हिन्दोस्तानी सत्ताधारी राज्य ने उसमें और भी निपुणता हासिल की है। जब भी राज्य का पर्दाफाश होता है तब सांप्रदायिक तनाव फैलाकर लोगों का ध्यान भटकाया जाता है। अंग्रेजों ने भगत सिंह को “देशद्रोही” ठहराया था क्योंकि वे हमारे देश को शोषक बर्तानवी राज से मुक्त करने की लड़ाई लड़ रहे थे। आज भी जो अपने हक़ों की लड़ाई लड़ते हैं या राज्य के खि़लाफ़ अपनी आवाज़ को बुलंद करते हैं उन्हें “देशद्रोही” कहा जाता है। जब बर्तानवी शासकों ने हमारा देश छोड़ा तब “गोरे साहबों” की जगह “काले साहबों” ने ले ली, और उन्होंने न सिर्फ बर्तानवी शासकों के राज्य और सत्ता को बल्कि देश पर राज करने की उनकी नीतियों को भी अपनाया।

लोगों के ध्यान को भटकाने के लिए सत्ताधारियों ने हमेशा ही “देशभक्ति” की भावनाओं को भड़का कर उसका इस्तेमाल किया है। चीन और पाकिस्तान के खि़लाफ़ लगातार जहरीला प्रचार फैलाया जा रहा है जबकि दुनिया के सबसे बड़े आतंकवाद के प्रायोजक, अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ गठबंधन मजबूत किये जा रहे हैं।

5 सालों में एक बार लोगों को अपने उस हक़ का इस्तेमाल करने का अवसर मिलता है जो ऐसी एक पार्टी को चुनने तक सीमित होता है जो हुक्मरान वर्ग का प्रबंधक बनकर मज़दूर वर्ग को लूटेगी और पूंजीपति वर्ग के हितों को आगे ले जाएगी। वास्तव में राज्य पूंजीपति वर्ग के हाथों में एक उपकरण है और इसका उपयोग जनता को धोखा देने के लिए करते हैं।

हमारे देश के लोगों को इसका शासक बनना होगा और 1857 के ग़दरियों की पुकार को सच साबित करना होगा – “हम हैं इसके मालिक हिन्दोस्तान हमारा है।”

धन्यवाद,

शिरीन, पुणे

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